नाकामयाब शादियों के बढ़ते मामले चिंतनीय Dr Monika Sharma द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • ऋषि की शक्ति

    ऋषि की शक्ति एक बार एक ऋषि जंगल में रहते थे। वह बहुत शक्तिशा...

  • बुजुर्गो का आशिष - 9

    पटारा खुलते ही नसीब खुल गया... जब पटारे मैं रखी गई हर कहानी...

  • इश्क दा मारा - 24

    राजीव के भागने की खबर सुन कर यूवी परेशान हो जाता है और सोचने...

  • द्वारावती - 70

    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न...

  • Venom Mafiya - 7

    अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई...

श्रेणी
शेयर करे

नाकामयाब शादियों के बढ़ते मामले चिंतनीय

नाकामयाब शादियों के बढ़ते मामले चिंतनीय

कुछ समय पहले आई संयुक्त राष्ट्र की "प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्ड्स विमेन 2019-2020 ­ फेमिलीज इन ए चेंजिंग वर्ल्ड" रिपोर्ट के मुताबिक हमारे यहाँ नाकामयाब शादियों के आंकड़े तेज़ी से बढ़ रहे हैं | गाँवों-कस्बों से लेकर महानगरों तक वैवाहिक रिश्तों में बिखराव के मामलों में इजाफा हुआ है | बीते दो दशकों के दौरान तलाक के मामले दोगुने हो गए हैं | यूएन की यह रिपोर्ट बताती है कि एकल परिवारों की बढ़ती अवधारणा के कारण देश में एकल दंपतियों वाले परिवारों की संख्या बढ़ रही है | भारत जैसे सुदृढ़ सामाजिक -पारिवारिक ढांचे वाले समाज में टूटते परिवारों के बढ़ते आँकड़े ही नहीं कारण भी वाकई विचारणीय हैं |

दरअसल, हालिया बरसों में हमारे घरों में महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता के पहलुओं पर बहुत कुछ बदला है | बावजूद इसके सामाजिक-पारिवारिक स्तर पर स्त्रियों एक प्रति आज भी एक बंधी-बंधाई सोच कायम है | पुरुष वर्चस्व ही देखने को मिलता है | जबकि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और उच्च शिक्षित युवतियां परिवार से जुड़े फैसलों में भागीदारी चाहती हैं | अपने स्वतंत्र अस्तित्व के मायने समझती हैं | अपनी सोच और समझ को लेकर अपनों से स्वीकार्यता और साथ देने की उम्मीद रखती हैं | लेकिन अधिकतर परिवारों में महिलाएं आज भी खुलकर अपनी सोच जाहिर नहीं कर सकतीं | उनकी राय की तव्वजो नहीं दी जाती | नतीजतन, रोजमर्रा की ज़िंदगी में या तो तनाव और टकराव बढ़ रहा है या संवादहीनता की स्थितियां आ रही हैं | दोनों ही परिस्थतियों में पति-पत्नी के बीच मतभेद बढ़ते हैं | जो अकसर तलाक का कारण बनते हैं | यू एन की इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि बीते दो दशकों के दौरान महिलाओं के अधिकार बढ़े हैं | लेकिन परिवारों में मानवाधिकार उल्लंघन और लैंगिक असमानता के मामले जस के तस हैं | ऐसे हालातों में महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा की भी चिंतनीय स्थितियां बनी हुई हैं और परिवार भी बिखर रहे हैं |

आज भी शिक्षित, सजग और सक्षम लड़कियों को भी पारिवारिक मोर्चे कई अनचाही स्थितियां झेलनी पड़ती हैं | हालांकि परिवार और समाज का पूरा ढांचा अब काफी हद तक बदल गया है, पर सभी बदलाव सकारात्मक भी नहीं हैं | जीवनशैली से लेकर विचार और व्यवहार तक ज़िंदगी बहुत कुछ ऐसा जुड़ गया है, जो घर-परिवार में बिखराव ला रहा है | उन्मुक्त जीवन शैली, संवाद की कमी, असंवेदशील सोच, असहिष्णुता जैसे कारण भी वैवाहिक रिश्तों के टूटने का कारण बन रहे हैं | सहनशीलता और सकारात्मक सोच में कमी के चलते छोटी-छोटी वजहों से भी शादीशुदा जीवन बिखर रहा है | यहाँ तक कि स्मार्ट गैजट्स ने भी रिश्तों में सेंध लगाईं है | उच्च शिक्षित और आर्थिक रूप से सक्षम पति-पत्नी एक दूसरे की बात न सुनना जरूरी समझते हैं और न ही समझना | सामंजस्य और समझ की कमी पति और पत्नी दोनों में देखने को मिल रही है | एक समय में शादी के रिश्ते में सामंजस्य और समझौते लड़कियों की अनकही जिमेम्दारी हुआ करते थे | लेकिन आज की आत्मनिर्भर और पढ़ी-लिखी लड़कियाँ उम्मीद रखती हैं कि निबाह की कोशिश दोनों ओर से की जाय | ऐसे में शादी के बंधन को बचाये रखने के लिए लड़कियों के मन को समझने और उनका साथ देने की सोच की दरकार है |

असल में देखा जाय तो नाकामयाब शादियों की बढ़ती संख्या केवल एक आँकड़ा भर नहीं है | यह हमारे बिखरते सामाजिक ताने-बाने का आइना है | इसीलिए जो सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक कारण इस बिखराव को पोषित कर रहे हैं, उन्हें समझना जरूरी है | भारत में शादी के 5 साल में ही तलाक की इच्छा रखने वाले युवाओं के हजारों मामले कोर्ट में फैसले का इंतजार कर रहे हैं | ऐसे मामले भी देखने में आ रहे हैं जिनमें शादीशुदा जोड़े कई साल साथ बिताने के बाद तलाक ले रहे हैं | कभी रिश्ते में भावनात्मक दूरी तो कभी जिम्मेदारियों को ना निभाने की सोच । मामूली अनबन और मनमुटाव भी अब तलाक का कारण बन रहा है | इंडियास्पेंड वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में अहम का टकराव और बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के कारण भी तलाक के आंकड़ों में इजाफा हो रहा है | खासकर लड़कियों की कामयाबी और महत्वाकांक्षाओं को आज भी खुले दिल से स्वीकार नहीं किया जाता | जरूरी है कि अब समाज और परिवार महिलाओं की काबिलियत और आगे बढ़ने की इच्छाओं को भी समझे, सम्मान करे और सहयोगी बने | एक- दूसरे से तालमेल बैठाने के भाव के बिना कोई परिवार नहीं चल सकता, यह अब महिलाओं को ही नहीं पुरुषों को भी समझना होगा |

*****