बड़ी माँ Nisha Nandini Gupta द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी माँ

बड़ी माँ

यह कहानी एक माँ की जुबानी है।

हम सब उनको बड़ी माँ कहते हैं । मेरा उनसे प्रेम का रिश्ता है। मैं अक्सर उनके पास जाकर घंटों उनसे बातें करती हूँ। आज तक उनके मुंह से आह या दुख का शब्द नहीं सुना ।

पर आज लगभग अस्सी साल की उम्र में उनके दुख का बाँध मानो टूट गया । उनकी आंखों में आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। आज तक उन्होंने अपनी कहानी नहीं बताई थी। मुझे लगता था कि सब कुछ स्वाभाविक रूप से चल रहा है। उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी कब हुई थी यह मैंने कभी नहीं पूछा क्योंकि वह अपने बेटे के संग सुखमय जीवन व्यतीत कर रही थी । कभी पूछने की आवश्यकता ही नहीं समझी । मेरा परिचय उनसे करीब पाँच साल पहले एक भागवत कथा के समय एक मंदिर में हुआ था। मैं भी भागवात सुनने गई थी । बड़ी माँ भी बड़े ध्यान से भागवत सुन रही थी । वहीं हमारा परिचय हुआ । सभी लोग बड़ी माँ कह कर पुकार रहे थे इसलिए मैंने भी उनको बड़ी माँ कहना शुरू कर दिया ।

वह अपने सबसे छोटे बेटे के पास रहती थीं । उनकी बहु और बेटा भी उनको अच्छी तरह रखते थे । मेरा उनकी बहु के साथ भी अच्छा परिचय था। वे लोग भी उन्हें बड़ी माँ कह कर ही बुलाते थे। वे लोग राजस्थान के रहने वाले थे ।

एक बार जब मैं उनके घर गई तब वह घर पर अकेली थी। बहु और बेटा किसी उत्सव में गए हुए थे। बातों ही बातों में मैंने उनसे पूछा बड़ी माँ आपको कौन सा रंग सबसे अच्छा लगता है। तो उनकी आँखों में आँसू छलक आए और बोली बेटा मुझे क्या मालूम मेरे ऊपर कौन सा रंग अच्छा लगता है। मैं तो सात वर्ष की उम्र से यह सफेद रंग ही पहन रही हूँ। लाल रंग क्या होता है। काँच की चूड़ियाँ क्या होती है। मुझे कुछ नहीं मालूम ।मैं कुछ समझ न सकी । मेरी उत्सकुता बड़ गई । मैंने कहा माँ आप अपने बारे में कुछ बताओ न, तब उन्होंने भरी हुई आँखों से बताना शुरू किया । वे बोली बेटा पाँच वर्ष में ब्याह हुआ, सात वर्ष में गौना हुआ । उस समय वे पन्द्रह वर्ष के थे। मैंने तो उनका चेहरा भी न देखा । हमारे यहाँ बहुत बड़ा घुंघट काढ़ते हैं । सासुराल जाने के दूसरे दिन ही सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई और बेटा मैं तो तब से यह सफेद रंग की धोती ही पहन रही हूँ। मुझे तो कुछ न मालूम साज श्रृंगार क्या होता है। तब से ही में वैध्वय जीवन बिता रही हूँ। आज अस्सी वर्ष की हो गई । मुझे तो अपने बचपन का भी कुछ पता नहीं कब आया कब चला गया । माँ बापू का लाड़ भी याद नहीं । बस मुझे तो लगता है कि मैं जन्म से ही बड़ी माँ बन गई । किसी का प्रेम प्यार मुझे याद नहीं । यह सब कहते हुए वह रो रहीं थीं । मानो इतने वर्षों की दबी हुई कसक बाहर निकल रही हो । मैंने भी उन्हें रोने से नहीं रोका। मुझे लगा उनका मन हल्का हो जाएगा। अब मेरी जिज्ञासा उनके प्रति बड़ती जा रही थी । मैंने पूछा माँ यह बेटा किसका है? तब उन्होंने बताया यह मेरी छोटी बहन का है। बाद में मेरी छोटी बहन का ब्याह मेरे देवर के साथ हुआ । मेरे बहन और देवर ने हमेशा मुझे अपने साथ रखा इसलिए यह बच्चे मुझे बड़ी माँ कहने लगे । अब मेरी बहन और देवर भी नहीं रहे लगभग आठ वर्ष हो गए दोनों को गए पर ये बच्चे आज भी मुझे अपने साथ रखते हैं । मुझे कोई तकलीफ नहीं है। पर मैंने जीवन में कुछ नहीं देखा । कभी सिनेमा में नहीं देखा । बच्चों को खेलते, पढ़ते लिखते देखती हूँ तो खुश होती हूँ । वे बोलते ही जा रही थी । शायद अब तक कोई उन्हें सुनने वाला नहीं मिला था। फिर वे बोली अब तो छोरियों को खूब पढ़ा लिखा कर ब्याह किया जाता है।पर हमारे समय में ऐसा न था । लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं समझा जाता था । मैंने पूछा माँ आपके माँ बापू ने आपकी दुबारा शादी क्यों नहीं की। तब वे बोली बेटा हमारे यहाँ दूसरी शादी नहीं होती । हमारे यहाँ तो सती कर दिया जाता था। पत्नी को भी उसके पति के साथ जला दिया जाता है। पर उस समय मेरी उम्र सती के हिसाब से छोटी थी । इसलिए सती नहीं किया गया। पर आज मैं सोचती हूँ कि सती कर देते तो ठीक था । मैं नया जीवन लेकर दुनिया को देखती।अभी तो इतनी बड़ी उम्र को मैंने जिया नहीं सिर्फ काटा है। माँ की बाते सुनकर मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मुझे रोता देख कर वे बोली अरे पगली तू कहे को रोती है। अब तो तू भगवान से प्रार्थना कर की मुझे मोक्ष दे दें। मैंने बहुत लम्बा जीवन काट लिया ।

तभी उनके बेटा- बहु आ गए । मैं भी उनसे मिलकर अपने घर आ गई । पर बड़ी माँ की बातों ने मुझे सोने नहीं दिया ।

यह कहानी लिखने का मेरा एक मात्र मकसद समाज को यह बताना है । हमारा समाज कैसी परिस्थितियों से उठ कर आगे बढ़ा है। आज भी कुछ कुप्रथाएं बाकी हैं। जिन्हें हमें मिटाना है और दूसरा कारण लोगों को यह बताना है कि हम छोटी सी बात पर दुखी हो आत्महत्या का विचार मन में लाते हैं। जबकि बड़ी माँ ने सात वर्ष की आयु से जीवन का कोई सुख नहीं देखा, फिर भी उनके मन में यह कुविचार कभी नहीं आया ।

अब हम सबको सोचना है कि हमें कैसा बनना है।

निशा नंदिनी भारतीय

तिनसुकिया, असम