नॉमिनी
मधु अरोड़ा
(2)
कुछ सोचकर उसने अपने ससुर को फोन लगाया। फोन पर ससुरजी की आवाज़ गूंजी, ‘बेटे रवि, लिफाफा मिल गया?’ सपना ने कहा, ‘मैं सपना बोल रही हूं। लिफाफा मिल गया है। आपने रूपये किस चीज़ के दिये हैं, यदि आपको ऐतराज़ न हो तो मुझे बतायेंगे?’
दूसरी ओर से आवाज़ आई, ‘मैंने अपना बंगला बेचा है, तो जो फायदा हुआ है, उसमें से अपने बेटों को एक-एक लाख दिया है, पर तुम क्यों पूछ रही हो? इसमें तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं है।‘ पत्र तो रवि के नाम था। तुमने क्यों खोला?’
सपना गुस्से में तो थी ही। उसने आव देखा और न ताव। बोली, ‘रवि ने ही कहा था ख़त खोलने को। मुझे कोई शौक नहीं है ख़त खोलने का। पापाजी, बात पैसे की नहीं है। बात नॉमिनी की है। वहां सजीला का नाम कैसे आ गया?’
ससुरजी ने बड़ी सफाई से सपना की बात को हवा में उड़ा दिया और कहा, ‘यह बात रवि से पूछना। मेरा पैसा, मैं किसीको भी नॉमिनी बनाऊं, तुम्हें बीच में बोलने की ज़रूरत नहीं है।‘ यह कहकर फोन काट दिया गया और उस ठक की आवाज़ सपना को अंदर तक छील गई।
जब-जब रवि का तबादला होता है तो वह सपना को ज़िन्दगी का सबक ज़रूर सिखा जाता है। पहले तबादले में रवि को सपना को छोड़ने की सलाह दी गई थी और इस तबादले में चंद रुपयों के लिये नॉमिनी ही बदल दिया गया है1 भाड़ में जाये ऐसा पैसा।
रवि शुक्रवार की शाम को फ्लाइट से अहमदाबाद आते हैं। दो दिन सपना और बेटे के साथ गुजारकर सोमवार की सुबह की फ्लाइट से नागपुर चले जाते हैं। आज भी शुक्रवार है पर यह शुक्रवार खुशी लेकर नहीं बल्कि क़लह के माहौल को लेकर आया है।
शाम को रवि ऑफिस से वापिस आये। सपना फिलहाल कुछ नहीं कहना चाहती थी। वे थके-हारे आये हैं। ज़रा ख़ुद को भी व्यवस्थित और संतुलित कर ले। रवि ने कपड़े बदले और मेज पर खाना लगाने के लिये कह दिया। सपना ने चुपचाप खाना लगा दिया।
इतनी देर में बेटा भी आ गया और सब अपनी- अपनी नियत कुर्सी पर बैठ गये। हर किसीने अपनी प्लेट में अपने हिसाब से खाना ले लिया और खाना शुरू कर दिया। सपना ने भी बेमन अपनी प्लेट में नाम-मात्र का खाना लिया और जैसे-तैसे गले के नीचे उतारा।
सपना ने घड़ी देखी तो ग्यारह बज चुके थे। उसने बेटे से सोने के लिये कहा ताकि सुबह समय पर उठ सके और वह भी अपने सोने के कमरे की ओर चल दी। सपना और रवि दोनों कमरे में थे पर सपना को बात शुरू करने का सिरा हाथ नहीं आ रहा था।
रवि जल्दी ही नींद के आगोश में चले गये और उनके खर्राटों की आवाज़ सुनी जा सकती थी। सपना की आंखों में नींद आने का नाम नहीं ले रही थी। उसकी आंखों के सामने रह-रहकर रसीद आ जाती और उस पर नॉमिनी की जगह सजीला का नाम चमकने लगता।
रात थी कि बीतने में नहीं आ रही और नींद ने जैसे कसम खा ली थी कि वह सपना को सोने नहीं देगी। वह कभी इस करवट होती तो कभी उस करवट। उसे यह बात हज़म ही नहीं हो रही कि सजीला उसकी जगह कैसे ले सकती है?
वह बिस्तर से उठी और ड्राइंगरूम में आ गई। वह कमरे के एक कोने से दूसरे कोने तक उद्विग्न सी घूमने लगी। ऐसा उसके साथ क्योंकर हुआ? रह-रहकर उसकी आंखें नम हो जाती जिन्हें वह अपने दुपट्टे से पोंछ देती।
अचानक रवि बेडरूम से बाहर निकले और सपना को चहलकदमी करते हुए देखकर अन्दाज़ लगाया कि आज ज़रूर फिर इसे कोई बात परेशान कर रही है। उनसे रहा नहीं गया और सपना के सामने आकर खड़े हो गये।
पति को सामने पाकर वह थोड़ी अव्यवस्थित हुई पर जल्द ही ख़ुद को संयमित करते हुए पूछा, ‘रवि, तुम सोये नहीं ?’ रवि ने गंभीर होकर कहा, ‘जब तुम असमय और गहराती रात में बिस्तर पर न होकर कमरे में टहल रही हो तो मुझे नींद कैसे आ सकती है ?’
सपना ने कहा, ‘ऐसा कुछ नहीं है। अचानक नींद खुल गई तो सोचा कि तुमको क्यों परेशान करूं, सो बाहर निकल आई। वैसे इस सन्नाटे में ही दिमाग़ कुछ स्थिर होकर सोच पाता है और ख़ुद के गि़रेबां में झांकने की कोशिश भी करता है।‘
रवि ने कहा, ‘वही तो मैं कह रहा हूं, ज़रूर कोई बात है जो तुम छिपा रही हो। अन्यथा तुम तो ऐसे घोड़े बेचकर सोती हो कि मुझे तुम्हारी नींद से रश्क होने लगता है।‘ सपना ने कहा, ‘यह सही समय नहीं है बात करने का। हम सुबह बात करेंगे।‘
सपना रवि का मन रखने के लिये बेडरूम में चली तो गई पर नींद तो उसकी आंखों से कोसों दूर थी। रवि ने बहुत कोशिश की सपना का मन भांपने की पर सफलता न मिलने पर करवट बदलकर कुछ ही पलों में खर्राटे लेने लगे।
सुबह सपना जब सोकर उठी तो बदन में थकावट महसूस कर रही थी। लेकिन काम तो करना ही था। रवि उठे और सीधे वॉशरूम में चले गये। वहां से वापिस आये तो टेबल खाली देखकर बोले, ‘आज नाश्ता गायब? भाई, ऐसा क्या हो गया कि पेट को पेट्रोल ही न दिया जाये।‘
सपना ने जम्हाई लेते हुए कहा, ‘आज तुम ख़ुद ही ब्रेड-बटर लगा लो प्लीज़। मेरा मन नहीं कर रहा किचन की ओर जाने का। दूध ओवन में ग़र्म कर लेना।‘ रवि ने कहा, ‘क्या तो मूड है तुम्हारा। अच्छा है हम अकेले रहते हैं तो यह सब चल जाता है।‘
सपना ने इस बात का कोई प्रतिवाद नहीं किया और रवि ने स्थिति भांपते हुए चुप रहने में ही भलाई समझी। उन्होंने ब्रेड-बटर के सैंडविच बनाये और ओवन में दूध गरम करके अपना नाश्ता बना लिया और खा भी लिया।
नाश्ते के बाद रवि बोले, ‘सपना, अब तो बता दो कि रात ऐसा क्या याद आ गया जो तुम ठीक से सो नहीं पाईं। सपना ने इस बात को अनसुना करते हुए कहा, ‘आज मुझे बाहर जाना है। अमेरिका से मेरे मित्र आये हुए हैं, कल उनका फोन था।‘
‘अमेरिका में ऐसा क्या हो गया जो वहां तुम्हारे मित्र बनने लगे और भारत आकर तुम्हें फोन कर रहे हैं और तुम मुझे छोड़कर उनसे मिलने जा रही हो।‘ सपना ने धीरे से कहा, ‘दुनियां सिर्फ़ तुम तक ही सीमित रहे, ऐसा क्यों सोचते हो?’
‘नाराज़ क्यों होती हो? मना तो नहीं किया पर पति होने के नाते इतना तो पूछ ही सकता हूं कि जिनसे मिलने जा रही हो, उनसे पहचान कैसे हुई?’ सपना ने पीछा छुड़ाते हुए कहा, ‘वे इंटरनेट के जरिये याहू ग्रुप के माध्यम से मेरे मित्र बने हैं। और कुछ?’
रवि ने कहा, ‘ठीक है, जाओ, पर शाम को कितने बजे तक आ जाओगी?’ ‘बच्चों जैसे सवाल मत पूछा करो। जाऊंगी तो आऊंगी न। अभी तो घर से निकली भी नहीं हूं।‘ भरोसा रखो, समय से आ जाऊंगी। चलो, बाय।‘
रवि ने कहा, ‘ठीक है। जब तुम बाहर जा रही हो तो मैं अकेला घर में क्या करूंगा। मैं अपने पुत्तर को लेकर शॉपिंग करने चला जाता हूं। पुत्तर, चल तैयार हो जा। अपन भी बाज़ार हो आते हैं। बढ़िया कपड़े खरीदेंगे आज। तुम्हारी मम्मी के लिये भी कुछ ले लेंगे।‘
क़रीब दोपहर के बारह बजे वह अपनी सहेली के घर पहुंची जहां उसके और भी मित्र अमेरिका के मित्र से मिलने आनेवाले थे। अन्तत: साढ़े बारह बजे सभी मित्र आ गये। हंसी-मज़ाक का दौर शुरू हो गया। सपना का मन भी हल्का गया।
क़रीब डेढ़ बजे सपना का मोबाईल बजा, उसने देखा कि सजीला का फोन है। वह अपना फोन लेकर बाल्कनी में आ गई। सपना ने कहा, ‘हैलो, क्या बात है?’ यह सुनते ही दूसरी ओर से आवाज़ आई, ‘भाभी, आपने डैडीजी (ससुर) को रूपयों की बाबत फोन क्यों किया?’
इस पर सपना ने कहा, ‘मुझे कुछ पता नहीं था। इसलिये पूछ लिया, इसमें समस्या क्या है और फोन करने की ज़रूरत क्या है?’ उधर सजीला हावी हो रही थी, ‘हम कोई चोर-उचक्के हैं क्या जो ये रूपये खा जायेंगे?’ सपना ने कहा, ‘मैं अभी किसीके घर आई हूं। बाद में बात करती हूं।‘
जब शाम को सपना पांच बजे घर पहुंची तो सबसे पहले सजीला को फोन लगाया। वहां से सजीला ने फोन उठाया। सपना ने कहा, ‘अब बात करो, जब मैं तुमसे कह रही थी कि मैं किसीके घर पर हूं। बाहर के लोग आये हैं तो इस बदतमीज़ी का क्या कारण था?’
सजीला को इस बात की उम्मीद नहीं थी कि सपना घर आकर फोन करेगी। उसकी आवाज़ की लड़खड़ाहट साफ सुनाई दे रही थी। वह बोली, ‘क्या है न भाभी, मैंने तो डैडीजी से मना किया था कि मुझे नॉमिनी न बनाएं पर वे माने ही नहीं।‘
सपना तो मानो ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ी। बोली, ‘मैंने तुमसे कुछ पूछा इस बारे में? अब मैं बोलूंगी और तुम सुनोगी। तुम सीधी बनने का जितना नाटक करती हो, उतनी ही अन्दर से ख़तरनाक हो। कितनी बार तुमको माफ़ करूं? किसी भी बात की कोई सीमा होती है।’
सपना का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह बोली, ‘डैडीजी ने ग़लती की पर, तुम्हारी अक़ल घास चरने गई थी? तुम मुझे नहीं बता सकती थीं कि ऐसा हो गया है?’ इस पर सजीला की सहमी हुई आवाज़ सुनाई दी, ‘हां मुझे आपको बता देना चाहिये था। आप गुस्सा मत होईये।‘
सपना ने कहा, ‘मैं गुस्सा न होऊं, इसका क्या मतलब है? तुम दो महीने तक इस बात को कैसे अपने पेट में रखे रहीं? अग़र यह पत्र मैं नहीं देखती तो तुम सब मिलकर मुझे चूना लगा ही रहे थे न? तुम अपने आपको समझती क्या हो?’
‘भाभीजी, हम कोई कंगाल नहीं हैं जो एक लाख रूपये मार लेंगे। यदि हमारा भरोसा नहीं है तो आप अपना अकाउंट नंबर दे दीजिये। हम कैसे भी इंतज़ाम करके पैसा अकाउंट में डाल देंगे।‘ ‘बात पैसे की नहीं है, बात नॉमिनी की है। पैसे की धमक मत दिखाओ।‘
सजीला ने इस विषय से ऊबते हुए कहा, ‘आप अकाउंट नंबर दे दीजिये।‘ सपना ने भी गुस्से में अपना जॉइंट अकाउंट नंबर दे दिया और चेतावनी देते हुए कहा, ‘यह पैसा तीन दिन के अंदर खाते में आ जाना चाहिये, अधिक से अधिक एक सप्ताह।‘
सजीला को शायद इस बात की उम्मीद नहीं थी कि सपना इतनी कर्कश और कड़वी हो जायेगी। उसने तो हमेशा सपना को हंसते और हर बात को हवा में उड़ाते देखा था। उसने कभी सपना को रवि से पैसे का हिसाब-किताब लेते नहीं देखा था। सो उसने कहा, ‘जी, ठीक है।‘
रात को रवि शॉपिंग करके घर आये। घर में अजीब सन्नाटा फैला था। वे समझ नहीं पा रहे थे कि सपना के इस तरह क्लेश करने की वजह क्या है। उन्होने कहा, ‘सपना, ज़रा डैडीजी का पत्र तो दिखाना। मैं तो भूल ही गया था।‘
सपना ने लिफाफा लाकर रवि को दे दिया। रवि ने पत्र खोलकर पढ़ा और साथ में रसीद को देखकर उनकी पेशानी पर बल पड़ गये। उन्होंने चोर नज़रों से सपना को देखा। सपना हाथ बांधे चुपचाप रवि के चेहरे पर आते-जाते भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
रवि ने एक अंगड़ाई ली और सपना से चाय बनाने के लिये कहा। वे शायद सहज होने की कोशिश कर रहे थे और जताना चाहते थे कि ऐसी कोई ख़ास बात नहीं हुई जिस पर बहस की ज़रूरत है पर उन्हें यह आभास था कि सपना इतनी आसानी से बात को जाने नहीं देगी।
सपना भी उनको पूरा वक्त़ दे रही थी मानो कह रही हो कि बलि का बकरा कब तक ख़ैर मानयेगा? इस मुद्दे पर बात तो करना ही होगा रवि को। कब तक टालेंगे? बात पैसे की नहीं है, बात उसके कानूनी अधिकार की है। इन लोगों की हिम्मत कैसे हुई यह दुस्साहस करने की।
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