सिर्फ बीस साल पहले मैं एक ताकतवर शख्स था।
मेरा बेटा मेरे साथ था।मेरा पहलवान बेटा, मेरा शारीरिक ताकत से लबालब,ठोस शरीर लिए मेरा बेटा मुझे जीसस ने दिया था।क्या नहीं चलाना जानता था वह।मोटरसाइकिल, बुलेट,कार, फोरव्हीलर, ट्रक,बस!सब!!कुछ भी चला लेता था वह।हैवी लाइसेंस था उसके पास।पांच साल दुबई,शारजाह,सऊदी,लीबिया कहां कहां की खाक छानता हुआ मेरा बेटा।पिता की अनुरोध भरी चिठियों की वजह से इंडिया लौट आया था।मैं तेजी से बूढा हो रहा था।फरीदाबाद के मिशन स्कूल की क्लर्की ने मेरी जवानी के दिन चूस लिए थे। मेरी पत्नी मुझे छोड़ जीसस की करुणामयी शरण मे कब की जा चुकी थी।सेंट पीटर का आसमान में उठा हुआ हाथ मुझे न जाने कब स्वर्गीय बाप के पास भेज दे।मैं अभी क्रिस्तानी कब्रिस्तान में सफेद संगमरमर की कब्र में लेटना नहीं चाहता था।मेरे दिन पूरे हो रहे थे।चार नम्बर में पेड़ों के पत्ते बुरी तरह झड़ रहे थे।यह उनका पतझड़ था।मेरा पतझड़ मेरे सिरहाने था।हर साल सर्दी आरंभ होते ही मेरा दमा इतना जोर पकड़ता कि मुझे लगता कि शायद ही उस साल की क्रिसमस देख पाऊं।बेटे को लिखता तो वह स्कूल के टेलीफोन पर कॉल मिलाकर हंसता।
"पापा!अभी मैं इंडिया लौटूंगा।शादी करूंगा और आप पोते को गोद में खिलाओगे।फिर आराम से मरना।अभी आपका टाइम नहीं आया है।"
सच में मेरा टाइम नहीं आया था।बीस साल बाद भी मैं जिंदा हूं।मेरा बेटा मर गया और मैं नामुराद जिंदा हूं।मेरी ताकत निचुड़कर वक्त की नाली में बह गई है।फिर भी जी रहा हूं।
मैं रोहिणी नहीं जाना चाहता था।हालांकि फरीदाबाद भी मुझे कोई खास पसंद नहीं था।मैं तो केरल में अपने समुद्र किनारे के गांव में मलयाली लोगों के बीच रहना चाहता था।समुद्र तट पर बने लाल ईंटों के चर्च के पीछे जहां मछुआरे दिन भर की थकान के बाद शराब पीकर हु हल्लड़ करते थे वहां मैं बनाना चिप्स और केरला प्रोटा की दुकान डालना चाहता था।मेरे बैंक में मेरी कुल जमा पूंजी दस लाख थी।स्कूल का क्वार्टर छोड़कर मैं वहां एक दुकान लेने का इच्छुक था।लेकिन नार्थ में पैदा हुआ मेरा बेटा,केरल के नाम से यूँ चिहुंकता था जैसे लाल कपड़े से सांड!बेटा मेरे अनुरोध पर वापिस लौट आया था अपनी पांच लाख रुपये की बचत के साथ।पंद्रह लाख पास में होने के बएज उसके सपने उड़ान लेने लगे थे।उसके सपनों की उड़ान में मुझे भी शामिल होना पड़ा था।मेरे जैसा शख्स जो किसी का बीस रुपये उधार रह जाये तो रात भर नींद न आए।बेटे के खरीदे तीस लाख रुपये के फ्लैट में आराम से सोता था जो पंद्रह लाख हाउस लोन से खरीदा गया था,जिसकी पंद्रह हजार मासिक क़िस्त जाती थी, और बिल्कुल भी चिंता न करता था।क्योंकि मेरा बेटा जवान था, ताकतवर था और उसके दम पर मैं भी जवान और ताकतवर था।दिन भर दिल्ली की सड़कों पर कान्वेंट की बस दौड़ाने के बाद उसे बीस हजार माह सैलरी मिलती थी।ट्वेंटी थाउजेंड पर मंथ!बीस हजार में से पंद्रह हजार रुपये हाउस लोन की क़िस्त के कट जाते थे।पांच हजार में बड़ी मुश्किल महीना गुजरता था।बेटा खुश था इसलिए पापा भी खुश था,वैसे खुशी की कोई बात नहीं थी।किसी ने मुझे बताया दुकानों पर जाकर सामान देकर आने के साधारण और सीधे काम के दस हजार रुपये महीना मिल सकते हैं।बेटे को बताए बगैर मैं उस काम मे लग गया था।साईकल पर जाने में दम उखड़ता था।बस में जाने पर सामान लेकर चढ़ना उतरना बड़ा कष्टसाध्य था।एक महीना मुश्किल से पूरा हुआ।पांच छुट्टियों के भी पैसे कटे।अगले महीने जा ही न सका क्योंकि बुखार हुआ तो ठीक ही न हुआ।बदन में कमजोरी बहुत थी।रोज सुबह ब्रह्मशक्ति हॉस्पिटल जाकर दवा लेता था।मगर असर कुछ न होता था।अवंतिका की खांचे वाली कॉलोनी में एक ईसाई डॉक्टर की मेहरबानी से रोग ठीक हुआ और जान बची।एक फायदा हुआ ब्रह्मशक्ति की एक नर्स रोज नमस्ते करने लगी।छोटे कद की गोरी पंजाबी नर्स के माता -पिता यीशु की शरण में आए थे वरना उनका पूरा परिवार हिंदू था।उसके बाप ने ईसाई धर्म कबूल कर अपना नाम मक्खन से मैथ्यू रख लिया था।नर्स का नाम सुमन मैथ्यू था।
वह नर्स जिसका नाम सुमन मैथ्यू था,जिसका पिता मैथ्यू एक कनवर्टेड क्रिस्चियन था अपने मूल धर्म संस्कार में मक्खन एक मूर्तिपूजक पंजाबी खत्री हिंदू था,उस मैथ्यू के सुमन के अलावा तीन लड़के और थे।सबसे बड़ा लड़का प्रवीण मैथ्यू सुमन से पंद्रह साल छोटा,उससे छोटा शैल्ली सोलह साल छोटा और सबसे आखिर का दस वर्ष का कीट था।दस साल का कीट मैथ्यू,बारह साल का शैल्ली मैथ्यू,तेरह साल का प्रवीण मैथ्यू और अठाईस साल की सुमन मैथ्यू एक अजीब और आपराधिक किस्म का परिवार नैतिकता के किसी दवाब या कानून के किसी भी डंडे से डरने वाले लोग नहीं थे।ऊपर से उनकी जुबान तीन तार की चाशनी से भी ज्यादा मीठी और दिमाग चार्ल्स शोभराज की दादी से भी ज्यादा तेज था।शातिर और साजिशी इस परिवार के पास अपना खुद का मकान नहीं था।बहुत बरस से किराए पर धक्के खा रहे थे।कोई सीधा मकान मालिक मिलने पर उसके मकान पर ही कब्जा कर लेते थे और एक दो लाख लेकर ही मकान खाली करते थे।लेकिन दिल्ली में सीधे मकान मालिक गंजे के सिर में पाए जाने वाले एकाध बाल की तरह थे,इसलिए उनका हेराफेरी का यह हरबा कुछ खास पैदावार न देता था उल्टा इसमें थप्पड़ मुक्कों से लेकर खाल छिलवाने का खतरा इसमें ज्यादा था।पैसे को ये लोग कुत्ते की तरह सूंघ लेते थे।लेकिन इन बातों को बताने का अब क्या फायदा?मैं जो एक क्रिस्चियन स्कूल में क्लर्क के रूप में जिंदगी गुजार आया था,मुझे ऐसे शातिर लोगों की पहचान कहां थी।मेरे लिए तो यीशु की शरण में आया प्रत्येक व्यक्ति भला और शरीफ था।
सुमन मैथ्यू मेरे नजदीक एक भली लड़की थी जिसने यीशु के सच्चे मार्ग पर चलना मंजूर किया था।यीशु को पाने का रास्ता दुखी,दरिद्र और बीमार लोगों की सेवा सुश्रुषा से होकर जाता है।नर्स बनकर वह यह काम बखूबी कर रही थी।मेरी बीमारी में उसने मेरा इतना ख़्याल रखा था कि मैं तो उसका मुरीद बन गया था।ठीक हो जाने के बाद भी वह मेरा हालचाल लेने,दवा देने या पानी गर्म करके देने जैसे छोटे छोटे काम करके मेरे दिल में जगह बना चुकी थी।मैं यह चाहता था कि मेरे बेटे के लिए मुझे ऐसी ही बहू मिले।मलयाली लोगों से तो मेरी पहचान कम ही थी।पत्नी के मरने और रोहिणी में आकर बसने के बाद यह पहचान खत्म सी ही हो गई थी।यहां या तो पंजाबी थे या जाट, कहीं कहीं उत्तराखंड के लोगों की बस्तियां थी।
रोहिणी के इस जातीय सरंचना के माहौल में मलयाली ईसाई मद्रासी थे।नर्स,कम्पाउण्डर और लेब अस्सिटेंट के पेशे में नमक की एक चुटकी के साथ कबूल किये जाते थे।अन्य क्षेत्रों में इनकी उपस्थिति तभी बर्दाश्त की जाती थी जब कोई चारा न हो।
वह मुझे विल्सन दादा कहती थी।मेरे बेटे को पीटर!मेरे बेटे का नाम साइमन पीटर विल्सन था।मेरी पत्नी कंचन ने उसका नाम इसलिए रखा था क्योंकि वह सेंट पीटर और पॉल के फीस्ट डे 29 जून को पैदा हुआ था।वह खाने में लगातार मछली की मांग करता था इस वजह से मेरी पत्नी का दृढ़ विश्वास था कि वह सेंट पीटर का ही रूप था।मेरी पत्नी हिंदू नहीं थी लेकिन संक्रमित वातावरण की वजह से कर्म फल भोग,पुनर्जन्म और भगवान हनुमान में विश्वास रखती थी।उसे वानर स्वरूप पर भी उतना ही विश्वास था जितना सेंट पीटर के मछुआरे रूप पर।उसके मन मे कहीं दुभाव नहीं था।मैं उसके विचित्र विश्वासों के सामने नतमस्तक था।मुझे घर में सुख,शांति और प्रेम की दरकार थी चाहे वह हनुमान जी की कृपा से आये या सेंट पीटर के पवित्र प्रकाश से।शादी के बाद शुरू के दिनों में जब वह प्रत्येक मंगलवार बड़ी श्रद्धा से हनुमान मंदिर में जाती थी।
मैं अक्सर बाहर खड़ा रहता था।यीशु की संगत के बाद मुझे किसी साथ की जरूरत ही कभी महसूस नहीं हुई। धीरे धीरे मैं नरम पड़ता गया।पत्नी के साथ मंदिर के अंदर जाने लगा।हाथ जोड़कर प्रणाम करने लगा।कहां से मेरे मन में पेगन गॉड के प्रति श्रद्धा आ गई।हालांकि मन हमेशा कहता रहा सब माइथोलॉजी है।जीसस इस पार्ट ऑफ हिस्ट्री हनुमान इस पार्ट ऑफ माइथोलॉजी!दोनों भाव और पत्नी की श्रद्धा साथ साथ चलते रहे।पत्नी के गुजर जाने के बाद बेटे के सकुशल रहने की कामनावश अथवा पत्नी का सानिध्य पाने की इच्छा से हनुमान मंदिर जाता रहा।
अब न पत्नी है न बेटा।अब मैं हनुमान मंदिर भी नहीं जाता।बैठा रहता हूं इस फ्लैट की चौखट पर जो मेरे बेटे ने नहीं खरीदा, जो खरीदा है मेरे बेटे की विधवा ने।इस फ्लैट में मेरा स्थान वही है जो घर के दरवाजे पर बंधे कुत्ते का होता है।भौंक ले,कूँ कूँ कर ले,रहना कुत्ता ही है।
"विल्सन दादा!गाड़ी से जरा सामान लेकर आओ तो।"सुमन ने गाड़ी की चाबी देते हुए कहा तो मेरी तंद्रा टूटी।
टोयोटा इटिओस शीशे की तरह चमक रही थी।सामान के पॉलीथीन उठाये उठाये लिफ्ट के रास्ते आ रहा था एक पैकेट नीचे गिर गया।ब्रांडेड कंडोम का पैक था।वितृष्णा और घृणा के भाव को दबाते हुए पैक को वापिस पॉलीथिन में वापिस रख दिया।आज वो बिहारी पुलिस अफसर आएगा शायद।या कोई और?
संवेदना-शून्य और संज्ञा शून्य होकर मैं हर वो काम यंत्रवत करता हूं जो सुमन कहती है।सुमन जानती है कि मैं सब जानता हूं कि पीटर की मौत की वजह क्या थी।सुमन यह भी जानती है कि मेरे जैसा दब्बू,भीरू और कायर शख्स यह बात किसी से कभी नहीं कहेगा।मैं यह जानता हूं कि सुमन के बिछाए जाल से बचने का एक ही तरीका है मौत।अगर कभी मैं यहां से भाग निकला तो पुलिस मुझे चोरी के इल्जाम में धर दबोचेगी।एक या दो रात डंडे मारेगी।खाली कागजों पर सिग्नेचर करवाएगी।सुमन के कहने पर कोई अनजान आदमी मेरी जमानत देगा और मुझे कुत्ते की तरह फिर जंजीर से बांध कर द्वार पर खड़ा कर दिया जाएगा।पीटर तो मर कर अपनी जान छुड़ा गया।मैं नहीं छुड़ा पाया।मुझे मौत भी तो नहीं आती।मुझे बीस साल पहले ही मर जाना चाहिए था।
बीमारी ठीक होने के बाद सुमन अक्सर मेरे घर आती थी।चाय ऑमलेट तैयार करती,मुझे खिलाती और खुद भी खाती।मैं सोचता रहता, जीसस ने फरिश्ता भेजा है।कितनी परफेक्ट वाइफ रहेगी यह मेरे पीटर के लिए।
पैसे की तंगी की बात न जाने कैसे उसे पता लग गई थी।मेरे मुंह से बेध्यानी में निकली, पीटर ने उससे कह दिया था या उसने खुद ही अंदाजा लगा लिया था।
उसने मुझसे एक दिन पूछा,"विल्सन दादा!अब आप ठीक हो गए हो।कहो तो तुम्हारे लिए कहीं नौकरी की बात चलाऊं?नौकरी भी ऐसी हो जिसमें ज्यादा कुछ करना न हो।बस सुबह से शाम ड्यूटी हो?"
मैं उसे देखता रह गया कैसे यह लड़की मदर मेरी की भांति सब कुछ बगैर कहे जान जाती है।
"जैसा तुम ठीक समझो।"मैंने निवार वाले फौजी पलंग पर लेटते हुए कहा था।
जैसा उसने कहा था वैसी नौकरी उसने ढूंढ दी थी।
दस हजार रुपये महीना तनख्वाह!दो टाइम का खाना!हफ्ते में एक छुट्टी।काम कुछ नहीं।बस चमड़ा मढ़ी कुर्सी पर बैठे रहो।
थक जाओ तो पीछे कमरे में आराम से लेट जाओ।
मातृभूमि प्रॉपर्टी एजेंट का यह आफिस पंद्रह सेक्टर नाले के पास था।विक्रांत मराठा इसका मालिक था।मेरे अलावा दो नौकर और थे।एक ड्राइवर,एक आफिस बॉय!तंदरुस्त नेपाली ड्राइवर दिन भर मालिक को लेकर इधर उधर घूमता रहता था या सफेद रंग की फॉर्ट्यूनर गाड़ी को सूखे कपड़े से रगड़ रगड़ पोंछता रहता था।
एक दिन मालिक की गाड़ी से फाइलें निकालते समय मेरी निगाह अनायास सीट के नीचे दबी रिवाल्वर पर पड़ी।मेरी रीढ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई।उस दिन मंगलवार था।मैं हनुमान मंदिर गया और बहुत देर वहां बैठा रहा।हाथ जोड़कर हनुमानजी से पूछता रहा,"बताओ संकटमोचन!मैं क्या करूँ!मैं यह नौकरी छोड़ दूं?"
हनुमान जी सिंदूर से पुता मुंह लिए दूसरी तरफ देखते रहे। मैं कोई निर्णय नहीं कर पाया।मुझे लगा हनुमान जी मुझसे नाराज है क्योंकि मैं उन्हें मैईथोलोजिकल मानता हूं हिस्टोरिकल नहीं।कंचन होती तो वे उसे जरूर जवाब देते।
पीटर खुश था कि सुमन ने उसके डिअर पापा का ख्याल रखा है और पापा को अच्छा,आरामदायक जॉब दिलवाया है।आजकल कौन किसके लिए इतना करता है।सुमन इज ए नोबल सोल!
मैने नौकरी नहीं छोड़ी।क्योंकि अगर नौकरी छोड़ भी देता तब भी वही होना था जो हुआ।सुमन कोई छोटी मोटी हस्ती नहीं थी,वह मुझे कहीं
नौकरी न करने देती।उसने जो प्यादा जहां फिट करना होता था उसे वहीं फिट करके मानती थी।उसने सोचा रखा था कि मराठा कब मरेगा'मराठा तभी मरा!
एक दिन सुमन मराठा के ऑफिस में आकर मुझसे बोली,"विल्सन दादा!मराठा सेठ कहां गया?"
"बेटी!मुझे मालूम नहीं!"
"मैं कोई तुम्हारी बेटी वेटी नहीं हूं।मुझे नाम से बोला करो!"
"सॉरी!"
"कोई बात नही,मराठा आये तो उसे बेडरूम में भेज देना!"
"जी!"
मराठा सेठ आया वैसे ही जैसे रोज आता।मोबाइल फोन पर बात करता करता सीट में आ धंसा।आधा घंटा तक उसकी बात ही खत्म न हुई।
इस बीच उसने एक गिलास जूस और एक सैंडविच भी मंगा लिया।
फोन बंद करके रखा तब मुझे मौका मिला कि कह सकूं सुमन बेडरूम में है और उसके आने का इंतजार कर रही है।मराठा ने एक बारगी मेरे चेहरे की तरफ देखा फिर सैंडविच खाने में मशगूल हो गया।मुझे लगातार देखते पाकर बोला,"फिक्र क्यों करते हो विल्सन दादा।साली रंडी पूरी पेमेंट लेती है!करने दो इंतजार हरामजादी को।"
मैं भावहीन चेहरा बनाये खड़ा रहा।
मराठा उठा।उसने बेल्ट उतारी, फोन वहीं छोड़ा और मुझसे बोला,"दादा!कोई फोन आये तो अटेंड करना।अर्जेंट हो तभी मुझे देना।"
यह कहकर वह बेडरूम में घुस गया।
पंद्रह मिनट में ही अर्जेंट फोन आ गया।कमिश्नर के आफिस से कोई सक्सेना साहब था।किसी फ़ाइल का पूछ रहा था।
और कह रहा था,इट्स अर्जेंट!
बेडरूम का दरवाजा बजाने के लिए जैसे ही मैंने हाथ लगाया,दरवाजा पूरा खुल गया।सामने बेड पर निर्वस्त्र मराठा सेठ पर नंगी सुमन चढ़ी हुई थी।न सिर्फ चढ़ी हुई थी बल्कि उसके हाथों का सहारा लिए कूद रही थी आह आह की आवाज भी निकाल रही थी।
पहले सुमन ने मुझे देखा और मां की गाली दी।
बाद में मराठा मुझे देखकर मुस्कराया,"दादा,बाद में!सुमन मुझे जन्नत की सैर करा रही है।
मैंने झेंप कर दरवाजा बंद कर दिया।मारे उत्तेजना के मेरा बुरा हाल था।शर्मिंदगी से मेरा हलक सूख गया था।
आधे घंटे से भी थोड़ा बाद सुमन बाहर निकली और गुस्से से फुंफकारती हुई बोली,"विल्सन दादा!यू ब्लडी फूल!बुड्ढा हो गया।तुझे इतना नहीं मालूम!बेडरूम में जब एक आदमी,एक औरत हो तो दरवाजा नॉक करना चाहिए होता है।"
"सॉरी!वेरी सॉरी!बट मैने तो नॉक करने के लिए ही डोर पर हाथ रखा था।मुझे क्या मालूम अपने आप खुल जायेगा।"
पीछे से मराठा सेठ भी निकल आया था।
"क्यों बुड्ढे के पीछे पड़ गई!बुड्ढा को भी लाइफ एन्जॉय करना मांगता!"वह हंसते हुए बोला!
सुमन चुप हो गई थी लेकिन उसके चेहरे की नाराजगी नहीं गई थी।
"जल्दी पेमेंट दो।मुझे कहीं और जाना है।ज्यादा लेट कर दिया।"
"दादा!इसको पंद्रह सौ रुपये दो!"
सुमन पंद्रह सौ लेकर चली गई।मेरे मन में उसके लिए जो भी सम्मान था सब तिरोहित हो गया था।
जीसस क्राइस्ट!तेरे बंदों में कितने गुनाहगार आते जा रहे हैं।तुझे इनके गुनाहों के लिए फिर से सलीब पर चढ़ना होगा,यह सोचते हुए मैंने छाती पर क्रॉस का चिन्ह बनाया तो मराठा फिर से हंस पड़ा।
मराठा की पत्नी बड़ी खूबसूरत थी,ऐसा मैंने सुना था।उसे देखा कभी नहीं था।वह कभी दुकान पर आई नहीं।मराठा के घर कभी जाने का अवसर नहीं मिला।मैंने उसकी पत्नी को तब देखा जब मराठा लाश बना हुआ दुकान के फर्श पर औंधा पड़ा था।उसके बगल में वही रिवॉल्वर पड़ी थी जो मैंने एक दिन गाड़ी में देखी थी।उसके कान के पास एक बड़ा छेद था जिसमें से खून निकल कर कालीन पर जम गया था।सूखे काले खून में से एक अजीब सी गंध उठ रही थी।पुलिस आई खानापूर्ति करके चली गईं।मराठा को न पैसे की तंगी थी, न उसे कोई घरेलू समस्या ही।ऐसा आदमी आत्महत्या क्यों करेगा।पुलिस ने अपनी रिपोर्ट यही बनाई।इस रिपोर्ट को बनवाने में सुमन का एक बड़ा योगदान था।वह मराठा की पेड़ कॉलगर्ल थी या इससे भी ज्यादा कुछ और,मुझे कौन बताता।
मराठा के मरने के बाद दुकान यथावत चलती रही।मराठा की पत्नी घर पर ही रही।सुमन ने फर्म को बतौर मैनेजर जॉइन कर लिया।अब मैं सुमन के मातहत था।मैं जॉब छोड़कर नहीं गया इस वफादारी के बदले मेरी तनख्वाह पांच हजार रुपये बढ़ा दी गई।
बच्चों के आने की इंतजार में मैं सोफे पर बैठा सोच रहा हूं।मेड खाना बनाकर रख गई है।बच्चे आते ही बोलेंगे,"विल्सन दादा खाना लगाओ।बड़ी भूख लगी है।"
सोलह साल की जाह्नवी दसवीं में है और बारह साल का अंशु सातवीं क्लास में है।
जाह्नवी और अंशु उसके पीटर के बच्चे हैं।पीटर जब तक जिंदा रहा यह भरा पूरा घर हमेशा ठहाकों से गूंजता रहा।यू पी ए सरकार का दूसरा पंचवर्षीय कार्यकाल था।प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे थे।पैसा चारों तरफ से चला आ रहा था।ऐसा लगता था हमेशा ऐसा ही रहेगा।लेकिन सरकार बदलते ही प्रॉपर्टी की मार्केट की मजबूती दरकने लगी।खरीदा हुआ माल फंसने लगा।साहूकारी ब्याज सिर पर खड़ा रहता।पीटर हमेशा परेशान रहता।
आप सोचते होंगे कि पीटर तो बस चालक था वह इस धंधे में कैसे आया।
वह आया नहीं।सुमन उसे लाई।कम से कम पचास लाख कीमत की दुकान और मातृभूमि प्रोपर्टी एजेंट फर्म की रेपुटेशन और गुडविल सुमन ने मराठा की अनजान और सरल स्वभाव की पत्नी को शीशे में उतारकर सिर्फ छह लाख में खरीद ली।खरीद के इस सौदे में उसने बिचोलिये की भूमिका अदा की और मराठा की पत्नी से बारह हजार कमीशन भी वसूल कर लिया।
सुमन एक दिन ऑफिस आते ही उससे बोली,"बधाई हो विल्सन दादा।तुम्हारी मेहनत रंग लाई।आज से तुम इस फर्म के नए मालिक हो।लो यहां सिग्नेचर करो।"उसने एक एग्रीमेंट आगे बढ़ाया।मैंने उस पर चुपचाप दस्तखत करके कागज वापिस कर दिए।मेरे से उसने एक ब्लेंक चेक मांगा।मैंने दे दिया।सुमन ने तीन लाख रुपए रकम उस चेक में लिखी।
मेरे एकाउंट में तो सिर्फ दस हजार रुपये थे।
एक दूसरा तीन लाख रुपए का चेक जो पीटर के एकाउंट का था वह भी नत्थी कर दिया गया।
सुमन ने मुझसे कहा,"विल्सन दादा।अब तुम इस फर्म के मालिक हो।मराठा सेठ की गद्दी पर तुम बैठो।"
मैं सकुचाते हुए बैठ तो गया।लेकिन मुझे समझ नहीं आया कि हो क्या रहा है।
सुमन ने हम दोनों के एकाउंट में तीन तीन लाख कैश डाले और हमें मालिक बनाकर खुद मैनेजर ही बनी रही।कागजों में एक मुलाजिम।वैसे पूरी मालकिन!
मुझे कुछ समझ नहीं आया।
समझ उस दिन आया जिस दिन सुमन और पीटर कोर्ट मैरिज करके मेरे सामने आ खड़े हुए।मुझे मौका भी न मिला कि मैं पीटर को कुछ समझा सकूं।
सुमन ने छह लाख रुपये में हम दोनों को खरीदा था।
पीटर फर्म का हिस्सा बन सके इसलिए नेपाली गोरखा ड्राइवर हटा दिया गया।जाते जाते वह मुझे बता गया,"विल्सन दादा!यह औरत बहुत खतरनाक है।तुम और तुम्हारा बेटा पीटर इसके जाल में फंस चुके हो।एक दिन इस औरत ने मुझे भी फांस लिया था।मैंने थोड़े से पैसे और सेक्स के लालच में मराठा जैसे अच्छे इंसान का क़त्ल कर दिया!
अखबार में आने वाली क्रॉस वर्ड पजल का आखिरी शब्द भी पूरा हो गया था।
मेने अपने बेटे से कई बार कहना चाहा कि पीटर जितना दूर हो सकता है इस औरत से दूर चला जा।लेकिन होनी ने कोई मौका ही न दिया।
वह दिन मुझे अब भी याद है जब पीटर हताश और निराश मेरे पास आया था,उसने पी रखी थी,"पापा!बाजार का कर्ज बहुत है।ब्याज भी हर महीने टाइम से नहीं जाता।ऊपर से यह औरत मेरी पल पल बेइज्जती करती है।आई एम टायर्ड पापा!आई वांट टू डाई!!"
मैं उसे असलियत से वाकिफ़ कराना चाहता था।उसे बताना चाहता था कि उस की मेहनत की कमाई कहां गई।लेकिन शराब पिया आदमी बात कहां सुनता है।वह तो बस अपनी ही अपनी कहता है।
सुमन मैथ्यू के तीनों भाइयों ने ग्रेजुएशन कर ली।अपने अपने फ्लैट भी ले लिया।उनकी शादियां धूम धाम से पैसे वाले घरों में हुई।वह सब पीटर की कमाई से ही तो हुआ।जो कुछ बचा वह सुमन ने जाने कौन से गहरे कुएं में छुपा कर रख लिया।
दोनों बच्चे बेहतरीन स्कूल में पढ़ रहे थे।उनकी फीस के लिए भी कर्ज उठाया जा रहा था।एक एक लाख रुपये पर पर्सन के कश्मीर और केरल के टूर पैकेज बुक किये जाते थे।जिसमें सुमन के साथ दोनों बच्चे और सुमन के मायके वाले जाते थे।पीछे पीटर शराब पीकर टुन्न रहता था।बेडरूम में,बाथरूम में उल्टियां करता।मेरी गोदी में सिर रखकर रोता।लेकिन मेरी बात न सुनता।
उसकी जासूस मेड चौबीस घंटे सिर पर सवार रहती।उसके सामने पीटर से कुछ कहना भी मुश्किल था।
सुमन ने मेरा फ्लैट भी बिकवा दिया था।बड़ा फ्लैट सुमन ने पीटर के साथ जॉइंट नेम पर लिया था।
मैं सब देखता रहा था।क्यों,क्या मैं अपनी मौत से डरता था।नहीं,फिर मैंने क्यों विरोध नहीं किया।क्या मुझे सुमन के गर्भ से पैदा हुए पीटर के बच्चों से मोह हो गया था।
पीटर पहले शराबी नहीं था।सुमन ने ही उसे पीना सिखाया था।बड़े बड़े इन्वेस्टर्स को पटाने के लिए उनके साथ क्लब और बार वगैरह में पीनी ही पड़ती है,यह कह कहकर उसने बड़ी होशियारी से योजना बनाकर पीटर को शराब की तरफ धकेला था।या यह सिर्फ मेरा वहम था।पीटर खुद हाई सोसायटी में मूव करना चाहता था।सुमन ने तो महज उसकी इस हवस को हवा दी थी।उसे शक्तिशाली पीटर की दरकार थी क्योंकि चाहे कितनी भी शातिर दिमाग औरत हो उसे ताकतवर मर्द के साथ की जरूरत होती है।पीटर को बुरी तरह इस्तेमाल किया गया था।शराबी और कंगाल पीटर उसके किसी काम का नहीं था।इसलिए उसे मर जाने दिया उसने।
सोफे पर बैठे बैठे जाने कब आंख लग गई।नींद में ही मेरी आँखों से आंसू झर रहे थे झर झर!
दो बार डोर बेल बजी।
ट्रिन ट्रिन त्रीं त्रीं त्रीsssssट्रिन ट्रिन
शायद बच्चे आ गए।
मैंने दरवाजा खोला है।
बच्चे रेस लगाते घर में घुसे हैं।
लड़की शांत होकर सोफे पर बैठी है।
अंशु अभी भी मुंह खोले हांफ रहा है।
ठीक इसकी तरह ही पीटर जब इस जितना था हांफ़ा करता था।
पीटर की मां कितनी चिंतित रहती थी।
हर रोज प्रेयर में मदर मेरी से अपने चाइल्ड की तंदरुस्ती की दुआ मांगती थी।
मदर मेरी की कृपा से बचपन में कमजोर और बीमार पीटर स्वस्थ और ताकतवर युवा के रूप में उभरा था।
फिर अचानक एक दिन पीटर की मां मर गई।
उसके जाते ही शायद मदर मेरी की कृपा भी विलुप्त हो गई।
तंदरुस्त पीटर,हट्टा कट्टा पीटर शराबी होकर, कंगाल होकर,एक औरत के धोखे का शिकार पीटर सुसाइड कर गया।
और मैं उसका पिता कुछ न कर पाया।
क्या मैं डर गया था।
नहीं!
विल्सन दादा,तुम अभी भी उस औरत के खौफ के साये में जी रहे हो।
नहीं!
अगर यह सच नहीं है तो अंशु को गला दबा कर मार दो।
उस औरत ने तुम्हारे बेटे को मारा है,तुम उसके बेटे को मार दो।
नहीं! नहीं !! अंशु मेरे पीटर का बच्चा है।मेरा अपना खून!!
उसकी मां कमीनी है इसमें इसका क्या कसूर!
लड़की सोफे से उठकर आती है।
"विल्सन दादा!आप रो रहे हो।"लड़की ने उसके आंसू पोंछे।
"हां बेटी!अंशु को देखकर तुम्हारे पापा की याद आ गई।ही लुक्स लाइक पीटर, माय सन!"
"पर मोम्मी तो कहती है मैं पापा जैसी दिखती हूं।"जाह्नवी बोली तो मैंने उसके चेहरे पर निगाह डाली।
शी इज राइट!लड़की का चेहरा हू ब हू पीटर का चेहरा है।
"क्या तुम्हारी मोम्मी पीटर को याद करती है।"
"हां!जब भी गुस्सा होती हैं या परेशान होती हैं।पापा को खूब गाली देती हैं।"जाह्नवी मासूमियत से बोली।
"क्यों!पीटर ने उसका क्या बिगाड़ा!"मुझे गुस्सा आ गया।
"पता नहीं!कहती है कि, कॉवर्ड मुझे छोड़कर भाग गया!शराबी कमीना!!उसे हेल में भी जगह न मिले।"जाह्नवी का ऐसा कहना मुझे सन्न कर गया।
"चलो बच्चो!डाइनिंग टेबल पर आ जाओ।मैं खाना लगाता हूं।"मैंने बाद बदलने की गरज से कहा।
"हमने मैक डी पर बर्गर खाया है।मैं खाना नहीं खाऊंगा!"अंशु नकियाती और हांफती आवाज में बोला।शायद उसकी नाक बंद हो गई है।"
"मैक डी क्यों गए थे?"
"जाह्नवी के ब्वॉयफ्रेंड ने पार्टी दी थी।"
मैंने जाह्नवी को देखा।उसने निगाहें झुका ली।इस बच्ची का बॉयफ्रेंड भी है?
हो भी सकता है!
मैंने क्या करना!
मैं जाकर बिल्डिंग के बाहर बैठे बूढ़ों के दल में शामिल हो जाता हूं।
उनके परिवारों के अंतहीन किस्से सुनने लगता हूं।
इसके सिवा चारा भी क्या है।