खूबसूरत तो अम्मा भी बहुत थीं. खूब गोरी, दुबली-पतली अम्मा, लम्बी भी खूब थीं. सुमित्रा उन्हीं को तो पड़ी थी. पांच बच्चे ग़ज़ब के सुन्दर और अकेली कुंती.............. बोलने वाले भी ऐसे कि कुंती के मुंह पे ही कह जाते- ’मां-बाप इतने सुन्दर हैं, फिर जे कुंती किस पे पड़ गयी ?’ उनके बोलने में इतनी चिन्ता होती, जैसे कुंती को ब्याहने की ज़िम्मेदारी तो उन्हीं के सिर पर है. अब आप ये न कहने लगना कि लड़कियां केवल ब्याहने के लिये होती हैं क्या? अरे भाई ब्याहने का उदाहरण इसलिये दिया, कि वो समय लड़कियों को बहुत जल्दी ब्याह देने का था. ग्यारह-बारह की हुई नहीं कि शादी की चिन्ता शुरु. बाऊजी का गुस्सा सब जानते थे सो उन तक कोई शिक़ायत पहुंचती ही नहीं थी. फिर भी कुंती की चंचलता से वे वाकिफ़ तो थे ही.
मोबाइल अब तक हाथ में ही ले के बैठी सुमित्रा जी की तंद्रा, सब्ज़ी वाले की आवाज़ से भंग हुई. तिवारी जी भी हाथ में अखबार लिये अन्दर तक आ गये थे.
“क्या बात है सुमित्रा जी? सब्ज़ी वाला कितनी देर से आवाज़ लगा रहा और आप हैं कि यहां होते हुए भी सुन नहीं पा रहीं.” तिवारी जी ने अपनी बात कुछ इस भाव से पूरी की जैसे उन्हें ड्राइंग रूम से उठ के अन्दर तक आने में मीलों का सफ़र तय करना पड़ा हो. हां एक बात ज़रूर है, तिवारी जी ने सुमित्रा जी को हमेशा सुमित्रा ’जी’ और आप कह के ही सम्बोधित किया है. दोनों के बीच मामूली बहसें होती रही हैं, लेकिन इन बहसों ने लड़ाई का रूप कभी नहीं लिया. तिवारी जी भी जानते हैं, सुमित्रा जी ने क्या-क्या भोगा है. कितनी मुश्क़िलों से बाहर निकली हैं और कितने दिनों बाद सुकून की ज़िन्दगी पाई है.
“किसका फोन था मम्मी?’ अज्जू, सुमित्रा जी का छोटा बेटा भी आ गया था कमीज़ की बांहें फ़ोल्ड करते हुए.उसका भी ऑफ़िस जाने का टाइम हो गया था.
“अरे किसी का नहीं भाई.”
’किसी का नहीं? तुम बात तो कर रही थीं फोन पर. चलो कोई न.’ मुस्कुराते हुए अज्जू नाश्ते के लिये डायनिंग टेबल की कुर्सी खींच बैठ गया था.
’कमला..... नाश्ता दे दो अज्जू को.’ ये जानते हुए कि कमला ने अज्जू को बैठते देख लिया है, तब भी सुमित्रा जी ने आदेश दिया.
’वो कुंती मौसी का फोन था बेटा.’
’हूं........’ मन ही मन मुस्कुराया अज्जू. जानता था मम्मी बतायेंगी ही. वैसे वो भी जान गया था कि फोन किसका रहा होगा.
’क्या कह रही थीं? आना चाहती होंगीं, या बीमार होंगीं, या बहुत परेशान....’ सुमित्रा जी के बताने के पहले ही अज्जू ने फोन की रटी रटाई वजहें गिनानी शुरु कर दीं.
’कुंती मौसी और परेशान!! हम लोग जानते तो हैं मम्मी उनकी आदत. उनकी वजह से दूसरे ही परेशानी उठाते हैं. वे ही सबको परेशान करती हैं, वो खुद कब से परेशान होने लगीं? और हां, अब तुम उन्हें बुला न लेना, वरना हम सब भी परेशान हो जायेंगे.’ अज्जू की आवाज़ में विनय की जगह विवशता ही ज़्यादा थी. जानता था, मम्मी करेंगीं वही, जो चाह लेंगीं.
(क्रमशः)