ए मौसम की बारिश - ९ PARESH MAKWANA द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ए मौसम की बारिश - ९






एकदिन कॉलेज में मेने तुम्हे मुख्याजी की बेटी नंदनी के साथ देखा। उस पल मुजे लगा की आख़िर नंदनी ने अपनी कातिल अदाओ से तुम्हे अपना बना ही लिया। उसीकी वजह से तुमने मेरे प्यार को ठुकराया। लेकिन में इस बात से बिल्कुल अनजान थी की तुम ओर नंदनी एकदूसरे से बहुत प्यार करते हो।
मुजे नंदनी पर इतना गुस्सा आया की उसी पल मे नंदनी के घर जा पहोंची।
उसे धमकाते हुवे मेने कहा
'नंदनी आज के बाद मेरे देव से दूर रहना वरना..'
नंदनी ने मुस्कुराते हुवे कहा
'मेरा देव.. देव तुम्हारा कब से हो गया'
उसकी वो हँसी मुझसे बर्दास्त नही हुई मेने उससे कह दिया।
'बचपन से देव पर सिर्फ मेरा हक है। समझ गई.. दूर रहना उससे..'
उसने मेरी आंखों में देखकर बड़े रॉब से कहा
'सुना है जब हम किसी को पा नही सकते तो हम उस इंसान पर अपना हक जताते है सही कहा ना मीरा'
में उस पर चिल्लाई..
'तुम्हे क्या लगता है में देव को पा नही शकती..'
उसने बड़े यकीन से कह दिया
'कोशिश कर लो.. क्योंकि देव सिर्फ मुझसे प्यार करता है'
* * *
बचपन से ही नंदनी को भूलने की बीमारी थी ओर मेरी ये कड़वी बातें वो कब भूल गई पता ही नही चला।
एक दिन हमारे गाँव का ही एक रघु नामका एक सावला आदमी नंदनी को कंधे पर उठाकर ले गया। में इस बात से बहोत खुश थी। पर मुख्याजी के आदमियों के साथ जाकर तुमने उसके घर से नंदनी को छुड़ाया।
रघु को मुख्याजी ने पुलिस में पकड़वा दिया। पुलिस जब उसे गाड़ी में ले जा रही थी। तब वो नंदनी को ही घूरे जा रहा था। उस पल नंदनी को पाने का जुनून उसकी आंखों में साफ दिख रहा था। उसी पल मेने सोच लिया की तुम्हे पाने के लिए मुजे रघु को हथियार बनाना ही होगा।
पुलिस स्टेशन जाकर मेने रघु की जमानत करवाई। उसे नंदनी चाहिए थी ओर मुजे देव इसीलिए हमने हाथ मिला लिए।
तुम्हे नंदनी चाहिए ना.. जावो लेलो.. देव से छीन लो उस नंदनी को..
उसने मेरी ओर देखा..
ओर चिल्लाकर कहा
'नंदु... नंदु.. नंदनी सिर्फ मेरी है..'
उसकी ओर मुस्कुराते हुवे मेने कहा
अरे में भी तो यही कह रही हु.. ले जावो अपनी नंदनी को..
वो जोर से हँसा.. उसकी हँसी में साथ देते हुवे में भी हँसी...
* * *
एक दिन मुख्याजी अपनी पत्नी के साथ दो दिनों से बहार गए थे। उसी पल का फायदा उठाकर में ओर रघु नंदनी को फिर से अगवा करने उसके घर पहोच चुके।
उस वक़्त वो ओर उसकी बूढ़ी दादी दोनो घर पर अकेले थे। दोनो अपने अपने कमरे में चेन की नींद सो रही थी। की तभी रघु ने जाकर नंदनी को अपने कंधे पर उठा लिया।
बचावो.. बचावो मुजे..
उसकी चींखें सुनकर उसकी दादी वहां आ गई। मेने उसकी दादी के सर पे एक डंडे से वार किया मारा। ओर वो वही ढेर हो गई।
फिर प्लान के मुताबिक नंदनी को उठाकर हम बहार आये।
उस वक़्त वो बहोत चिल्ला रही थी।
कही पकड़े ना जाए इसिलए मेने अपने हाथ में रहा लकड़ी का डंडा उसके सर पे मारा..
की तभी रघु को मुझपर गुस्सा आया..
'साली ये क्या किया तूने..'
नंदनी बेहोश हो गई। उसे कार के बोनट पर लिटाकर उसने उसे ढंढोला..
नंदु.. नंदु.. उठो..
उसने देखा की नंदनी के सर से खून निकल रहा है। तब गुस्से में वो पीछे मेरी ओर मुड़ा..
ओर मेरे एकदम नजदीक आकर उसने मेरा गला पकड़ लिए। की तभी तुम वहॉ आ गए।
मेरी ओर नंदनी की हालात देखकर तुमने रघु को मारा..
तुम दोनो में काफी हाथापाई हुई। आखिर में रघु तुम्हारे घुसे बर्दास्त नही कर शका ओर उठकर वो वहां से भाग गया।
नंदनी ओर उसकी दादी के होश में आते ही उन्हों ने वहां जो कुछ भी हुवा सब बताया।
TO BE CONTINUE..