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मन की सेहत भी संभालें

मन की सेहत भी संभालें

शरीर की तरह ही मन को भी बीमारियाँ, थकान और भावनात्मक टूटन तभी घेरती है जब समय-समय पर उसकी संभाल नहीं होती | ऐसे में मन की मरम्मत करने के लिए नेगेटिविटी और उलझनों को कोने-कोने से निकाल बाहर करना जरूरी है | चिंता, अवसाद, क्रोध और कितने ही नेगेटिव इमोशंस को जड़ जमाने से पहले ही उखाड़ फेंकना होता है | जैसे अनियमित खानपान और बेतरतीब जीवनशैली से बिगड़े शरीर के मिजाज को ठीक करने के लिए बॉडी को डिटॉक्स करने की जरूरत होती है| वैसे ही मन को भी डिटॉक्सिफिकेशन की दरकार होती है | इस प्रक्रिया में थोड़ा ठहराव, खुद का साथ और सोच की सही दिशा, मन को भी नेगेटिव बातों और हालातों से बाहर निकाल लाती है |

एकांत भी जरूरी -

आज के समय में हम चाहे-अनचाहे एक जब-गज़ब भीड़ से घिरे हैं | इसमें मन का अकेलापन तो है लेकिन सुकून भरा एकांत नहीं | ऐसे में मन के डिटॉक्सिफिकेशन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है एकांत | कुछ ऐसे पल जब अपने आप की सुध ली जाए | क्योंकि मन हो या दिमाग दिनभर कई उलझनों और उतार-चढ़ावों को जीते हैं | प्रतिक्रिया देते हैं | आलोचना और सराहना जैसे कई भावों को जीते हैं | अकसर देखने में समझ नहीं आता पर ऐसे सभी इमोशंस मन-मस्तिष्क को बहुत प्रभावित करते हैं | इसीलिए दिलो-दिमाग को संभाल देखभाल की दरकार होती ही है | इसके लिए ठहरकर सोचना जरूरी है | काम और आराम का संतुलन शारीरिक थकान से बचने के लिए ही नहीं मानसिक ऊर्जा को सहेजने के लिए भी जरूरी है | मन को डिटॉक्स करने प्रक्रिया में निकाला गया एकांत इसी संभाल का काम करता है | ऐसे सुकूनदायी लम्हे नई ऊर्जा जुटाने और मन को सेहतमंद रखने के लिए बेहद जरूरी हैं |

व्यक्तित्व, व्यवहार और जीवनशैली का मूल्यांकन

हर बार औरों को गलत समझ लेने के ख्याल से बाहर आने का रास्ता यही है कि अपने गुण दोषों पर भी गौर किया जाय | लेकिन भागमभाग में उलझे रहें तो यह संभव नहीं | एक्शन और रिएक्शन की भागदौड़ में अपने ही बिहेवियर को लेकर सोचने का समय नहीं बचता | ऐसे में अक्सर हम खुद को हर हाल में सही ही मानने लगते हैं | गुण दोषों का आकलन केवल दूसरों के व्यवहार तक सिमट जाता है | लेकिन यह भी सच है कि औरों की बातों और व्यवहारगत परेशानियों का हल हमारे पास नहीं होता | लेकिन खुद को बेहतर बनाने या हालातों का सामना करने की कोशिश हर हाल में की जा सकती है | यही सोच मन की नेगेटिविटी को दूर कर सुकून देने वाली है | साथ ही स्व-मूल्यांकन की सोच हमें भावी जिंदगी के लिए भी सकारात्मक सोच की सौगात देती है |अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के एक सर्वे के मुताबिक करीब 43 फीसदी वर्कफोर्स सप्ताह के ज्यादातर दिनों में थकान महसूस करती है । कामकाजी लोगों के इन आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है कि लोगों की कितनी बड़ी संख्या है जिन्हें अपनी जीवनशैली का मूल्यांकन करने की जरूरत है। निःसंदेह खुद को रिव्यू करने इस प्रक्रिया में मन की सेहत बहुत अहम् है |

लीजिए टेक्नॉलॉजी से ब्रेक-

स्मार्टफोन और आइपैड स्मार्ट गैजेट्स को बिना किसी जरूरी काम के स्क्रॉल करते रहना हमारे मन के लिए बेवजह की कल्टरिंग का काम करता है | बेवजह की सूचनाओं और दूसरे लोगों की जिंदगी से जुड़े अपडेट्स मन पर एक अनदेखा भार बढाते हैं | कभी दूसरों से पीछे छूट जाने का भाव आता है तो कभी अपनी खुशियाँ कम पड़ती दिखती हैं | स्क्रीन के उस ओर दिख रही या दिखाई जा रही दुनिया की सच्चाई जाने बिना ही हमारा मन अवसाद और तनाव में घिरने लगता है | ऐसे में मन की मरम्मत करने के लिए टेक्नीकल डिटॉक्स बेहद जरूरी है | यूँ भी दिनभर स्मार्ट गैजेट्स को ताकते रहना हमें इनका लती बनाता है | जो हमें जाने-अनजाने शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार ही बना रहे हैं | समय रहते ना चेतें तो इन हालातों से निकलने के लिए प्रॉपर काउंसलिंग की भी जरूरत पड़ सकती है| याद रहे कि मन को साधने के लिए भी एक प्रतिबद्धता की दरकार होती है| आज एक दौर में स्मार्ट गैजेट्स हमारे सभी कमिटमेंट्स को पूरा करने में बड़ी बाधा बन रहे हैं| साथ मन-मस्तिष्क की सेहत को सहेजने के लिए इनकी जरूरत और लत का फ़र्क समझना बेहद जरूरी है | वैसे मन की मरम्मत के लिए यह फर्क हर मामले में समझना जरूरी है | तभी तो स्मार्ट गैजेट्स से दूर होना ही काफी नहीं, इनसे बचाये हुए समय को रचनात्मक कार्य में लगाने की भी सोचें | इस खालीपन को किसी दूसरी गैर-जरूरी आदत से भरकर मन की ऊर्जा खपाने वाली नई मुसीबत न पालें|

बचाएगा प्यार और आभार -

हालिया बरसों में हमारे यहाँ भी रिश्तों से लेकर कामकाज के संसार तक, उलझनें ही उलझनें हैं | बीते समय के घाव और आने वाले समय की चिंतायें जीवन के साथ चाहे अनचाहे कदमताल करती रहती हैं | भूत और भविष्य से जुड़ी बातें वर्तमान की ऊर्जा सोख लेती हैं | इसने मुक्ति पाने के लिए मन को समय-समय पर इस बोझ से मुक्त करना जरूरी होता है । खुद को यह समझाना आवश्यक हो जाता है कि बीते समय को लेकर पश्चाताप और अपराधबोध हो या आने वाले वक्त की फिक्र | इस जाल में उलझकर आज को नहीं खोया जा सकता | ऐसे में विचारों की उलझन और व्यवहार के भटकाव पर ब्रेक लगाने के लिए भी मन को डिटॉक्स करना जरूरी है | इस प्रोसेस में आभार और प्रेम का भाव मददगार बन सकता है | बीते समय में कुछ पाने-खोने और आने वाले सालों में आपकी झोली में क्या आयेगा या नहीं आएगा की उलझनों के बीच एक पहलू आज का भी होता है | आज में जीते हुए जो कुछ आपके हिस्से है उसके प्रति आभरी होने का अहसास कई तकलीफों से बाहर निकालता है | मन को सहज रखता है | दिलो-दिमाग अपने साथ नेगेटिविटी की पोटली बांधे नहीं चलता | जो आपको टॉक्सिक फ्री माइंड की सौगात देता है | मन को बीमार होने से बचाता है |

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