इश्क़ 92 दा वार - 1 Deepak Bundela AryMoulik द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

इश्क़ 92 दा वार - 1

वो मोहब्बत की चिंगारी 90 के दशक से सुलगना शुरू हों चुकी थी... मौसम वसंती हो कर अपने शवाब की और बढ़ रहा था.... हर यौवन के दिलों दिमांग में कही ना कही कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था जो जवानी की देहलीज़ पर थे उनके मन का इस्थिर पन अब विचलित हो चला था.... मन में कोई राग बस यू ही बजने लगता तो स्कूल के युवाओं की गुन गुनाहट यदा कदा कानों में सुनाई देने लगी थी.... पर किस के मन में कौन था किस के लिए ये संगीत था ये तो वही जानें... पर हा एक जगह थी जहां नज़रों ही नज़रों में कोई एक दूसरे का सुकून चैन छीन रहा था... जब पहली दफा नज़रे मिली तो कुछ अजीब से सुकून का एहसास हुआ... और वो एहसास रोज़ की आदत में बदल चुका था जब दोनों मेसे कोई एक किसी को ना दिखे तो सारा दिन कोई एक मायूश रहता.. लेकिन करे भी तो क्या... कुछ भी तो बस में नहीं था... तो मन की कसक मन में ही रख कर सारी रात उन हसीन आंखो की तस्वीर को महसूस कर के गुज़र देते... अल सुबह फिर समय से पहले घर से भागने को मन मचल उठता... ना नास्ता हलक से उतरे ना दूध... बस जितनी जल्दी हो मुकाम पर पहुंचने की तड़प छट पटाने लगती थी... और एक नई उमंग और चाहत की गुज़ारिश में पता ही ना चलता के स्कूल के समय के कितने पहले तीरे नज़र के दीदार को आ खडे हुए.... हर पल घंटो की माफिक कटता और नज़रे कमबख्त उसके आने के रास्ते से हटती ही नहीं.... और काफ़ी इंतज़ार और मशक्कत के बाद वो वक़्त आ ही जाता... जो सिर्फ और सिर्फ कुछ छड़ो के लिए नज़रे मिलती और बस... मानो सब मिल गया हो.... और ये नशा फिर नज़रों के अगले दीदार तक बना रहता... कभी फिर मन में ख्याल उभरता कल मुलाक़ात होंगी या नहीं.... और फिर वही सबाल और जबाब की रात... जो सुबह होने तक कशमो कश में कटती....

नज़रों की मुलाकातों का ये सिलसिला चलते चलते 91वें के दसक में पहुंच गया था लेकिन जिस्म से अनजान को अनजान कहना भी मुनासिब न होगा... क्योंकि नज़रे तो परिचित हो चुकी थी... और दिल भी तो एकदूजे का हो चुका था बस कमी थी की पहला शब्द अपने हलक से कौन निकाले... यही सोचते सोचते इस मुलाक़ात का दूसरा बसंत आ चला था...

आज अनु और मनु ने ठान ही लिया था अब चाहे जो हो इस रिश्ते को कोई तो शब्द देना होगा...अनु आईने के सामने ख़डी होकर कई बार प्रेक्टिस कर चुकी थी... लेकिन वो नज़रों का जब उसे एहसास होता तो चेहरा लाल हो उठता और नज़रे शर्म से झुक जाती... तभी मन की आवाज़ उसे कानों में सुनाई देती... तुझसे ना होगा... क्यों फ़ालतू के इश्क़.में पड़ी है.... लेकिन दिल तो मज़बूर था उसने तो जुवान और कान को अपने काबू में जो कर रखें थे... बस तभी होंठ हिल पढ़ते है ... अ... अ.. आई.... ल.s.s.s...व.... यू.... और अनु शर्मा कर दौड़ती हुई कमरे के बाहर निकल कर भाग जाती है... इश्क़ का जोश ना जानें कितनी हिम्मत दे देता है ये तो इश्क़ करने ही वाला जानता है.....