बिटिया के नाम पाती... - 2 Dr. Vandana Gupta द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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बिटिया के नाम पाती... - 2

प्यारी बिटिया
ढेर सारा प्यार

तुमने कहा था कि मेरा पहला पत्र तुम्हें बहुत अच्छा लगा और यह भी कि फोन पर चाहे कितनी भी देर बातें कर लो, मैसेज कर लो, लेकिन तुम्हें जब मेरी याद आती है तो सोते समय तुम पत्र पढ़कर सिरहाने रख लेती हो और मुझे अपने पास महसूस करती हो.. बस इसीलिए ये पत्र लिख रही हूँ.
बेटा आज तुम्हारी शादी को दो साल हो गए. समय कितनी जल्दी गुजर जाता है. ऐसा लगता है कि सब कल ही तो घटित हुआ है. पापा का गुस्सा होना, फिर तुम्हारा रोना और मेरा तुम दोनों के बीच चकरघिन्नी बनना.. लेकिन भगवान की कृपा है कि सब ठीक हो गया. उस दिन जब हम 'उसके' घर गए थे, तब पापा ने मुझे बहुत पट्टी पढ़ाई थी, कहा था कि ऐसे बोलना और वैसे मना करना.. और मैंने सब कुछ वैसा ही बोला.. जब तुमने बाद में कहा कि 'वे' लोग कह रहे थे कि मम्मी को ही आपत्ति है, पापा तो चुप बैठे रहे, तब मैंने नोटिस किया कि पापा ने फिर मुझे मोहरा बना दिया. खैर.. मुझे अब आदत हो गयी है, कोई फर्क नहीं पड़ता. उस दिन तुम्हारी सास ने कहा था कि "यदि आप तैयार नहीं हुए और बच्चों ने शादी कर ली तो? हम तो सपोर्ट करेंगे.." सच कहूँ बेटा मुझे बहुत गुस्सा आया था. मैंने बोल दिया था कि "हमें हमारी बेटी पर भरोसा है, वह हमारी सहमति के बिना कोई कदम नहीं उठाएगी.." और तुमने भरोसा कायम रखा, मुझे खुशी है. क्योंकि शायद तुम्हें भी हमपर उतना ही भरोसा है, कि हमें तुम्हारी खुशी की परवाह है. और बेटा ये भरोसा ही तो जिंदगी की दौलत है. फिर अचानक ही सब कुछ एकदम सही हो गया. तुम्हारा 'रोका' हुआ और 'वह' स्पेशलाइजेशन करने बाहर चला गया.
समय गुजरता गया और देखते देखते तुम भी आगे की पढ़ाई करने चली गयी. फिर तुम्हारी पढ़ाई के बीच में ही शादी हुई क्योंकि फिर ढाई साल तक शादी का मुहूर्त नहीं था. तुम्हारी शादी के बाद पापा भी बहुत खुश हैं. तुम्हारी कजिन के लिए लड़का ढूंढने में उन्हें समझ आ गया है कि सही मैच मिलना कितना मुश्किल होता है.
तुम भी अपने नये घर में खुश हो, इससे बेहतर खुशी हमारे लिए क्या हो सकती है. यूँ तो जयपुर जाने के बाद तुम्हारा घर आना कम हो गया था, तो रविवार सूना सा लगता था, किन्तु जब तुमने कहा कि यदि तुम पी जी इंदौर से करतीं तब भी घर नहीं आ पाती क्योंकि हॉस्पिटल में बहुत काम होता है और छुट्टी नहीं मिलती तो थोड़ी राहत हुई. मुझे याद आ रहा है, उस दिन भी संडे था और तुमने सुबह आठ बजे फोन किया कि तुम घर नहीं आओगी, क्योंकि पी जी प्रवेश परीक्षा बहुत टफ होती है और तुम्हें पढ़ना है. फिर नौ बजे पूछा कि नाश्ते में क्या बना है... हम यहाँ पोहे खा रहे थे और तुम हॉस्टल मेस में पोहे खा रही थीं. ये जो दिल से दिल को जोड़ने वाला अदृश्य तार होता है न बेटा ये हमारी इंद्रियों को भी जोड़ देता है शायद... क्योंकि उस दिन सबने तारीफ की पर मुझे पोहे में स्वाद ही नहीं आया क्योंकि तुम्हारी मेस के पोहे तुम्हें कभी पसन्द नहीं थे. फिर ग्यारह बजे तुमने मैसेज कर लंच का मेनू पूछा और कितना सुखद आश्चर्य हुआ मुझे कि एक बजे डाइनिंग टेबल पर तुम सबको मैं गर्म गर्म फुलके परोस रही थी. उस दिन भी और उसके पहले भी कई बार मुझे मुम्बई का मेडिकल कॉलेज छोड़कर इंदौर का कॉलेज चयन करने के तुम्हारे फैसले पर खुशी हुई थी. आज तुम मुम्बई में हो, वहां के सबसे बड़े हॉस्पिटल से एस आर शिप करने गयी हो, छः महीने के लिए, इसके बाद दिल्ली जाकर लेप्रोस्कोपिक फेलोशिप करोगी.. "ये डॉक्टर्स क्या पूरी जिंदगी पढ़ते ही रहते हैं??" दादी के पूछने पर तुमने कितने प्यार से समझाया था कि "दादी! तभी तो आपकी उम्र में लोग स्वस्थ रह पाते हैं."
बेटा! आज वाकई हमें तुम्हारे चयन पर गर्व है. तुम्हारे सास-श्वसुर भी बहुत अच्छे हैं. तुम्हारी सासू माँ कितनी जल्दी तुम्हारी 'आंटी' से 'मम्मी' बन गयी, किन्तु 'वह' मुझे आज भी आंटी ही बोलता है और मुझे ये भी पता है कि तुम्हारे सास-बहू के रिश्ते से ज्यादा सहज हमारा सास-दामाद का रिश्ता है क्योंकि तुम आज भी खुल कर उन्हें अपनी पसन्द नहीं बता पाती हो जबकि 'वह' साधिकार मुझसे फ़रमाइश करता है. तो ऐसा क्यों होता है कि जो दिल में हो वह सहज ही जुबान पर नहीं आ पाता? पता नहीं रिश्तों का ये गणित और विज्ञान मुझे कभी समझ ही नहीं आया... बस इतना जानती हूँ कि सहजता और ईमानदारी किसी भी रिश्ते को निबाहने के लिए जरूरी है. वही तुम्हें भी सिखाया है. शायद उस दिन जब तुमने बताया था कि 'उसने' तुमसे कहा था कि तुम खाना नहीं बनाओ हम बाहर डिनर करेंगे.. तुम दुविधा में थीं क्योंकि तुम्हारी सासू माँ तुम्हारे हाथ की बनी भिंडी खाना चाहती थीं. तुम एक अच्छी कुक हो और समझदार बहू की तरह भिंडी और रोटी बनाकर तुम एक अच्छी पत्नी की तरह डिनर के लिए गयीं थीं. मुझे वाकई अपनी परवरिश पर गर्व करने देने का कोई मौका तुम नहीं छोड़तीं, मुझे बेहद खुशी होती है.
शादी के एक साल बाद ही जब तुम अस्वस्थ होकर हॉस्पिटल में थी, मैंने कहा था कि अब कुछ दिन मेरे साथ घर चलकर रहो. तुम्हारा जवाब था कि वहाँ दिनभर अकेली रहूँगी, तो 'अपने घर' ही जाऊँगी. यह वाक्य मुझे खुशी और दुःख एक साथ दे गया. आँसू आ गए थे. सही है नौकरी के कारण पापा और मैं बाहर और तुम्हारे भाई बहन भी हॉस्टल में, दिन में कुछ घण्टे तो अकेले रहना ही पड़ता, मैंने कहा भी कि मैं छुट्टी ले लूँगी, पर तुम्हारी सास ने कहा कि वे सम्भाल लेंगी. तुम्हारे स्वस्थ होने के बाद उन्होंने 'तुम दोनों' को दो दिन के लिए जबरन यहाँ रहने भेजा ये कहकर कि एक शहर है तो क्या हुआ, माँ की इच्छा का भी ध्यान रखो.. आखिर वो भी बेटी की माँ हैं और मुझे समझ में आया कि उस दिन छुपाने के बाद भी उन्होंने मेरे आँसुओं की नमी महसूस कर ली थी.

बेटा! अभी तक तो तुम पढ़ाई के कारण शादी के बाद भी अधिकांश समय बाहर रही हो. अब दो साल के बाद विधिवत ससुराल में रहोगी तो कुछ छोटी छोटी बातों का ध्यान रखना, जो तुम्हें बड़ी बड़ी खुशियाँ देने वाली हैं.... तुमने बताया था कि 'उसने' कहा है कि मम्मी पुराने ख्यालात की हैं और तुम शुरू से ही अपने हिसाब से चलना, उनकी बात पर ध्यान मत देना, तो बेटा मेरा कहना है कि ऐसी गलती मत करना. उनके हिसाब से सोचो, जो लंबे समय तक संयुक्त परिवार में रहीं, संघर्ष के बाद बेटे को डॉक्टर बनाया.. वह एक घरेलू महिला हैं और तुम्हारे ससुरजी बिज़नेस वाले तो निश्चित ही उनकी और हमारी लाइफ स्टाइल में अंतर है, और माँ और बेटे के बीच मनमुटाव की वजह तुम्हें नहीं बनना है. उन्होंने घर पर रहकर हमेशा बच्चों को गर्म रोटी खिलायी है और तुमने बड़े होने के बाद स्कूल से आकर ताला खोलकर माइक्रोवेव में खाना गर्म करके खाया है, क्योंकि छुटपन में बाई संभालती थी, फिर भी मुझे खुशी है कि तुमने कभी भी मुझे अपराधबोध महसूस नहीं होने दिया, क्योंकि तुम जानती थीं कि तुम्हें बेहतर जिंदगी देने के लिए ही ये मेरा संघर्ष था. और अब तुम भी भविष्य में इसी दौर से गुजरने वाली हो. वैसे भी वे लोग सुलझे हुए हैं इसलिए थोड़ा उनके मन के हिसाब से भी करोगी तो सभी खुश रहेंगे. और मैं जानती हूँ वे तुम्हें टोकेंगी भी नहीं, दो उदाहरण हैं... पहला जब शादी के समय उन्होंने मुझे कहा था कि वे तो साड़ी चढाएंगी पर मैं तुम्हें सलवार सूट ही दूँ और दूसरा जब शादी के तीन माह बाद ही तुम पहली 'सत्तू तीज' मनाने आयीं थीं और रिश्तेदारी में किसी की अचानक मृत्यु हो गयी थी. मैंने तुम्हें कहा था कि 'उठावने' वाले दिन मेरी कोई सिंपल साड़ी पहन लेना, शादी के बाद पहली बार ससुराल के काफी रिश्तेदार गमी के माहौल में मिलेंगे... तब तुम्हारी सासूजी ने कहा था कि नहीं कोई सिंपल चुन्नी वाला सूट पहन लेना. तो बेटा वह तुम्हारा ध्यान रखती हैं तो तुम भी जब जरूरत हो उनकी खुशी का ख्याल रखोगी तो सब अच्छा चलेगा. 'उसे' भी यही बात समझाना, वैसे तो वह समझदार है फिर भी माँ से गुस्सा होने की 'उसकी' आदत तुम्हारी सासूजी को अब बुरी लगेगी. कभी ऐसी स्थिति आये भी तो वहाँ से कुछ बोले बिना हट जाना और फिर बाद में 'उसे' समझाना कि तुम्हारे सामने बोलने से माँ को अपमान महसूस होगा. तुम्हारे ससुरजी भी बहुत सुलझे हुए हैं, तुमने कहा था कि रोज दुकान जाते समय तुम्हारी पसन्द की खाने की चीज पूछते हैं और लौटते में लेकर आते हैं.. और कई बार तुम चारों देर रात तक साथ में ताश भी खेलते हो... तो बेटा ये प्यार और अपनापन जितना सहेज सको सहेज लो... बाद में सूद समेत खर्च करना....!
अब काफी लम्बा हो गया है, तो शेष अगले पत्र में... जब तुम वापस आओगी तो बहुत सारे नये अनुभव साझा करेंगे..!

तुम्हारी दोस्त मम्मी..

©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक