गुमशुदा की तलाश - 24 Ashish Kumar Trivedi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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गुमशुदा की तलाश - 24


गुमशुदा की तलाश
(24)


सब इंस्पेक्टर नीता ने अपने सभी खबरियों के बीच टैटू वाली लड़की के स्कैच की कापियां बटवा दी थीं। पर अभी तक कोई सफलता नहीं मिली थी।
सब इंस्पेक्टर नीता ने उस फ्लैट के मालिक से मिलने का मन बनाया जिसमें वह टैटू वाली लड़की रहती थी। जो नंबर उसे मिला था उसने उस पर कॉल किया। उस नंबर पर उसकी बात सायरस मिस्त्री नाम के एक आदमी से हुई। सायरस उस समय बैंगलूरू में थे। उन्होंने बताया कि वह इलाज के लिए अगले दिन की फ्लाइट से अमेरिका जा रहे हैं।
सब इंस्पेक्टर नीता ने फोन पर उन्हें सारी बात बताई। सब सुन कर सायरस ने कहा कि उन्होंने वो फ्लैट अपने ब्रोकर के ज़रिए किराए पर उठाया था। तीन तीन महीने का किराया एडवांस मिल जाता था। इसलिए वह कभी वहाँ रहने वाली लड़की से नहीं मिले। फ्लैट खाली होने की सूचना भी ब्रोकर ने दी। इसलिए इस मामले में ब्रोकर उनकी अधिक मदद कर सकता है। उन्होंने ब्रोकर के दफ्तर का पता दे दिया।
सब इंस्पेक्टर नीता अपने एक सिपाही के साथ उस टावर में पहुँची जहाँ ब्रोकर हरीश लालवानी का ऑफिस था। लिफ्ट उन्हें सातवें फ्लोर पर ले गई।
हरीश लालवानी ने सारी बात ध्यान से सुनी। सब इंस्पेक्टर नीता ने स्कैच उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
"यो उस लड़की का स्कैच है।"
"साईं झूलेलाल की मेहर है मैडम.... धंधा अच्छा चल रहा है। कई लोगों को प्रापर्टी दिलाते हैं। पर दिमाग कुछ ऐसा है कि शक्लें और नाम याद रहते हैं।"
"बहुत अच्छी बात है हरीश जी...तो अब बताइए कि ये कौन है ?"
"मैडम इस लड़की का नाम दीप्ती नौटियाल है।"
"और क्या जानते हैं इसके बारे में ?"
"कुछ नहीं.... मैडम ये मेरे ऑफिस में आई थी कि कोई फ्लैट दिला दीजिए। कह रही थी कि किसी के साथ बिज़नेस करती है। अच्छा रेंट दे सकती है। इसलिए कोई ढंग का फ्लैट दिला दीजिए। सायरस साहब हमारे पुराने क्लांइट हैं। हमने उनका फ्लैट दिला दिया।"
"दीप्ती किराया एडवांस देती थी। फिर अचानक फ्लैट छोड़ कर क्यों चली गई ?"
"देखिए मैडम हमें तो अपने कमीशन से मतलब रहता है। फ्लैट दिलाने के बाद हमारा क्लांइट से कोई मतलब नहीं रहता है। पर इस लड़की ने फ्लैट छोड़ने से पहले मेरे ऑफिस आकर बता दिया था कि मैं सायरस साहब को बता दूँ।"
"आपने फ्लैट छोड़ने का कारण नहीं पूँछा।"
"देखिए एक बार फ्लैट दिलाने के बाद बात किराएदार और मकान मालिक के बीच की हो जाती है। दीप्ती कभी सायरस साहब से नहीं मिली थीं। किराया वह बैंक ट्रांसफर से देती थी। इसलिए फ्लैट छोड़ने से पहले उसने मुझे उन्हें खबर देने को कहा।"
सब इंस्पेक्टर नीता कुछ देर तक सोंचती रही। हरीश ने उस टैटू वाली लड़की का नाम बता दिया था। पर उसके पास और अधिक जानकारी नहीं थी। वह उठने ही वाली थी कि कुछ याद आया।
"अच्छा एक बात बताइए। दीप्ती जिस फ्लोर में रहती थी। उससे दो फ्लोर नीचे उसकी एक सहेली भी रहती थी। क्या उसे भी आपने फ्लैट दिलाया था ?"
"हाँ मैडम.... उसका नाम मनीषा गुहा था। दरअसल दीप्ती और मनीषा एक साथ ही आई थीं। इत्तेफाक से उसी बिल्डिंग में दो फ्लैट थे। मैंने दोनों को दिलवा दिया।"
"उसने भी फ्लैट खाली करने की जानकारी दी थी।"
"नहीं मैडम...."
सब इंस्पेक्टर नीता चलने के लिए खड़ी हो गई।
"हमारी मदद करने के लिए धन्यवाद।"
"मैडम पुलिस की सहायता करना तो मेरे जैसे ज़िम्मेदार शहरी का फर्ज़ है। पर आप बैठिए। कुछ ठंडा वंडा पीजिए।"
"जी नहीं शुक्रिया...."
कह कर सब इंस्पेक्टर नीता हरीश लालवानी के ऑफिस से निकल गई।

इंस्पेक्टर सुखबीर ने रॉकी पर निगरानी लगा रखी थी। पर अभी तक कुछ भी ऐसा नहीं मिला था जिससे सरवर खान तक पहुँचा जा सके।
उनके आदमी ने बताया था कि अनीस और ज़फर नाम के दो आदमी रॉकी से मिलने आते हैं। इंस्पेक्टर सुखबीर ने उन दोनों पर नज़र रखने की हिदायत दी थी।
सब इंस्पेक्टर नीता जब पुलिस स्टेशन पहुँची तो इंस्पेक्टर सुखबीर सरवर खान और सब इंस्पेक्टर राशिद के बारे में सोंच रहे थे। सब इंस्पेक्टर नीता को देख कर बोले।
"आओ मीता....अब तक सरवर खान और राशिद का कोई पता नहीं चल सका। तुम बताओ....तुम्हें कोई सफलता मिली।"
"सर कुछ हद तक तो मिली है।"
"मतलब ??"
"सर टैटू वाली लड़की और उसकी सहेली के नाम पता चल गए हैं। इससे अधिक कुछ नहीं।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने उन्हें हरीश लालवानी से हुई सारी बात बता दी।
"चलो कुछ तो पता चला। नीता ऐसा करो कि अपने खबरियों को ज़रा कसो। उनसे कहो कि वह ईगल क्लब व उसके आसपास ठीक से इसके बारे में पता करें।"
"जी सर...."
सब इंस्पेक्टर नीता ने फौरन अपने प्रमुख खबरी को फोन कर हिदायत दी कि जल्द ही स्कैच वाली लड़की के बारे में सब पता करके बताए।
सब इंस्पेक्टर नीता और इंस्पेक्टर सुखबीर फिर से केस के बारे में बात करने लगे। तभी बंसी नाम के जिस आदमी को इंस्पेक्टर सुखबीर ने लगा रखा था पुलिस स्टेशन में आया। उसने खबर दी कि अनीस और ज़फर को शहर के पॉश इलाके में बने एक बंगले में जाते देखा है।
इंस्पेक्टर सुखबीर ने फौरन उसे उस बंगले में ले चलने को कहा। सब इंस्पेक्टर नीता भी उन लोगों के साथ चली गई।
बंसी उन्हें जिस जगह पर ले गया वह शहर का आलीशान इलाका था। वहाँ बड़े बड़े बंगले थे। हर बंगले के इर्दगिर्द खूब हरियाली थी। यह जगह ऐसी थी जहाँ कोई काम छिपा कर आसानी से किया जा सकता था।
इंस्पेक्टर सुखबीर, सब इंस्पेक्टर नीता और बंसी बंगले के गेट पर पहुँचे तो सिक्योरिटी गार्ड ने पूँछा।
"कहिए साहब किससे मिलना है आपको ?"
इंस्पेक्टर सुखबीर ने कड़क आवाज़ में पूँछा।
"ये बंगला किसका है ?"
"कोई मनसुख कपाडिया हैं। विदेश में रहते हैं। वो तो कभी आते नहीं हैं। उनके एक दोस्त अपने आदमी भेज कर बंगले की साफ सफाई करवा देते हैं।"
"कोई केयर टेकर नहीं रखा।"
"नहीं साहब...."
सब इंस्पेक्टर नीता ने गौर किया कि मिट्टी से बने टायर के निशान बंगले के भीतर जाते और बाहर आते दिख रहे थे। निशान ताज़ा थे। उसने सिक्योरिटी गार्ड से पूँछा।
"वो साफ सफाई करने वाले कब आए थे ?"
"वो तो कई कई दिनों में आते हैं। हो गए होंगे कोई पंद्रह बीस दिन।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने इंस्पेक्टर सुखबीर का ध्यान टायर के निशान की तरफ खींचा। फिर सिक्योरिटी गार्ड से बोली।
"यहाँ किसको लाकर रखा गया था ?"
"यहाँ किसे लाकर रखेंगे मैडम ?"
इंस्पेक्टर सुखबीर ने सिक्योरिटी गार्ड को धमकाया।
"जो भी है सच सच बता दो। नहीं तो थाने ले जाकर उल्टा लटकाएंगे। सब खुद ही बाहर आ जाएगा।"
सिक्योरिटी गार्ड घबरा गया। पर उसे छिपाते हुए बोला।
"साहब क्यों गरीब आदमी को धमका रहे हो। कहा ना यहाँ कोई नहीं आया था।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने समझाया।
"देखो....हमारी मदद करो। क्यों बेकार में अपमी फजीहत कराना चाहते हो। वरना हम थाने ले जाएंगे।"
"ऐसे कैसे ले जाएंगी मैडम...."
जवाब इंस्पेक्टर सुखबीर ने दिया।
"हम कैसे भी ले जा सकते हैं। बहुत बड़ा मामला है ये। हमें सब बता दो। नहीं तो बिना कुछ किए लंबे नपोगे।"
सिक्योरिटी गार्ड अब बहुत डर गया था। वह रुआंसा होकर बोला।
"साहब हमारी क्या गलती है। हम तो अपना काम कर रहे हैं। जो भी है वह सब बड़े लोगों का काम है।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने थोड़ा नर्मी से समझाते हुए कहा।
"तभी तो हम कह रहे हैं कि हमें सब बता दो। हम तुम्हारा खयाल रखेंगे।"
सिक्योरिटी गार्ड कुछ देर चुप रहने के बाद बोला।
"तीन दिन पहले देर रात दो लोगों को यहाँ लाया गया था। अभी घंटे भर पहले दोनों को ले गए।"
"कहाँ ले गए ?"
"नहीं मैडम....वो हमें नहीं पता। हाँ एक बात देखी थी। लाए गए लोगों में से एक की चाल में हलकी सी लंगड़ाहट थी।"
इंस्पेक्टर सुखबीर समझ गए कि वह सरवर खान की बात कर रहा है। वह बोले।
"अब सही सही पूरी बात बताओ।"
"साहब यकीन मानिए...इससे ज़्यादा हम कुछ नहीं जानते हैं।"
"तीन दिन वो लोग यहाँ रहे। तुमने कुछ भी देखा सुना नहीं।"
"नहीं सर....अनीस और ज़फर उन लोगों का खाना लेकर आते थे। साहब अनीस मुझे धमकाता था कि किसी को कुछ मत बताना। मैं हमेशा गेट पर ही रहता था। डर के मारे कभी बंगले के अंदर नहीं जाता था।"
"तुम कभी बंगले में नहीं गए।"
"साहब हम पिछले तीन महीने से ही यहाँ हैं। हम गेट पर अपनी ड्यूटी करते हैं। बाहर से बंगले की देखभाल करते हैं। कभी बंगले के अंदर नहीं गए।"
"ठीक है....पर याद रहे अगर कुछ छिपा रहे हो तो अपनी मुसीबत बुला रहे हो।"
"साहब बच्चों की कसम खाकर कहते हैं कि जो पता था सब बता दिया। कुछ नहीं छिपाया।"
इंस्पेक्टर सुखबीर को उसकी बात में सच्चाई नज़र आ रही थी। वह इससे अधिक नहीं जानता था। लेकिन उसने एक गुनाह में हिस्सेदारी की थी।
"हम मान लेते हैं कि तुमने हमें सब सही बता दिया है। पर तुम जानते थे कि यहाँ दो लोगों को लाकर कैद किया गया था। ये गैरकानूनी है। तुमने उनके गुनाह में साथ दिया है। तुम्हें हमारे साथ चल कर अपना बयान दर्ज़ कराना होगा। जब हमें तुम्हारी ज़रूरत पड़े तो तुम्हें कोर्ट में भी बयान देना होगा।"
इंस्पेक्टर सुखबीर ने सिक्योरिटी गार्ड को थाने लाकर उसका बयान दर्ज़ कर लिया।