ए मौसम की बारिश - १ PARESH MAKWANA द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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ए मौसम की बारिश - १






आज इतने सालो बाद बारिश की एक बहतरीन शाम को देखकर मुजे वो शाम याद आ गई, वही शाम जहा से ये कहानी शुरू हुई थी।
कैसे भूल शकता हु उन दिनों को। वो पहेली बारिश जिसका मुजे बेसबरी से इंतज़ार था। बारिश आई ओर बारिश के साथ वो भी आई मेरी जिंदगी में। मानो वो उस बारिश का बेहद खूबसूरत तोहफा था मेरे लिए।
आज वो नही होती तो माही नही होती ओर माही नही होती तो शायद में भी नही होता।
आज से आठ साल पहले अचानक आसमान में काले बादल गरजे, बिजली चमकी ओर तेजधार बारिश बरसने लगी इसी पल की कब से प्रतीक्षा कर रहा में फ़ौरन छाता लेकर छत की ओर भागा।
'जयदेव संभाल के गिर जावोगे..'।
माँ की कुछ आवाजे कान से टकराई , लेकिन मेने अनसुनी कर दी। ऊपर सीडीरूम में ही खड़ा खड़ा में बारिश का मजा ले रहा था। बहार दरवाजे से अपना हाथ निकालकर बारिश की कुछ बूंदे मानो अपने हाथो में लेकर उसे महसूस कर रहा था। की काश में ये बारिश की बून्द होता ओर कोई मुजे ऐसे ही अपने हाथमे ले के बस देखता रहता। अचानक ही नीचे से मम्मी की आवाज आई
'जयदेव भीग मत जाना नाहीतर घर में घुसने नही दूंगी'
मेने कहा-
'जी मम्मी में नही भिगूंगा छाता है मेरे पास'।

थोड़ीदेर बाद छाता खोलकर में सीडीरूम मे से बहार निकला। सोचा बाहे फैलाकर भीग जाऊ इस बारिश में। भर लू अपने अंदर इस बारिश की एक एक बूंद को। फिर मम्मी की दाट याद आयी तय किया बेटा भीगेगा तो घर में घुस नही पायेगा जैसे तैसे अपनी इच्छाओ मन के भीतर किसी अनजान कोने में दबाकर में छाता लेकर बस खड़ा रहा। सतरा साल की उम्र में भी मम्मी से डरनेवाला में शायद पहेला लड़का था। आज मम्मी मुजे स्कूल की उस जल्लाद टीचर की तरह लग रही थी जो हमारे सपने छीन कर हमे उनके हिसाब से जीने को कहती थी। बचपन से मेरा सपना था की में बड़ा होकर लेखक बनु लेकिन हमारी वो मनहूस टीचर थी जो मुजे डॉक्टर बनाने पे तुली थी।

एक हाथमे छाता पकड़े दूसरे हाथो से उन बारिश की बूंदो को अपने हाथ मे छु के में बस वहां अपने ही मजे में खोया था, तभी सामने वाली छत पर बाहे फैलाकर बारिश में नाचती हुई मेने एक लड़की को देखा। मानो मेरी नजर उस पे ठहर सी गई।
सोला बरस की बाली उमर.. भीगे खुले बाल, काली काली खूबसूरत नसिली आंखे, गुलाबी होठ ओर उन होठो के ऊपर साफ झलक रही प्यारी सी मुस्कान, भीगे हुए शरीर से चिपका हुवा काले रंग का सलवार कमीज जिसमे से उसके गोरे बदन की खूबसूरती साफ झलक रही थी।
उसके पैरो में बंधी घुघरू जो उसके पैरो के ताल से ताल ताल मिला रहे थे।
उसे देखकर मानो मेरे तो रोमरोम में रोमांच जग उठा। वैसे तो आजतक बहुत सी लड़की देखी पर ये कुछ अलग थी। इसकी हँसी में कुछ तो बात थी। उसे देखते ही मन बावरा हो गया अपना छाता फेककर में उसकी तरह खुले मन से वही उसके सामने नाचने लगा। वो इस बात से बेखबर थी की कोई कब से उसे देखे जा रहा है। दोनो अपनी ही धुन में अपनी अपनी छत पर नाच रहे थे की अचानक ही बारिश कुछ कम हुई ओर उसकी नजर मुझपर गई। उसने फ़ौरन अपने काले दुप्पटे से अपने आप को जरा ढक लिया ओर कुछ बड़बड़ाते हुए नीचे की ओर चली गई।

कुछ देर बाद बारिश गयाब हो गई आसमान खुल सा गया। में सूखने के लिए कब से छत पर ही खड़ा था। कुछ देर हुई की वो कपड़े की एक बाल्टी लेकर अपनी छत पर वापस आई आते ही उसकी नजरे मेरी छत पर गई उसने मेरी ओर देखा की मुझसे मुह फेर लिया शायद उसे में छिछोरा लगा।
वो वैसे ही गुस्से में रस्सी पर एक के बाद एक कपड़े सूखा रही थी ओर में अपनी छत पर कब से वही खड़े रहकर उसे देखे जा रहा था। उसे घूरे जा रहा था। आख़िर छिछोरेपन की भी हद होती है।
उसको यु गुस्से में अकेले ही बड़बड़ाते देखकर मुजे लगा की में कब से उसे घुरे जा रहा था कहि इसी वजह से वो मुजे गलत तो नही समझ रही। मुजे लगा की पतंग हाथ से जाए इसे पहले ही डोर सम्भल लेनी चाहिए। मेने तुरन्त ही अपने कबूतर को सिटी मारी। मेरी सिटी सुनकर उसने फिर एकबार मुजे देखा ओर वैसे ही गुस्से में फिर से नजरे फेर ली। मेरा सबसे प्यार ओर खास दोस्त मस्ताना यानी की मेरा सफेद कबूतर दूर कई हवाओ में से उड़ता हुवा आया ओर मेरे कंधे पे आकर बैठ गया। मेने उसे पकड़ कर चुम लिया
'वाह मस्ताना एकदम सही वक़्त पर आया है'
मेने तुरन्त नीचे जाकर एक कागज पे कुछ लिख के उसे गड़ी कर के मस्ताना के पेर पे बांध दिया ओर मस्ताना को ठीक से समजा दिया की उसे क्या करना है वो समझ गया।
मस्ताना उड़ के उसके छत पर जा के बेथ गया। उसको बुलाने के लिए एक छोटा से पथ्थर उठा के मेने उसेे उस लड़की के ऊपर फेका मगर पथ्थर जाकर उसकी पीठ पर लग। वो फ़ौरन गुस्से में पीछे मेरी ओर मुड़ी उसीपल मेने अपने कान पकड़ लिए ओर कबूतर की ओर इसरा किया
एकपल तो वो भी हस पड़ी।
उसने कबूतर को उठाया ओर उस कागज को निकाल के कबूतर को हवाओ में छोड़ दिया।
TO BE CONTINUE..