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नियति

पलाश......... पलाश........कहाँ जा रहे हो?.........अपनी केया को बीच राह में छोड़ कर..........वापिस आजाओ.........मत जाओ मुझसे दूर......पलाश........और एक ह्रदय विदारक चीख के साथ पलाश को पुकारते हुए केया अचानक नींद से जग गई थी........उसका एक हाथ आगे बढ़ा हुआ था, पलाश को बुलाते हुए, और पसीने से नहाई हुई, वह हांफती हुई उठ कर बैठ गई थी. उसका चेहरा आंसुओं से तर था. केया ने अभी अभी अपने पति पलाश को सपने में देखा था, वह बीच नदी में एक पानी के जहाज पर खड़ा हुआ उससे दूर जा रहा था, उसने पिछली वैवाहिक वर्षगांठ पर उसके द्वारा उसे भेंट किया हुआ नया रेशम का कुरता पजामा पहना हुआ था और उसके चेहरे पर निर्लिप्त उदासीनता का भाव था मानो उसे केया की चिल्लाहट सुनाई नहीं दे रही थी.

केया ने अपने आंसू पोंछ कर एक गिलास पानी पिया था और फिर वह वापिस अपने बिस्तर पर लेट गई थी. पलाश के जाने के बाद से वह तिल तिल कर उसके बिछोह की आग में जल रही थी. उफ़ विवाह के बीस खुशहाल वर्षों के बाद उसकी शादी शुदा जिंदगी को किसकी नजर लग गई ? और तनिक सुबकते हुए कब वह अधजगी, अधसोई अनगिनत नैराश्यपूर्ण विचारों के भंवर में डगमग हिचकोले खाती हुई डूबने उतराने लगी थी, उसे स्वयं को भान तक न हुआ था.

बीस वर्षों पहले केया और पलाश का प्रेम विवाह हुआ था. दोनों ने राजस्थान प्रशासकीय सेवा की कोचिंग साथ साथ की थी. और वहीँ दोनों एक दुसरे के निकट आये थे. दोनों ही एक दूसरे की बौद्धिकता से परिपूर्ण, प्रभावशाली व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे. छै: माह की कोचिंग के दौरान दोनों में नजदीकियां इतनी बढ़ गई थीं कि सुबह सवेरे जब तक दोनों एक दुसरे से मिल नहीं लेते, उनको चैन न आता. पलाश एक मंजा हुआ कहानीकार था. मानवीय संवेदनाओं और जज्बातों से सशक्त शब्दों का जामा पहनाते हुए वह किसी भी घटनाक्रम को अपनी समर्थ लेखनी से उस भाव प्रवणता से कागज पर उकेरता कि लोग उसे पढ़ कर मंत्र मुग्ध हो जाते. केया उसकी हितैषी पाठिका थी और हरेक कहानी की सटीक आलोचना करने में माहिर. जैसे ही पलाश कोई कहानी पूरी करता, वह भागा भागा केया के पास उसकी विश्लेषणात्मक आलोचना के लिए आता और दोनों उसपर विस्तृत चर्चा करते। और कब वे दोनों काल्पनिक पात्रों की भावनाओं पर विचार विमर्श करते करते एक दूसरे की कोमलतम भावनाओं के केन्द्रबिन्दु बन गए थे, दोनों को इसका अहसास तक न हुआ था. समय आने पर दोनों ने अपने इस बेनाम रिश्ते को विवाह के बंधन से परिभाषित किया था.

काल का निर्बाध निर्झर कल कल करता बहता गया था. अपने परिचय क्षेत्र में पलाश और केया की जोड़ी आदर्श दंपत्ति के रूप में जानी जाती थी. एक के मुंह से बात निकलने भर की देर होती और अगला उसे पलक झपकते ही पूरी कर देता. पलाश केया को पलकों पर सहेज कर रखता. आये दिन उसके लिए मंहगे मंहगे तोहफे भेंट में लाता. समय के साथ दो प्यारी नन्ही कलियों ने केया की गोद भरी थी. पलाश और केया दोनों ही अपनी बेटियों के लालन पालन में कोई लापरवाही नहीं चाहते थे. इस लिए बड़ी बेटी पीहू के गोद में आते ही केया ने बिना कुछ अधिक सोचे समझे अपनी इच्छा से अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था और खुशी खुशी अपने आप को घर और बच्चों को समर्पित कर दिया था.

कहते हैं न खुशियाँ वक्त को पंखों की सौगात देती हैं तो जीवन के दुख बैसखियों की. पलाश केया के वैवाहिक जीवन के बीस वर्ष अनगिनत छोटी बड़ी खुशियों की नियामतों के पंख लगा कर मानो पलक झपकते ही बीत गए थे.लेकिन विवाह का इक्कीसवाँ वर्ष केया के जीवन का अभिशप्त वर्ष साबित हुआ था. विवाह की बीसवीं वर्षगांठ दोनों ने बहुत धूमधाम से एक पाँच सितारा होटल में पार्टी दे कर मनाई थी.उन्ही दिनों पलाश की मित्रता एक प्रमुख समाचारपत्र की वरिष्ठ संपादिका से हुई थी. चपला यथा नाम यथा गुण थी.नित नए पुरुषों से मित्रता कर उनसे नज़दीकियाँ बढ़ाना उसका प्रिय शगल था. संदली गोरा रंग, गढ़े हुए मोहक नाक नक्श और पतली छरहरी लड़कियों मानिंद देहयष्टि की स्वामिनी थी वह. चेहरे से उम्र का पता न चलता. इतने जतन से स्वयं को हर वक्त सजा संवार कर रखती थी कि तीस बत्तीस वर्षों से अधिक की न लगती. लेकिन ध्यान से देखने पर चेहरे और गरदन पर पड़ी झुर्रियां एवं चेहरे कि परिपक्वता उसकी प्रौदावस्था की ओर अग्रसर यौवन का राज खोलती थीं. भोला पलाश चपला के सतत आमंत्रणपूर्ण रवैये को नजरंदाज नहीं कर सका था और कब दोनों मैत्री की सीमा लांघ अंतरंग नज़दीकियों की भूलभुलैया में भटकने लगे थे, उसे एहसास तक न हुआ था. घरेलू, अपने रखरखाव, साज सज्जा के प्रति नितांत उदासीन शरीर से भारी, मसालों कि गंध से महकती गमकती पत्नी की तुलना में शोख, चंचल बात बात पर हंसने वाली चपला उसे अत्यंत आकर्षक एवं लुभावनी लगी थी. उसकी अनूठी, सूझबूझ वाला भरपूर बौद्धिकता से परिपूर्ण हाजिरजवाब, दिलकश व्यक्तित्व उसे बड़ी शिद्दत से अपनी ओर खींचता गया था. साहित्य, राजनीति, सिनेमा, कला, इन सभी पर चपला की बहुत अच्छी पकड़ थी। समान रुचि और शौक के चलते दोनों समय के साथ अत्यंत नजदीक आगए थे. और बीस वर्षों से वफादारी से एकपत्नीव्रत निभाता पलाश कब अवैध सम्बन्धों की गहरी दलदल में धँसता चला गया था, उसे पता न चला था. कायनात भी मानो केया के विरुद्ध षड्यंत्र रचने में शामिल हो गई थी. दोनों के संबंध अंतरंग होने के साथ साथ पलाश का स्थानांतरण जोधपुर हो गया था जहां शुरू में तो चपला हर शनिवार रविवार पहुँच जाती थी पलाश के साथ समय बिताने। फिर जब उसने देखा कि पलाश पूरी तरह उसके जाल में फंस गया है, अपने बीवी बच्चों को पूरीतरह बिसराते हुए, चपला ने अपना स्थानांतरण भी जोधपुर करवा लिया था. और दोनों साथ साथ एक छत के नीचे रहने लगे थे.

इस पूरे प्रकरण के दौरान भोली केया को वर्ष भर तक तो पति पर कुछ संदेह ही नहीं हुआ था. लेकिन जब केया के शुभचिंतक परिचितों ने पलाश और चपला के जगजाहिर रिश्ते को केया के सामने लाना शुरू किया, प्रारम्भ में तो केया यह विश्वास ही नहीं कर पायी. बीस वर्षों से उसके प्रति पूर्ण रूप से समर्पित, एकनिष्ठ पति कैसे अचानक बीस वर्षों का जन्म जन्मांतर का रिश्ता एक झटके में तोड़ सकता है, उसकी समझ से परे था। और जब तक वह सोचती, कि परिस्थियों के इस मोड़ पर प्रारब्ध के इस क्रूर आघात का प्रतिरोध कैसे किया जाए, पलाश उससे दूर जोधपुर चला गया था. पलाश से बातें कर शायद इस स्थिति का कोई हल निकले यह सोच कर केया जोधपुर गई थी और उसने उससे कहा था,' पलाश एक चरित्रहीन औरत के लिए तुमने मुझे छोड़ा, अपने बच्चों को छोड़ा, यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. अकल लगा कर सोचो जरा, एक बाजारू औरत के लिए अपने बीवी बच्चों को छोड़ना कहाँ की समझदारी है? तुम उस जैसी औरत के लिए जी बहलाने के साधन मात्र हो। तुमसे जी ऊबने पर यह तुम्हें छोड़ने में एक मिनिट नहीं लगाएगी। और तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. तुम मुझे और बच्चों को हमेशा के लिए खो चुके होगे। अगर तुम में थोड़ा सा भी विवेक है तो तुम अभी इसी वक्त मेरे साथ अपने घर चलो.अगर आज मैं तुम्हारी चौखट से तुम्हारे बिना गई तो याद रखना, तुम मुझे हमेशा के लिए खो दोगे.'

लेकिन पलाश ने जवाब में उससे नजरें चुराते हुए महज यह कहा था-'केया, मेरा तुम्हारा साथ बस यहीं तक का था. अब में बाकी की जिंदगी चपला के साथ गुजरना चाहता हूँ.'

और उस की बात का समर्थन करते हुए चपला बोल पड़ी थी, पलाश वयस्क है, अपन भला बुरा समझता है, जब उसने एक बार कह दिया कि वह बाकी

की जिंदगी मेरे साथ बिताना चाहता है तो मान क्यो नहीं लेती कि तुम उसे खो चुकी हो. अब वह तुम्हारे पास कभी नहीं लौटेगा,कभी नहीं.'

पति की उसकी आँखों के सामने दूसरी औरत के साथ जिंदगी गुजारने की चाहत के बेशरम ऐलान ने स्वाभिमानी केया को भीतर तक तोड़ दिया था। और दूसरी बार उसके पास जाकर उससे लौटने के लिए गिड़गिड़ाने से रोक दिया था। चपला को आग्नेय नेत्रों से घूरते हुए वह उसकी दहलीज से हताश, खाली हाथ वापिस आ गई थी। उस दिन उसने मन ही मन प्रण किया था कि अब वह पति की उस कलंकित चौखट को दोबारा कभी नहीं लांघेगी।

वह जानती थी कि चपला एक भ्रष्ट, चरित्रहीन औरत है और पलाश से मन भर जाने पर वह उसका साथ अवश्य छोड़ देगी। और उसी क्षण मन ही मन संकल्प किया था कि यदि भविष्य में पलाश कभी सद्बुद्धि आने पर वापिस उसके पास आया भी तो वह उसे कतई क्षमा नहीं करेगी.

घर लौट कर उसने अपनी दोनों बेटियों को गले लगाया था और उनसे कहा था -'बेटा , पापा हमें छोड़ कर कहीं चले गए हैं. ममा से वादा करो की कभी उन्हें याद कर दुखी नहीं होगी और न ही रोओगी. अब तुम्हारा सिर्फ एक लक्ष्य होना चाहिए और वह है अच्छी तरह से पढ़ाई करना'

अब केया की ज़िदगी का सिर्फ एक मकसद था और वह था अपनी दोनों बेटियों की अच्छी तरह से परवरिश कर उन्हें नेक इंसान बनाना और किसी प्रतिष्ठित मुकाम तक पहुंचाना.

केया अब अपना अधिकांश वक्त अपनी दोनों बेटियों की देखभाल में गुजारती है. उनके साथ उनकी छोटी छोटी खुशियाँ और समस्याएँ साझा करती है. उनकी हर छोटी बड़ी बात में शामिल होती है. बेटियों के साथ व्यस्त रह वह पलाश के साथबिताई गई जिंदगी के सबसेखूबसूरत पलों की यादों को भूलने का असफल प्रयास कर रही थी. लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिल रही थी. उसे पलाश के साथ की, उसके सहारे की, उसकी अपने इर्द गिर्द उपस्थिति की आदत पड़ गई थी.जितना वह उसकी यादों से दूर भागती, पलाश की यादें उतनी शिद्दत से उसका पीछा करतीं .

कुल मिला कर पलाश से दूर होने के बाद का एक वर्ष अत्यंत यंत्रणादायी रहा था. सोते जागते, उठते बैठते हर जगह उसे पलाश की छाया का अनुभव होता और वह उसकी याद में पल पल तड़पती.

लेकिन कहते हैं न, समय बड़े से बड़े दर्द की दवा का काम करता है. धीरे धीरे वक्त के साथ वह पलाश के सबल कंधों के संबल के बिना अकेले अपने दम पर लड़खड़ाते ही सही, दुनिया के मेले में कदम बढ़ाना सीख रही थी। अपनी मानसिक कशमकश से धीरे धीरे बाहर निकल रही थी। और स्वयं उसे अपनी ताकत का अंदाजा नहीं था. पलाश से अलगाव की आग में तप कर पुरानी, पलाश पर एक एक सांस के लिए निर्भर केया के स्थान पर एक नई केया का जन्म हुआ था जो अकेले अपनी स्वतंत्र अस्मिता के दम पर जिंदगी की दुर्वह चुनौतियों का सामना करने में सक्षम थी। बेटियों के स्कूल जाने पर वह बिलकुल अकेली हो जाती. उसने दो तीन कोचिंग संस्थानों में पढ़ना शुरू कर दिया था.घर पर वह बच्चों के ट्यूशन लेती.एक मिनिट भी खाली न बैठती.हर वक्त व्यस्त रहती.बाकी वक्त वह बेटियों के साथ बिताती और भरसक कोशिश करती कि उन्हें किसी कदम पर पिता की कमी न खले.उन्हें खुद होटल, सिनेमा, घूमने फिरने मौज मनोरंजन के लिए ले जाती.

जिस घर में वह रह रही थी वह पलाश का पैतृक घर था.पलाश के सामने उसका परिवार ऊपर कि मंजिल पर रहता था और उसके माता पिताऔर एक भाई भाभी का परिवार नीचे की मंजिल पर रहता था.पलाश अक्सर सप्ताहांत पर अपने माता पिता से मिलने आता. लेकिन उनसे मिलकर उलटे पाँव लौट जाता. बेटियों का मोह भी उसे ऊपर तक खींच कर न लापाता. केया समझ न पाई थी कि उससे ऐसा क्या अपराध हुआ जो पलाश उसे पूरी तरह से भुला बैठा था. कभी छोटी बेटी जिद्द कर पिता को फोन लगाती तो भी पलाश उससे बिलकुल बातें न करता. लाइन काट देता.

समय निर्बाध गति से बीतता गया था. देखते देखते केया की बेटियाँ बड़ी हो गई थीं. बड़ी बेटी का रुझान मेडीकल में था. वह मेडिकल की पढ़ाई कर रही थी. छोटी बेटी देश के शीर्षस्थ संस्थान से फैशन डिजाइनिंग कर रही थी.

उस दिन दोनों बेटियाँ अपने अपने कालेज गई हुई थीं कि अर्ध चैतन्य अवस्था में केया को लगा था, पलाश उसके सामने खड़ा था. उसने संज्ञान हो कर सामने देखा था, पलाश वास्तव में उसके सामने था.कि तभी वह बोला था,'केया मुझसे बहुत भारी भूल हुई, मैंने एक दुश्चरित्र औरत के लिए तुम्हें छोड़ा, अपनी बेटियों को छोड़ा. मैं पहले उसे पहचान न पाया था, लेकिन अब पहचान गया हूँ. प्लीज मुझे माफ कर दो. मैं जानता हूँ, मैं माफी के लायक नहीं हूँ, लेकिन फिर भी अगर तुमने मुझे माफ़ कर दिया तो मेरे सीने से एक बहुत बड़ा बोझ उतर जाएगा.

यूं अचानक पलाश को अपने सामने देख कर केया विस्मित हो गई थी. लेकिन फिर संभावित स्थिति का अंदाजा लगाते हुए वह उससे बोली थी, 'क्यों, चपला ने अपनी चपलता दिखा ही दी आखिरकार. किस के साथ चली गई अब वह तुम्हें छोड़ कर? तुम मुझसे माफ़ी की अपेक्षा करते हो, किस किस से लिए माफ़ी दूँ तुम्हें पलाश? तुमने मेरी दुधमुंही बेटियों से पिता का साया छीन लिया, मेरे कन्धों को बेसहारा कर दिया, नही, नहीं, तुम माफ़ी के कतई लायक नहीं हो. मैं तुम्हें कभी माफ़ नहीं करूंगी, कभी नहीं. मैंने अब तुम्हारे बिना जीना सीख लिया है, चले जाओ यहाँ से और दोबारा अब कभी मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना.

पलाश के माता पिता, भाई भाभी को शायद उसके आने की खबर लग गई थी. सभी ऊपर आकर मौन साधे पलाश और केया के मध्य संवाद सुन रहे थे. कि तभी पलाश की मां बोल पड़ीथी , बेटी, माफ़ कर दे पलाश को, वह अपनी गलती मान रहा है, और तुझे इससे अधिक और क्या चाहिए? घर की इज़्ज़त दबी ढकी रहेगी, बेटा. बेटियों की शादी करनी है तुझे. उसे अपना ले बेटा और बाकी की जिंदगी सुख से काट. कि तभी पलाश के पिता बोल पड़े थे, 'नहीं, नहीं बहू, इस का अपराध अक्षम्य है, इसे माफ़ करने की भूल कतई न करना, यह तो फिर किसी दूसरी के मिलने पर तुम्हें छोड़ कर चला जायेगा, यह तो इसकी फितरत में है.'

'नहीं पिताजी, मुझे अपनी गलती की बहुत सजा मिल चुकी, आप सब लोग मुझे माफ़ कर दीजिये.'

कि तभी केया बोल पड़ी थी, 'पलाश यह घर तुम्हारा है, तुम्हें इस घर में रहने से तो मैं तुम्हें नहीं रोक सकती तुम बेशक इस मंजिल के अलावा कही भी रह सकते हो, लेकिन याद रखना, मुझे अपन शक्ल दोबारा भूल कर भी मत दिखाना.

की तभी केया की बेटियां वहां आ गईं थीं. पलाश ने उन्हें देख का कहा था, 'मैं वापिस आ गया हूँ, तुम दोनों के पास, मुझे माफ़ कर दो बेटा, मेरे कदम बहक गए थे, मैं अब अपनी सारी जिंदगी तुम लोगों के साथ बिताना चाहता हूँ, तुम दोनों और तुम्हारी मां के साथ'

की तभी छोटी बेटी कुहू बोल उठी थी, 'नहीं वह हक़ अब आप खो चुके हैं, हम आपके कोई नहीं हैं, न आपका कोई रिश्ता है हमारे साथ, यह याद रखियेगा, और फिर वापिस लौट कर हमारे सामने भूल कर भी मत आइयेगा.'

और जिंदगी की मुहिम में परास्त, लुटा पिता पलाश थके हुए. पस्त क़दमों से बाहर निकल गया था.

पलाश अब अकेले अपने हिस्से के मकान में केया के ऊपर वाली मंजिल पर रहता है. केया और उसकी दोनों बेटियां उससे कभी बात तक नहीं करती हैं. कभी आमने सामने पड़ने पर भी मुंह फेर लेती हैं. अब पलाश को अपनी भूल का अहसास हुआ है कि अकेलेपन का दर्द क्या होता है? पत्नी के होते हुए उससे दूर रहना किसी सजा से कम नहीं, अब जाकर उसे अहसास हुआ है.

आज केया की बड़ी बेटी पीहू का एक सुपात्र से विवाह है. पलाश ने अपनी मां द्वारा केया तक संदेशा भिजवाया था कि वह उसे माफ़ करके कन्यादान का मौका दे. लेकिन केया , पीहू, और कुहू ने इसके लिए साफ़ मना कर दिया . और साथ ही यह खबर भी भिजवादी कि वह विवाह के समय वहां न आये.

पलाश घर की सबसे ऊपर की मंजिल के अपने कमरे की खिड़की से नीचे दालान में विवाह के मंडप में चलनी वाली पीहू के विवाह की रस्में छिप छिप कर परदे की आड़ से देख रहा है. पीहू के विवाह में शामिल न हो पाने की कसक उसे मर्मान्तक पीड़ा दे रही है. और पीड़ा के अतिरेक से पश्चाताप के आंसू उसकी आँखों से बहने लगे थे. अब शायद आंसू बहाना ही उसकी नियति थी.

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