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आदत से मजबुर


आज सुबह से मीनू कुछ उदास सी दिखाई पड रही थी। घरके कामकाज में भी उसका ध्यान न था। बार बार बरतन पटकने की आवाज़े आ रही थी। बीच बीच में पति को भी डांट पड़ रही थी!
“कितनी बार कहा तुमसे ये जूते यहा मत रखा करो। ये कोई जूते रखने की जगह हे? तुम कभी अपनी आदतों से बाहर नहीं आओगे! किताबे भी फैला कर रखी हे में क्या नॉकर हूँ तुम्हारी जो पूरा दिन यही सब करती रहु।“ मीनूने पैर से धक्का देकर संजय के सोफा के पास रखे हुए जूतो को घरकी बाहर दरवाजे तक हटा दिया।
“क्यो इतना चिल्ला रही हो? अभी में जा ही रहा हूँ इसीलिए जूते अंदर रखे थे।” अपना कॉफी का खाली कप मीनू के हाथ में देते हुए संजय ने कहा।
“तुम्हारे भाई का मेसेज आया था कहा हे अगर पुराने घर से कुछ समान लाना चाहो तो जाकर लेलों। दो दिनो बाद उस घर पर बुलडोजर चलेगा। सुना हे वहा फ्लेट बनने वाले हे।“ ऑफिस जाने के लिए तैयार होते होते संजय कह रहा था। वह अपने शर्ट के बटन बंध करने में लगा था यहा मीनू की आंखे भर आई थी। अपने पैरो में मोजे डालते हुए उसने कहा, “तुम्हारे भाई को लगता हे की वो बड़ा अमीर हो गया हे, उसे पुराना समान नहीं चाहिए तो हमने यहा क्या कबाड़ खाना खोल रखा हे! कोई जरूरत नहीं हे वहाँ से कुछ भी समान लाने की।“
अपनी ही धुन में संजय जूते पहन कर चला गया और यहा मीनू की आंखो में नमी की जगह गुस्से ने ले ली। उसने अपना फोन उठाया और एक नंबर लगाया,
“हॅलो अक्षय, तूँ पागल हो गया हे क्या? कोई अपने पुराने घर पर यू बुलडोजर चलवाता हे? कितनी सारी यादे जुड़ी हुई हे उस घरके साथ, हम साथ साथ खेले हे, बड़े हुए हे वहाँ और,” अपना रोना रोकने के चक्कर में मीनू की आवाज कुछ ज्यादा ही ऊंची हो गई।
“बस करो दीदी अब में कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ जो तुम मुज पर चिल्ला कर अपना काम निकलवा लोंगी। मेंने कहा हे की तुम्हें जिस जिस चीज पर ज्यादा प्यार उमड़ रहा हो वो आके ले जाओ। अस्सी लाख रुपये मिल रहे हे उस पुराने मकान के, रीटा का भी उस पुराने घर में मन नहीं लगता और फिर नए मकान की किश्ते भी तो चुकानी हे, में क्या ईएमआई ही भरता रहु उम्र भर?”
“उन को हमारी क्या पड़ी हे... वह तो अपने बड़े से घर में आराम से हे।“ मीनू को अपने भाई की आवाज के साथ साथ भाभी- रीटा की आवाज भी सुनाई दी और उसने फोन काट दिया।
मीनू आंखो में आँसू लिए बेठ गई। उस की नजरों के सामने वह पुराना घर तैर रहा था... घर के बाहर छोटा सा गार्डन बनाया गया था जिसे मीनू और उसके पापा दोनों मिलकर सँभाला करते थे। गुलाब, मोगरा, जासूद के फूल तो कभी कम ही नहीं होते थे, एक जुई की बेल भी तो चढ़ाई थी जिसके नीचे बेठ कर बाप बेटी घंटो तक बाते किया करते थे.. उसके पापा कहते,
“मीनू तुम जब शादी करके अपने घर चली जाओंगी तब में यहीं इस जुही की बेल के नीचे बेठे तुम्हारा इंतेजर करता रहूँगा। तुम जब भी जी चाहे मुजे मिलने चली आना और अगर कभी अपने संसार में व्यस्त हो जाओ और मिलने ना आ पाओ तो भी मेरी फिकर मत करना, जब भी तुम्हें कहीं जुई की सुगंध आए सोचना की में तुम्हारी आसपास ही हूँ।“
उसके पापा की मृत्यु बाद भी वो जब उस जुई के नीचे जाकर बेठती और उसके पत्ते आकार मीनू के सर को छु जाते तो उसे लगता जैसे पापाने आकार सर पर हाथ फिरा दिया... अब वह जुई की बेल को कौन बचाएगा? शाम होते होते तो उसकी हालत खराब हो ने लगी। बिखरे बाल और आँसुओ से चिप चिपा चहेरा...
“ये क्या हालत बना रखी हे, आज सुबह से अपना मुह नहीं धोया क्या? आईने जैसा चमक रहा हे!” घर के अंदर आते ही संजय ने कहा और हसने लगा।
मीनूने अपने दुपट्टे से चहेरा पोंछा और किचन मे चली गई। रात का खाना भी हो गया घर में शांति छाई रही मीनू चुप थी।
“क्या बात हे मुह में दहि जमा कर क्यो बेठी हुई हों, इतनी चुप क्यो हों?
“संजय वो मेरा घर,”
“मेरा घर? अब वो घर तुम्हारा कहा रहा.. तुम्हारे भाई का हे जिसे बेच कर वो अच्छे रूपिये बना लेगा। तुम्हारा घर अब यही हे हमारी शादी के कितने साल हो गए मेडम?” संजयने युही मज़ाक में कह दिया था।
“तुम जो गुलाब का पौधा लाए थे वो मुरजा गया।“
“होता हे उसे पुरानी जगह से जब निकाल कर लाया था तब ही सोच रहा था की नई जगह पौधा टीकेगा के नहीं, खिल जाता तो अच्छा होता!”
“तुम्हें उससे शादी करके लाना चाहिए था!” मीनू ने अचानक से कहा और जूठे बरतन उठा कर किचन में चली गई।
“क्या कहा तुमने? शादी करवा के लाना चाहिए था?”
संजय सोच में पड़ गया और फिर किचन में जाकर एक बार अपनी पत्नी के सामने देखा। वह बरतन साफ कर रही थी।
दूसरे दिन सुबह संजय ने कहा, “आज तुम्हारे मायके के पुराने घर को तोड़ दिया जाएगा, तुम वहा जाना चाहोंगी?”
“तुम्हें मेरे जले पर नमक छिड़कने में बड़ा मजा आता हे क्यो? जब से पता चला हें की वो घर तोड़ देने वाले हे तुम बार बार आकर मुजे सुना रहे हों! एक छोटा सा पौधा भी अपनी जन्म देने वाली मिट्टिसे जुड़ा रहना चाहता हे तो में तो फिर भी इंशान हूँ! तूम से शादी हो गई तो क्या? अपने सारे पुराने रिस्ते भूल जाऊँ?” मीनू बोलते बोलते रो पड़ी और अंदर चली गई।
संजय वही खड़ा थोड़ी देर कुछ सोचता रहा।
शामको घर की घंटी बजी, दो मजदूर कुछ सामान लेकर आए थे संजय उन्हे कुछ बता रहा था। मीनू के दरवाजा खोलते ही संजय ने कहा, “जहा से तुम्हें उखाड़ कर लाया था वही से इन्हे भी ले आया हूँ तूम सब साथ मिलकर इस घर को भी अपना बना लो तो मेरा घर और बगीचा दोनों महेंक जाएगा!”
पहले तो मीनू की समज में नहीं आया की संजय क्या कह रहा हे उसने एक नजर बाहर काम कर रहे मजदूर पर डाली और फिर उसके चहेरे पर लाली लौट आई... उसके मायके वाले सारे पौधे गुलाब, मोगरा, जासूद, गेंदे के फूल और तो और बड़ी सी जुई की बेल भी जमीन में से जड़ो के साथ उखाड़ कर लाई गई थी। मीनू ने संजय के सामने देखा वो खड़ा अपनी वही बत्तीसी दिखाकर कह रहा था, “क्या करू आदत से मजबूर हूँ जो चीज पसंद आए उसे उखाड़ कर घर ले आता हूँ!”
मीनू के चहेरे की खोई हुई हसी वापस लौट आई और वह भागती हुई बाहर जाकर कौन सा पौधा कहा लगाना है ये मजदूर को समजाने लगी। संजय आज जुई की बेल ही नहीं उसके साथ कई सारी यादे भी वहाँ से यहाँ उखाड़ लाया था...
नियती कापड़िया।

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