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तेरा साथ है कितना प्यारा

"ओ मेरी सोनपरी आज गुमसुम क्यों बैठी हो तुम भला , कहां गए तुम्हारे सारे खेल खिलौने , गुड्डे गुड़िया ?" वह चुप खड़ी , अपनी चीनी आंखों से तक देख ती रही मुझे । वह कहती ," मां कब दोगे वक्त मुझे "।
मैं सब काम छोड़ एक तक देखती रही उससे । मैंने कहा "बेटा मैं तो बस तुम सब का जीवन सुखद बनाने के लिए काम करती हूं ।"
मेरी नन्हीं परी ने मुझे कहा " मेरा तो सुख मां तुझसे ही है ,
तुम मेरे पास रहो वही मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा सुख है "। मैं उसकी बातें सुन अचंभित हो गई कि मेरी नन्ही परी इतनी बड़ी कब हो गई । मेरी छोटी सी जान कब कंधे से कंधा मिला मेरे साथ खड़ी हो गई की नीले अंबर के तले वह मेरी सहेली बन गई ।
मेरे हाथों में जितना था सामान, लिया उठा उसने और कहती आओ मां खेले badminton । मैंने कहा नहीं नहीं बेटा अभी बहुत है काम पड़ा , वह कहती नहीं मां चला खिले जरा ।
ले गई वह मुझे बगीचे में , सबको हुकुम देते हुए " आजसे सब अपना काम खुद करो, मां को भी थोड़ा जीने दो । " सारा परिवार हंस पड़ा और वह सब भी बगीचे में आकर बैठ गया । पहले तो उसने गेम मेरे साथ लगाई , जिसमें मैं हार गई । उसने कहा" मम्मा कोई बात नहीं कितने सालों बाद तो खेल रही हो "। फिर गले लगा कर मुझे कहती "मम्मा आई लव यू , चलो एक और गेम लगाएं "। फिर क्या था हम दोनों ने गेम पर गेम बैडमिंटन की लगाई कभी वह जीती तो कभी मैं । यूं लगा जिंदगी का सारांश ही मिल गया हो । एक-एक करके सारा घर ही बैडमिंटन खेलना शुरू हो गया । कभी दादू दादी की गेम लगाई , सभी मेरी और इनकी । ऐसा कर शाम बीत गई , और वो कब हम सब के लिए चाय और नाश्ता ले आयी ।
फिर सबके मोबाइल उठाकर अलमारी में रख दिए और कहती "चलो मोबाइल के बगैर भी थोड़ी जिंदगी जी के देखें "और ताश की गड्डी ले आई । फिर क्या या वह शाम अरमानों की शाम बन गई जिसमें हम सब परिवार के बैठ अपना गुजरा जमाना याद कर बच्चों को सुना ने लगे ।
वह शाम अरमानों की आई , जिसने हमें ने पुरानी बातें दोहराई ।
वह अतीत के पल , जिसमें झिलमिलाते हंसते हम सब, वह चाय की चुस्कियां , वह दूरदर्शन की खिड़कियां ।वह अंताक्षरी का आलम ,
वह रामायण और महाभारत का गायन ,वह चंद्रकांता और टीपू सुल्तान की गाथा ,वह लंगड़ी टांग और पकड़म पकड़ाई का अखाड़ा ।वह गुजरा जमाना आज याद आयाजब हमने फिर बैठ , एक ही राग आया ।

यह सब तेरी ही बतौलत है , मेरी बिटिया जो आज तूने मेरा साथ मांगा । मुझे ही नहीं सारे घर को एक ही दौड़ में बांधा । जो एक साथ बैठने को तरस रहे थे , एक दूसरे देखने को कब से खड़े थे आज तूने सबको फिर से एक साथ रूबरू कराया । एक बार फिर मेरा घर खुशियों से लहराया ।।

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