Nomini - 3 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

नॉमिनी - 3 - अंतिम भाग

नॉमिनी

मधु अरोड़ा

(3)

आखि़र रविवार भी आ ही गया और इसी दिन का इंतज़ार था सपना को। रवि ने कहा, ‘आज हम पिक्‍चर देखने जायेंगे। तुम्‍हें हॉल में पिक्‍चर देखना अच्‍छा लगता है न?’ सपना ने साफ मना कर दिया और कहा,

‘आज तो हम घर में लाइव फिल्‍म देखेंगे।‘ रवि ने अचकचाकर पूछा, ‘क्‍या मतलब? तुम ठीक तो हो?’ सपना ने कहा, ‘मैं तो ठीक हूं पर तुम्‍हारा जो स्‍क्रू ढीला हुआ है, वह कहां का हुआ है, ज़रा चेक करूंगी।‘ यह सुनकर रवि अचकचा गये कि पता नहीं सपना क्‍या सीन क्रिएट करनेवाली है।

सपना ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘तुमने अपनी नॉमिनी कबसे बदल ली? मुझे सूचित करने की ज़रूरत भी नहीं समझी?’ इस पर रवि बिदक गये और बोले, ‘क्‍या वाहियात बात करती हो। सुबह- सुबह ऐसी बात करके छुट्टी का दिन बर्बाद मत करो।‘

सपना तमककर बोली, ‘तुम्‍हें अपनी छुट्टी की पड़ी है? मेरा तो वज़ूद ही दांव पर लग गया है।‘ इस पर रवि बोले, ‘ऐसी क्‍या आफ़त आ गई है जो बहकी बहकी बातें कर रही हो,, तुम ठीक तो हो? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुमको साइक्रैटिस्‍ट के पास ले जाना पड़े।‘

रवि के इस सवाल पर सपना ने वह रसीद सामने कर दी जिसमें नॉमिनी की जगह सजीला का नाम था। यह देखते ही रवि ने कहा, ‘अरे, यह तो मैंने देखा ही नहीं। यह कैसे हो गया?’ और यह कहकर अपने मुंह पर गंभीरता का मुखौटा लगा लिया।

सपना ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘तुम अपने पिताजी को फोन करके पूछो कि उन्‍होंने यह क्‍यों किया?’ रवि ने अपना पल्‍ला झाड़ते हुए कहा, ‘वे मेरे पिता हैं। उनको मैं सवालों के कटघरे में तो खड़ा नहीं कर सकता।‘ सपना ने कहा, ‘मैंने कब कहा कि कटघरे में खड़ा करो।‘

‘देखो सपना, यह डैडीजी का पैसा है, उन्‍होंने अपने बच्‍चों को दिया है, तुम्‍हें बीच में नहीं बोलना चाहिये।‘ इस पर सपना आगबबूला हो गई और बोली, ‘इतना तो मैं भी समझती हूं और मुझे इस पैसे में कोई दिलचस्‍पी भी नहीं है। मुद्दा तो नॉमिनी को लेकर है।‘

नॉमिनी के मुद्दे को लेकर रवि ने चुप्‍पी साध ली। वे एक भी शब्‍द नहीं बोल रहे। सपना को तो यह सबकी मिलीभगत लग रही है। ससुराल पक्ष एक ओर और सपना अकेली पड़ गई है। वह रवि से कहती है, ‘आखि़र तुम लोग मुझसे चाहते क्‍या हो?’

इस पर रवि ने बिना किसी देर के कहा, ‘तुमसे क्‍या अपेक्षा हो सकती है भला? तुम अपने वेतन का क्‍या करती हो कभी बताया है तुमने?’

‘हम्, तो यह बात है। मेरा वेतन स्‍त्रीधन है, बावजू़द इसके मैं बाक़ायदा बच्‍चों पर और घर पर खर्च करती हूं। यह बात अलग है कि कभी इन खर्चों का राग नहीं अलापा है। पर बात वहीं घूम-फिरकर आ जाती है कि नॉमिनी बदलने का क्‍या फंडा है?’

इस बात का रवि कोई जवाब नहीं देते। घर में सांय-सांय करता सन्‍नाटा अपने पैर पसारता जा रहा था। सपना ने एकाध बार अपने ससुर को फोन किया पर उसकी आवाज़ सुनते ही फोन काट देते। हरेक अपने अपने में कैद हो गया था। सबके मुंह में मानो पानी भर गया था।

यह भयावह चुप्‍पी सपना को भावी संकट का आभास करा रही थी। अब उसे रवि से एक अनजाना सा डर लगने लगा था। जब भी सपना के ससुर का रवि के पास फोन आता, सपना का दिल तेज़ी से धड़कने लगता। पता नहीं क्‍या योजना बना रहे होंगे ये लोग मिलकर।

इसमें सपना का क्‍या कसूर था, जो उसके साथ हुआ था, वह यदि सजीला के साथ होता तो वह अपने पति सज्‍जू की जान खा जाती। यह सपना का ही जिगरा था जो यह सब देखकर भी चुप थी। हां, उसने भी अपनी ओर से रवि से बात करना बंद कर दिया था।

इसी बीच रवि का तबादला फिर अहमदाबाद हो गया था। लेकिन दांपत्‍य जीवन में जो दरार पड़ गई थी उसके फलस्‍वरूप ज़िन्‍दगी मानो थम सी गई थी। बेटे को दूसरे शहर में एडमिशन मिल गया था। वह ऊंची पढ़ाई के लिये वहां चला गया। अब सपना और रवि ही घर में थे।

सपना मानो मशीन बन गई थी। यंत्रवत् काम करती और उसे लगता कि शादी बचाने का ठेका उसीने ले रखा है1 किसीको कोई परवाह नहीं थी। उसने कुछ खाया या नहीं, रवि को इससे कोई मतलब नहीं था। वे खाते और अपने कमरे में चले जाते।

एक दिन सपना ऑफिस में काम कर रही थी कि उसने बैंक को फोन किया और पूछा कि उसके संयुक्‍त खाते में एक लाख रूपये आने थे वे आये या नहीं। बैंक मैनेजर ने खाता नंबर पूछकर और कंप्‍यूटर पर चेक करके बताया कि कल ही यह राशि खाते में जमा की गई है।

सपना ने रवि को एस एम एस करके बता दिया कि संयुक्‍त खाते में राशि आ गई है। रवि ने भी एस एम एस किया कि वह राशि सपना रवि के बचत खाते में ट्रांसफर कर दे। सपना बिना किसी देर के नीचे उतरकर गई और आफिस के परिसर में स्थित बैंक में जाकर एक लाख रूपये रवि के खाते में डाल दिये।

शाम को रवि घर आये और बोले, ‘अब तो तुम्‍हें सबर हो गया पैसा मिल गया न?’ सपना ने कुछ कहा नहीं बल्कि सिर्फ़ नज़र उठाकर रवि को देखा। रवि शायद सपना की आंखों में उपजी चुनौती का सामना नहीं कर पाये और चुपचाप कपड़े बदलने चले गये।

रात को भी दोनों के बीच चुप्‍पी छाई रही। सपना का जि़न्‍दगी पर से विश्‍वास उठता जा रहा था। हंसी तो मानो उससे कोसों दूर जा चुकी थी। कपड़ों की शौकीन सपना मिसमैच पहनकर चली जाती। चेहरे पर हमेशा सोचने की मुद्रा रहती।

सप्‍ताह बीतते भला कितनी देर लगती है? फिर शनिवार आ गया। सपना सुबह उठी, चाय बनाकर पी। दस मिनट बाद रवि उठे और चाय बनाने के लिये कहा। सपना चाय बनाकर ले आई और पेपर लेकर पढ़ने लगी। रवि ने कहा, ‘अब तुम क्‍यों चुप हो? अपने मन की कर ली न?’

सपना ने पेपर को घड़ी करके एक ओर रख दिया। बोली, ‘रवि, तुम अपने आपको समझते क्‍या हो? क्‍या पैसा मेरी ज़ेब में गया है? उसी समय तुम्‍हारे खाते में ट्रांसफर कर दिया था। य‍ह सज्‍जू और सजीला के लिये सबक था कि दूसरे का पैसा हज़म करना इतना आसान नहीं है।‘

रवि अपने डैडीजी और भाई का पक्ष लेते हुए बोले, ‘सज्‍जू के खाते में तो इसलिये डाल दिया था कि वह मेरे खाते में ऑनलाइन ट्रांसफर कर सके।‘ अब सपना चिढ़ गई कि ये लोग अपनी और अपनों की ग़लती को स्‍वीकार करने के बजाय लचर कारण दे रहे हैं।

वह रवि से बोली, ‘रवि, मैं तुम्‍हें क्‍या इतनी बेवकू़फ लगती हूं कि इस पारिवारिक राजनीति को समझ न पाऊं। मेरी समझदारी का तुम लोग इस तरह फायदा उठाओगे, यह नहीं सोचा था। मैंने तुम पर विश्‍वास किया था पर तुमने मेरे विश्‍वास को तोड़ा है, यह कभी नहीं भूल पाऊंगी।‘

सपना को हैरानगी इस बात की थी कि इतना सब होने के बाद भी रवि ख़ुद को ग़लत नहीं मान रहे थे। ऐसी लचर दलीलें दे रहे थे जो कोई मायने नहीं रखती थीं। वे सपना के साथ किये गये व्‍यवहार के फलस्‍वरूप सपना के छलनी हुए दिल का दर्द नहीं समझ पा रहे थे या समझकर भी समझना नहीं चाहते थे।

एक दिन डैडीजी का फोन आया। रवि ने बात करने के बाद सपना से कहा, ‘डैडीजी तुमसे बात करना चाहते हैं।‘ सपना ने निर्विकार भाव से कहा, ‘पर मैं नहीं करना चाहती बात। बहुत देर हो चुकी है।‘ रवि अपना-सा मुंह लेकर रह गये थे। सपना हर काम इन लोगों की मर्जी़ से क्‍यों करे?

अब सपना अपने साथ-साथ रवि के प्रति भी अतिरिक्‍त रूप से सतर्क रहने लगी थी जिसकी वजह से रवि अपने परिवारवालों से सपना के सामने खुलकर बात नहीं कर पाते थे। वह नॉर्मल होने की कोशिश कर रही थी पर दिल की खरोंच को मिटा नहीं पा रही थी।

जब रवि और सपना एक साथ बैठते तो वह रवि को एकटक देखती रहती और सोचती रहती कि क्‍या यह वही रवि हैं जिन्‍होंने फेरे लेते समय कहा था कि वे सपना का ध्‍यान रखेंगे और उसे तक़लीफ नहीं पहुंचायेंगे। वे सारी बातें सपना को थोथी लग रही थीं।

सपना ने खु़द को सावधान किया और सोच लिया कि वह अपने लिये जीना शुरू करेगी और यदि रवि को सजीला को नॉमिनी बनाना है तो उनकी मर्जी़। एक दिन रवि और वह भोजन कर रहे थे कि रवि ने कहा, ‘अब तो भूल जाओ उन बातों को। जो हो गया सा हो गया।‘

सपना ने हंसते हुए कहा, ‘ चलो भूल जाती हूं पर मान लो कि यदि मैं अपनी संपत्ति का नॉमिनी किसी और को बना लूं तो तुम्‍हें कैसा लगेगा?’ रवि शायद सपना की ओर से ऐसे सवाल की अपेक्षा नहीं रख रहे थे सो गड़बड़ा गये, बोले, ‘ऐसा कैसे कर सकती हो? तुम्‍हारा पति तो मैं हूं।‘

इस पर सपना ने तमककर कहा, ‘मैं तुम्‍हारी क्‍या लगती हूं? तुमने नॉमिनी कैसे बदल लिया? अब भी समय है कि ‘नॉमिनी’ के पीछे की पारिवारिक राजनीति को समझो। तुम हमेशा मोहरा बनाये जाते हो और जब तुम्‍हें सच पता चलता है तो बहुत देर हो चुकी होती है। आखि़र कब तक पिटे हुए मोहरा बनते रहोगे?’

हमेशा की तरह इस बार भी रवि चुप हो गये हैं मानो किसीने उनके मुंह पर ताला लगा दिया है। एक भी शब्‍द नहीं बोले। इस बीच सजीला एकाध बार सपना को इस आशय से फोन कर चुकी है कि शायद सपना का मूड ठीक हो गया हो।

रवि ने भी शायद बात की गंभीरता को समझ लिया है। वे सपना को एक बार फिर समझाने की कोशिश कर रहे हैं और कह रहे हैं, ‘प्‍लीज, जो हुआ, उसे भूल जाओ। देखो, पूरा परिवार में चुप्‍पी फैल गई है।‘ सपना ने सिर्फ़ नज़र उठाकर रवि को देखा है मानो पूछ रही हो कि क्‍या सच बोल रहे हो।

सपना ने एक तरह से चैन की सांस ली है और महसूस किया है कि बात और भी आगे बढ़ सकती थी। अच्‍छा हुआ कि उसने सही समय पर सारी बात रफ़ा-दफ़ा कर दी और परिवार बिखरने से बच गया है।

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मधु अरोड़ा,

रिद्धि गार्डन्स, फिल्‍म सिटी रोड,

मालाड (पूर्व), मुंबई- 400097

मोबाईल- 9833959216

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