बिटिया के नाम पाती... - 5 - एक पाती अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम के नाम Dr. Vandana Gupta द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

बिटिया के नाम पाती... - 5 - एक पाती अपने पसंदीदा रेडियो कार्यक्रम के नाम

मेरे प्रिय बिनाका गीतमाला
ढेर सारी प्यार भरी याद के साथ नमस्कार

आज बरसों बाद तुम्हारी याद आयी हो, ऐसा नहीं है। तुम्हारे जाने के बाद से मैंने तुम्हें बहुत मिस किया है। मैं खोयी खोयी सी रहती थी, तुमसे बिछड़ने के बाद से... सोचती थी कि संगीत की दुनिया का ये शून्य कैसे भरा जाएगा? मैं हमेशा से ही तुम्हारी दीवानी रही हूँ। तुम उम्र में मुझसे काफी बड़े थे, किन्तु हमारा याराना बहुत तगड़ा था। तुम्हारे पीछे मैं सब कुछ भूल जाती थी.... परिजनों को छोड़ो... भोजन की थाली और पढ़ाई की किताबें भी कई बार धरी रह जाती थी।

बिनाका... जो तुम्हारा प्रायोजक था... एक टूथपेस्ट था जिसके पैकेट में छोटे छोटे रबर के खिलौनों का जंतु संसार समाया रहता था। मैंने उन खिलौनों को आज भी सहेज रखा है। प्रकृति और संगीत जगत से जोड़ने वाला बिनाका नाम ही मुझे इतना पसन्द था बचपन में कि किसी के द्वारा नाम पूछने पर मैं अपना असली नाम छुपा जाती थी... मेरा नाम 'बिनाका' ही बताती थी। बिनाका गीतमाला मेरा पहला प्यार हो तुम...!

तुम भारतीय फिल्मी संगीत का सबसे पहला काउंट डाउन कार्यक्रम थे रेडियो सीलोन पर... हर बुधवार को रात आठ बजे से नौ बजे तक तुम्हें सुनने के लिये लोग रेडियो से चिपक जाया करते थे। मेलोडियस धुनों और मधुर कंठस्वरों का संगम श्रोताओं को पूरे एक घंटे तक भाव विभोर बनाये रखता था। तुम्हारे उदघोषक अमीन सयानी के मनमोहक अंदाज़ ने सबको दीवाना बना दिया था। मेरी बुआजी की शादी में कई बिन बुलाए मेहमान सिर्फ इसलिए आ गए थे कि उस दिन रिसेप्शन में अमीन सयानी कार्यक्रम प्रस्तुत करने आये थे। उनकी आवाज़ से पण्डाल के बाहर भी लोग सुनने के लिए एकत्रित हो गए थे। आज दूरदर्शन और कम्प्यूटर के युग में रेडियो के प्रति दीवानगी को कोई नहीं समझेगा, क्योंकि ये उन दिनों की बात है। रेडियो सीलोन सुनने वालों को हर महीने की पहली तारीख पर प्रसारित होने वाला गाना याद होगा... 'खुश है जमाना आज पहली तारीख है....'

तुम्हारा पहला कार्यक्रम सन 1952 के अंतिम सप्ताह में प्रसारित हुआ था। सन 1952-53 तक केवल सात गाने प्रसारित किये जाते थे और गीतों को लोकप्रियता का दर्जा भी नहीं दिया जाता था। सन 1954 से तुम काउंट डाउन कार्यक्रम बन गए और गानों को रेटिंग दिया जाने लगा। उस साल के पहले कार्यक्रम में तलत महमूद का गाया गीत ‘जायें तो जायें कहाँ…..’ शीर्ष गीत था। लोकप्रियता ही मुख्य आधार होता था गानों की रेटिंग का। गीतों के रेकॉर्ड की बिक्री के आंकड़े एकत्रित किये जाते थे लोकप्रियता के निर्धारण के लिये और श्रोताओं के वोट भी लिये जाते थे, परंतु बाद में यह पता चलने पर कि कई गानों के लिये श्रोतागण फर्जी नामों के अनेक मतपत्र भेज देते हैं, वोटिंग की पद्धति को समाप्त कर दिया गया।

दो बार तुम्हारा नाम बदला भी गया, पहले सिबाका गीतमाला और बाद में कोलगेट गीतमाला के रूप में। बाद में तुम्हारा प्रसारण रेडियो विविध भारती से भी किया जाने लगा पर विविध भारती में तुम्हें गीतमाला की जगह संगीतमाला कहा गया था। कोई भी गाना पच्चीस बार बजने के बाद रिटायर कर दिया जाता था, गाना बजने के पायदानो की संख्या को जोड़ कर उसकी रेटिंग वार्षिक आधार पर तय की जाती थी तथा दिसंबर के आखिरी बुधवार को बिनाका गीतमाला सरताज गीत बजता था।

उनचालीस सालों तक तुम्हारा एकछत्र राज रहा। दूरदर्शन पर भी फिल्मी गीतों के काउंट डाउन कार्यक्रम शुरू हो जाने से लोग तुम्हें भूलकर नए की तरफ आकृष्ट होने लगे... तुम भी कब तक उपेक्षा सहन करते... बयालीस वर्ष की आयु में तुमने अलविदा कह दिया। बहुत लोगों का दिल तोड़कर, फ़िज़ां में मायूसी घोलकर तुम चले गए। तुम्हें तो पता भी नहीं होगा कि 1953 से लेकर 1995 तक के तुम्हारे सरताज गीतों की सूची आज भी मेरे पास संधारित है। जब तुम्हारी याद आती थी, उसे कलेजे से लगा लेती थी। गाने तो यदा कदा सुनती रहती थी किन्तु अमीन सयानी जी के मनभावन प्रस्तुतिकरण को सुनने के लिए तरसती ही रही।

सुना है कि गया वक़्त लौट कर नहीं आता और परिवर्तन प्रगति का सूचक होता है। विज्ञान और तकनीकी खोजों और अविष्कार ने संगीत की दुनिया में भी तहलका मचा दिया। अनेक नये वाद्ययंत्रों से सुशोभित और सुसज्जित संगीत मार्किट में बिकने लगा... नयी पीढ़ी पसन्द भी करती, किन्तु पुरानी पीढ़ी उस मेलोडियस संगीत को याद करती रही जिसका एक हिस्सा तुम भी थे। भला हो नये अविष्कारों का कि सा रे गा मा... 'कारवाँ' आया और साथ में खुशियाँ लाया... क्योंकि अपने भीतर तुम्हें समेट लाया...!

मेरे प्रिय बिनाका गीतमाला तुम मेरी जिंदगी में लौट आये हो... तुम्हारे साथ ही कितनी यादें चली आयीं हैं... तुमसे जुड़े किस्से और उन किस्सों को लपेटे हुए जिन्दगी के हिस्से... सब कुछ कितना सुहाना है... अब आये हो तो कभी मत जाना... आज मैं बहुत खुश हूँ... क्योंकि तुम मेरे साथ हो... मेरे जीवन का संगीत हो तुम... मेरे मन का मीत हो तुम...
आये हो मेरी जिंदगी में तुम बहार बनके...
मेरे दिल में यूँ ही रहना तुम प्यार प्यार बनके...!

-तुम्हारे श्रोताओं की भीड़ में एक गुमा हुआ चेहरा..!

©डॉ वन्दना गुप्ता
मौलिक