आषाढ़ का फिर वही एक दिन - 3 - अंतिम भाग PANKAJ SUBEER द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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आषाढ़ का फिर वही एक दिन - 3 - अंतिम भाग

आषाढ़ का फिर वही एक दिन

(कहानी: पंकज सुबीर)

(3)

फाइलें साइन होने के बाद भार्गव बाबू तुरंत बाहर आ गये हैं । अब वे अपनी कुसी पर वापस बैठ गये हैं, जहाँ अब कुछ भीड़ सी हो रही है । ‘आप सब लोग लंच के बाद आइये... अभी ज़रा साहब के साथ मीटिंग है ।’ भार्गव बाबू ने सबको हाथ से इशारा करते हुए कहा । ‘लंच से पहले कोई काम नहीं होगा, यहाँ भीड़ बढ़ाने से कोई मतलब नहीं है, साहब देखेंगे तो नाराज़ होंगे ।’ साहब की नाराज़ी से सब डरते हैं, फाइल तो उनने ही साइन करनी है । सब चले गये । डेढ़ बज रहे हैं, मतलब ये कि साहब बस उठने में ही हैं । भार्गव बाबू ने बैग खोला उसमें से एक पैकेट निकाला, टेबल पर रखी एक फाइल उठाई और साहब के कमरे की तरफ बढ़ गये। साहब कम्प्यूटर पर कुछ कर रहे हैं । भार्गव बाबू ने फाइल ले जा कर टेबल पर रख दी ‘जी ये एक फाइल रह गई थी ।’ साहब ने खुली हुई फाइल को चैक किया और साइन कर दिये । भार्गव बाबू ने धीरे से साथ में लाया पैकेट साहब के उस ब्रीफकेस में रख दिया जो टेबल पर खुला हुआ रखा रहता है । इस प्रकार की साहब रखते हुए देख भी लें और असहज भी न हों । भार्गव बाबू की ये अपनी ही कला है, जानते हैं कि भ्रष्ट से भ्रष्ट अधिकारी भी रिश्वत में पैसे लेते समय असहज हो जाता है । भार्गव बाबू अपने अधिकारी को कभी असहज नहीं होने देते । अधिकारी ‘रिंद के रिंद रहे हाथ से जन्नत न गई....’ की तरह सहज बना रहता है । जाने कब, कौन, ब्रीफकेस में नोटों का पैकेट रख गया, पता ही नहीं चला ।

अब भार्गव बाबू वापस अपनी कुर्सी पर आ गये हैं। साहब कुछ ही देर में अपने कक्ष से निकले और धड़धड़ाते हुए चले गये । वैसे तो लंच का समय डेढ़ बजे है लेकिन आज पौने दो बज गये हैं । भार्गव बाबू ने अपना टिफिन और पानी की बोतलें निकाल ली हैं । अब कोई उनको डिस्टर्ब नहीं कर सकता । टेबल पर एक पुराना अख़बार बिछा कर दस्तरख़ान सजा लिया है । सुरजने की फलियों और आलू की झोलदार सब्ज़ी, हरी मिर्च के तड़के वाली दाल, मूँगफली-लहसुन की चटनी, तीन रोटियाँ और चावल । भार्गव बाबू मगन हो कर खाना खा रहे हैं । सुरजने की फली का टुकड़ा उठाते हैं और उसे एक सिरे से पकड़ कर दाँतों से पूरा चूस डालते हैं । भोजन उनके लिये एक राग है, ताल है, लय है । भोजन समाप्त होने तक समय दो से कुछ ऊपर हो गया है । लोग आने लगे हैं लेकिन दूर खड़े भोजन की समाप्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

सवा दो बजे गये हैं । भार्गव बाबू हाथ-वाथ धोकर, टेबल को साफ करके अब तैयार हो चुके हैं दूसरी पारी के लिये । ‘ले ले जा तेरा कार्ड, उठ भुनसारे से आर कर कर रहा है मेरे में ।’ कार्ड प्राप्त करने वाला भार्गव बाबू की तल्ख मुखमुद्रा के बाद भी कृतकृत्य होता चला गया है । ‘साहब तो कर ही नहीं रहे थे, कह रहे थे काग़ज़ पूरे नहीं हैं । कैसे करवाया मैं ही जानता हूँ । लो ले जाओ, और हाँ इसकी आठ दस फोटो कॉपी करवा लेना, ओरिजनल को सँभाल कर रखना, नहीं तो फिर हमारे माथे पर आन ठाड़े हो जाओगे डुप्लीकेट कॉपी के लिये ।’ स्वीकृति पत्र लेने आई महिला के साथ आये लड़के को झिड़की वाले अंदाज़ में समझा रहे हैं । ये भी उनकी अपनी स्टाइल है । पैसे लिये तो काम करने के लिये हैं, कोई हराम के नहीं लिये जो किसी के दबे-बँधे रहें । ज़रा सी मीठी आवाज़, नरम टोन में बात की तो सामने वाले माथे पर चढ़ जायेगा, ये सोच कर कि रिश्वत ले ली है इसलिये नरम हो रहे हैं । जिससे रिश्वत ले लेते हैं उससे हमेशा डाँट डपट वाले अंदाज़ में ही बात करते हैं । किसी का मोबाइल कॉल आ गया है अपने काम के लिये ‘गोंई अब तुम ऐसा करो की अपनी फाइल वापस ले जाओ, कल साहब आएँगे तो उनके पास सीधे जाकर करवा लेना। कल काग़ज़ जमा करे हैं और आज सिर पर मच-मच कर रहे हैं ।’ अब पूरा समय भार्गव बाबू के इन्हीं कड़वे प्रवचनों से ऑफिस को गूँजना है कुछ प्रवचन सामने खड़े हुए बंदे को तो कुछ मोबाइल करने वाले को। ‘सुनो गोंई तुमने पैसे दिये हैं अपनी सुविधा के लिये । काम जल्दी करवाने के लिये । कौन कह रहा है पैसे दो । वो लिखा है उधर बोर्ड पर कि लाइसेंस देने की समय सीमा एक माह है । आवेदन कर दो, अगर सब काग़ज़ पत्तर ठीक हुए तो एक महीने में तो हमें देना ही है लाइसेंस । मगर आपका तो वोइ है कि गेड़े पर लगी बरात और दूल्हे को लगी.....।’ पैसे देने वाले को जताते रहते हैं कि तूने पैसे देकर हमपे कोई एहसान नहीं किया ।

‘आपसे तीन दिन पहले कही थी कि माताजी के दस्ख़त करवा के एनओसी दे जाना, वो तो आज ला रहे हैं और ऊँची आवाज़ में बातें कर रहे हैं । गेल में हगें और आँखें दिखाएँ ।’ चार बजते बजते भार्गव बाबू की बातचीत में कहावतें आने लगती हैं । फिर किसी का मोबाइल पर कॉल आ गया है ‘आज तो बड़े बाबूजी-बाबूजी कह के बुला रहे हैं, उस दिन तो मुख्यमंत्री से शिकायत करने की धमकी दे रहे थे । तनक में समधन, समधन सी और तनक में समधन कुतिया सी ।’ इन सब कहावतों के बीच गालियों का अनुप्रास आ आकर वाक्य के सौंदर्य में इस प्रकार से श्रीवृद्धि कर रहा है कि यदि कोई भाषा विज्ञानी इन वाक्यों को सुन ले तो अश अश कर उठे । ‘गोंई तुमने आज काग़ज़ दिये हैं और आज ही पूछ रहे हैं कि कब तक हो जायेगा काम । उधर जाओ पहले आवक बाबू के पास से इसकी आवक करवा लाओ । नहीं कहीं कुछ नहीं देना है, जाओ उनको दे दो बस ।’ इस ऑफिस में भार्गव बाबू के अलावा कहीं कोई रिश्वत नहीं लेता है । यहाँ एकल खिड़की व्यवस्था है । ‘आपको उस दिन साहब के पास भेजा था कि थोड़ा रो देना, घिघिया देना तो उसमें तो आपको शरम आ रही थी अब यहाँ मेरे सामने टसुए बहा रहे हैं । ओने गाऊँ, कोने गाऊँ, भरी सभा में नाक कटाऊँ । उस दिन साहब के सामने रो गा देते तो हमको भी सपोर्ट हो जाता बात रखने का ।’ धीरे धीरे घड़ी की सुइयाँ सरक रही हैं और भार्गव बाबू के वाक्यों की तल्ख़ी भी बढ़ती जा रही है । कुछ नई नई गालियाँ भी आ रही हैं । ‘गोंई अब एक काम करते हैं कि पोस्ट ऑफिस जाकर रसीदी टिकट भी हम ही ले आते हैं, हिनहिनाए हैं तो लीद भी हमी को करनी है ।’ फाइल निकालना, काग़ज़ देना और पावती लेना सब काम भार्गव बाबू इस प्रकार करते हैं मानो विष्णु की तरह चतुर्भुज हो गये हैं और इस दौरान अलग अलग लोगों से अलग अलग विषय पर ब्रह्मा की तरह चतुर्मुख होकर बात करते हैं । ‘बहन जी आपसे कहा था कि आप खुद मत आना किसी बच्चे को भेज देना काग़ज़ लेकर । लाइये दीजिये काग़ज़ और अब कल शाम को बच्चे को भेज दीजियेगा कार्ड लेने । ’ साढ़े पाँच से ऊपर हो चुके हैं, अब भार्गव बाबू काम को समेटने में लग गये हैं । भीड़ भी लगभग छँट गई है । काम करवाने वाले लोग काम के साथ साथ गालियों का परशाद भी लेकर जा चुके हैं ।

अब उनके हाथ तेज़ी के साथ चल रहे हैं । टेबल लगभग साफ सुथरी हो चुकी है । फाइलें वरीयता के अनुसार दराजों में जमा कर ताला लगाते जा रहे हैं । सील, स्टेपलर, पेंसिल सब दराज में समाते जा रहे हैं वापस । छः बजने में पाँच मिनट पर टेबल ठीक उसी प्रकार साफ सुथरी हो चुकी है जैसी सुबह थी । कहीं कोई भी काग़ज़ या अन्य चीज़ अब टेबल पर नहीं है । ‘विनय, दिवाकर, मोहन, भागीरथ ऽऽऽ’, चारों एक एक करके आए और अपना अपना हिस्सा भार्गव बाबू से प्राप्त करके चले गये । आख़िर में चपरासी भागीरथ आया और अपना हिस्सा लेकर गया । साहब के हिसाब की ही तरह इस हिसाब किताब में भी भार्गव बाबू पूरे ईमानदार हैं, किसी को निगने की भी ज़रूरत नहीं होती पैसे । न आज तक किसीने पूछा है कितने हैं ।

भार्गव बाबू अब वापस सड़क पर हैं । बैग में से एक कपड़े का ख़ाली झोला निकाल कर हाथ में ले लिया है । सब्ज़ी वाले की दुकान पर आ खड़े हुए हैं । ‘क्यों रे कल तो तू कह रहा था एकदम अच्छी तुरई है, पूरी कड़वी निकली, मैं ही मिलता हूँ चूना लगाने के लिये ।’ सब्ज़ी वाले लड़के को उनके सब्ज़ी ख़रीदने के दौरान क़रीब तीस चालिस गालियाँ तो खानी ही हैं । उसकी क़िस्मत से अगर कोई महिला आ गई तो ही गालियाँ बंद होनी हैं । ‘आज अगर कुछ ख़राब निकल गया तो तीन जूते लगाऊँगा कल आकर ।’ सब्ज़ी वाले के बाद अगला पड़ाव किराने वाला है । ‘लो गोंई ये हज़ार रुपये और जमा कर लो हिसाब में । और एक शेविंग क्रीम, पाव भर जीरा और एक हींग की डिबिया दे दो ।’ भार्गव बाबू एक तारीख़ को महीने भर का किराना ले जाते हैं और बीस तारीख़ से पहले थोड़ा थोड़ा करके पूरा हिसाब कर जाते हैं । तनख़्वाह जस की तस बैंक में जमा रहती है । केले का ठेला देखकर कर रुक गये हैं, बुँदकी वाले पके केले उनकी कमज़ोरी हैं । कपड़े के झोले में अब सब्ज़ी और किराने के साथ एक दर्जन केले भी रखा गये हैं । चलते-चलते अचानक ठिठक गये हैं, अम्मा की दवाई लेनी हैं ।

सात बजे गये हैं अब भार्गव बाबू बस में बैठे हैं। बैग में हाथ डाल कर फिर अपना ड्राइ फ्रूटिया चुरगम निकाल लिया है । आँखें बंद करके उसको चुगल रहे हैं । चेहरे पर थकान अभी भी नहीं है । अचानक कुछ याद आया तो मोबाइल पर कर रहे हैं ‘हाँ गोंई चीनू, हैप्पी बड्डे गोंई । ऐसा करियो जब इधर आओ तो घर जरूर अइयो, बढ़िया हज़ार रुपये की शर्ट दिलवानी है तुमको ।’ चीनू भार्गव बाबू के भानेज हैं । इन्जीनियरिंग कॉलेज में पढ़ते हैं । भार्गव बाबू सबको इसी प्रकार मोबाइल पर ही गिफ़्ट देते हैं । इन गिफ़्टों को मोबाइल पर ही लोग लेते हैं और मोबाइल पर ही भूल जाते हैं । कोई घर आ भी गया तो भार्गव बाबू तो मिलने नहीं हैं, वो तो दिन भर दफ़्तर में रहते हैं । आठ बजे घर का स्टॉप आया है । लौटते में बस कुछ घूम कर आती है सो अधिक समय लगाती है । अब रास्ते का कोई काम नहीं है सीधे ही घर जाना है । कंधे पर बैग और हाथ में सामान का झोला टाँगे सधे क़दमों से घर की तरफ लौट रहे हैं भार्गव बाबू ।

सवा आठ बज रहे हैं अब आज के दिन में बस डेढ़-पौने दो घंटे शेष हैं, क्योंकि पौने दस-दस तक भार्गव बाबू सो जाते हैं । आते ही कपड़े वगैरह उतार कर रात वाली पोशाक पट्टे की चड्डी और बनियान में आ गये हैं । और सीधे ‘लेट’ में घुस गये हैं । इस बार ‘लेट’ से संतुष्ट चेहरे के साथ बाहर आये हैं और अब ‘बाथ’ में हैं । समय हाथों से फिसलता जा रहा है । दिन की रेत के अंतिम कण गिर रहे हैं । तरोताज़ा होकर अब बाहर के कमरे में हैं भार्गव बाबू । टीवी चालू कर दिया है । अब केवल एक घंटा शेष है । दुनिया जहान की सूचनाएँ समाचार चैनल से आ रही हैं, भार्गव बाबू की ऊँघ के चलते सब गड्ड-मड्ड हो रही हैं । ‘खाना’ पत्नी की आवाज़ से ऊँघ टूट गई । सुबह जिस स्थान पर नाश्ता किया था अब वहाँ खाने की थाली रखी है । पिसी हुई पालक की सब्ज़ी, खड़े मूँग की सूखी सब्ज़ी, हरी चटनी, कटे हुए टमाटर-प्याज़, साबुत हरी मिर्च, बिर्रे की रोटी और गुड़-घी । भार्गव बाबू की थाली से गाँव अभी भी विदा नहीं हुआ है । अब ये भोजन आने वाले पूरे एक घंटे तक चलेगा । बीच बीच में रोटी लाती हुई पत्नी सूचनाएँ भी देती जायेगी । ‘टीनी (बेटी) का फोन आया था कह रही थी कँवर साब आ रहे हैं इस तरफ अगले महीने, मैंने कह दिया कि वो आ रहे हैं तो तू भी आ जा । कह रही थी पूछ कर बताऊँगी उनसे ।’ बिर्रे की रोटी को पालक में मीस लिया है भार्गव बाबू ने और अब उसको खाने का आनंद ले रहे हैं । बीच बीच में गुड़ भी खाते जाते हैं । या कभी कभी मिर्च को उठाकर कुतर लेते हैं । ‘विपक्ष ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर तीखे तेवर अपनाते हुए कहा है कि गुड्डू (बेटा) गया था रोज़गार दफ़्तर में पंजीयन करवाने, वहाँ तीन सौ रुपये ऊपर से माँग रहे हैं ।’ ये टीवी और पत्नी की दो सूचनाएँ थीं जो गड्ड-मड्ड हो गईं हैं । एक ही बड़े कौर में मूँग की सब्ज़ी की बड़ी मात्रा को मुँह में रखकर उसे सेट करने की कोशिश में लगे हैं भार्गव बाबू । ‘चीनू जी को बर्थडे विश करने के लिये कॉल किया था जीजी कह रही थीं कि अगर गैस की टंकी पर बढ़ाये गये दाम तुरंत वापस नहीं लिये गये तो वे सरकार से समर्थन वापस ले लेंगी ।’ एक बार फिर से दो सूचनाएँ गड्ड-मड्ड हो गईं हैं । भार्गव बाबू बिर्रे की रोटी को गुड़ घी में मीस कर चूरमा बनाने में जुटे हैं ।

भोजन पूरा हो चुका है । टेबल से थाली हट चुकी है । अब वहाँ दूध का गिलास, प्लेट में दो केले और एक आसव और एक पुष्पी की शीशी रखा गईं हैं । भार्गव बाबू एक कौर केले में से काटते हैं और फिर एक घूँट दूध पीते हैं । ‘बीनू आए थे अम्मा की दवा लेने मैंने कह दिया कि कल आ जाना आज तो अमेरिका ने पाकिस्तान पर द्रोण हमले तेज़ कर दिये हैं ।’ नींद की ख़ुमारी में सूचनाएँ छिछल-बिछल हो रही हैं । कहाँ से आ रही हैं किसमें मिल रही हैं कुछ पता नहीं चल रहा है । साढ़े नौ बजे भार्गव बाबू ने आसव का सेवन किया और स्टूल साफ हो गया है । अब वहाँ एक प्लेट में दवाएँ रखी हैं दो टेबलेट एक केप्सूल । बहुत बुरा मुँह बनाते हुए भार्गव बाबू ने उनको भी निकल लिया । अब वे दीवार से टिक कर टीवी देख रहे हैं ‘बिग बॉस के नये सीज़न में............श्रीलंका के प्रधनमंत्री कल आएँगे.........भारतीय क्रिकेट टीम ने.........जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया...........सलमान खान की आने वाली फिल्म में........पूरा का पूरा विपक्ष भाग लेगा....’ सूचनाएँ सूचनाएँ सूचनाएँ, भार्गव बाबू गर्दन झुकाए ऊँघ रहे हैं । सुइयाँ पौने दस पर आ गईं हैं । ‘सो जाइये’ पत्नी की तेज़ आवाज़ से जागते हैं । रिमोट से टीवी बंद कर देते हैं और ‘बाथ’ की ओर बढ़ गये हैं । घड़ी में दस बजने को हैं, भार्गव बाबू बिस्तर में हैं । नींद बहुत तेज़ी के साथ अपनी गिरफ़्त में ले रही है । पट्टे की चड्डी और छेदों वाली बनियान पहना शरीर धीरे धीरे खर्राटे छोड़ कर नींद का एलान कर रहा है । दस बज गये हैं, भार्गव बाबू सो चुके हैं ।

(समाप्त)