एक सफर जो शुरू हुआ इस कदर ,अब सोचती हूँ मैं
आज ,तो मुस्कुराती हूँ फिर से होकर मगन l एक सफर मां से सहेली बनने का l हाँ ! एक सहेली , अपने बेटे की l
जब पहली बार तुम्हें गोद में उठाया था उन नन्हीं ,नन्हीं उंगलियों को जब खोला था l सहमें दिल से जब तुम्हें पहली बार इन हाथों ने उठाया था , मुस्कुराते हुए इन आंखों में आंसू आए थे मगर । एक बेटी ,एक बहन ,फिर एक बीवी आज एक नई उपाधि मिल गई मुझे मगर एक मां की ,जो थी दुनिया की सबसे बड़ी उपाधि l
मां यह शब्द ही कितना निराला है , अंधेरे दिल को देता उजाला है l ममता का एक नशा है, एक प्यार जो मां अपने बच्चों पर निछावर ,इस कदर कर देती है की उसकी दुनिया उसके बच्चों के आसपास ही घूमती है ।
ऐसा भी एक दिन आया था जब मेरा 'देव' , मेरी गोद में आया था । सुनहरे बाल , रूह की तरह सफेद उसका चेहरा था । डॉक्टर भी ना उसे छोड़ें ऐसा निराला मेरे देव का 'रूप ' था । जो देखता था यही कहता था, तेरा कन्हैया बहुत निराला है । उसकी अठखेलियां की कशिश ही कुछ और थी ।
सारी रात पंखे के साथ आंखें चार करता रहता था , मैं सो जाती थी लेकिन पंखे के साथ खेलता रहता था । नौ महीने के थे तो चलना सीख गया था , लंबे केश चीनी आंखें गोल मटोल लाल गाल , सब कहते थे आ गया दीप्ति का लाल । जब भूख लग जाती तो दूध का पतीला पी जाना , और सब ने मुझे उलाहना देना कि "तू उसका ख्याल नहीं रखती "। मैंने मंद ,मंद मुस्कुराना कभी टोकरी में बैठना, कभी बिना कपड़े ही सड़क पर भाग जाना । कब हुए तुम पाच साल के मुझे पता ही नहीं चला ।
फिर आया वह दिन जब गए तुम स्कूल पहली बार , आई तो थी मैं तुम्हें समय पर लेने , पर तुम भाग गए कैसे उस दिन स्कूल से अकेले ? कभी यह बात ना मुझे ना स्कूल के प्रशासन को समझ आई । रोज बस से उतरना और एक ही बात मुझे कहना 'मम्मी मेरा स्कूल चेंज करो सब मुझे चीनी कहते हैं मैं तुम्हें एक ही बात समझ आती तुम सुंदर हो ना बेटे और सब है काले इसलिए तुम्हें कहते हैं ऐसे तुम से जलते हैं 'और फिर तुम शांत हो जाते । आज भी वो सफर तुम्हारा पांच से दस साल का
मुझे हंसा देता है । तुम्हारी इस कदर की शैतानियां , कभी कहीं जाकर पोछा मारना, किसी का सामान तोड़ आना और दादी के पास जाकर चुपके से बैठ जाना कि जैसे तुमने कुछ किया ही ना हो , समय कैसे बीत गया मुझे पता ही नहीं चला ।
जब तुम दस साल के हुए तुम्हारे में बदलाव आया ।
तुम्हारा आक्रोश ,जो था तुम्हारे पिताजी और मेरे ऊपर उस समय इस कदर । सारे शहर की गलियां अकेले घूमना अपने साइकिल पर । लेकिन स्मार्ट थी मैं भी कुछ इस कदर लगाया था जीपीआरएस तुम्हारी घड़ी में मैंने । मां हूँ समझो जरा !
अकेले बैठे रहना , अपनी ही धुन में बैठे रहना ।
फिर आया वह दिन जब तुम्हारी शरारतों से तंग आकर मैंने हाथ उठाया तुम पर उस दिन , और तुमने मेरा हाथ पकड़ लिया था कह के' अब बस करो मम्मी मुझे मारना बहुत हो चुका है अब मैं बड़ा हो चुका हूं" । तुम्हारी इस बात से लगा' देव' कि तुम सच में बड़े हो गए ।उस दिन एहसास हुआ कि छोटा सा जो नन्हा देव मेरी गोद में खेलता था आज मेरे से बहुत बड़ा हो गया है ,कद में भी और समझदारी में भी । अब तुम्हें एक मां की जरूरत नहीं एक सहेली की थी जिससे तुम जी भर के बातें बातें कर सको, अपने दिल के हाल कह सको । मैंने तुम्हें समझा और फिर एक मेरा नया सफर शुरू किया ,एक मां से तुम्हारी सहेली का।
एक सफ़र जो शुरू हुआ इस कदर कि आज भी मैं तुम्हारी सहेली ही कहलाती हूँ । जब भी लोग हमें सड़क पर एक साथ देखते हैं तो यही कहते हैं कि यह इसकी मां नहीं इसकी सहेली है ।