ए मौसम की बारिश - ७ PARESH MAKWANA द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

ए मौसम की बारिश - ७






पीछे आ रही माही को किसीने वही से धका देकर नीचे की ओर फेंका..
'ज...जय..' उसकी दर्दनाक चींख मेरे कानो पर पड़ी ओर में कुछ समझ पावु उससे पहले ही वो सीढियो से फिसलते हुवे नीचे पहोच गई।
में फ़ौरन उसकी ओर भागा।
नीचे जाकर देखा तो उसके सर से काफी खून निकल चुका था। उसकी बंध हो रही आंखे मुझे देख रही थी।
'माही माही तुम्हे कुछ नही होगा.. माही.. माही आंखे खोलो माही..'
उसने ऊपर की सीढियो की ओर हाथ से इशारा किया.. मेने उस ओर देखा तो वहां कोई नही था।
मेने उसको उठाकर अपनी कार में लिटाया.. ओर कार निकालकर वहां से फ़ौरन हॉस्पिटल की ओर भागा।
* * *
ऑपरेशन थिएटर के पारदर्शी काच के उस पर जिंदगी ओर मोत के बीच जूझती मेरी माही को देखकर में वही सर पकड़कर बैठ गया। में माही को बचा ना शका.. मेरी आंखों के सामने.. मेरी ही आंखों के सामने वो मर रही है ओर में..
तभी मेरी आंखों के सामने कुछ दर्शय घूमने लगे।
उस बूढ़ी औरत की बाते
तु नही बचेगी वो तुजे मार देगी..
ओर अचानक सीढियो से माही का गिरना.. उसका यु हाथ से ऊपर सीढियो की ओर इशारा करना।
ये शादी नही हो सकती.. वो इसे मार देगी.. मीरा..
वो लड़की नही एक आत्मा है..
वो तुम्हे किसी भी हालात में पाकर रहेगी..
बाबा आदिनाथ के शब्द के साथ हाल ही में घटी सारी घटनाए मेरे जहन के दौड़ने लगे।
अपनी कार निकालकर में हॉस्पिटल से फ़ौरन अपने घर आया। कार से उतरकर ही में दौड़कर छत पर आया।
'मीरा... मीरा.. कहा हो तुम.. मेरे सामने आवो.. मीरा..'
चिल्ला चिल्लाकर में मीरा को पुकार रहा था। बुला रहा था।
अचानक ही ऊपर आशमान चारो ओर काले बादल छा गए। हवा ने अपना रुख बदला। बादल गरजे, बिजली चमकी ओर बेमौसम बरसात आने लगी।
'मीरा..मीरा मेरे सामने आवो..'
ओर अचानक ही आसपास एक प्यारी सी हँसी सुनाई देने लगी..मीरा की हँसी..
मेरे पीछे से एक लड़की की मीठी आवाज आई।
'मुझे याद किया जय..?'
में पीछे मुड़ा तो पीछे मेरे एकदम सामने अपनी बाहे फैलाकर मीरा खड़ी थी।
'माही को क्यो मारना चाहती हो तुम..? आखिर उसने तुम्हारा क्या बिगडा है..?'
'जय.. मेरी बात सुनो.. माही को में क्यो मारना चाहूंगी.. उसे मेने नही मार..'
'जुठ मत बोलो तुम्हरी सारी सच्चाई जानता हु में.. बाबाजी खुद मुजे तुम्हारे बारे में बताया था।'

आख़िर उसने कहा..
जय तुम सच जानना चाहते हो ना.. तो सुनो..
आज से पचीस साल पहले राजगढ़ नाम का एक छोटा सा गाँव था। वही से इस कहानी की शुरुआत हुई थी।
* * *
आज से पच्चीस साल पहले

उनदिनों बारिश के दिन आनेवाले थे ओर तुम्हे इंतज़ार था पहली बारिश का, पहली बारिशो में मोर को नाचते हुवे देखना तुम्हे बहुत पसंद था। उनदिनों बारिश के आते ही तुम अपने चाचा के खेत पर पोहच जाता थे।
TO BE CONTINUE..

आपको ये कहानी कैसी लगी, इस बारे में कहानी के अंत मे अपनी राय जरूर दे,

मेरी अन्य कहानिया पढ़ने के लिए मुजे, मातृभारती पर आज ही फॉलो कीजिए।

मो. 7383155936