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वो डरावनी रात





दीपावली की छुट्टियां होते ही माला हर साल की तरह इस साल भी मायके जाने की तैयारी कर रही थी। करीब सारी तैयारी हो गई थी। वो आखिरी बैग जिसमें खाना और पानी आदि रास्ते में काम आने वाली वस्तुएं रखनी थी वो भी तैयार हो गया। अब बस मयंक के आने की देरी थी।
माला के दोनों बच्चे सोनल और गौरव का मूड खराब था। दोनों को हर साल की तरह बार बार एक ही जगह जाना पसंद नहीं था। तभी मयंक भी आ जाता है, और दोनों बच्चों के मूड को देख पूछता है
मयंक :- क्या बात हैं? तुम दोनों के चेहरे ऎसे बुझे - बुझे क्यू हैं.... नानाजी से मिलने नहीं जाना?

सोनल :- क्या पापा... नानाजी से मिलने तो यूही जाते रहते ही हैं... अभी छुट्टियों में तो कही और चलते हैं....

मयंक :- कही और..?? ? पर कहाँ??... तुम लोग कहाँ जाना चाहते हों??

तभी गौरव तपाक से बोल पड़ता है... कोई ऐसी जगह जो अडवेंचर्स से भरी हो... जो कुछ अलग हो... जहाँ हम कभी गए न हो।

तभी माला बोल पड़ती है,.. तुम दोनों कोई एडवेंचर्स से कम हो.... जब देखो.. अजीब - अजीब... बातें करते रहते हो।
अब उठो.. जल्दी - जल्दी सारा सामान गाड़ी में रखो... पहले ही बहुत देर हो गई है, जाते - जाते रात हो जाए गई। रास्ता भी खराब हैं, समय पर गांव पहुंचना है।

सोनल :- क्या माँ... रास्ता तो वही है... हम हर बार आते जाते तो रहते हैं,.. फिर अब क्या है??

माला :- हां. हाँ.. रास्ता तो वही हैं.... पर जाने का समय वही नहीं हैं... तुम लोगों को नहीं पता.. काली चौदस के बाद से पूर्णिमा तक ...रात को 9 बजे के बाद इस रास्ते से गुजरना ठीक नहीं माना जाता है।

गौरव :- ohh.. माँ.. इंट्रेस्टिंग.. ये बात तो आपके मुंह से पहली बार सुनी हैं।

माला :- इसमें क्या इटेरेटिंग हैं.... इससे पहले हम इस समय कभी इस रास्ते से गये ही नहीं.... चलो अब बातें बंद करो... जल्दी - जल्दी गाड़ी में बैठों... मयंक.. तुम्हें तो सब पता है... फिर भी देर कर रहे हो?

मयंक :- अरे.. मैं कहाँ देरी कर रहा हूं.. चलो मैं तो तैयार हूँ।

सभी गाड़ी में बैठ जाते हैं, लेकिन सोनल और गौरव के मन में एक ही सवाल उठ रहा था। आखिर 9 बजे के बाद इस रास्ते से क्यू नही गुजरना चाहिये। मयंक उन दोनों के मन की स्थति को भाप लेता है, और कहता है... अरे तुम दोनों क्या सोच रहे हो??

गौरव और सोनल दोनों साथ में ही बोल पड़े... आखिर इस रास्ते की कहानी क्या है...??

सोनाली :- बताइये ना.. पापा..

तभी माला कहती हैं, कोई कहानी नहीं है... रास्ते में एसी बातें नहीं करते हैं

गौरव :- क्या माँ आप भी.. बताने दो ना... रास्ता अच्छे से कटेगा... बोलिये न पापा..

मयंक :- ok... बताता हूँ... कोइ खास तो मुझे भी पता नहीं... बस ऎसा कहा जाता है कि काली अमावस्या से पूर्णिमा के बीच इस रास्ते पर रात 9 बजे के बाद अजीब अजीब हादशे होते हैं... कई लोग तो जिंदा भी नही बचे.. और कुछ पागल हो गए... किसी न किसी के साथ कोई न कोई अनहोनी जरूर होती है.... इसलिए तुम्हारी माँ 9 बजे के बाद यहां से जाने के लिए मना कर रही थी।
तभी अचानक मयंक कार को ब्रेक लगाता है, माला चौक जाती है, और बोल पड़ती है... क्या हुआ... गाड़ी क्यू रोकी.... मयंक ने सामने की तरफ इशारा किया..... वहां सामने एक अजीब सा दिखने वाला लड़का खड़ा था... उस के पहनावे से तो वो कोई अच्छे घर का लड़का लग रहा था।
वो मयंक से आ कर कहता है कि... क्या आप मुझे लिफ्ट दे सकते हैं.. मुझे सीतापुर जाना हैं... और मेरी गाड़ी रास्ते में ही खराब हो गई.. और या आस - पास कोई भी गाड़ी ठीक करने वाला नहीं है।
माला.. मयंक के कान के पास जाकर धीरे से बोलती है.... किसी भी अजनबी को लिफ्ट देना ठीक नहीं.... ये रास्ता भी ठीक नहीं है।
मयंक तुरंत कहता है... देखो उसे.. बेचारा कितना परेशान हैं.... सोच.. कभी हम में से किसी के साथ ऎसा होता तो..वो भी तो किसी का भाई.. बेटा.. या पति.. होगा न... और तुम्हें तो पता हैं न ये रास्ता ठीक नहीं... फिर हम इसे ऎसे अकेले कैसे छोड़ सकते हैं...
माला :- ठीक है... जैसी आपकी मर्जी।
मयंक अपनी बगल वाली सीट पर बैठा देता है... और माला पीछे की सीट पर.. अपने दोनों बच्चों के पास बैठ जाती है, थोड़ी देर आगे जाने पर उनकी गाड़ी अचानक फिर रुक जाती है, माला बहुत डर जाती है, क्योंकि अब अंधेरा भी बहुत हो चुका था.. और जिस जगह उनकी गाड़ी रुकी वहां बहुत अंधेरा था... और सड़क के दोनों किनारों पर सिर्फ कंटीली झाड़ियां... और उन झाडियों के बीच से उस जगह के सनाटे को चीरती... वो.. अजीब आवाजें... माला के डर को और भी बढ़ा रही थी।सोनल और गौरव भी अब तो बहुत डर रहे थे माला मयंक से पूछती है कि... क्या हुआ गाड़ी क्यु रोक दी।
मयंक कहता है... पता नहीं... देखना पड़ेगा.. तभी वो अजनबी लड़का बोल पड़ता है... कही आपकी कार भी मेरी कार की तरहा खराब तो नहीं हो गई। मयंक कहता है... अरे नहीं मैंने कल ही सर्विस करवाई है... चलों देखते क्या प्रॉब्लम है
माला अंदर से बहुत डर जाती है, उसे लगाता है कि यह सब उस अजनबी लड़के की वजह से ही हो रहा है... तभी माला की नजर उस लड़के के हाथ में पहनी एक.. अजीब सी.. अंगूठी पर पड़ती है.... उस पर मकड़ी की डिजाइन बनी हुई थी.. और उस मकड़ी की आँखें.. उस अंधेरे में.. लाल रंग की रोशनी से चमक रही थी। गौरव और सोनल भी ये बात नोटिस करते हैं,और माला को ये बात बताते हैं, माला को याद आता है कि जहां से उस लड़के ने लिफ्ट ली थी वहां कोई भी गाड़ी नहीं थी। तीनों माँ -बेटी और बेटा आपस में बात कर ही रहे होते हैं, कि वो लड़का उनकी तरफ पलट कर देखता है, उस की आँखे..से लाल रंग की रोशनी निकल रही थी... ये देख तीनों बहुत डर जाते हैं.. और जोर से चिल्लाते हैं, आवाज सुन मयंक गाड़ी की तरफ आता है... क्या हुआ तुम लोग ठीक तो हो... गौरव.. पापा वो.. वो.. वो..
मयंक... क्या वो. वो... कोई भूत देख लिया क्या??
माला, सोनल और गौरव तीनों एक साथ... हाँ. हाँ.. वो लड़का
मयंक.. क्या??
माला.. वो.. अजनबी.. आगे की सीट की तरफ इशारा करते हुए।
तभी तीनों चौक जाते हैं... अरे.. कहाँ गया वो... उसके हाथ में.. अजीब सी...मकड़ी वाली... अंगूठी भी थी..उसकी आँखें.... . . वो भी लाल रंग की रोशनी से चमक रही थी
तीनों बहुत घबरा जाते हैं, तभी मयंक उसके पास खड़े उस अजनबी लड़के के कंथे पर हाथ रख कर कहता.. तुम इसे के बारे में कह रहे हो... अरे ये तो मेरे पास खड़ा था... हम दोनों गाड़ी देख रहे थे... लगता है.. तुम लोगों को कोई वहम हुआ है।
तभी वो लड़का जोर - जोर से हँसने लगता है...और उसकी लाल रंग की रोशनी से और भी डरावनी लग रही थी... उसका चेहरा अचानक बदल जाता है.. वो जोर _जोर से दिल दहलाने वाली हंसी से हँसने लगता हैं... ये देख मयंक भी बहुत घबरा जाता हैं,और तुरंत गाड़ी में बैठ जाता है,फिर गाड़ी स्टार्ट करता है.. लेकिन.. गाड़ी स्टार्ट ही नहीं होती। तीनों बहुत ही घबरा जाते हैं,तभी उस अजनबी की अंगूठी से बहुत सारी मकड़ियां निकल कर कार के चारों ओर चढ़ जाती है... वो लड़का भी उस कार की तरफ बढ़ता है, तभी माला को याद आता है... उस ने घर से निकलते समय हनुमान जी जी भभूति साथ ली थी... वो तुरंत बाहर निकल कर उस लड़के पर फैकती है तभी वो लड़का आग की तरह जलने लगता हैं, और वो मकड़ियाँ भी गायब हो जाती है, सब कुछ सामान्य हो जाता है, मयंक गाड़ी स्टार्ट करता है गाड़ी भी चालू हो जाती है। पूरे रास्ते वो हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे थे....आखिरकार वो सब सही सलामत अपने गाँव पहुँच ही जाते हैं। उस दिन के बाद से माला कसम खा लेती है, कि कभी भी.. शाम के समय इस रास्ते से नहीं आएगी।

समाप्त ??


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