भारतका सुपरहीरो - 2 Green Man द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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भारतका सुपरहीरो - 2

जमीन पर यान उतरने के दो महीने पहले.....

पश्चिम भारतीय लेबोरेटरी मूनसिटी मे आई थी, मूनसिटी एक बड़ा शहर था, मूनसिटी की चारों तरफ जंगल था और फिर पहाड़ी प्रदेश चालू हो जाता था। मूनसिटी के बाद जंगल की ओर सौ मीटर की दूरी पर एक बड़ा मकान था। उधर डॉक्टर एमन नाम के इंसान रहते थे, उसकी उम्र पच्चीस साल के आसपास थी और उसके माता पिता एक्सीडेंट में मर चुके थे इसीलिए अभी वो इस मकान में सिर्फ अकेले ही रहते थे। डॉक्टर एमन एक साइंटिस्ट थे इसलिए उसके मकान में एक लेबोरेटरी थी और एक अलग से बड़ा पुस्तकालय भी था।

डॉक्टर एमन को मूनसिटी में 'मास्टर' के नाम से पुकारे जाते थे। मास्टर हर रोज अपनी लेबोरेटरी में कुछ न कुछ करते रहते थे। मास्टर के काम का हर रोज का समय पत्रक था और वो उसके हिसाब से चलते थे। मास्टर सुबह जल्दी उठकर घर कर आंगन में पेड के नीचे दिखाई देते थे और हर रोज सुबह ध्यान मुद्रा में बैठते थे, बाद में वह खुद चाय वो सब बना के नाश्ता करते थे और फिर वह लेबोरेटरी और पुस्तकालय में चले जाते। पुस्तकालय में सब विज्ञान के ही पुस्तक थे। दोपहर और शाम को वह खुद अपना खाना बनाते थे कभी कभी वो रविवार को शहर में घूमने जाते थे, यह उसका समय पत्रक था।
मास्टर कोई नई धातु बना रहे थे, जब उसने धातु पर काम करना चालू किया था उस समय सब मकान के दरवाजे बंद होते थे और मास्टर अपने काम में मशगूल रहते थे। कभी कभी उसको खाने का भी पता चलता नहीं था और समय का भी पता नहीं चलता था। मास्टर इन दिनों में सिर्फ सुबह ही देखने को मिलते थे। उसकी खोज कई महीनों तक चली इसलिए उसके पास थोड़ा सा भी समय नहीं मिलता था। एक दीन सुबह ध्यान मुद्रा में बैठे मास्टर साधु की तरह लग रहे थे, उसके बाल एकदम लंबे हो गए थे और उसकी दाढ़ी भी लंबी लंबी हो गई थी।

मास्टर अपनी लेबोरेटरी में कुछ न कुछ करते रहते थे, वो सब बाहर से दिखता था। कभी कभी उसकी लेबोरेटरी की खिडकी में से दिखाई देता था क्योंकि वो कांच की थी। कभी कभी मास्टर की लेबोरेटरी में से धुआं निकलता था तो कभी कोई बॉम्ब जैसे फटने की आवाज आती तो कभी खिडकी में से कुछ चमकते हुए दिखाई देता। उसकी खोज कई महीनों तक चली और एक दिन बाहर पेड के नीचे कुर्सी में बैठे हुए मास्टर दिखाई दिए। उस समय उसके बाल कटे हुए थे और दाढ़ी शेव की गई हो ऐसा दिखाई दिया। तभी ऐसा लगा कि मास्टर की खोज शायद पूरी हो गई है।

एक दिन कोई इंसान ने मास्टर का दरवाजा खटखटाया और मास्टर ने दरवाजा खोला, उसको देखते ही मास्टर ने उसे गले लगा लीया। यह इंसान मास्टर का पुराना दोस्त था, मास्टर उसको अपने घर में लेकर गए। मास्टर का दोस्त घर में बैठा था और मास्टर चाय बनाने लगे। फिर दोनों चाय पीने लगे और अपनी पुरानी बातें याद कर लगे।
मास्टर का दोस्त आज पहली बार उसके घर आया था ईसलीए मास्टर अपना घर दिखाने लगे बाद में उसने अपना पुस्तकालय दिखाया और बाद में मास्टर ने अपने दोस्त को अपनी लेबोरेटरी में लेकर गए। मास्टर के दोस्त को नई नई चीजें देखने का बहुत शौक था ईसलीए वो लेबोरेटरी में पड़ी सब चीज देखने लगा और सबके बारे में मास्टर को पूछता जाता था।
सब देखते देखते उसकी नजर एक तलवार पर पड़ी वो देखते ही वह सब चीजें छोड़ कर उस तलवार के नजदीक पहुंच गया। यह तलवार देखने में इतनी सुन्दर थी कि वह देखते ही सबका मन पिघल जाए। यह तलवार का रंग एकदम चांदी जैसा था और एकदम चमकदार था। मास्टर के दोस्त ने वो तलवार उठाई और मास्टर को पूछने लगा कि यह तलवार कौन सी धातु की बनी है। मास्टर अपने दोस्त को कहने लगे, यह धातु मैंने बनाई है, यह धातु का नाम स्टीरीयन रखा है और यह एकदम सख्त है की कोई भी ऐसी वैसी धातु को काट सकता है।

मास्टर के दोस्त ने फिर से पूछा कि क्या ओर ऐसा कुछ बनाया है? मास्टर ने अपनी मुंडी हिला के हाँ बोला और तीन चार ऐसे हथियार बाहर निकाले। एक दो हथियार मास्टर ने पकड़े और दो तीन हथियार उसके दोस्त को दिए और दोनों मास्टर के घर के चौक में पहुंचे।

मास्टर ने तलवार उठाई थोड़ी देर तो उसने तलवार घुमाई जैसे कि तलवार की धार हवा को चीरती हो ऐसा लग रहा था। हवा में सिर्फ तलवार घुमने की ही आवाज आ रही थी। मास्टर ने अपनी पूरी ताकत से एक पेड़ के थड़ पर प्रहार किया और पेड़ के दो टुकड़े हो गए। यह देखकर मास्टर का दोस्त मास्टर को देखता ही रह गया। मास्टर अपने दोस्त को कहने लगे कि यह सब ईस धातु के ही बने हैं और यह धातु इतनी सख्त है कि साधारण धातु को ऐसे ही काट सकता है। यह धातु में से मास्टर ने तलवार, भाला, शिल्ड ऐसे हथियार बनाए थे यह सब हथियार मास्टर अपने दोस्त को दिखा रहे थे।

सब हथियार देखने के बाद दोनों लोग सब हथियार लेकर लेबोरेटरी में जाकर रख दिए और दोनों लोग रसोई घर में गए, दोनों ने मिलकर खाना बनाया और दोनों ने खाना खाया। फिर थोड़ी देर आराम किया और उसका दोस्त मास्टर की आज्ञा लेकर वो अपने घर की ओर चल पड़ा।

एक महीने के बाद........

शाम के तीन बजे थे, उस समय तीन मांसाहारी जानवर मूनसिटी में घुस आए और लोगों को मारने लगे। उसके डर की वजह से सारे मूनसिटी में भागदौड़ मची हुई थी। यह सुन के पुलिस फोर्स उसे मारने के लिए निकल चुकी थी और यह बात मास्टर के कानों तक पहुंची, यह सुनते ही मास्टर ने शिल्ड निकाला और पीठ के पीछे लटका दिया और तलवार भी पीठ के पीछे लटका दी। मास्टर अपनी बाइक ले कर मूनसिटी की ओर निकल पड़े।

तीन जानवर में से एक अस्पताल में घुसा और दूसरे दोनों अलग अलग जगह पर जाकर मनुष्य को मारने लगे। मास्टर अपनी बाइक लेकर जा रहे थे उस वक्त कुछ लोग अस्पताल में से भाग के बाहर निकल रहे थे, मास्टर ने अपनी बाइक उधर रोक कर अस्पताल में दाखिल हुए।

यह भयानक प्राणी कितने सारे लोगों को मार चुका था, मास्टर ने जब अस्पताल में प्रवेश किया तभी वह जानवर ने एक मनुष्य को अपने जबड़े में दबोचा हुआ था। भयानक प्राणी के डर की वजह से डॉक्टर ईशा टेबल के नीचे छुप के सब देख रही थी। मास्टर अपने साथ सिर्फ तलवार और शिल्ड ही लेकर आए थे वरना धनुष की मदद से उसका काम तमाम कर सकते थे। मास्टर ने अपनी पीठ के पीछे से शिल्ड उतार कर अपने दायें हाथ में रखा और बाएं हाथ से पीठ के पीछे से तलवार निकाली और तलवार जोर से शिल्ड पर मारी और उसमें से आवाज आई।

आवाज सुनते ही वह जानवर ने आवाज की दिशा में मास्टर की ओर देखने लगा, वह इंसान का मरा हुआ शरीर छोड़कर मास्टर के सामने मुड़ा और मुंह में से आवाज निकालने लगा और साथ में स्टाइल्स के ऊपर अपना पैर रगडने लगा। उसका पैर रगड़ने की वजह से स्टाइल्स में उसके नाखून के निशान छप गए थे।

जानवर मास्टर की ओर बढा और मास्टर की ऊपर उसने पंजे से प्रहार किया, मास्टर ने अपना बचाव शिल्ड की मदद से किया किन्तु उस जानवर के पांव में ज्यादा ताकत थी, उसकी वजह से मास्टर नीचे जमीन पर गिर पड़े। तुरंत ही उस जानवर ने मास्टर पर प्रहार किया, मास्टर के शिल्ड से प्रहार अटकाने से पहले ही उस जानवर के नाखून मास्टर के पांव से छूकर निकल गए और उसकी वजह से मास्टर के पैर में से खून निकलने लगा।
मास्टर लंगड़ाते हुए खड़े हो गए। उस जानवर ने मास्टर पर दौड़कर छलांग लगाई। उस समय मास्टर जमीन पर सो गए और वह जानवर मास्टर के ऊपर से गुजर रहा था उस समय ही मास्टर ने अपनी तलवार उसके शरीर की अंदर तक उतार दी और वह जमीन पर गिर पड़ा। यह सब तेईस साल की ईशा देख रही थी, वह जानवर को मरते देखते ही वह टेबल के नीचे से बाहर निकली और दौड़ के दवाईयों का बॉक्स लेकर आई और मास्टर के घांव पर मलहम पट्टी करने लगी। मास्टर एक ही नजर से उस के सामने देख रहे थे। ईशा उसके सामने देख के मुस्कुराई और उसके घांव पर पट्टी बांधने लगी।

थोड़े दिनों के बाद उस अस्पताल में कुछ फंक्शन रखा गया था, तो उसमें मास्टर को आमंत्रित किया गया और यह फंक्शन शाम को था। फंक्शन में मास्टर की वीरता के लिए उसे सम्मानित किया गया। सब कार्यक्रम खत्म होने के बाद मास्टर जब घर पर जा रहे थे, तभी ईशा उसके पास आई, उसे देखते ही मास्टर ने उसका शुक्रिया अदा किया क्योंकि उस समय ईशा को शुक्रिया अदा करने का भूल गए थे। फिर दोनों ने देर तक बात की और बाद में अपने अपने घर पर चले गए।

थोड़े ही दिनों में मास्टर और ईशा के संबंध मजबूत हो रहे थे, ईशा देखने में बहुत ही सुंदर थी इसलिए मास्टर को वो पसंद थी और ईशा को भी मास्टर बहुत पसंद थे। फिर तो मास्टर की जिंदगी का नया रास्ता निकल चुका था कभी कभी मास्टर और ईशा दोनों होटल में खाना खाने जाते थे, तो कभी शहर में घुमते थे। एक बार ईशा मास्टर के घर पर आई, मास्टर ने अपना पूरा घर दिखाया फिर दोनों ने मिलकर खाना बनाया और खाना खाया फिर शहर में घूमने चले गए।

एक दिन मास्टर और ईशा दोनों बगीचे में घूम रहे थे, तभी ईशा ने मास्टर को शादी के बारे में पूछ लिया। थोड़ी देर तो मास्टर ईशा को डराने के लिए उसके सामने आँखें निकालने लगे, उस समय ईशा का चेहरा सुखे पेड़ की पत्तियों की तरह सुख गया था। मास्टर ने ईशा का हाथ पकड़ा और गले लगा लिया, ईशा का चेहरा फिर से गुलाब की तरह खिल उठा।

ईशा ने मास्टर की बात अपने घर वालों से की, घरवाले तो खुश थे कि जो बेटी की पसंद वो हमारी पसंद। घरवालों ने ईशा को बोला कि उस लड़के को अपने घर पर शाम को लेकर आना। यह सुनते ही ईशा एकदम खुश हुई और मास्टर को फोन लगा के अपने घर पर खाना खाने के लिए आमंत्रित किया। शाम को मास्टर ईशा के घर पर पहुंच गए, शाम को सबने मिलकर खाना खाया, सबको मास्टर बहुत पसंद आए। मास्टर पसंद क्यों नहीं आएंगे जो इतने सुन्दर थे जो ईशा से भी कम नहीं थे। एक दिन मास्टर और ईशा के परिवार ने मिल कर दोनों की सगाई की बात की और एक अच्छा दिन देख कर दोनों की सगाई कर दी।