ठौर ठिकाना - 3 - अंतिम भाग Divya Shukla द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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ठौर ठिकाना - 3 - अंतिम भाग

ठौर ठिकाना

(3)

सिर्फ रमा आंटी ही नहीं यहाँ रहने वाला कोई भी सदस्य कभी अपनों के बारे में कुछ नहीं कहता लेकिन उनकी पीड़ा उनके मौन में, उनकी आँखों में साफ़ झलकती उन आँखों कभी न आने वालों का इंतजार दिखता.

दया माँ को उनके नाती यहाँ छोड़ गये, बेटी दामाद की एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद जिन दो नन्हे बच्चों को कलेज़े से लगा कर पाला था, अपने बुढापे के लिये संजोई सारी पूंजी और पति का बनवाया घर बेंच कर जिन्हें पढाया लिखाया शादी ब्याह किया. उन्होंने ही नानी को ओल्डहोम में पहुंचा कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जब की वह समर्थ थे अच्छी नौकरी कर रहे थे तब से वह यहीं हैं.

भगत जी, रामलखन भईया,बाबू जी सब कि कहानी एक सी ही है किसी को बेटे ने ठगा तो किसी को बेटी दमाद नें, अब जब अपना खून ही सफेद हो जाये तो क्या शिकवा क्या शिकायत....
बस आँखों में पीड़ा का समंदर और होठों पर मौन का ताला, दिखती है तो बस खोखली हंसी.

वापस घर आते समय रास्ते भर सोचती रही कितने अजीब हैं यह रिश्ते जो इतनी जल्दी रंग बदल लेते हैं माँ बाप अपने बच्चों की ऊँगली में चुभी फांस भी नहीं सहन कर पाते,खुद परेशानी सह कर औलाद को हर सुविधा मुहैया कराते हैं,वही उनके लिये अनचाहा बोझ हो जाते हैं, जब तक माल है तभी तक मुहब्बत है.

अपने काम और घर की आपाधापी में पन्द्रह दिन से उस तरफ जा नहीं सकी बस मनोज से फोन पर हाल लेती रहती, मैम सेन भी ठीक ही थी बस रात को अक्सर बिस्तर गीला कर देती रमा आंटी और दया अम्मा उसे धोती साफ़ करती कभी कभी झिड़की भी देती पर उनसे प्रेम भी करती.

वरना क्यूँ करती पेशाब से भरे बिस्तर और कपड़ों की रोज़ धुलाई . अब उनकी भी उम्र है हाथ पाँव नहीं चलते पर वह कभी मिस सेन को गंदगी में नहीं रहने देती.

आज वंदना का फोन आया था मैने उससे कल आने को कह दिया उससे पूछा भी -

'' कुछ लाना हो तो बता दो कल लेती आउंगी ''

वंदना ने कहा -

'' क्या बताऊँ दीदी मैम दो तीन दिनों से बिस्तर पर ही लैट्रिन भी कर देती हैं पर सबसे बड़ी समस्या यह है हाथ से निकाल कर पोत लेती है शरीर पर, पलंग के आसपास फेंक देती है सबसे बड़ी समस्या बिस्तर धोने की है,आप अगर पाउडर वाला निरमा साबुन ला दें तो कुछ आसानी हो जाये,और हाँ कुछ पुरानी सूती धोतियाँ भी ले आइयेगा.''

'' ठीक है हम कल ही ले कर आते हैं.'' कह कर मैने फोन रख दिया और सोचने लगे अब यह तो बड़ी परेशानी है, कब तक रमा आंटी और दया अम्मा करेंगी यह टट्टी पेशाब की सफाई अब यह दोनों भी तो बूढी हैं सत्तर अस्सी के बीच होगी इन दोनों की भी उम्र इस समस्या का कोई हल समझ में नहीं आ रहा था. कैसे वक्त और हालत इंसान को क्या से क्या बना देते है इसका सबसे बड़ा उदहारण मैम सेन हैं.

शहर के प्रतिष्ठित मिशनरी कान्वेंट स्कूल की टीचर और इस हालत में सोच कर देख कर रूह काँप जाती है, मुझे याद है कालर वाली शर्ट और घुटनों तक लम्बी स्कर्ट पहने डायना कट शार्ट हेयर में मिस सेन अपने समय कि बेहद हसीन शख्सियत थी, मिस सेन ने शादी नहीं की थी कोई कहता छोटे भाई की ज़िम्मेदारी निभाने के लिये नहीं किया तो कोई यह भी कहता मिस सेन को प्रेम में धोखा मिला और शादी से विरक्ति हो गई.

सुनने में तो यही आया रिटायरमेंट के बाद जो भी पैसा मिला उसे अधिक ब्याज की चाह में प्राइवेट बैंक में जमा करने की भारी भूल कर दी इन्होने और कुछ साल बाद बैंक पैसा ले कर भाग गया. पैसा तो गया ही साथ में रिश्ते भी दूर हो गये अब तक बैंक से आने वाले ब्याज से मौज करने वाला भाई ने भी आँखे फेर ली यह कह कर अपना ही खर्च नहीं चलता इनका क्या करें.

पैसे जाने का सदमा तो लगा ही उसे तो झेल भी जाती पर जिस भाई के लिये सारी उम्र दी उसके बदले व्यवहार नें बहुत गहरा मानसिक आघात दिया.दिन दिन भर वह सड़कों पर घूमा करती कभी पार्क में ही पड़ी रहती कोई कुछ पकड़ा देता तो खा लेती. एक दिन सड़क पर भटकते हुये देख कर उनके किसी स्टूडेंट उन्हें पहचाना, वह किसी को पहचान नहीं पा रही थी यहाँ तक अपना नाम भी भूल गई थी.मैम सेन के पढाये उन बच्चों ने उन्हें यहाँ लाकर रखा.अब भी वह सब उनका हाल पता करते रहते हैं जब भी शहर में आते अपनी टीचर से मिलने जरुर आते हैं. तब से यह यहीं इसी ओल्ड होम में है.

मुझे नींद नहीं आ रही थी बार बार मन में आश्रम में रह रहे चेहरे कौंधते.मैम सेन की दिन प्रतिदिन बिगड़ती हालत से मन में भय और चिंता बैठ रही थी. यह प्रश्न भी मन में उठता जितना यहाँ सब इनकी सेवा कर रहे हैं क्या घर पर भी कोई करता ? नहीं शायेद नहीं वहां रिश्तों के स्वार्थ थे जिन्होंने पीछा छुड़ा लिया यहाँ कोई रिश्ता नहीं पर सब एक दूसरे को संभाल रहें है.
भगत जी,बाबू जी, रामलखन भईया सभी बड़े प्रेम से उनका ध्यान रखते कोई उनके खाने के बर्तन साफ़ कर देता तो कोई झाड़ू लगा देता,उन्हें दवा कब खानी है सब ध्यान रखते एक परिवार ही तो है यहाँ तभी तो दया अम्मा और रमा आंटी दोनों मैम सेन के टट्टी पेशाब से सने बिस्तर कपड़े बिना नाक भौह सिकोड़े धोती हैं. अक्सर ही मिस सेन बीमार पड़ती तो बिस्तर खराब करती ही है. एक बार दया अम्मा मिस सेन को प्रेम से झिड़कते हुए बोली -

''अब से बिस्तर खराब किया तो नहीं साफ़ करेंगे पड़ी रहना.अगर तुम हमको आवाज़ दे दो तो हम दोनों तुम्हे सहारा दे कर बाथरूम में ले न जाएँ ''

मै अम्मा की तरफ मुंह करके उनकी बातें सुन रही थी तभी अम्मा ने आँख से मिस सेन की तरफ इशारा किया मैने पलट कर देखा तो मैम सेन अपना चेहरा तकिये में छुपाने की कोशिश कर रही थी.
'' देखो बेटा अब कैसे शर्मा रही हैं '' रमा आंटी हंस कर बोली और स्नेह से उनका माथा सहला दिया. फिर कहने लगी

'' क्या पता कौन जाने हम भी तो कभी ऐसे ही बीमार पड़ सकते हैं तो वैसे ही यह भी है एकदुसरे का हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा ".

यही सब सोचते सोचते न जाने कब आँख लग गई. सुबह उठी तो सर भारी था चाय के साथ दो बिस्किट ले कर डिस्प्रिन ली अभी जाना भी था. मन में अजीबोगरीब ख्याल आ रहे थे. दोपहर तक कुछ तबियत ठीक हुई तो बाज़ार से सामान लेते हुये मै वहां पहुंची. गाड़ी की आवाज़ सुनते ही दया अम्मा बाहर आ गई. मुझे देखते ही बोली --

'' आ गईं बिटिया आज इसकी तबियत ठीक नहीं लग रही आज रात भर सभी लोग जागते रहे ''.

'' अरे क्या हो गया ? कल तो कुछ सुधर रही थी तबियत ''. मैने पूछा और अंदर आ गई तभी मनोज ने बताया -

''सुबह बड़ी मुश्किल से कुछ खिला कर दवा दी है अभी अभी झपकी लगी है रात कई दस्त हो गये बुखार भी हो गया था पर अभी ठीक हैं तभी सो गईं ''.

'' इन्हें सोने दो और तुम लोग भी आराम कर लो ''

मैने वंदना और मनोज से कहा और कुछ देर वहां बैठ कर मै वापस आ गई. रात को नौ बजे फोन कर के हालचाल लिया अब वह काफी ठीक थी जान कर निश्चिन्त हो गई. अगले दिन शाम चार बजे जब मनोज का फोन आया तो मै रास्ते में ही थी वहीँ जा रही थी -

'' दीदी मैम सेन नहीं रहीं आप आयेंगी न ? ''

'' अरे कब कैसे हुआ कल तो काफी ठीक थी फिर अचानक '' मैने पूछा.

'' आज सुबह भी काफी ठीक थी सुबह हल्का सा नाश्ता भी किया दवा भी ली और सब लोग उन्हें छेड़ भी रहे थे -- नाटक करती हैं देखो ठीक हैं सब हंस बोल रहे थे वह भी मुस्करा रही थी फिर सो गई दोपहर को बारह बजे करीब खाने को उन्हें जगाया तो उठी ही नहीं सोई रह गईं - आप आ रही है न अभी एक घंटे में उन्हें ले जायेंगे ''.

'' मै आ रही हूँ बस रास्ते में हूँ ''.

मन भारी हो गया विक्की को फोन कर के बता दिया उसकी मैम सेन मुक्त हो गईं इस स्वार्थी दुनिया से. अब कोई और सामान तो लेना नहीं था बस कुछ फूल लिये उन्हें आखिरी बार मिलने के लिये,उन्हें विदा करके वापस आने लगी तो कई जोड़ी नम आँखे मेरी तरफ देख रहीं थी कार में बैठने लगी तो अम्मा ने हाथ पकड़ लिया और बोली -

'' हमसे मिलने आती रहना बिटिया ''

'' हम जरुर आयेंगे अम्मा आप सब हमारे अपने ही हो कभी याद आये तो मनोज के फोन से बात कर लेना माँ कुछ चाहिये तो भी बता देना अपनी इस बेटी को ''.

दस पन्द्रह दिनों के लिए मुझे शहर से बाहर जाना पड़ा वापस लौट कर एक दिन थोडा बहुत खाने पीने का सामान ले कर मै वहां गई सोचा बिना फोन किये ही अचानक जाउंगी. पहुँच कर गाड़ी से उतरी ही थी सामने भगत जी हाथ जोड़े खड़े मिले.गाड़ी की आवाज़ सुन कर रमा आंटी बाहर आ गई कुछ लोग आ गये कुछ बाहर आ रहे थे सब बहुत खुश थे मुझे वहां पा कर शायेद उन्हें लगा था मै अब नहीं आउंगी मै सिर्फ मैम सेन के लिए ही वहां आती थी. इन सब की आँखों में ख़ुशी की चमक ने मुझे क्या कुछ दिया मै बता नहीं सकती. रमा आंटी मेरा हाथ पकड़ कर अंदर ले आईं भगत जी प्लास्टिक की कुर्सी ले आये.

'' बैठो बिटिया ''. सभी आसपास घेर कर बैठ गये

अचानक मेरी निगाह मैम सेन की पलंग की तरफ गई तो मै चौंक कर खड़ी हो गई
वहां गले तक चादर ओढ़े कोई लेटा था बड़ी बड़ी हल्की भूरी आँखे और सफ़ेद कटे हुये बाल, मैने मनोज की तरफ देखा तो वह समझ गया और बोला.

'' यह पुष्पा मलिक हैं इनका बेटा इन्हें यहाँ पहुंचा कर विदेश चला गया ''

अभी बहुत कम बात करती हैं धीरे धीरे सब से घुलमिल जायेंगी अभी सदमा सा लगा है इन्हें कुछ वक्त लगेगा एडजेस्ट होने में ''.

मैने पूछा -- ''क्या कब आईं यह क्या जल्दी ही ?''

'' नहीं अभी नहीं यह तो मैम के जाने के अगले ही दिन आ गईं थी यहाँ कभी कोई जगह एक दो दिन से ज्यादा खाली नहीं रहती ''.

मै कुछ देर बाद वापस लौट आई पर आज भी मेरे दिमाग में मनोज का वाक्य
हथौड़े की तरह लगता है - ( यहाँ कभी कोई जगह एक दो दिन से ज्यादा खाली नहीं रहती )
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दिव्या शुक्ला !

(लमही 2017 )