वो कुंती मौसी का फोन था बेटा.’
’हूं........’ मन ही मन मुस्कुराया अज्जू. जानता था मम्मी बतायेंगी ही. वैसे वो भी जान गया था कि फोन किसका रहा होगा.
’क्या कह रही थीं? आना चाहती होंगीं, या बीमार होंगीं, या बहुत परेशान....’ सुमित्रा जी के बताने के पहले ही अज्जू ने फोन की रटी रटाई वजहें गिनानी शुरु कर दीं.
’कुंती मौसी और परेशान!! हम लोग जानते तो हैं मम्मी उनकी आदत. उनकी वजह से दूसरे ही परेशानी उठाते हैं. वे ही सबको परेशान करती हैं, वो खुद कब से परेशान होने लगीं? और हां, अब तुम उन्हें बुला न लेना, वरना हम सब भी परेशान हो जायेंगे.’ अज्जू की आवाज़ में विनय की जगह विवशता ही ज़्यादा थी. जानता था, मम्मी करेंगीं वही, जो चाह लेंगीं. न पापा की चली है कभी, न बच्चों की. रूपा दीदी मम्मी को समझा-समझा के हार गयीं. शादी हो गयी और अपनी ससुराल चली गयीं, लेकिन मम्मी को कुंती मौसी के मामले में न समझा सकीं. दीपा तो अज्जू से भी छोटी है, सो उसकी सुनता कौन है? कोशिशें तो दीपा ने भी कीं, लेकिन उसे मम्मी ने हमेशा ये कहते हुए कि- ’ तुम छोटी हो, छोटों की तरह बात करो. हमसे बड़ी न हो जाओ’ उसकी बोलती बंद रखी. कुंती मौसी के लिये चार बातें वो केवल अज्जू या रूपा के कान में ही कह पाती है.
परिस्थितियां समझ रहे हैं न आप? सुमित्रा जी का कुंती के प्रति प्रेम भी समझ में आ गया होगा. लेकिन ऐसा क्यों है? कुंती की इतनी नफ़रत का जवाब सुमित्रा जी हमेशा प्रेम से देती हैं!! कहीं उन्होंने “घृणा पाप से करो, पापी से नहीं” वाला आदर्श वाक्य अपने जीवन में तो नहीं उतार लिया? या कोई और कारण? कहीं सुमित्रा जी की कोई कमज़ोरी....... अरे न न.... आप लोग भी न. दिमाग़ बहुत दौड़ाते हैं. सही दिशा में दिमाग़ दौड़े, तो फिर भी ठीक, आप लोग तो हर बात में ग़लत पहले खोज लेते हैं. सुमित्रा जी की कोई कमज़ोरी..... तौबा तौबा!! असल में सुमित्रा जी जैसा इंसान तो खोजे खोजे न मिलेगा आपको. फिर? अरे यार..... क्या फिर-फिर लगा रखी है? जो होगा सो पता चलेगा न? बहुत हड़बड़िया हैं आप. हुंह!
“सुनिये, वो कुंती आयेगी एकाध दिन में...!” कहते हुए सकुचा गयीं सुमित्रा जी.
“कौन, कुंती भाभी? हां तो आने दो न. उन्हें कौन रोक पाया है आने से? अरे हां, तुम अपनी चोटी, साड़ियां, और भी तमाम चीज़ों का ज़रा खयाल रखना ” होंठों की कोरों में मुस्कुराते हुए तिवारी जी बोले. “सब चीज़ों का खयाल रखने पर भी तो कुछ न कुछ हो ही जाता है....!” अपने आप में बुदबुदाईं सुमित्रा जी.
वैसे मुझे मालूम है कि आप कहां अटके हैं. “कुंती भाभी” इस सम्बोधन में न? सोच रहे होंगे कि सुमित्रा की बहन को तिवारी जी भाभी क्यों कह रहे? लेकिन भाई, हम कुछ न बतायेंगे अभी. देखिये न सुमित्रा जी खुद ही अतीत की गलियों में पहुंच गयीं हैं.
तिवारी जी के ’चोटी’ का खयाल रखने को कहते ही सुमित्रा जी कहां से कहां पहुंच गयीं थीं. कुंती के आने की ख़बर पर तिवारी जी चोटी की याद ज़रूर दिला देते हैं.
(क्रमश:)