भारतका सुपरहीरो - 11 Green Man द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

भारतका सुपरहीरो - 11

11. ब्लेड गर्ल और न्यूक्लियर रिएक्टर स्ट्राइकर

मल्लिका ने इतने दिनों में एलियन रोबोट के धातु के पार्टिकल में से तीन चार ब्लेड बनाई, उस ब्लेड में बीच में एक छेद था और वह तीन पंखुड़ी वाली थी। मल्लिका ने यह ब्लेड विक्रम को दिखाई, विक्रम ने मल्लिका से कहा कि इसको चला के दिखा तो पता चले। मल्लिका विक्रम को लेकर लेबोरेटरी के बाहर के खुल्ले मैदान में ले गई, मैदान में कई सारे पेड़ पौधे थे। मल्लिका ने एक ब्लेड हाथ में ली और बाकी सब विक्रम को दे दी, मल्लिका ने थोड़ी दौड़ लगा कर दूर पेड़ की ओर वह ब्लेड फेकी। लेकिन कुछ हुआ नहीं, यह देखकर विक्रम मजाक में मन में मुस्कुरा रहा था। मल्लिका ने वापस दूसरी ब्लेड उठाई और पेड की ओर फेकी, फिर भी कुछ नही हुआ और विक्रम की हंसी थोड़ी बढ़ गई। मल्लिका ने ऐसे चारों ब्लेड फेकी लेकिन कुछ नहीं हुआ, अभी विक्रम खडखड़ा हंसने लगा उतनी देर में ही वह पेड थड में से टूट कर गिर पड़ा। यह देखकर विक्रम चौक गया, मल्लिका और विक्रम दोनो उधर पेड के पास पहुंच कर देखा कि उसके चारों ब्लेड जमीन पर पड़ी थी।

मल्लिका की यह तकनीक विक्रम को अच्छी लगी, विक्रम ने मल्लिका को कुछ नया सुझाव दिया और मल्लिका को भी यह बात पसंद आई और वह उस काम पर लग गई। मल्लिका को कभी दिक्कत आती थी तभी वो विक्रम को पूछती थी और विक्रम उसका हल निकाल देता था। कभी कभी विक्रम भी उसको काम में हाथ बंटाने लगता था, बस ऐसे ही समय बीत रहा था। एक दिन विक्रम लेबोरेटरी की ऑफिस पर बैठा बैठा बोर हो रहा था तभी उसके दिमाग में आया कि कितने दिनों से उदय के साथ अच्छे से बात नहीं की है, चल उसे मिल के आता हूँ। विक्रम उदय के पास गया और जाते ही उदय के सामने कुर्सी पर बैठ गया, उदय काम में बहुत व्यस्त था। विक्रम ने पूछा कि क्या कर रहा है उदय? उदय ने कुछ बोले बिना ही एक काला दो इंच का क्यूब टेबल पर रख दिया। विक्रम वो क्यूब देखने लगा, उसके ऊपर कोई भी बटन भी नहीं था, विक्रम को नवाई लगी और उदय को उसके बारे में पूछने लगा।

उदय ने वह क्यूब उठा कर एक सिलेंडर की ओर फेंका, क्यूब सिलेंडर के साथ छूते ही क्यूब के कोने में से चार पैर जैसे बाहर निकले और सिलेंडर पर चिपक गए। चिपके हुए बॉक्स के बीच में एक लाल रंग का गोल निशान था, उदय बोला कि यह डिवाइस न्यूक्लियर रिएक्टर है, इसमें कोई किरण नहीं निकलती। यह क्यूब जिस चीज पर फेंको उस पर चिपक जाता है लेकिन यह धातु की चीज के साथ ही चिपक सकता है और कोई दूसरी चीज के साथ नहीं चिपकता। लेकिन इसमें बड़ी दिक्कत ये है की जो तुम यह लाल निशान देख रहे हो उधर पच्चीस सौ डिग्री तापमान सेंस होगा तभी यह एक्टिव हो सकता है। विक्रम ने कहा कि यह मैं कर सकता हूँ, मैंने फरहान की लेज़र गन में कुछ नया अपडेट करके उसकी पावर बढ़ा दी है।

उदय विक्रम को कहने लगा कि चलो देर किस बात की, दोनों खाली सिलेंडर और वह क्यूब लेकर खुले मैदान में पहुंच गए। उदय ने सिलेंडर को दूर रख दिया और क्यूब सिलेंडर की ओर फेंका, क्यूब सिलेंडर को छूते ही उसके साथ चिपक गया। उदय, विक्रम के पास आ गया और निशाना लगाने को बोला विक्रम ने अपना वॉइस कोड डाल कर सूट तैयार कीया। विक्रम ने लेज़र गन का कोड डाला और लेज़र गन की मदद से उस क्यूब पर बने लाल रंग के निशान पर निशाना लगा कर फायर किया। सिलेंडर के पास बड़ा धमाका हुआ, थोड़ी देर के बाद धुंआ कम हुआ, विक्रम और उदय जहा सिलेंडर रखा था उधर पहुंचे। दोनों देखने लगे, जहाँ सिलेंडर रखा था उधर बड़ा गड्ढा हो गया था और उसमें से धुआं निकल रहा था। विक्रम सिलेंडर को आसपास ढूंढने लगा लेकिन कहीं दिखाई नहीं दिया फिर उसकी नजर में आया कि गड्ढे के थोड़े दूर धातु के पार्टिकल बिखरे हुए थे। उदय ने विक्रम से कहा कि देखा, इस डिवाइस से कोई भी धातु को पार्टिकल के रूप में बदल सकते हैं लेकिन यह डिवाइस उच्च तापमान सेंस करने के थोड़े समय के बाद पार्टिकल बिखरने लगेंगे।

विक्रम को उदय का यह डिवाइस बहोत पसंद आया, विक्रम ने अपना सूट समेट लिया और विक्रम ने उदय को शाबासी दी और बातें करते करते लेबोरेटरी में गए। उदय ने विक्रम से कहा कि तुम न्यूक्लियर रिएक्टर का उपयोग कर सकते हो, तो क्यों न तुम्हारे सूट में ही अपडेट किया जाए, विक्रम ने कहा हां यह बात तो सही है। फिर दोनों ने मिलकर न्यूक्लियर रिएक्टर क्यूब बनाना चालू कर दिया, दो हफ्ते के अंदर दोनों ने मिल कर क्यूब बना लिया था। अभी इस क्यूब को सूट में अपडेट करना था, विक्रम ने अपनी घड़ी का बटन दबाया और वह क्यूब के रूप में आ गया। फिर क्रिस्टल क्यूब को खोल कर न्यूक्लियर रिएक्टर क्यूब अपडेट करने लगे, यह काम करने में उसको दो महीने लग गए थे, दोनों ने मिल कर सफलता पूर्वक न्यूक्लियर क्यूब अपडेट कर दिया था।

विक्रम और उदय दोनों बाहर आए, विक्रम ने क्रिस्टल क्यूब के ऊपर का बटन दबाया और वो उसके हाथ पर घड़ी के रूप में चिपक गया। विक्रम ने वोइस कोड डाला और सूट तैयार हो गया, विक्रम ने आसपास नजर घुमाई तो उसको लेबोरेटरी की पुरानी कार दिखी। उस कार के आसपास कुछ नहीं था इसलिए विक्रम ने न्यूक्लियर गन पसंद की और कार के सामने फायर किया। गन में से न्यूक्लियर रिएक्टर क्यूब निकला और उस कार को छूते ही वह उसके ऊपर चिपक गया। विक्रम ने न्यूक्लियर गन को बदल कर लेज़र गन की मदद से फायर कीया, फायर करते ही नीले रंग की ज्योत गन में से निकल कर उस क्यूब पर टकराई और बड़ा धमाका हुआ। थोड़ी देर के बाद उदय और विक्रम उस कार के पास पहुंचे उतने में ही कार के पार्ट्स छोटे छोटे पार्टकल में अलग होकर जमीन पर बिखरने लगे। थोड़ी देर में जो धातु की चीज एक दूसरे के साथ जुड़ी हुई थी वो सब पार्टिकल के रूप में बदल गई।

विक्रम ने उदय का शुक्रिया अदा किया क्योंकि उसकी बनाई चीज अपने सूट में अपडेट करने दी। विक्रम सिर्फ पांच बार ही लेज़र गन से फायर कर सकता था, बाद में उसके सूट का पावर खत्म हो जाता था। विक्रम को एक नया विचार आया और उसने उदय को बताया, उदय को भी यह बात पसंद आई और दोनों लेबोरेटरी में गए और नए सुझाव पर काम करना चालू कर दिया। कभी विक्रम उदय की मदद करता तो कभी मल्लिका की ऐसे ही समय बीत रहा था। दो-तीन महीनों के बाद मल्लिका का काम खत्म हो गया था, मल्लिका ने लेबोरेटरी में सबको अपने बनाए हुए आविष्कार को देखने के लिए लेबोरेटरी के मैदान में बुलाया, सब लेबोरेटरी के कर्मचारी मैदान में इकट्ठा हो गए थे।

मल्लिका विक्रम के जैसा ही क्यूब लेकर आई और सब लोगों को अपने पीछे खड़ा कर दिया। मल्लिका ने क्यूब के ऊपर का बटन दबाया और क्यूब में से सुई निकलकर मल्लिका के हाथ में खुची और वापस अंदर चली गई और उसमें से आवाज आया 'डीएनए टेस्ट सक्सेसफूल्ली'। उसके साथ ही क्यूब घड़ी के रूप में मल्लिका के हाथ पर चिपक गया, मल्लिका ने घड़ी की डिस्प्ले पर टच किया और उसका सूट तैयार होने लगा, तैयार होने के बाद यह सूट मल्लिका को एकदम मस्त लग रहा था। मल्लिका का सूट चमकता हुआ हरे रंग का था और उसमें लाल रंग की फेंसिंग डिजाइन थी और सूट की छाती पर तीन पंखुड़ी वाली ब्लेड का लाल निशान था। मल्लिका के सूट में हाथ, कमर और पैर में ब्लेड के पॉकेट थे, उन पॉकेट में तीन पंखुड़ी वाली ब्लेड थी, मल्लिका के शरीर पर कम से कम पन्द्रह ब्लेड थी। ब्लेड का रंग आधा लाल और आधा हरा था और मल्लिका के पीठ पर दो पंखुड़ी वाली बड़ी ब्लेड थी और उसमें दोनों पंखुडी के बीच पकड़ने का था और वो दो ब्लेड थी।

मल्लिका ने एक पॉकेट में से ब्लेड निकाली और पेड़ की ओर फेंकी ऐसे उसने तीन ब्लेड एकदम तेजी से फेंकी और वो पेड जमीन पर गिर पड़ा। ब्लेड में और पॉकेट में सेंसर लगाए हुए थे इसलिए जो ब्लेड मल्लिका ने फेंकी थी वो वापस अपने अपने पॉकेट में आ गई थी और बिना मल्लिका को छुए। यह देख कर सब लोग तालियां बजाने लगे, मल्लिका ने अपनी पीठ के पीछे से वह दो बड़ी ब्लेड निकाली मल्लिका के दोनों हाथों में एक एक ब्लेड थी वह ब्लेड आस पास में लड़ने के वक्त काम आती थी। वह ब्लेड में ऐसी खासियत थी कि उस ब्लेड को हवा में फेंकने से दो मीटर की दूरी तक जाएगी और वापस दुगनी तेजी से उसके हाथ में आ जाती थी। मल्लिका ने वह ब्लेड जोर से फेंक कर दिखाया, वह ब्लेड वापस एकदम तेजी से उसके हाथ में आ गई, मल्लिका की छोटी ब्लेड थी वो सौ मीटर की दूरी तक फेंकी जा सकती थी। मल्लिका ने घड़ी पर टच किया और उसका सूट समेट गया, सब लोग मल्लिका को बधाई देने लगे इस बात से मल्लिका बहुत खुश थी। थोड़े दिनों में लेबोरेटरी में सब उसको "ब्लेड गर्ल" बुलाने लगे और फिर तो "ब्लेड गर्ल" पूरे मूनसिटी में प्रख्यात हो चुकी थी।

एक दिन सुबह मल्लिका विक्रम को नींद में से उठा रही थी क्योंकि लेबोरेटरी जाने के लिए देर हो रही थी, लेकिन विक्रम की तबियत खराब थी इसलिए मल्लिका को अकेले जाने के लिए बोला। मल्लिका बाइक लेकर लेबोरेटरी चली गई, लेकिन विक्रम की तबियत और बिगड़ती गई इसलिए ईशा ने विक्रम को अस्पताल में दाखिल करवा दिया। मल्लिका छह बजे घर पर पहुंची लेकिन घर पर ताला लगा हुआ था, मल्लिका ने विक्रम को कॉल किया लेकिन विक्रम अस्पताल में था इसलिए फोन साइलेंट मोड पर रखा था, इसलिए विक्रम को पता नहीं चला। फोन न उठाने पर मल्लिका डर गई और ईशा को फोन लगाया, ईशा ने फोन उठाया और बोली कि हम अस्पताल में है, विक्रम की थोड़ी तबियत खराब हो गई थी। मल्लिका ने ईशा से कहा कि ठीक है मैं उधर टिफिन लेकर आती हूँ। मल्लिका ने दरवाजा खोला और फिर खाना बनाने लग गई, खाना बनाने के बाद वह टिफिन लेकर अस्पताल गई। अभी विक्रम की तबियत थोड़ी अच्छी थी, फिर तीनों ने खाना खाया और खाना खाने के बाद मल्लिका विक्रम के साथ बातें करने लगे।

बातों बातों में रात के दस बज गए थे, ईशा ने मल्लिका को कहा कि तु घर पर चली जा में ईधर रूकती हूँ, मल्लिका ने कहा की ठीक है में जाती हूँ। ईशा ने कहा कि जाते वक्त अपना ख्याल रखना। मल्लिका ने अपनी बाइक निकाल कर घर की और चल पड़ी उसका घर मूनसिटी खत्म होने के बाद सौ मीटर की दूरी पर जंगल में था। सौ मीटर वाला रास्ता एकदम छोटा था, मल्लिका उस रास्ते पर से पसार हो रही थी तभी बीच रास्ते में ही एक पेड़ गिरा हुआ था। मल्लिका ने अपनी बाइक रोकी और चारों ओर देख ने लगी किन्तु चारों ओर अंधेरा ही था। मल्लिका बाइक से नीचे उतर कर उस पेड को हटाने के लिए गई, उतने में ही किसी ने उसे पकड़ लिया और उसके मुंह पर कपड़ा लपेट दिया। यह लोग अपहरण करने वाले थे, वो कई दिनों से मल्लिका का पीछा कर रहे थे लेकिन यह अच्छा मौका देखकर मल्लिका को पकड़ लिया। मल्लिका का मुंह बंद कर दिया और उसके दोनों हाथ रस्सी से बांध दिए। उसको गाडी में बिठा के कहीं दूर ले गए और उसको एक कमरे में कुर्सी पर बिठा के रस्सी से बांध दिया। बहुत रात हो चुकी थी इसलिए वह लोग दरवाजा बंद करके दूसरे कमरे में सो गए।

एक घंटे के बाद मल्लिका की उंगली घड़ी तक पहुंच गई, मल्लिका ने अपनी उंगली से घड़ी की डिस्प्ले पर टच किया। डिस्प्ले पर टच करते ही सूट तैयार होने लगा, सूट तैयार हो गया था लेकिन अभी उसको कमर वाले पॉकेट में से ब्लेड निकाल नी थी इसलीए मल्लिका ने ब्लेड निकालने की कोशिश चालू कर दी। दो घंटे के बाद ब्लेड उसके हाथ में आ गई, फिर मल्लिका ब्लेड की मदद से रस्सी को काटने लगी, आधे घंटे में मल्लिका रस्सी को तोड़कर आजाद हुई। मल्लिका को अभी बाहर निकलना था इसलिए वो इधर उधर देखने लगी। मल्लिका को जीस कमरे में बंद किया था उस में सिर्फ एक ही दरवाजा था, खिड़किया ऐसा कुछ नहीं था। मल्लिका ने अपनी पीठ के पीछे से बड़ी ब्लेड निकाली और लकड़े के दरवाजे पर प्रहार किया, सिर्फ तीन-चार प्रहार में दरवाजे में बड़ा छेद कर दीया। दरवाजा टूटने की वजह से वह अपहरण करने वाले लोग नींद में से उठ गए, गन और लकड़ी का डंडा लेकर बाहर निकले, वह शायद छह-सात लोग थे। उन लोगों ने मल्लिका को देखा और दो-तीन लोग लकड़ी का डंडा लेकर मल्लिका की ओर बढ़े। मल्लिका ने अपनी पीठ के पीछे से दूसरी बड़ी ब्लेड निकाली, उन लोगों ने मल्लिका के ऊपर एक साथ लकड़ी के दंड से प्रहार किया किन्तु मल्लिका ने एक ही जाटके में सबके डंडे काट दिए। मल्लिका ने तुरंत ही एक इंसान की तरफ जोर से ब्लेड फेंकी और उस इंसान की उंगलियां कट गई और ब्लेड वापस मल्लिका के हाथ में आ गई।
उंगलियां कटते हुए देखकर सब लोग डर के भाग गए लेकिन उनके बॉस के पास गन थी, उसने मल्लिका के ऊपर फायरिंग किया लेकिन मल्लिका उधर ही खड़ी थी, गोलियां मल्लिका के सूट को छूकर नीचे गिर रही थी। उस इंसान के गन में गोलियां खत्म हो गई इसलिए उसने गन को फेंक कर इधर उधर देखने लगा, उसकी नजर में एक धातु का पाइप आया। वह पाइप उठा कर वो इंसान मल्लिका की ओर बढ़ने लगा लेकिन मल्लिका ने एक ही प्रहार में उसका पाइप काट डाला। अभी वो इंसान डरने लगा और भागने ही वाला था इतनी देर में मल्लिका ने उसके पैर की तरफ ब्लेड फेंकी और उसका पांव कट गया और वह जमीन पर गिर पड़ा।मल्लिका की ब्लेड खून वाली हो गई थी इसलिए मल्लिका उस इंसान के पास जाकर उसके शर्ट से ब्लेड साफ कर दी और अपनी पीठ के पीछे रख कर घड़ी पर टच किया और सूट समेट गया।

मल्लिका ने उस मकान में से बाहर निकल कर देखा तो वह दूसरे शहर में थी जो मूनसिटी से बीस किलोमीटर की दूरी पर था। इस वक्त रात के तीन बज गए थे इसलिए एक भी रिक्षा नहीं थी, मल्लिका अभी सोचने लगी कि क्या करूँ? मल्लिका वापस उस मकान में गई और उस इंसान के हाथ रस्सी से बांध कर, वही रूम में कुर्सी पर बिठा के बांध दिया, जिधर उसको बांधा था। फिर मल्लिका दूसरे कमरे में जाकर सो गई। मल्लिका सुबह की जल्दी की बस पकड कर अपने घर पहुंच गई। दस बजे तक विक्रम को भी अस्पताल में से छुटटी दे दी और वो भी घर पर आ गया था, थोड़े दिनों में ही विक्रम की तबियत ठीक हो गई और फिर से दोनों लेबोरेटरी साथ में जाने लगे।

लेबोरेटरी के अलग अलग विभाग में अलग अलग परीक्षण हो रहे थे और अलग अलग प्रदर्शन भी हो रहे थे। सात महीने के बाद उदय और विक्रम साथ में बैठकर बातें कर रहे थे क्योंकि उसका सारा काम खत्म हो गया था, विक्रम ने और उदय ने मिलकर एक उपग्रह जैसा बनाया था। वह उपग्रह भारत की सुरक्षा के लिए बनाया था, उस उपग्रह के फायदे ऐसे थे कि भारत पर आने वाले डिजास्टर के बारे में बताता था और एक खास बात इस उपग्रह में न्यूक्लियर रिएक्टर गन और लेज़र गन लगाई हुई थी इसकी मदद से पृथ्वी पर कहीं भी फायर कर सकते थे। यह उपग्रह का नाम उदय की सरनेम के ऊपर से "मार्क सैटेलाइट" रखा गया था और मार्क को कंप्यूटर की मदद से चला सकते थे और कोई भी मैसेज उस कंप्यूटर पर आता था। विक्रम ने एक रिक्वेस्ट पत्र इस उपग्रह को छोड़ने के लिए 'पश्चिम भारतीय स्पेस रिसर्च सेंटर' को भेजा। 'पश्चिम भारतीय स्पेस रिसर्च सेंटर' के द्वारा इस उपग्रह के बारे में जानकारी ली और उस उपग्रह को छोड़ने के लिए मान गए और एक दिन "मार्क सैटेलाइट अंतरिक्ष में तैरने लगा।

पांच साल में भारत की टेक्नोलॉजी आसमान तक पहुंच चुकी थी, भारत ने अंतरिक्ष में लेबोरेटरी प्रस्थापित की हुई थी, लेबोरेटरी की चारों ओर सौ मीटर का मैदान रखा गया था। यह सौ मीटर के अंतर में लेबोरेटरी की सुरक्षा के लिए अलग अलग गन और डिवाइस रखे गए थे, सौ मीटर का मैदान खत्म होते ही किल्ले की तरह बड़ी दीवार रखी गई थी। यह लेबोरेटरी अंतरिक्ष में तैर रही थी, यह लेबोरेटरी की सुरक्षा के लिए पूरी लेबोरेटरी पर एक कवच था जो दिखता नहीं था लेकिन कोई भी चीज परमिशन के बिना घूस नहीं सकती थी लेकिन लेबोरेटरी से बाहर निकल सकती थी। यह सुरक्षा कवच की सिस्टम लेबोरेटरी के एकदम बीच वाले कमरे में रखी गई थी और उसमें बड़ी टाइट सिक्योरिटी रखी गई थी। कोई भी इंसान बिना अंदर नहीं घुस सकता यदि कोई इसमें घुस गया तो वो लेज़र से बच नहीं सकता, इसके अंदर सिर्फ लेबोरेटरी के हेड ही जा सकते थे।

लेबोरेटरी में अलग अलग विभाग रखे गए थे और इस लेबोरेटरी में हर रोज अवर जवर होती रहती थी इसलिए आने के वक्त सिर्फ लेबोरेटरी के जहाज के जरिए ही अंदर आ सकते थे और लेबोरेटरी के जहाज के अंदर जाने के लिए बायोमेट्रिक जरूरी थी। इस लेबोरेटरी में उदय, मल्लिका और विक्रम तीनों को स्थान मिला था, विक्रम को अपने सूट के साथ प्रवेश करने के लिए लेबोरेटरी वालों ने एक डिवाइस दिया और वो डिवाइस विक्रम ने क्यूब में अपडेट कर दिया था उसकी वजह से विक्रम कभी भी लेबोरेटरी के अंदर आ सकता था। लेबोरेटरी को अभी इंसान से खतरा कम था और अंतरिक्ष में एकदम शांति भी थी।