जी-मेल एक्सप्रेस - 14 Alka Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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जी-मेल एक्सप्रेस - 14

जी-मेल एक्सप्रेस

अलका सिन्हा

14. ‘टीन एज प्रॉब्लम्स ऐंड टोटल पर्सनैल्टी’

क्वीना लिखती है कि हंसी-खुशी असल में किसी के साथ से मिलती है, न कि किसी घटना या बात से।

काफी समय बाद आज समीर भी सामान्य बरताव कर रहा था और हंसी-कहकहों के बीच हलके तौर पर ही सही, पर शामिल था। अभी वे यह तय कर ही रहे थे कि उन्हें अपने बसेरों की तरफ रुख करना चाहिए कि अचानक एक बाइक निकिता से टकराती हुई निकल गई। बाइक के पीछे बैठा व्यक्ति शायद झपटमारी के इरादे से निकिता पर लपका था, मगर उससे पहले ही निकिता अपने रास्ते की तरफ मुड़ने को हुई जिससे उसका निशाना चूक गया। उसका हाथ निकिता के सिर से टकराया और निकिता लड़खड़ाकर गिर पड़ी। उन लड़कों ने बाइक की रफ्तार तेज कर दी और भाग निकले। गिरते हुए निकिता का सिर फुटपाथ से जा टकराया और वह बेहोश हो गई। लड़कों ने जल्दी से सड़क घेरकर सामने से आ रहे एक टेम्पो को रोका। क्वीना निकिता के सिर को हथेली से दबाकर बैठ गई।

क्वीना लिखती है, उनकी वह पूरी रात अस्पताल में बीती।

उस रात उसने समीर की आंखों में आंसू देखे।

वह कह रहा था कि वह अब कभी अपना जन्मदिन नहीं मनाएगा।

वह लगातार खुद को कोस रहा था।

जब डॉक्टर ने बताया कि पेशेंट को होश आ गया है और वे उससे मिल सकते हैं, तब समीर सबसे पीछे खड़ा था। क्वीना ने महसूस किया कि वह निकिता के सामने पड़ने से कतरा रहा था। क्वीना के पूछने पर उसने बताया कि वह नहीं चाहता कि उसे देखकर निकिता मन पर किसी तरह का दबाव पड़े।

खैर! किसी तरह रात बीती और डॉक्टर ने आश्वस्त किया कि सिर के भीतर किसी तरह की चोट नहीं आई है और इसलिए वह खतरे से बाहर है। मगर निकिता ने गिरते समय अपना सारा वजन, दाहिनी कोहनी पर ले लिया था जिससे हाथ में फ्रैक्चर हो गया था।

डॉक्टर ने डेढ़ महीने के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया।

क्वीना निकिता के घर खबर करना चाहती थी मगर निकिता की जिद थी कि इस घटना के बारे में उसके घर पर कुछ न बताया जाए। क्वीना ने लाख समझाना चाहा कि ऐसे वक्त उसे अपने घर से किसी को बुला लेना चाहिये, उसे थोड़ा सहयोग हो जाएगा मगर निकिता की जिद के आगे क्वीना की कहां चल सकती थी, उसे निकिता के मुताबिक ही चलना पड़ा।

यों तो सेवन स्टार के साथियों ने निकिता को इस मौके पर किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी मगर एक दिक्कत थी। स्टेट लेवल की एक तकनीकी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कॉलेज के टेक-टैलेंट सोसायटी की तरफ से निकिता के वर्किंग मॉडल को चुना गया था। वह अपने मॉडल पर बहुत हद तक काम कर भी चुकी थी मगर अब जब कि इस प्रॉजेक्ट पर असली काम होना था, उसके हाथ में प्लास्टर लग गया।

क्वीना लिखती है कि उसने उसकी भरपूर मदद की मगर समय कम था और जल्दी ही उसने यह अहसास कर लिया था कि यह काम अकेले उसके बस का नहीं था। वह चाहती थी कि निकिता को वास्तविकता बता दे मगर निकिता की बेचैनी देख कर उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। ऐसे वक्त समीर सामने आ गया। उसने क्वीना से इस काम में अपना सहयोग देने का वादा किया। वे दोनों ही जानते थे कि निकिता इस सहयोग के लिए राजी नहीं होगी। इसलिए समीर की भूमिका को गोपनीय ही रखा गया।

शनिवार होने के बावजूद, विनीता आज सुबह-सुबह ही तैयार हो गई थी। वह नाश्ते की मेज पर हमारा इंतजार कर रही थी। पहले तो मैंने यही समझा कि अभिषेक को कोचिंग क्लास भेजने के चक्कर में सभी का नाश्ता एक साथ तैयार कर दिया होगा। मगर उसकी हड़बड़ी कुछ संदेह पैदा कर रही थी। क्या वह भी कहीं जा रही है?

‘‘कहां की तैयारी है?’’

‘‘तुम्हें बताया था मैंने।’’ आवाज को हलका-सा दबाते हुए उसने जवाब दिया।

‘‘कब? क्या बताया था?’’

‘‘याद करो।’’

‘‘यार, तुम तो हर समय हंटर लिए खड़ी रहती हो। तुम्हारा नाम तो हंटरवाली होना चाहिए।’’

विनीता को मेरा दिया हुआ नाम शायद पसंद आया। वह हौले से मुस्कराई, ‘‘आज अभिषेक के स्कूल नहीं जाना था?’’

उसकी ये अदा मुझे भाई, मगर बात याद नहीं आई।

‘‘तो फिर अभिषेक की आज की कोचिंग क्लास...?’’

‘‘उसे साथ थोड़े ही ले जाना है... ’’ वह धीरे से फुसफुसाई, ‘‘याद नहीं, स्कूल में आज साइकाइट्रिस्ट आने वाले हैं... ‘टीन एज प्रॉब्लम्स ऐंड टोटल पर्सनैल्टी’ पर बात करने।’’

अच्छा, तो ये राज है... अब समझा इतनी तेजी का मतलब...।

मगर मुझे घर की परेशानी सरे बाजार करने की बात कुछ जंची नहीं।

मेरी पूरी कोशिश के बावजूद हम बहुत लेट नहीं हो पाए।

जब हम पहुंचे तो ओपन हाउस का दौर चल रहा था। मैं पीछे रखी खाली कुरसी पर बैठने लगा मगर वह आगे की तरफ कुरसी तलाश रही थी।

‘‘मेरी बिटिया मेरे पहले आदेश का तो पालन करती है, मगर बाद के आदेश भूल जाती है, क्या उसे डॉक्टर से दिखाने की जरूरत है?’’ कोई महिला पूछ रही थी।

डॉक्टर ने बताया कि चौदह वर्ष तक के बच्चे बहुत हद तक निर्देशों के अनुसार काम करते हैं। क्योंकि यह बच्ची अभी बारह वर्ष की है, इसलिए इसे थोड़ा और समय दें। अगर चौदह वर्ष के बाद भी बच्ची दिए हुए निर्देशों को भूल जाती है तब उसे किसी मनोचिकित्सक से दिखाया जाना चाहिए।

प्रश्नों की झड़ी लगी थी। किसी का बच्चा कहना नहीं मानता था तो किसी का बच्चा गैर-जिम्मेदार था। लगभग हर मां की चिंता थी कि उसका बच्चा पढ़ने में मन नहीं लगाता है।

बच्चे तो ऐसे ही होते हैं, इसमें डॉक्टर से क्या बात करनी है? मगर इन औरतों को कौन समझाए। मजे की बात यह थी कि ये सभी चिंताएं माताओं की थीं, पिताओं के लिए ये नॉर्मल बातें थीं।

विनीता भी अपना प्रश्न पूछने के लिए कुनमुना रही थी, मगर यहां कई विनीता थीं, इसे मौका नहीं मिल पा रहा था। सभी अपने-अपने प्रश्न करने को आतुर थीं।

‘‘डॉक्टर, माइ सन... सिक्सटीन इयर्स... नो फ्रेंड्स... आइ मीन गर्ल फ्रेंड्स...’’ उस महिला ने गर्ल फ्रेंड्स पर विशेष दबाव डाला था।

‘‘सेम प्रॉब्लम...’’ विनीता ने गरदन हिलाई।

कितनी अजीब हैं ये मांएं, अगर लड़के की गर्ल-फ्रेंड होगी तो अपना अधिकार खोता महसूस करेंगी, नहीं होंगी तो उस पर समलैंगिक होने का शक करेंगी।

‘‘बच्चे को थोड़ा सोशलाइज कराएं...’’ डॉक्टर सलाह दे रही थी, ‘‘उसे क्लिनिक में लेकर आएं, एकाध सिटिंग देनी पड़ सकती है।’’

अपना धंधा चलाने का अच्छा तरीका है! मुझे कोफ्त हो रही थी, मगर विनीता बड़े ध्यान से सुन रही थी। सेशन समाप्त हो जाने के बाद भी महिलाओं ने डॉक्टर को घेर रखा था। विनीता भी वहीं डटी थी।

‘‘आपलोग प्लीज मेरे क्लिनिक में आकर मिलिए।’’

उसका जादू चल गया था। अब उसे हड़बड़ी थी। क्लिनिक में उसके पेशेंट इंतजार कर रहे थे।

विनीता इस वर्कशॉप से काफी संतुष्ट थी और स्कूल अथॉरिटीज का आभार भी व्यक्त कर आई थी।

आज दफ्तर में सन्नाटा छाया है। सोनिया धमेजा के साथ कहीं गई हुई है। धमेजा के नेतृत्व में उसका शोध कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है। मगर यह तारीफ की बात है कि पूर्णिमा को इस बात से कोई परहेज नहीं है। पूर्णिमा दरअसल एक सुलझी हुई महिला है और ऐसी छोटी बातों में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं रहती। कई बार तो वह खुद भी सोनिया को धमेजा से ली जा सकने वाली सहायता की ओर जागरूक करती है। पूर्णिमा का व्यक्तित्व सहज और खुला हुआ है। वह आत्मकेंद्रित नहीं, बल्कि हर किसी को आगे बढ़ाने का यत्न करती है। आज के समय में ऐसे व्यक्तित्व कम ही होते हैं।

मैं देख रहा हूं कि समीर का व्यक्तित्व भी ऐसा ही उदात्त है। बेहद खामोशी के साथ वह निकिता के प्रॉजेक्ट में जुटा है। निकिता से प्रॉजेक्ट की बारीकियां समझ कर क्वीना समीर को बताती है और समीर रात भर जाग कर उस काम को अंजाम देता है।

क्वीना ने महसूस किया कि समीर का प्रैक्टिकल हैंड बहुत साफ था। निकिता के दिशानिर्देशों के आधार पर उसने एक ऐसा सिस्टम तैयार कर दिया था, जिसकी मदद से अलमारियों की दराजें खुलते ही बत्तियों से जगमगा जातीं और दराज के बंद होते ही बत्तियां अपने आप बुझ जातीं। दराजें खुलने पर बस उसी भाग पर रोशनी पड़ती, जहां और जब तक इसकी जरूरत है। एनर्जी सेवर के तौर पर यह बेहद उपयोगी कॉंन्सेप्ट था।

क्वीना ने लिखा है कि उसने समीर की बौद्धिक क्षमता का ठीक आकलन नहीं किया था। उसे यही लगता था कि जिसकी खुद की एक पेपर में बैक लगी हो, वह भला दूसरे को क्या पेपर पास कराएगा? मगर अब वह मानती है कि सच्चा प्यार चट्टान से राह निकाल सकता है तो किताबी ज्ञान कौन-सी बड़ी बात है!

अपनी पढ़ाई और प्रॉजेक्ट की खातिर समीर इतना गंभीर रहा हो चाहे नहीं, मगर निकिता के प्रॉजेक्ट को लेकर वह अत्यंत गंभीर था। क्वीना ने लिखा है कि जिस तेजी और क्वालिटी के साथ समीर ने यह काम किया, वह काबिलेतारीफ था।

निकिता को सौंपने से पहले क्वीना ने उसे ऑपरेट कर के दिखाया। प्रॉजेक्ट को अपने कॉन्सेप्ट के मुताबिक पाकर निकिता बहुत संतुष्ट हुई और उसने जी खोल कर क्वीना की तारीफ की। मगर जब निकिता ने प्रतियोगिता में इसे प्रस्तुत करने के लिए क्वीना को साथ चलने को कहा तो क्वीना से और खामोश न रहा गया और उसने बता दिया कि इसे इतनी अच्छी तरह से और समय पर लाने में असल मेहनत तो समीर की है। उसने सोचा था कि इस जानकारी से निकिता की सोच बदलेगी और वह समीर को ठीक प्रकार से समझ पाएगी, मगर हुआ उलटा।

निकिता बुरी तरह बौखला गई, ‘‘आखिर तुम दोनों चाहते क्या हो? तू दोस्त के नाम पर किस तरह की दुश्मनी निकाल रही है, और ये समीर क्या मुझ पर एहसान करके, रहम खाके अपना प्यार सिद्ध करना चाहता है?’’

उस दिन क्वीना काफी आहत हुई। निकिता ने उसे जो बुरा-भला कहा वह तो कहा ही, उसने प्रतियोगिता में हिस्सा भी नहीं लिया। वह सोचती रही कि निकिता उसकी मित्रता को कितना गलत आंकती है...।

समीर से मिलने वाले सहयोग में क्वीना की भूमिका को वह साजिश की तरह देखती है...

समीर का प्यार निकिता के लिए एहसान है...

क्वीना यह सब बताकर समीर को आहत नहीं करना चाहती थी, लिहाजा वह समीर से भी कटने लगी।

मगर समीर हिम्मत हारने वाला कहां था! एक दिन वह उसे ढूंढ़ता हुआ, लाइब्रेरी में आ पहुंचा।

‘‘तो यहां छुपके बैठी हो, मेरा साथ नहीं देना है तो साफ-साफ कह दो, मैं कोई जबरदस्ती थोड़े ही करूंगा...।’’

समीर की आवाज बिलकुल सपाट थी, जैसे वह इस स्थिति के लिए बहुत पहले से तैयार था।

‘‘हां, नहीं दे सकती तुम्हारा साथ।’’ क्वीना ने स्पष्ट किया, ‘‘उसे तुम्हारी मदद, तुम्हारा सहयोग, एहसान लगता है। तुम कितनी ही कोशिश कर लो, वह नहीं बदल सकती।’’

‘‘उसे बदल ही दिया तो फिर पाया किसे?’’ समीर हलके-से बुदबुदाया, ‘‘बदल जाने वाली तो बहुत-सी लड़कियां हैं, उसकी यह खुद्दारी ही तो उसकी पहचान है।’’

क्वीना हैरान रह गई।

समीर को निकिता से कोई शिकायत नहीं थी, उलटे उसकी खुद्दारी और आत्मनिर्भरता के कारण ही तो वह उसे पसंद करता था और उसे उसी स्वरूप में चाहता था, जैसी वह है।

समीर पर निकिता की प्रतिक्रिया का कोई असर नहीं पड़ा था। वह तो क्वीना को भी चुनौती दे रहा था कि निकिता ने भले ही उसके काम को अस्वीकार कर प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया मगर वह तब भी अपनी तरह से उसके लिए काम करता रहेगा।

‘‘क्या फायदा, इन बातों से वह खुश नहीं होने वाली...’’ क्वीना निकिता को समझ चुकी थी और नहीं चाहती थी कि समीर को दोबारा कोई ठेस पहुंचे।

‘‘मैं यह सब उसे इम्प्रेस या खुश करने के लिए कर भी नहीं रहा।’’

‘‘तो फिर किसलिए कर रहे हो?’’

‘‘ऐसा करके मुझे खुशी मिलती है, इसलिए।’’ समीर हँस रहा था।

(अगले अंक में जारी....)