इस दश्‍त में एक शहर था - 19 Amitabh Mishra द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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इस दश्‍त में एक शहर था - 19

इस दश्‍त में एक शहर था

अमिताभ मिश्र

(19)

यह जो महानगर की शकल लेता ये शहर है यह दरअसल मूलतः एक कसबा था और फिर जिस सुलकाखेड़ी गांव के पीलियाखाल के किनारे का किस्सा जो हम कह रहे हैं ये तो ठेठ देहात में ही रहे और रहते भी उसी अंदाज में। वे सब मरद अगर घर में हैं तो चड्ढी बनियान या कहें घुटन्ना और बंडी में ही मिलेंगे। निपटान के लिए पीछे पड़ी जंगल की जमीन में ही जाते रहे जहां यदि नाले चल रहे होते तो लोटों की भी जरूरत भी नहीं रहती और हां अकार वे सामूहिक निपटान के लिए जाते थे गहन चर्चा भी हो जाती थी वहां पर। उस समय यह शहर मासूम खयालों में डूबा हुआ एक कसबा था जिसके मिजाज में एक सुकून बसता था। यह शहर क्या पूरा मालवा ही अपनी अलाली के लिए मशहूर था। इस शहर का मौसम खुशनुमा था, हवा साफ थी, पानी साफ था, नीयत साफ थी। आप कहीं भी कुछ भी खा सकते थे पचा सकते थे। न शहर का पेट दुखा करता था और न ही आपका। कुछ भी खा लें पी लें सूंघ लें अच्छा ही लगता था। नदी नाले जंगल बकायदा शहर में थे। मोर दिखते थे यहां वहां। रात में सियारें की हुआ हुआ सुनाई देती थी। हम जहां का जिकर कर रहे हैं वहां नाला जमीन के तीन तरफ से निकलता था वह नाला साफ पानी का नाला था तब के लोगों के ईमान की तरह साफ नाला था जिसमें नहा लो धो लो जरूरत हो तो पानी भी पी लो सतत बहता हुआ नाला था। तीन कुंएं, एक झिरिया, एक कुंए में बकायदा मोटर फिट, रहट लगा हुआ, हौद बनी हुई जिसे बंबा कहा जाता था जिसमें नहान का कार्यक्रम होता था और रहट से खेती। मंदिर, घाट, नाला, ख्ुला मैदान, जंगल, आंगन, दरवाजे बराबर खिड़की वाला लकड़ी की शहतीरों वाला बड़ा सा मकान जिसमें दरवाजा इतना बड़ा कि हाथी घुस जाए जिसमें रहते सीधे सरल सच्चे लोग, एक दूसरे की मुश्किलों में खड़े लोग। कबीट, बेर, अमरूद, खजूर, पीपल, बड़, ़बबूल और तमाम तरह की झाड़ियों से घिरा यह इलाका किसी द्वीप से कम नहीं था। सांप ढेर निकलते थे घेाड़ापछाड़, करैत, गेहु्रअन, पनियल और कोबरा प्रजाति के सांप थे यहां जिनसे डरना नहीं सीखा। दिखे तो मारो उसको या हर अवांछित को पीटो यह पीलियाखाल का अलिखित नियम था। इसके पीछे एक बात थी कि सूने इलाके में रहो तो ये आतंक बनाकर रखना पड़ता है वरना कोई भी कभी भी लूट ले। इसके लिए तय थे लोग तिक्कू चाचा की अगुवाई में यह काम निर्विघ्न संपन्न होता था और आतंक बना हुआ था। बड़े गणपति के पहले आगे का पुल पार कर लो, बड़े गणपति के आगे निकल जाओ तो मिलती थी मालगंज मल्हारगंज के पास वरना ये इलाका किसी गांव से कम नहीं था। पुल के इस तरफ तो बकायदा कच्चे मकान गोबर से लिपे पुते मकान, सड़कों पर खेलते हुए बच्चे और साइकिलें दिखतीं थीं सड़क पर।

यह जिस खानदान की बात चल रही है वह दरअसल अपवादों में जीता हुआ खानदान है। कुछ जो बने बनाये मान्य नियम हैं उनको धता बताते हुआ ये खानदान है। मसलन ण्क मान्यता समाज में ये है कि घर में यदि पढ़ी लिखी स्त्री होगी तो उस घर में या कहें परिवार में बच्चे पढ़े लिखे होंगे। पर यहां अपवाद ये है कि नौ भाइयों में पांच की पत्नियां लगभग अनपढ़ हैं और चार अच्छी खासी पढ़ी लिखी हैं तो इन चार परिवारों में बच्चे बस अनपढ़ ही नहीं रहे बस पर कुछ ज्यादा पढ़ भी नहीं पाए और उन पांच अनपढ़ स्त्रियों के बच्चे पढ़ने लिखने में अव्वल रहे और बढ़िया षिक्षा पाई। इंजीनियर डॅाक्टर प्रोफेसर बने जब कि बाकी खुद का धंधा कर रहे हैं। एक और नियम है कि पढ़ लिखकर आदमी पैसा भी कमाता है बनिस्बत उसके जो पढ़ा लिखा नहीं है पर यहां आप उठा कर देख लीजिए जो पढ़ने लिखने में ज़हीन रहे अव्वल रहे उनके मुकाबले काबिलियत में उनसे कहीं कमतर भाई लोग बहुत ज्यादा कमा रहे हैं। एक भाई साहब तो हर तीन महीने में कार बदलते हैं लेटेस्ट माडल की सबसे महंगी कार बल्कि कारें होतीं हैं उनके पास और हर छठे चौमासे उनके घर का इंटीरियर पूरा का पूरा बदल जाता था एकदम लेटेस्ट आधुनिकतम। इस घर के कुछ चतुर सुजानों ने अपने हिसाब से जमीन का बंटवारा करवा लिया कालिकाप्रसाद से। उसके दस हिस्से किए गए बकायदा। ध्यान ये रखा गया कि जो जहां रह रहा है उसे वही जगह मिल जाए। उसके बाद भी काफी जमीन बचती थी जिसके बराबरी से हिस्से किए गए पर यहां नायब तहसीलदार भाई ने दसवां प्लाट अपने नाम किया आखिार सबकी मदद जो की थी तो कोई कुछ कह भी नहीं पाया।

इन नौ भाइयों में से चार भाइयों ने बहुत ही तरतीब से अपना और अपनों बच्चों की योजना बनाई बाकी पांच जैसा जीवन आता गया जीते गए। कुछ हद तक ठीक भी चला इन चारों का यानि विनायक , शिवानंद, शंकरलाल और बुद्धिनाथ। पर आखिर तक आते आते वो जमा जमाया सिलसिला यूं बिखरा कि जीने की योजनाएं धरी की धरी रह गईं। विनायक भाई का एक्सीडेंट, शिवानंद का असमय गुजर जाना, शंकरलाल के इकलौते बेटे की सांघातिक बीमारी से मौत और बुद्धिनाथ के र्नौकरी के दौरान छापा जिसने उन्हें छिन्न भिन्न कर दिया। सब कुछ अलग अलग समय पर अलग अलग तरीके से गुजरा जिस पर हम आगे बात करेंगे। पर एक बात जो इन नौ के नौ लोगों में एक थी वो थी कि वे एक साथ रहना चाहते रहे एक दूसरे के प्रति आखिर तक प्रेम बना रहा और आपस में मदद भी करते रहे। वह तो आने वाली नसलों ने अपने को धीरे धीरे अलग कर लिया।

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