नगर ढिंढोरा Vandana Joshi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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नगर ढिंढोरा

बारह बजने मे सिर्फ सात मिनट बाकी थे ,ज़्यादातर घरों की बिजलियाँ बंद थीं लेकिन कुछ थे जो अब भी अपने बच्चों को मोबाइल जब्त करने की धम्की दे कर सुलाने का अथक प्रयास कर रहे थे । यही वो समय होता हे जब संसार सो जाने का बहाना बना कर अपने-अपने मोबाइलों और लपटापों की छोटी छोटी खिड़कियों से ताक झांक करने मे व्यस्त होता है । एलेक्ट्रोनिक उपकरणों कि रोशनी ने सूरज को उसकी गोणता का एहसास दिला दिया है । अब तो अंधेरा तभी छाता है जब मोबाइल एकाएक लो बेटरी का साइन दिखाने लगे और चार्जर कि अनुपस्थिति में आपको झक मार कर सोना ही पड़े ।तो बारह बजने मैं अब केवल छह मिनट ही बाकी थे ,एक मिनट तो आपको हाल समाचार देने मे लग गया न ।
देर रात भी मनोज चंगा दिख रहा था ,विषय की गंभीरता आवाज मे झलक गई “अनीता केक निकालो जल्दी और चाकू भी रख दो ,मैं पापा को उठाता हूँ “अनीता ने मनोज को ऊपर से नीचे तक स्कैन किया और झल्ला उठी “पहले तुम टी शर्ट बदलो ,पिछली अपलोड मे भी तुमने यही पहनी थी और पापा का भी कुर्ता बदलवा दो” ‘लेकिन पापा ने तो नया कुर्ता पहना है रहने दो’ मनोज ने प्रतिवाद किया । अररे नहीं भाई !अनीता खीजी ये बड़े भैया ने दिया था याद नहीं रहता तुम्हें ’उन्हें कुछ ऐसा पहनाओ जो हमने दिया हो, नहीं तो पिक्स अपलोड होते ही भाभी कमेंट कर देंगी ‘पापाजी कुर्ता बहुत अच्छा लग रहा है , आई एम हॅप्पी यू लाइकड इट’। समझते तो हो नहीं !!
मनोज अपनी गलती का एहसास होते ही सहम गया ,ये क्या अनर्थ करने जा रहा था वो !भैया के कुर्ते मे पापा का बर्थड़े!
पापजी यानि आलोकजी अपने जीवन के 84 वे वर्ष मे प्रवेश करने जा रहे थे पत्नी का देहांत हुए पाँच साल बीत चुके थे ,दो बेटे औए एक बेटी का संसार था । माता कि नाल से लटकते हुए धरती पर पैर रक्खा नाल कटते ही माँ का हाथ थाम लिया । बेहद शांत और सोम्य आलोक जी जीवन को हर रूप मे स्वीकार करने को तत्पर रहते थे ।वैवाहिक जीवन के उतार चढ़ाव मे पत्नी का हाथ थामे रहे या यूं कहें पत्नी उनका हाथ थामे रही । जब से पत्नी गई बस भवसागर मे लहरों के साथ उठ गिर रहे हें। तीनों बच्चे अपने अपने संसार मे लीन थे । आलोक जी सबकी सुविधा देखते हुए बारी बारी से उनके पास रह आते थे ।
कमरे कि लाइट ऑन करते हुए मनोज बोला ‘पापा उठिए आपको केक काटना है’। 80 के बाद शरीर सोने और जागने के सामान्य चक्र से बाहर आ जाता है । इंसान सुबह 10 बजे भी अखबार पढ़ते पढ़ते राल टपकाता सो सकता है ,और कई बार रात भर नींद का इंतजार करते अंधेरे मे टुकुर टुकुर जागता रहता है । इसलिए 80 के बाद जब जागो तभी सवेरा और जब सो जाओ तभी रात । बमुश्किल नीद के आगोश मे समाए आलोक जी को कुछ समझ नहीं आ रहा था । वो अनर्गल बड़बड़ाते हुए इधर उधर हाथ पाँव मारने लगे , अर्धचेतन अवस्था मे बड़ी बड़ी आँखें खोलकर “क्या क्या क्या !नहीं नहीं नहीं” कहते हुए अपने खुद के जाए कनिष्ठ पुत्र को भी पहचान न पाए और लगे उसे पीछे धकेलने लगे । मनोज को आखिरकार अपनी आवाज मे कठोरता लानी ही पड़ी क्योंकि बारह बजने ही वाला था और दोनों को कपड़े भी बदलने थे “हद्द है पापा आपको बोला था न आज देर से सोना और दिन तो उठे रहते हो आप ,अभी केक नहीं काटा तो क्या मेसेज जायेगा बताइये तो? के हम आपका खयाल नहीं रखते ?चलिये फटाफट उठिए और ये पहन लीजिये”मनोज अपना लाया हुआ भड़कीला चमचमाता हुआ कुर्ता आगे करता हुआ बोला जो उसने अपने साले कि शादी मे पिता के लिए बनवा दिया था । मनोज कि बेतुकी तुनकमिजाजी से सभी वाकिफ थे सो लाल लाल आँखों मे पश्चाताप और क्षमा कि अनुनय भर कर पिता कुर्ता बदलने मे लग गए । ड्राइगरूम कि छोटी सी टेबल पर बड़ा सा केक था जिस पर “हेपी बर्थडे डीअर पापा” लिखा था। एक छोटा सा गिफ्ट भी तैयार किया जा चुका था जिसे अनीता को देते हुए फोटो लेनी थी । अनीता कमरे कि lighting चेक कर रही थी और मनोज अपने हाई टेक केमरे को तैयार कर रहा था । माहोल मे खासा टेंशन था। जैसे किसी प्रोजेक्ट की सालाना रिपोर्ट बन रही हो जिसमे जरा भी चूक हुई तो कांट्रैक्ट गया हाथ से । कोनसी पिक्स ली जाएंगी ये भी लगभग तय हो चुका था । पाँच छह केक कि, हर ऐंगल से, ताकि उसकी भव्यता परिलक्षित हो सके । बेटे कि पापा को केक खिलाते हुए ,बहू कि पापा को गिफ्ट देते हुए ,पापा कि बहू को केक खिलते हुए ,एक अनीता कि प्लेफुली पापा कि नाक पे केक लगाते हुए ताकि दोनों के बीच के सम्बन्धों को घनिष्ठ और प्रेम से लबालब दिखाया जा सके । अनीता ने एक एंगल ऐसा लेने को बोला है जिसमे उनकी दीवार पे लगी दिवंगत मम्मी का फोटो भी आ जाए,और नीचे से कप्शन डाला जाए “वॉट अ कोइन्सिडेंस!! मम्मी जोइन्स द सेलिब्रेशन! लव यू मम्मा” लेकिन ये कतई candid लगना चाहिए नहीं तो इंपेक्ट नहीं पड़ेगा ।
चमचमाते भड़कीले कुर्ते मे आलोक जी केक के सामने लगी कुर्सी पर विराजमान हो गए , और चाकू हाथ मे ले के कभी बहू तो कभी बेटे कि तरफ देखने लगे । मनोज केमरे के तमाम लेंस घूमा घूमा कर एक ब्लोक्बस्टर डोकुमेंटरी बनाने कि पाशोपेश मे लीन था और बहू असीस्टंट डाइरेक्टर का काम कर्तव्यनिष्ठा से पूर्ण कर रही थी । काटूँ ? अचानक आलोकजी के मुह से न जाने कैसे यह शब्द ‘स्लिप’ हो गया ,दोनों बहू बेटे ने एकसाथ ऊपर देखा वैसे ‘काटूँ’ कि ‘ऊं’ की ध्वनि खत्म होते होते आलोकजी को अपनी गलती का एहसास हो गया था ,अब प्रकोप तो झेलना ही पड़ेगा । “पापा आप देख रहे हो न कुछ काम हो रहा है, क्यूँ ऊटपटाँग सवाल पूछते हैं जब काटना होगा तो बोलूँगा न मैं” आलोक जी को मनोज कि झल्लाहट बिलकुल सही लगी । बुढ़ापे मे बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है सुना था, आज देख भी रहा हूँ अपने साथ । सकपका कर टेक वाली क्लेप का इंतज़ार करने लगे ।
‘चलो अनीता position ले लो’ मनोज रेडी था । अनीता पापा कि बगल मे मनोज और केमरे कि तरफ देखके एकाएक प्रफ़्फुल्लित नज़र आने लगी । मनोज बोला “पापा काटो” । इशारा पाते ही पापजी केक कि तरफ झुके और चाकू चलाने ही वाले थे के दोनों बहू बेटा एकसाथ चीख उठे जैसे चाकू केक पर नहीं किसी आत्मीय जन पर पड़ने वाला था । “पापा क्या कर रहे हो यार बीचोबीच काट रहे हो,सारा डेकोरेशन खराब हो जायेगा ,कोने से काटो थोड़ा सा ,अनीता तुम बता नहीं सकती थीं क्या ?”अनीता भी अपना बचाव करती बोली ‘अरे मुझे क्या पता था वो बीच से काट देंगे !’ आलोक जी कि वैसे कोई गलती नहीं थी ,अब तक जितना भी उन्हे याद है उनके लिए केक हमेशा गोलाकार यानि राउंड ही आया था ,जिसमे कोने का सवाल ही नहीं था । आज अचानक आए चार कोने वाले रेड वलवेट केक ने उन्हे चारों खाने चित्त कर दिया था । चोकोर केक को काटने के संस्कारों से वे कतई अवगत न थे ,सो यह भीषण गलती कर बैठते ,भला हो नई पीढ़ी का जिनके ज्ञान चक्षु इंटरनेट कि तमाम शाखाओं मे बरोबर लगे रहते हैं ताकि कोई भी लेटेस्ट ट्रेंड या अपडेट छूट न जाए । इस साल मोमबत्ती को फूँक मारने कि क्रिया का उन्मूलन कर दिया गया था । क्योंकि पिछली बार आलोक जी ने मोमबत्ती फूंकते समय केक पर गलती से थूक दिया था ,अब आगे का मंजर आप न ही पूछें तो बेहतर होगा । बहरहाल केक को कोने से थोड़ा सा काटा गया । केक काटने की पिक कैसी आई है यह देखने के लिए दोनों बहू बेटा केमरे मे झुक गए । अनीता की मुसकुराते हुए ताली वाली मुद्रा ,झुके हुए पापा ,और तमाम भव्यता के साथ केक । दोनों रिज़ल्ट से संतुष्ट नजर आए । चलो ये तो हो गया !अनीता ने झटपट कटोरे मे केक डाला और छोटी चम्मच डाल कर केमरा पकड़ने बढ़ी। अब बारी मनोज के साथ फिल्माए जाने वाले सीन की थी । च्म्मच मे केक ले के मनोज पापजी की तरफ बढ़ा पर अभी अनीता तैयार न थी ,पापजी ने गर्दन बढ़ा कर फ़ोरन चम्मच से केक साफ कर दिया । ये लो !हो गया हॅप्पी बर्थडे !लग रहा था के अगर पापा का लिहाज न होता तो मनोज दो चार चपेट तो लगा ही देता । “क्या कर रहे हो !रुक जाओ !अनीता रैडि बोलेगी !”आलोकजी अपने बुढ़ापे को कोस रहे थे और मनोज भी । एक बार और केक भरी चम्मच आलोकजी के आगे बढाई गई ,पर इस बार वे सतर्क थे सिर्फ मुह खोला पर खाने की जल्दी न दिखाई। मनोज ने अनीता की तरफ देखा ,अनीता बोली “थोड़ा लेफ्ट मनोज”थोड़ा सरक सुरक के बाद फोटो खींच गई । जब रिज़ल्ट सामने आया तो देखा पापा तो हंस ही नहीं रहे थे। रिटेक होगा । डाइबिटिक आलोकजी को मीठे की मनाही थी ,सब जानते थे । लेकिन ये बात इस समय कही जानी चाहिए की नहीं उन्हें समझ नहीं आ रहा था । इतना मुश्किल इतना कठिन काम चल रहा है,और वे जरा सी कुर्बानी भी नहीं दे सकते ?वे चुप ही रहे ,गलती भी वही कर रहे थे नहीं तो एक बार मे ही टेक ओके हो जाता और ज्यादा केक भी नहीं खाना पड़ता । कुछ और टेक और रीटेक के बाद मनोज ने पापा का पेकअप कर दिया ,वो और अनीता तो अभी एडिटिंग और पोस्टिंग में रात काली करेंगे । सामाजिक मान प्रतिष्ठा ,प्रेम,स्वीकारोक्ति ,और पहचान यानि की “likes” जुटाना बच्चों का काम नहीं । और कल का दिन तो वैसे ही बिज़ि जायेगा पापा की तरफ से शुभकामनाओं का जवाब भी देना है ।कोई ये न कहे बच्चों ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया ।
वंदना जोशी