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कुमकुम बिंदी कंगना

यह कहानी 25 सितंबर 2019 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है।

कुमकुम बिंदी कंगना

“ओह सोहा यार, मुझे तेरी आवाज़ सुन कर भी यकीन नहीं हो रहा कि मैं तुझसे बात कर रही हूँ। तू और शिकागो में........,” मांही ने अपनी कालेज के जमाने की बेस्टी सोहा से कहा।

“हाँ यार, मेरे बहन बहनोई यहाँ हैं। उनसे ही मिलने आई थी। तू तो सुना शादी के बाद से ही यहाँ है। यहाँ आने से एक दिन पहले आरित ने मुझे तेरे बारे में बताया कि तू तो यहाँ सेटल्ड है। उसी से मुझे तेरा फोन नंबर मिला। ऐश कर रही है तू तो। और बता जीजू कैसे हैं”?

“सब बढ़िया हैं। यार, आज शनिवार है। मेरी छुट्टी है। प्लीज़ घर आजा ना, मुद्दत बीत गई तुझसे बातें किए। याद हैं कालेज के दिन, कितनी गप्पें लगाया करते थे हम लोग। मैं अपना ऐड्रेस तुझे व्हाट्सेप्प कर रही हूँ, बस तू तो शाम को ही घर आजा। डिनर हम साथ ही करेंगे। ठीक है ना”?

“”ठीक है, चल मैं आती हूँ तेरी तरफ़, चल बाय, टेक केयर”।

“बाय बाय, सी यू”, सोहा ने मांही से कहा।

सोहा और मांही, दोनों ने कालेज में साथ साथ बी. ए. की पढ़ाई की। कालेज में सोहा उसकी जिगरी सहेली हुआ करती। दोनों एक ही कक्षा में थीं। साथ साथ बैठतीं और कालेज कैंपस में हरदम साथ ही रहतीं। घर आकर भी उन्हें एक दूसरे से बातें किए बिना चैन ना पड़ता और घंटों मोबाइल पर लगी रहतीं। बी.ए. करने के बाद मांही का विवाह हो गया और शादी के एक वर्ष बाद वह पति के साथ शिकागो चली आई। शिकागो यूनिवर्सिटी से ही उसने एम. बी. ए. किया और फिर दो वर्षों तक एक प्रतिष्ठित एम. एन. सी. में नौकरी की। फिर उसने कनसीव कर लिया और नियत वक़्त पर वह एक प्यारी सी बिटिया मिहिका की माँ बनी। उसके पैदा होने के बाद से वह अपनी ही कंपनी में वर्क फ़्रौम होम करने लगी।

उधर सोहा ने भी बी. ए. के बाद दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कालेज से एम. बी. ए. किया और एक प्रतिष्ठित एम. एन. सी. में नौकरी करने लगी।

अपनी अपनी व्यस्तताओं की आपाधापी में पिछले दो तीन वर्षों से दोनों ही एक दूसरे के संपर्क में न थीं।

शाम के पाँच बजने आए। मांही दोपहर से रसोई में डिनर की तैयारी कर रही थी। इतने बरसों बाद भी उसे सोहा के पसंदीदा व्यंजन याद थे। उसने उसके लिए छोले भटूरे, पुलाव और खीर बनाए। रसोई से फारिग हो उसने शावर लिया और एक आरामदेह टीशर्ट और पाजामा पहन सोहा की प्रतीक्षा करने लगी।

तभी घर की घंटी बजी और सोहा साक्षात उसके सामने खड़ी थी। बरसों से बिछुड़ी दोनों सहेलियाँ एक दूसरे को देख खुशी के अतिरेक से चीखती हुई एक दूसरे के गले लग गईं।

“ओह मांही, तू तो बिलकुल भी नहीं बदली यार, मैं तो सोच रही थी, इतने साल अमेरिका में रह कर मैडम पूरी तरह से अमेरिकन बन गई होंगी। लेकिन तू तो वही पुरानी मांही नज़र आरही है”।

“अरे यार, मैं तो नहीं बदली, लेकिन मुझे तो तेरा एक नया ही अवतार नज़र आ रहा है। बहुत डैशिंग और स्मार्ट लग रही है तू इस वेस्टर्न ड्रैस में”।

“थैन्क यू, थैन्क यू। जीजू कहां हैं भई? इतनी खूबसूरत ज़हीन बीवी पाकर तो तेरे पीछे लट्टू बने घूमते होंगे”।

“बस जरा पास के पार्क में मिहिका को घुमाने ले गए हैं, आते ही होंगे”।

इतने वर्षों बाद मिलकर दोनों सहेलियों की गुटर गूं खत्म होने में नहीं आरही थी। दोनों रात के दस बजे तक गपियाती रहीं। अगले दिन संडे का अवकाश था। “अरे सोहा, कल दोपहर में हमारे इंडियन लेडीज क्लब में लंच है। तू भी आजाना। लज़ीज़ इंडियन खाना होगा वहाँ। कुछ अमेरिकन लेडीज भी हमारे क्लब की मेंबर्स हैं। तुझे भी बहुत अच्छा लगेगा”।

“ठीक है, तो मैं कल एक बजे तक क्लब पहुँच जाऊँगी। क्लब का ऐड्रेस व्हाट्सेप्प कर देना”।

“ठीक है”।

“अगले दिन मांही और सोहा ने करीब साथ साथ क्लब में प्रवेश किया। सोहा अपनी सबसे बढ़िया, बेहद कीमती मिनी ड्रेस में अपने जलवे बिखेरती आई, लेकिन जैसे ही उसकी नज़र मांही पर पड़ी, वह चौंक गई। मांही वही अपने बरसों पुराने चिरपरिचित लिबास में थी, धानी रंग के बेहद आकर्षक सलवार कुर्ते में। गले में लंबा सा मंगल सूत्र, हाथ में कंगन, कानों में बड़े बड़े बुँदे मांग भर दप दप करता सुर्ख सिंदूर और माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी में उसका सांवला सलोना लावण्य शिद्दत से निखर आया था। उसे इस परंपरागत भारतीय लिबास में देख कर सोहा नाक भौं सिकोड़ते हुए उससे तनिक फुसफुसाते हुए बोली, “अरे मांही, ये क्या बहनजी बन कर आई है? कुछ तो सोचा कर, तू अमेरिका में रहती है, जिंदगी बीत गई, ये सलवार कुर्ता पहनते पहनते। फिर भी ये घिसे पिटे इंडियन पहनावे का तेरा शौक अभी तक पूरा नहीं हुआ? अरे यार, पहनना था ही तो जींस या कोई मिनी ड्रैस ही पहन लेती। देख कितनी अमेरिकन लेडीज भी हैं यहाँ। सब तुझे कैसे आँखें फाड़े फाड़े देख रहीं हैं”।

“अरे सोहा, तू ये क्या कह रही है? अमेरिका में रहने का ये मतलब तो नहीं कि इन इंडियन ड्रेसेज़ पर पाबंदी लग गई। अरे यार, मैं भी मिनी ड्रेसेज, जींस सब पहनती हूँ। लेकिन कभी कभी इन इंडियन ड्रेसेज को पहनने की भी इच्छा हो जाती है मेरी। मैं तो यहाँ अक्सर सिंदूर, बिंदी लगा कर घर से बाहर भी निकलती हूँ। हमारी भारतीयता की पहचान हैं ये। सबसे महत्वपूर्ण बात, मुझे व्यक्तिगत रूप से कुमकुम, बिंदी लगाना और इंडियन ड्रेसेज पहनना बेहद प्रिय है। जब भी मैं इंडियन मेकअप में और इंडियन ड्रेसेज पहन कर इस विदेशी धरती पर बाहर निकलती हूँ, मुझे बेहद फख्र होता है। और तू दूसरा ही राग आलाप रही है”।

तभी वहाँ मौजूद कुछ विदेशी युवतियाँ मांही की ओर आईं। वे सब मांही की सहेलियाँ थीं। माहीं ने उन सबका परिचय सोहा से कराया, “मीट माइ बेस्ट फ्रेंड सोहा, इंडिया से आई हैं”। सभी फिरंगिन युवतियों ने बारी बारी से सोहा से हाथ मिलाया। सोहा ने गौर किया, वे सभी उसकी वेशभूषा पर सरसरी सी उदासीन निगाह डाल कर मांही की ओर मुखातिब हो कर उसकी प्रशंसा में जुट गईं, “ओह मांही, यू लुक सो चारमिंग इन दिस इंडियन ड्रेस। यू आर ऐबसौल्यूटली अ किलर”।

मायूस सोहा कभी मांही को देख रही थी, कभी अपनी बेशकीमती मिनी ड्रेस को”।

रेणु गुप्ता

मौलिक

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