मौत का उत्सव Meenakshi Singh द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मौत का उत्सव

मौत का उत्सव

दो दिन से हर न्यूज चैनल पर उमा देवी की चर्चा हो रही है। हर बहस के केन्द्र में उनका नाम है। सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष में जुबानी जंग छिड़ी हुई है। तीन दिन पहले "अभी तक" चैनल ने उनका इंटरव्यू लिया था, तब से एक गुमनाम महिला हर न्यूज चैनल की सुर्खियों में है।
एक कातिल की माँ उमा देवी छा सी गयी है सुर्खियों में। उनके बेटे अनमोल ने एक शेल्टर होम के संचालक रविकांत दीक्षित की उस वक्त गोली मारकर हत्या कर दी, जब उसे पुलिस पकड़कर ले जा रही थी। उसे मारकर अनमोल ने खुद को ये कहते हुए पुलिस के हवाले कर दिया कि इस दरिंदे को मारने का मुझे कोई अफसोस नहीं, कानून जो सजा दे.. मुझे स्वीकार है।
खबरों के गलियारों में अचानक से तहलका मच गया, हर जुबान पर बस एक ही बात.. "आखिर कौन है ये अनमोल..??"
इस वारदात के अगले दिन उमा देवी का नाम लोगों के सामने आया, जब "अभी तक" चैनल पर उनका इंटरव्यू प्रसारित किया गया।
करीब पच्चीस साल पहले की बात है, जब उमा मोती बाग शेल्टर होम में रहने वाली बारह साल की लड़की थी। उन्हें नवजात शिशु के रूप में कोई शेल्टर होम के गेट पर कोई छोड़ गया था.. और वहाँ के नर्क भरे माहौल में उनका बचपन गुजरता रहा। वैसे इसे बचपन कहना भी बचपने की तौहीन होगी। शायद किसी खुबसूरत माँ और बिगड़े बाप की ऐय्याशी की पैदाइश थी वह, जिसे अपना पाप छिपाने की नियत से वासना की अगली सीढ़ी चढ़ने की मंशा के साथ छोड़ दिया गया था।
उस शेल्टर होम के कुछ कमरों से अक्सर लड़कियों के चीखने की आवाज सुनाई देती रहती थी, तो कभी तमाचे की आवाज के साथ मर्द की कड़कती आवाज.. चुप्प स्साली.. हराम.. मुँह बंद कर वरना लाश का भी पता नहीं चलेगा और फिर वो चीख अक्सर करूण दबी आवाज में तब्दील हो जाती।
तब इतनी समझ नहीं थी उमा देवी में कि अंदर क्या हो रहा है, पर इतना समझ आता था कि कुछ गलत जरूर हो रहा है, जो भयावह है।
समय के साथ वे बड़ी हो रही थी, तेरहवें साल में प्रवेश कर गयी थी। शारीरिक बदलाव अपनी रंगत दिखाने लगा था। माँसलता शरीर पर सुसज्जित होकर सुडौलता के रूप में निखरने लगा था। वे एक अधखिली सी कली के रूप में बला की खुबसूरत दिखने लगी थी, यही खुबसूरती देकर कुदरत ने उनके साथ दोहरा अन्याय कर दिया।
वैसे तो भूखे भेड़ियों के लिए शारीरिक सुंदरता कोई खास मायने नहीं रखती। उन्हें अपनी हवस को मिटाने के लिए बस हाड़-माँस का बना एक मादा शरीर चाहिए होता है, परंतु अगर उस शरीर में भूखी निगाहों को तृप्त करता शारीरिक सौंदर्य भी हो तो ऐसे शरीर को रौंदते वक्त वो भेड़िया अपने आपको दुनिया का सबसे शक्तिशाली प्राणी समझ बैठता है।
उस मनहूस घड़ी में वे नहाकर अपने कमरे की ओर जा रही थी, जब रसूखदार संचालक रविकांत दीक्षित की नजरें उन पर पड़ी।
उसके ऑफिस में जाने के थोड़ी देर बाद संचालिका दीप्ति भटनागर उमा के पास आई और बोली, " उमा, तुम्हें थोड़ी देर के लिए रविकांत सर के पास जाना पड़ेगा।"
अमूमन जब भी किसी लड़की को इसतरह बुलाया जाता था तो कोई और बुलाने आता था, दीप्ति भटनागर नहीं। उमा की मासूमियत उन्हें बहुत प्यारी थी, उनके खुद आने की शायद ये वजह रही हो।
"माँ, मैं भी.."
"हाँ, उमा.. तुम भी.. मेरे पेट का सवाल है, कोशिश की थी मैंने कि तुम्हें जाना नहीं पड़े.. पर वो नहीं माना, तुम्हें जाना तो पड़ेगा..!!"
इस तरह एक हलाल होने वाली बकरी की तरह उमा को उस कमरे में कसाई के सामने भेजकर दरवाजा खींच दिया गया।
"अभी तक" चैनल पर उमा देवी ने आगे कहा, " मैंने डर से रविकांत दीक्षित के सामने हाथ जोड़ दिए पर वो दरिंदा नहीं पिघला।"
चेहरे पर शैतानी हँसी लाकर बोला, " किसी छिनाल माँ की ही तो पाप हो तुम, कुछ देर मेरे साथ सो जाओगी तो क्या फर्क पड़ेगा। आज तुझे देखकर मुझे मेरी पुरानी प्रेमिका की याद आ गयी, जिसके साथ प्यार का लंबा नाटक खेला था मैंने, पर साली मेरे साथ गुलछर्रे उड़ाकर किसी और के साथ घर बसा ली। आज उसका बदला तुमसे लेने का जुनून सवार है मेरे शरीर पर, चल आ जा..!!
"सर, हो सकता है वो मेरी माँ हो और आप मेरे...........
"चुप्पप..... हराम...... खबरदार जो कोई रिश्ता ढ़ुंढ़ा तो.. तुम जैसे गटर के कीड़ों से मेरा कोई रिश्ता नहीं, बस इतना याद रखो कि किसी के पाप की औलाद हो तुम ! तुम्हारा जन्म ही हुआ है हम जैसे इज्जतदार लोगों की भूख मिटाने के लिए।"
इतना कहकर उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया.. नोंचता, खसोटता रहा मेरे शरीर को। मैं चीखती चिल्लाती रही और वो मेरे गालों पर चाँटे मारता रहा। मेरी चीखें उसके कुकृत्य में ज्यादा खलल न डाले, ये सोचकर उसने मेरे मुँह में रूमाल ठुंस दिया और तब तक मेरे जिस्म को रौंदता रहा, जब तक उसकी हवस नहीं मिट गयी।
इतना कहकर उमा देवी ने अपनी आँखें बंद कर ली। कुछ क्षण में अपनी आँखें खोलकर एक साँस में पानी का पूरा गिलास गटक गयी।
कुछ क्षण चुप्पी छाई रही, फिर उन्होंने आगे बोलना शुरू किया। अब जब-जब उस दरिंदे के शरीर पर हवस हावी होता, वो तब-तब शेल्टर होम आकर बस मुझे ही अपने पास भेजने की पेशकश करता और मेरे जिस्म को जमीन का एक टुकड़ा समझकर बैलों की तरह जोतकर चला जाता।
कुछ समय बाद पता चला कि मैं प्रिग्नेंट हूँ। मेरा पंद्रहवाँ वर्ष पूरा होने वाला था, वो मेरे साथ डेढ़ साल से अपनी भूख मिटा रहा था। उसने दीप्ति जी से मेरा अबार्शन कराने को कहा, ताकि वो आगे भी अपना ये खेल जारी रख सके।
दीप्ति जी उस रात मेरे पास आईं और बोली, "उमा, पहले ही तुम्हारे साथ बहुत बुरा हो चुका है। अब मैं और गुनाह नहीं कर सकती। आज रात तुम्हें इस शहर से बाहर अपनी एक सहेली के पास भेजवा दूँगी। इस बच्चे को रखना या हटाना पूरी तरह तुम्हारा फैसला होगा। निशा एक एन. जी. ओ. चलाती है, उससे मेरी बात हो चुकी है। तुम्हें उसके पास कोई परेशानी नहीं होगी।
इस तरह उसके बाद मेरे नसीब के दूसरे दरवाजे खुले। वहाँ जाकर मुझे एक अलग कमरा दिया गया। वहाँ मेरे जैसी काफी लड़कियाँ और महिलाएँ रहती थी।
निशा जी के पूछने पर मैंने उन्हें अपने गर्भ को रखने की बात कही।
उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "मुझे तुम्हारे जैसी हिम्मत वाली लड़कियाँ पसंद हैं। मैं तुम्हारे इस फैसले में तुम्हारे साथ हूँ।"
इतना कहकर उमा देवी ने फिर एक गिलास
पानी पिया और फिर उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ सधे लफ्जों में कहा, "मेरा यही बच्चा अनमोल है।"
"उस एन. जी. ओ. में हमें कुछ काम सिखाए जाते थे, जिससे कुछ कमाई हो सके। मैं सिलाई सीख रही थी। निशा जी का स्नेह सदा मेरे साथ रहा।
उन्होंने शादी नहीं की थी और मुझे एक माँ जैसी ममता दे रही थी। समय बीतता रहा, अब अनमोल बड़ा होने लगा था।"
निशा जी की सलाह पर मैंने उसका एडमिशन करवा दिया। उसकी गिनती क्लास के मेधावी छात्रों में होती थी। तीन साल पहले उसका चयन बैंकिंग सर्विस रिक्रूटमेंट बोर्ड द्वारा किया गया।
कुछ दिन पहले जब उसी शेल्टर होम में जब छोटी-छोटी बच्चियों के लापता होने और रेप के सिलसिले में रविकांत दीक्षित का नाम दिखाया जा रहा था तो मेरे वो जख्म, जो मैंने दबा रखे थे.. फिर से हरे हो गये।
तभी अनमोल कमरे में आया और टीवी पर लगे न्यूज को देखकर बोला, " माँ, चैनल बदलो.. ऐसी खबरें दिन भर की थकान को और भी बोझिल बना देता है।"
मैं भावुकता में उससे कह गयी, " अनमोल, तुमने मुझसे कई बार पूछा कि तुम्हारा बाप कौन है और मैं ये कहकर टालती गयी कि जाने दो बेटा.. किसी राक्षस से रिश्तेदारी खोजकर सिवाय परेशानी के और कुछ नहीं मिलेगा।"
आज वो दिन आ गया है जब तुम जान लो कि तुम्हारा बाप कौन है, यही दरिंदा रविकांत दीक्षित तुम्हारा बाप है..!!
एक लंबी साँस लेते हुए आगे कहा, तब तुझे नहीं पता था कि अनमोल उसे मार देगा, पर आज मुझे अनमोल के इस गुनाह पर कोई अफसोस नहीं। ये काम मुझे पच्चीस साल पहले करना चाहिए था, तो आज तक काफी सारी मासूमों की जिंदगी बर्बाद होने से बच जाती।
जानती हूँ कि उसके जैसे काफी सारे रविकांत दीक्षित हैं, जिनके सिर पर सरकारी तंत्र का हाथ होता है।उन्हें मोटी सरकारी अनुदान राशि मिलती है। संचालिकाएँ लालच में अंधी होकर और कुछ अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में असंवेदनशील बन जाती हैं। अब अनमोल ने अपना बदला पूरा कर लिया है, जिसे वो बचपन से लोगों द्वारा नाजायज औलाद की गाली के रूप में सुनता आया है।
हो सकता है कि उसे कड़ी सजा मिले.. न्याय खरीद लिया जाए, फिर भी मैं इस चैनल के माध्यम से सरकार और न्यायपालिका से अपील करती हूँ कि अनमोल की जगह खुद को रखकर देखें और फिर फैसला दें। इस देश की जनता की संवेदना इस मुश्किल घड़ी में अनमोल के साथ होगी, ये मुझे विश्वास है ।
एक माँ का दिल अपने बेटे के लिए दुखी तो है लेकिन वही दिल एक दरिंदे की मौत पर आज उत्सव मनाना चाहती है। हाँ, मैं आज मौत का उत्सव मनाना चाहती हूँ.. अपने हर जख्म, जो आज भी नासूर बनकर मुझे चुभते रहते हैं.. अपनी खुशियों से उस पर मरहम लगाना चाहती हूँ। उन सभी लड़कियों के जख्म को सुकून बनाकर अपने अंदर दफन कर लेना चाहती हूँ, जिन्होंने उस दरिंदे की हैवानियत को झेला है।
ये इंटरव्यू चर्चा की गलियारों में छा सी गयी। अब ये आने वाला समय बताएगा कि अनमोल को क्या सजा मिलती है। सरकार और विपक्ष के राजनीतिक तिकड़म बाजियों में किसकी शह और किसकी मात होती है।
इतना कहते हुए उमा देवी ने हाथ जोड़ दिए।
मीनाक्षी सिंह
वापी, गुजरात