The Author Sarvesh Saxena फॉलो Current Read सरहदों का इश्क़ By Sarvesh Saxena हिंदी प्रेम कथाएँ Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books I Hate Love - 6 फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर... मोमल : डायरी की गहराई - 47 पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती... इश्क दा मारा - 38 रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है... डेविल सीईओ की मोहब्बत - भाग 79 अब आगे,और इसलिए ही अब अर्जुन अपने कमरे के बाथरूम के दरवाजे क... उजाले की ओर –संस्मरण मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल... श्रेणी लघुकथा आध्यात्मिक कथा फिक्शन कहानी प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान कुछ भी क्राइम कहानी शेयर करे सरहदों का इश्क़ (7) 2.4k 6.7k 4 पता है... पहले मैं तुम्हे पल पल याद करता था लेकिन अब ऐसा नहीं है क्यूंकि अब मैं तुम्हे भूलता ही नही, मेरी आँखों को एहसास ही नही होता के कब वो सोई, कब जागीं पर ये जब भी मौका पाती हैं निहारती रहती है… ये सरहदें…. ये सरहदें.. जो लोहे की नुकीली तारों की दीवार सी बनी खड़ी हैं l कैसे हमारा इश्क़ मोहताज हो गया है, चन्द कागज़ और धारदार सरहदों का, कहते है इश्क़ सरहदों को लांघ कर भी दिलों को मिला देता है पर पर मेरे इश्क़ का लहू रिसने लगा है अब, इन नुकीली तारों से छलनी हो हो कर |ये हर बार दम तोड़ देता है, जब भी तुम्हारे पास आने के लिए ये कदम बढ़ाता है, अब तो हवाएं भी कितनी मजबूर सी लगती है, जो तुम्हारी कोई खबर नही लाती, तपती रहती हैं ये भी मेरे जिस्म सी और सरहदों से टकरा कर खो देतीं हैं अपना वजूद l घर के खिड़कियां और दरवाजे बस तुम्हारी राह देखते रहते हैं कि कब तुम आकर दरवाजे की कुंडी फिर से खटखट आओ, चुपके से खिड़की की दराज से मुझे बुलाओ और छुप छुप कर किसी ना किसी बहाने से खिड़की के सामने खड़े रहो |तुम्हे याद है, जब हम सरहदों को भूल कर एक हो गए थे, उस खुदा के बनाये इश्क़ में, मानो हम इन हवाओं में, फिजाओं में इन आजाद पंछियों की तरह उड़ने लगे हों, हम कैसे भूल गए की सरहदें हमारे इश्क से कहीं ज्यादा मजबूत और ऊंची है इनको पार करने के लिए हमें इस दुनिया से बगावत करनी होगी | तुमने सच ही कहा था ,खुदा के रहमत से ज्यादा बड़ी ये नुकीले तारो की दीवार है, और उस से भी पथरीले इसे बनाने वालों के दिल, जिनमे इश्क़ के चाहे जितने बीज बो लो पर उगते नफरत के कांटे ही हैं, जिनमे उलझ कर न जाने कितने इश्क़ मर गए और ना जाने कितने मरने बाकी हैं | काश… इनके पत्थर दिलों में भी इश्क के फूल खिल जाए, ये सरहद, ये कांटो की दीवार हमेशा के लिए खत्म हो जाए | काश कभी ऐसा हो की यह फिर दोबारा हमें मिला दे l तुम्हें याद है… हम अक्सर बन्द परिंदों को आज़ाद कर दिया करते थे कि उनको भी इश्क़-ए-मन्ज़िल मिल जाये, वो खुले आसमाँ में अज़ादी से घूम सकें, पिंजरे की बंदिशों से दूर…. काश ...हम भी परिंदे होते...l पता है.. मेरी आँखें फफक पड़ती हैं, जब ये हवाएं बिल्कुल ख़ामोशी से बिना तुम्हारी कोई बात कहे, मेरे कानो को छू जाती हैं और एक भयावह सा सच मेरे दिल के कागज़ पर किसी धारदार कलम सा चुभो जाती है lलेकिन मैं तुम्हे मिलूंगा, हमेशा की तरहमुझे यकीं है के एक दिन तुम आओगे, फिर से हम परिंदों को आज़ाद करेंगे और उनके साथ हम भी इस ज़मीं को छोड़कर कहीं आसमान में गुम हो जायेंगे! दूर बहुत दूर जहाँ हमारा इश्क़ इन नफरत भरी कटीली सरहदों का मोहताज़ नही रहेगा…वहां हम फिर एक हो जाएंगे….. समाप्त पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद कृपया अपनी राय जरूर दें | Download Our App