एक लेखक की मौत
संदीप तोमर
वह विगत 14 सालों से ही बेहद परेशान था। इन सालों में उसने वेदना और संत्रास को झेला था। कलह के वातावरण ने उसे अन्दर तक खोखला जो कर दिया था, उसने लगभग निर्णय कर ही लिया था कि बस अब और नहीं, अब वह अपनी जीवनलीला समाप्त कर देगा। उसने एक खास दोस्त अंकिता को मोबाइल पर मैसेज टाइप किया। हाँ, अंकिता ही थी, जिससे वह तनाव के पलों को शेयर कर लिया करता था।
"कल से सोच रहा हूँ कि सुसाइड कर लूँ।"
"अरे"
"सच मे यारा"- अंकिता को यारा शब्द सुनना बेहद पसंद था, अजब कभी वह बहुत खुश होता या फिर बहुत परेशान होता वह अंकिता को ‘यारा’ कहकर संबोधित करता।
"कुछ भी मत बोलो.....वैसे ये अच्छा आइडिया है।"
थोड़ी देर दोनो तरफ से मौन रहा। कीपैड की कुंजियाँ रुक गयी, यकायक अंकिता का मैसेज आया-"फिर बेटियाँ?"
"अब जीने की इच्छा नहीं है। लेकिन यही एक बात है जो सोचने पर मजबूर करती है।"
“बहुत परेशान हो?"
"अगर कभी ऐसा हो कि आपको रिप्लाई एक दिन से ज्यादा न आये तो समझ लेना कि एक लेखक दोस्त दुनिया से चला गया।"-उसने अंकिता के सवाल पर गौर न करते हुए अपने बहाव में ही टाइप किया।
"आप खुद को इतना कमजोर क्यों फील करने लगते हैं?"
"हाँ बस समझ लो बहुत कमजोर इंसान हूँ मैं।"
"अरे....... कुछ भी मत बोलो।"-अंकिता ने पूरे अधिकार से ये बात कही, उसे पिछले दो साल में ये समझ आ गया है कि कैसे अंकिता उसे गुस्से और अवसाद के पलों में सम्भाल लेती है। एक बार फिर वह अपनी हो रो में टाइप करता है-"मैं चाहता हूँ कि मेरे बाद मेरा बचा हुआ साहित्य भी छपे।"
अंकिता अच्छे से या बात जानती है, एक बड़ा लेखक, जिसकी साहित्यिक समाज में बड़े आदर और सम्मान के साथ चर्चा होती है, उसे कमजोर पड़ते देख अंकिता अक्सर द्रवित हो, उसके मन को बहलाने का प्रयास करती है। अंकिता राघव में एक बहुत ही जहीन इन्सान को देखती है। राघव को शायद राघव से ज्यादा अंकिता ने ही जाना है, ऐसा अंकिता को लगता है, बस वह चाहती है कि राघव अवसाद से बाहर आ वह सब लिखे जिससे समाज का भला हो, साहित्य का भला हो। साहित्य छपने की बात सुन अंकिता को अपनी बात रखने का bal मिला उसने कहा -"ये कोई हल नही है, भला मारकर आप साहित्य का कैसे भला कर पाएँगे? फिर क्यों चाहते हैं कि आपके बाद आपका साहित्य छपे? ये तो वही बात हुई कि गुड की चाहत है लेकिन गुलगुलों से परहेज, जीना नहीं है लेकिन जीवन के बाद की प्रसिद्धि की चाह?"
"अभी जानने की भूख जो बाकी है।"
"क्या जानने की भूख बाकी है?"
"बचपन से चाहता था कि मेरा नाम हो, लोग जाने कि क्या इंसान था।"-वह अति भावुक हो गया है।
“हाँ, सुसाइड करेंगे न, तो आपका नाम होगा, बहुत बड़ा?"
"अंकिता प्लीज! मजाक नहीं।"- वह खुद की खीज अंकिता पर उतारने की कोशिश करता है।
"मजाक नही यारा, सीरियस हूँ, बेटियां पूरी जिंदगी ढोती रहेंगी आपकी गलती को, हमेशा आपके नाम को लेकर ताना सुनेंगी।"- अंकिता भी जब कभी खुद को उसकी सबसे अच्छी दोस्त होने का फर्ज पूरा करना चाहती है तो उसे ‘यारा’ कहकर ही संबोधित करती है, ये भी मानो दोनों के बीच मूक समझौता ही है।
अंकिता के मैसेज के प्रतिउत्तर में वह लिख भेजता है-"तो क्या करूँ मैं?"
"थोड़ी देर रो लीजिए।"- अंकिता इस अंदाज में लिखती है मानो वह सब समस्याओं का हल रोने में ही पाती है। हाँ, जब कभी उसके पुलिसिया पति उसे किसी बात पर टॉर्चर करते हैं तो वह रोकर ही अपने दुखों को आँसुओं के साथ बहा देने का असफल प्रयास करती है। राघव के मैसेज पढ़कर जब प्रद्युम्न ने उसे मर्दों के साथ आवारगी करने का तमगा दिया था तब भी तो वहा बहुत रोई थी, जिसकी प्रद्युम्न को रत्ती भर खबर तक न थी। राघव में तो अंकिता ने एक साहित्यिक गुरु देखा था, जिस रिश्ते को सम्भवतः कोई दुनियावी नाम नहीं दिया जा सकता, सब कुछ प्लेटोनिक। राघव जानता है कि रोने को स्त्री भले ही दुःख हल्का करने का मधयम समझे लेकिन इससे कुछ भी हल नहीं निकलना, उसने लिखा-"रोने का मन नहीं यार, हार गया हूँ खुद से। शायद मेरी बेटियों के भाग्य में बाप ही नहीं।"
" सच में?'
"एकदम सच में।"
"सुनो राघव, मैं भी सोचती हूँ बहुत दुखी हूँ। और दुखी इन्सान को मर ही जाना चाहिए, अच्छा चलो साथ में मरते हैं।"
वह अंकिता की बात का प्रतिउत्तर नहीं खोजता। बस इतना भर लिखता है-"मुझे आज आपसे बात नहीं करनी चाहिए थी। आप मन बहलाते हो। इरादों पर बर्फीला पानी फेंकते हो।"
"अच्छा बताओ, बेटियाँ कैसी हैं?"-अंकिता ने बात का विषय बदलने की गरज से लिखा। राघव इस बात को अच्छे से जानता है, उसने मन ही मन कहा-‘यही तो करती हो अंकिता, जब मैं परेशान होता हूँ तुम विषय बदलने लगती हो।‘ शायद ये शब्द बिना कहे अंकिता को महसूस हो गए, लेकिन अंकिता उसका जवाब जानना चाहती है, वह एक बार फिर टाइप करता है- "मुझे आपसे बात नहीं करनी है।"
"मुझे तो करनी है।"-अंकिता जानती है, जवाब से बचने के लिए राघव ऐसा ही कुछ बहाना बनाएगा। कुछ देर फिर दोनों के बीच मौन पसर जाता है। अंकिता कुछ पल इन्तजार कर फिर टाइप करती है-" बोलो न?"
शून्य जैसा माहौल। वह फिर लिखती है-"हद है, जवाब भी नै लिख सकते राघव?"
उधर राघव के दिमाग में कुछ अलग ही चल रहा है , जिससे अंकिता एकदम बेखबर है। अचानक वह सारे संवाद को मिटा देता है। फिर लिखता है-"देखो अब सब डिलीट......हुआ.... यानी आपको भी कहाँ पता कि क्या बात हुई? कोई नहीं जान पायेगा कि एक लेखक की मौत क्यों हुई?"- अंकिता पढ़कर हतप्रभ है, राघव ने क्यों ये सब संवाद मिटाया? वह माहौल को और हल्का बना देना चाहती है, उसने पूछा- "अच्छा ये तो बताइए हुआ क्या है?"
"छोड़ो यारा.....कुछ अपनी बात करें।"- राघव ने बात को टालने की गरज से लिखा।
"नही, बताओ....।"
"कल हो न हो, इसलिए जी भर कर तुमसे बतिया लेना चाहता हूँ, तुम ही तो हो जो मुझे इत्मीनान से सुन लेती हो, मेरी बातों को झेल लेती हो।"-राघव ने बात का रुख बदलने की गरज से लिखा।
"जब मरना ही है तो बातें भी मत कीजिये। अभी चले जाइये न अपने खुदा के पास।"-अंकिता ने भी अपना त्वरित गुस्सा दर्ज किया। वो दोनो कभी नहीं मिले थे। आभासी दुनिया की दोस्ती थी। लेकिन अक्सर फोन कॉल्स पर बात हो जाती थी। अंकिता मध्यप्रदेश के छोटे से क़स्बे में अपने परिवार के साथ रहती है, पति प्रद्युमन पुलिस की नौकरी करते है। वह छिटपुट लेखन करती है जबकि राघव की स्थापित और नामीगिरामी साहित्यकारों में गिनती होती है। वर्चुयल वर्ल्ड की मार्फ़त ही उनका आपसी परिचय हुआ। तभी से अंकिता ने राघव को अपनी रचनाओं पर सुझाव के लिए भेजना शुरू किया। जल्दी ही सुझाव की प्रक्रिया से दोनों के बीच आत्मीयता के बीज अंकुरित किये और आज दोनों ही एक-दूसरे के अच्छे दोस्त हैं। राघव ने अंकिता को जवाब लिखा-"ए अंकिता सुनो, एक अच्छी दोस्त से एक मुलाकात की तमन्ना थी।"
अंकिता जानती है ये भी सवाल के जवाब से बचने का एक तरीका है जिसे अक्सर राघव इस्तेमाल करता है। वह लिखती है-"झूठ, वो भी सौ फीसदी।"
फिर एक मौन दोनों के बीच उपस्थित हुआ.....।अंकिता ने फिर लिखा- "अच्छा मरना ही है तो फिर.....देरी क्यूँ?"
राघव कुछ पल कीबोर्ड पर अँगुलियों को स्थिर करता है फिर जवाब टाइप करता है-"नहीं कुछ रुके काम पूरे करने हैं...।"
"कौन से रुके काम?"-अंकिता को आश्चर्य है, एक पलायन का मन बना चुका व्यक्ति र्की रुके कामों की परवाह अपने मन में लिए है?
"हैं कुछ काम।"-एक संक्षिप्त सा उत्तर।
"बेटियाँ ब्याह दोगे क्या कल तक?.... उन्हें एट लीस्ट तब तक तो आपकी जरूरत है...।"-अंकिता लगभग खीजते हुए जवाब टाइप करती है।
"किसके पास कितना उधार है ये लिखना है डायरी में, कहाँ-कहाँ, किस-किस बैंक में अकॉउंट हैं, कहाँ कौन सी पासबुक रखी है, एटीएम, उनके पासवर्ड्स.. सब कुछ लिखना है।"-राघव मानो कोई बोझ लेकर मरना नहीं चाहता।
"अरे.. अजीब हाल है आपका.....।"
"बहुत कुछ रखना है टेबल पर, ताकि मेरे बाद किसी को कोई परेशानी न हो।"- अंकिता को सुनकर और खीज होती है, कोई इन्सान भला मरने से पहले इतनी भी चिंता करता है? वह इतना भर लिखती है -" गज़ब हो यारा....।"
"लैपटॉप का पासवर्ड हटाना है।"- मानो राघव ने जवाब पढ़ा ही नहीं, बस अपनी ही धुन में अपनी बात ख देने को उतावला है।
" हद है.... अच्छा सुनो.....।"
"अंकिता, आज बहुत सारे काम करने हैं।"
"पहले ये बताओ हुआ क्या है?"- अंकिता को लगता है सामने होती या फिर फोन कॉल्स पर होती तो चिल्ला देती।
"दी से मिलना है। भाई से मिलना है। माँ को फोन करना है।"- मानो उसे अंकिता के जवाब में कोई इंटरेस्ट ही नहीं है।
अंकिता को समझ आया आज फिर बीवी से झगडा हुआ होगा या फिर अपनी आदत के मुताबिक वह आज फिर किसी बात पर राघव से उलझी होगी। राघव ही तो उसे जब-जब उसका बीवी से झगडा होता तब-तब सब कुछ शेयर कर मन हल्का कर लेता, लेकिन आज राघव ने कुछ भी तो नहीं बताया था, बस अकेले ही अपनी जंग को लड़ रहा था। वह जानती है राघव एक सख्त जान है, उसने अगर न बताने का निर्णय कर लिया तो वह एक भी शब्द नहीं कहेगा फिर भी उसने एक बार पुनः सवाल किया- "हुआ क्या है ये भी बताओगे?"
"14 सालों का संत्रास है दोस्त, एक पल में कैसे बयां हो?"
"कुछ गलतियाँ आपकी भी रही होगी....।"- अंकिता ने कुरेदने की गरज से कहा।
"आज मैं सबकी गलतियां अपने ऊपर लेता हूँ।"- राघव के इस एक जवाब में उसकी निराशा को अंकिता ने खूब महसूस किया।
"इनसे मिलना है, उनसे मिलना है, ये नाटक क्यों करना है, जब आपके दिल में उनके लिये रत्ती भी जगह नही है। सिर्फ दिखावा कि, वह उन्हें बहुत प्यार करता है, जबकि ऐसा बिल्कुल नही है।“
"अंकिता, कल तुम्हें भी तो कॉल करनी है।"-राघव अपने इस तनाव से छुट्टी पाना चाहता है।
"आप स्वार्थी हैं....। बहुत ही ज्यादा स्वार्थी....।"- अंकिता की खीज बढती जा रही है।
"सच मे, बहुत स्वार्थी हो गया हूँ मैं।“- रक बार फिर दोनों के कीबोर्ड की कुंजियाँ स्थिर हो गयी हैं। एक बार फिर दोनो के बीच मौन उपस्थित हो गया है। अंकिता फिर लिखती है-"माँ, के पास चले जाओ। पहले उन्हें फ्रीडम दो, पिताजी से बात करो। फिर खुद को फ्रीडम दो, सब ठीक हो जायेगा।"
"अब मोक्ष बस।"
"बेटियों को क्यों और किसके भरोसे छोड़ के जा रहे हो, बिल्कुल भी नहीं सोच रहे आपके बाद उनका क्या होगा ? यार उनका है कौन आपके सिवाय?"
"पहले सोच रहा था कि रात के दूध में कुछ मिलाया जाए फिर ख्याल आया कि फिर बच्चो के पास मां भी नहीं होगी। बच्चे तो रात में दूध पीते नहीं, बस हम दोनों ही....दोनो ही नहीं होंगे तो बच्चो की परवरिश.....।"-राघव जोश में लिख गया।अंकिता को एकदम नहीं सूझा कि क्या जवाब दे।
"स्कूटर वाला आइडिया सुपर है, चलती बस के नीचे स्कूटर.....,लोगों को लगेगा कि दर्घटना में लेखक की मौत.....।"- राघव ने बात का अगला हिस्सा टाइप किया।
“बच्चो की जिंदगी क्यों बरबाद कर रहे हो, उनकी गलती क्या है, ये तो बताओ?"- अंकिता उस पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहती है।
"उनकी कोई गलती नहीं, बस अब जीना नहीं है।"
"सुनो हमें आपकी भी चिंता है।"
"ए जिससे मिले भी नहीं उससे इतना मोह?"- तनाव में भी वह अंकिता का बेहतर दोस्त होने की बाट को साबित करने की कोशिश करता है।
अंकिता बार-बार उसे इंसिस्ट करती रही तो उसने सारा किस्सा लिख भेज, उसने बताया कि पत्नी अपने घर- परिवार यानि मायके की चिंता में घर पर ध्यान नहीं देती, बच्चियों पर अत्यचार, मेरे लिखने और गोष्ठियों में जाने को चरित्र का दोष करार देती है। पैसे को लेकर कलह का माहौल रखती है। बेटियों को महँगे स्कूल से निकाल सरकारी स्कूल में पढ़ाने की जिद्द करती है। कहती है-इनकी फीस के पैसे से मैं खुद के गहने बनवाऊँ वो ज्यादा बेहतर है। दो दिन पहले तो हद ही हो गयी। सुबह से ही झगड़ा शुरू कर दिया। और चरित्र पर आक्षेप लगाते हुए कहा-"तुम जैसे लोग ही समाज मे रेप करते हैं, मुझे तो डर है कि खुद की बेटियों का भी रेप न कर दो। अंकिता, मेरे जैसे पिता के लिए ये मरने की बात है। बच्चियों केलिए जीने वाले, समाज मे जागरूकता के लिए लिखने वाले लेखक की तो जीते जी मौत है।
अंकिता ने ये सब पढ़ा, जिसमें कुछ समय लगा गया। उसे लगा कि अंकिता ने जवाब नहीं लिखा। वह आगे लिखता है-"तो ऐसे में साथ रहना बनता है?"
"नही राघव, वास्तव में इतना सब सुनना आप जैसे बेहतरीन इन्सान और एक केयरिंग पिता पर इतने संगीन इल्जाम लगाना निहायत ही घटिया है पर इतना गलत कदम उठाना बनता है?"- अंकिता ने कहा।
"अंकिता, इतना कुछ सुनने के बाद कुछ बचा नहीं हमारे पास? हम खुद से हार गए।"- राघव के जवाब में एक टीस है, जिसे अंकिता ने साफ-साफ अनुभव किया।
"किसी भी पिता के लिये ये बात बहुत कष्ट देने वाली है।"
"छोड़ो यारा।"
"पर आप तो यूनिक हो दोस्त। समाधान का सोचो, पलायन कभी किसी समस्या का हल नहीं।अच्छा सुनो,प्रद्युम्न आ गए हैं, अब मोबाइल में आपके नंबर को ब्लॉक करना होगा, माफ़ी के साथ अभी के लिए रुखसत, इस उम्मीद के साथ कि मेरी बात पर विचार कीजियेगा।"
राघव ने आगे कोई जवाब नहीं भेजा। दिन भर की भागदौड़ के बाद वह शाम को घर पहुँचा,मन में अभी भी उथल-पुथल है। सारे कागजात, बैंक अकॉउंट, उधारी का हिसाब सब इकठ्ठा करके उसने अंकिता को फ़ोटो शेयर करने की गरज से कुछ फोटो खींचे। उसने देखा कि अंकिता ने मोबाइल का ब्लॉक खोल दिया है। उसने फोटो भेजे और लिखा-"ये है मेरे पास सब जमा पूंजी, सब इकट्ठा कर दिया। उसे इन्हीं सबसे प्यार है ना, हमारे बाद कायम कर लेगी अपनी बादशाहत।"
उसने देखा कि अंकिता उत्तर टाइप कर रही है, वह उत्तर की प्रतीक्षा करता है, अंकिता का जवाब उसके मोबाइल की स्क्रीन पर "लेकिन एक बात है जो मुझे लगती है, उसे फिजिकल नीड है, जो उसे परेशान किये है। और वो सोच रही होगी कि जब हम दोनों के फिजिकल रिलेशन नहीं है इतने अरसे से तो आपकी नीड कहाँ से पूरी हो रही है, शायद इसीलिये उल्टा-सीधा बोल रही होगी?, महिलाओं में फिजिकल नीड पुरुषों से अधिक होती है, बस वह इजहार नहीं करती। आपको उसकी जरुरत का ख्याल भी रखना चाहिए।“
एक बार फिर मौन था दोनो के बीच। "बोलो कुछ?"-अंकिता ने लिखा।
अभी भी मौन था। अंकिता ने फिर लिखा-"टाइपिंग व्रत रखा हुआ है ???”
"कुछ फोटोकॉपी कर रहा था, शायद उसके काम आए।"
“सुनो, कुछ गलत मत सोचना यारा, आप तो क्षत्रिय हैं न? कायरता का काम करके माँ के दूध और पापा के खून को गाली मत दिलवाना। और फिर सामने वाला तो यही प्रूव करेगा न कि, आप गलत थे, इसीलिये............बेटियों के मन में भी यही सब घर करेगा।"
"क्या फर्क पड़ता है इन सबसे?"- राघव की बातों से हताशा को साफ-साफ़ महसूस किया जा सकता था।
"अच्छा..... फिर काहे परेशान हैं कि दुनिया मेरा साहित्य पढ़े? खैर......आप मुझ से ज्यादा समझदार हैं। गंभीर भी हैं....अब कुछ न कहूँगी...।"-कहकर अंकिता ने एक बार फिर मोबाइल पर नम्बर ब्लॉक में डाल दिया।
वार्ता खत्म करके वह परेशान रहा। उसने दीदी के पास जाने का मन बनाया। दीदी का घर उसके घर से वाकिंग डिस्टेंस पर ही है। दीदी ने उसका सिर सहलाया। पता नहीं कौन सी टेलीपेथी थी, दीदी को लगा कि उसके अंदर कुछ तूफान चल रहा है, कोई धूल भरा अंधड़। दीदी ने इतना भर कहा-"आराम कर मेरे भाई। मानसिक थकान है, आराम करने से दूर होगी।"
दीदी के पास वह दो घंटे के करीब रहा वहाँ से वह घर वापिस आ गया। रात भर उसके दिमाग में कोलाहल रहा। सुबह काम पर निकला। वह अपनी टेबल पर बैठा ही था कि अंकिता का संदेश उसके मोबाइल पर डिस्प्ले हुआ- "कैसे हैं?"
यह एक कोड वर्ड था जिसे अंकिता अपनी उपस्थिति के लिए प्रयोग करती थी, उसने राघव को समझाया हुआ था कि अगर मेरे मोबाइल से ‘कैसे हैं’ लिखा पहला मैसेज न आये तो समझ लेना मेरे अलावा किसी और का सन्देश है, ऐसे मने अह्तियातन जवाब नहीं देना।
उसने पढ़ा तो जवाब लिखा-"अंकिता तुम पर केस चलेगा, किसी का इरादा बदलने का गुनाह किया है तुमने।"
"जानते हो लेखक महोदय, आप मेरे इकलौते मित्र हो।"- अंकिता का संक्षिप्त सा उत्तर उसे आह्लादित कर गया।
"दो रोज पहले भी लिखा था तुमने ये। ये एक बात न कहते तो आज बात न कर पाते।"
"चलो आपने इस एक बात की लाज तो रखी न। हमें फक्र है अपनी दोस्ती पर।"
"लेकिन हम आपसे नाराज हैं।"
" 😊😊"
"क्यों हमारा मन बदला। जब हम जीना ही नहीं चाहते।"
अंकिता ने नास्ते की थाली का फोटो भेजकर कहा-"आइये भोजन कर लीजिये।"
"कौन हाथ से खिला रहे जो हम खाने आएं?"
"😃😃😃"
"हम खाने आये तो आपके पुलिसिया पति आपको और हमें अलग-अलग बैरक में हवालात में डाल देंगे। यानि बात भी नहीं कर सकते।"
"आप ठीक हैं न?"
"न, मन अशांत, और आप पर गुस्सा।"
"बने रहिय, हम यूज टू हो चुके हैं।"
"ठीक हैं।"
"अच्छा बताइए, खाना खाया?"
"नहीं खाएंगे तो काम चलेगा? अंकिता हमारे गुस्से का भी मोल नहीं?"
"आप खुश रहा कीजिये।"
"वो शाम आएगी जब खुशियाँ हमारे दामन में होंगी?"
"मुझे नहीं पता।"
बात करके वह काम में जुट गया। रात में फिर अंकिता से बातचीत हुई। उसने पूछा-"अंकिता हमारा रिश्ता क्या है?"
"नहीं पता लेकिन हम आपका कितना सम्मान करते हैं। ये आपको इतने दिनों में समझ आ गया होगा।"
"हमें तो ये समझ आया जिन्हें आप दिलोजान से चाहते हैं उनके नाराज होने पर भी हमसे बात करते हैं तो हम कुछ तो खास हैं।"
"फिर मन में उलझन क्यों, फिर इतने सवाल क्यों?"
"मन भी तो पगला है।"
"सो जाइये, ! आप थके हैं।"
"अंकिता हम अब आपकी दी सांसों पर जिंदा हैं। कर्जदार हुए आपके।"
" मतलब? दोस्ती खत्म?"
"आप न होते तो कल हमने खुद को खत्म कर लिया होता।"
उसके मन में आया कि कहे, अंकिता, एक लेखक की मौत तो हो ही गयी, तुमने तो एक दोस्त को ही आत्महत्या से बचाया है।उसने मोबाइल स्क्रीन को बन्द करने किये बटन दबाया और छत को निहारता रहा।
सन्दीप तोमर