Gumshuda ki talash - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

गुमशुदा की तलाश - 19


गुमशुदा की तलाश
(19)


"सर....सर..."
सब इंस्पेक्टर राशिद की आवाज़ सुन कर सरवर खान अपने खयालों से बाहर आए।
"क्या है राशिद ?"
"सर आप बहुत देर से चुप थे इसलिए पुकारा।"
"हाँ कुछ सोंच रहा था।"
"सर क्या यही सोंच रहे थे कि उस रॉकी ने हमें यहाँ कैद करके क्यों रखा है ?"
सरवर खान के मन में यही विचार आया था। इसी के कारण वह यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि रॉकी उन्हें पहचाना हुआ सा क्यों लगता है। जब उनका ध्यान उसकी आँखों पर गया तो मदन कालरा का चेहरा उनके सामने आ गया। रॉकी की आँखें मदन कालरा की याद क्यों दिलाती हैं। यह सवाल ही उन्हें अतीत की उस घटना में ले गया था।
"क्या हुआ सर ? आप फिर कुछ सोंचने लगे।"
"हाँ सोंचने वाली बात तो है कि उसने हमें यहाँ क्यों रखा है ?"
"सर यही तो मैं भी बहुत देर से सोंच रहा हूँ। वह यह जान गया था कि हम वहाँ जासूसी करने गए थे। तो फिर वह हमें मरवा सकता था। पर उसने हमें यहाँ भिजवा दिया।"
"कोई बात तो है राशिद...पर क्या बात है ? वह नहीं बता सकता हूँ।"
"सर अब ना जाने कितने दिनों तक हमें यहाँ रहना होगा। ये बात तो तय है कि इंस्पेक्टर सुखबीर ने हमें तलाशने की कोशिश शुरू कर दी होगी। अब देखना है कि यहाँ पहुँचने में कितना वक्त लगे।"
"हिम्मत रखो राशिद। सब ठीक होगा।"
"सर हिम्मत नहीं हार रहा हूँ। बस सोंच रहा था।"
सरवर खान कुछ नहीं बोले। सब इंस्पेक्टर राशिद ने उनसे सवाल किया।
"सर आप एसटीएफ के दिलेर ऑफिसर थे। अब एक कामयाब जासूस हैं। आप बहादुरी से खतरों का सामना करते हैं। आपको कभी डर नहीं लगता है ?"
सब इंस्पेक्टर राशिद के इस सवाल ने सरवर खान के दिल में दबे खयाल को उभार दिया। जब वह रॉकी के कब्ज़े में आए थे तब इस खयाल ने उन्हें बेचैन कर दिया था कि अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनकी बेटी शीबा का क्या होगा। इस खयाल के कारण पहली बार किसी खतरे की स्थिति में उन्हें डर लगा था।
पहले वह बेखौफ खतरों के सामने चले जाते थे। तब उन्हें लगता था कि अगर उनकी जान चली भी गई तो शकीना बहुत अच्छी तरह से शीबा की परवरिश कर लेगी। लेकिन अब तो शकीना नहीं थी। वह किसके सहारे शीबा को छोड़ कर जाएंगे।
"सर बताइए.... डर लगता है आपको ?
"राशिद.... जैसे कुदरत ने इंसान को और भावनाएं दी हैं वैसे ही डर भी एक जज़्बात है। मैं भी एक साधारण आदमी हूँ। तो डर मुझे भी लगता है।"
"सच....सर आपकी बहादुरी के जो किस्से सुने हैं उन्हें सुन कर मुझे लगता था कि आप कभी नहीं डरे होंगे।"
"राशिद डर हमें नहीं रोकता है। रुकते तो हम तब हैं जब डर के आगे झुक जाते हैं। मैं भी कई बार डरा पर डर कर हार नहीं मानी।"
सब इंस्पेक्टर राशिद कुछ देर खामोश रहा। फिर बोला।
"सर ये मेरी खुशकिस्मती है कि मुझे आपके साथ काम करने का मौका मिला। आप से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।"
"सीख तो हम सभी एक दूसरे से सकते हैं। सबके पास कोई ना कोई गुण होता है।"
इस बातचीत के बाद दोनों फिर चुप हो गए। सब इंस्पेक्टर राशिद अपने विचारों में खो गया।
सरवर खान फिर से उस घटना को याद करने लगे।
जीप को सुरक्षित जगह खड़ी कर सब लोग सावधानी के साथ उस पुराने घर की तरफ बढ़ने लगे। सरवर खान अपनी गन थामे सधे कदमों से आगे बढ़ रहे थे। उन्हें घर के बाहर खड़ा ट्रक दिखाई दिया।
सरवर खान ने धीरे से अपने साथी से पूँछा।
"अंदाज़ा है कि अंदर कितने लोग होंगे ?"
"सर कुछ कह नहीं सकता। मैं पीछा करते हुए यहाँ आया तो ट्रक इस मकान के सामने खड़ा था। मैं कुछ जानने समझने की कोशिश करता तभी कुछ लोग मकान से निकलते दिखे। मैं छिप कर देखने लगा। ट्रक ड्राइवर के अलावा तीन लोग बाहर आए थे। एक निर्देश दे रहा था। बाकी के दो माल उतार कर भीतर ले जा रहे थे। सर लकड़ी की कुल दस पेटियां थीं।"
"देखो ड्राइवर को मिला कर कुल चार लोग थे। हम भी चार ही हैं। आराम से संभाल सकते हैं।"
"सर ये ज़रूरी तो नहीं कि यही चार लोग हों। मकान के भीतर और लोग हो सकते हैं। हो सकता है कि उन सबके पास हथियार भी हों।"
"लेकिन यूं अटकलें लगाने से तो कुछ नहीं होगा। हमें कुछ तो करना होगा ना।"
"सर अगर हमें शक है कि अंदर और लोग भी हो सकते हैं तो क्यों ना हम मदद मंगा लें।"
"नहीं.... तुमने दस पेटियां बताई हैं। मुझे लगता है कि ड्रग्स के अलावा कुछ और भी है। तभी ट्रक रास्ता बदल कर यहाँ आ गया। अब अगर हम मदद का इंतज़ार करेंगे तो हो सकता है कि ये लोग सतर्क हो जाएं और बाज़ी पलट जाए। हमें ही कुछ करना होगा।"
"ठीक है सर....सामने के अलावा अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं है।"
"देखते हैं...."
मकान कच्ची सड़क के सबसे आखिरी में था। मकान की जो हालत थी उसके हिसाब से वह रिहायश के काबिल नहीं था। आसपास दूसरा कोई मकान नहीं था। मकान के सामने पेड़ों का एक झुरमुट था। जिनके कारण मकान बहुत हद तक छिपा हुआ था। वह मकान गैरकानूनी सामान रखने के लिए एक अच्छी जगह थी।
मकान के चारों तरफ ऊँची दीवार थी। सरवर खान ऐसी जगह देख रहे थे जहाँ से दीवार फांद कर अंदर जाया जा सके। वह मकान के पिछले हिस्से में पहुँचे तो वहाँ उन्हें दीवार से सटा मिट्टी और मलबे का ढेर दिखाई पड़ा। सरवर खान ने अंदाज़ लगाया कि इस चढ़ कर दीवार के ऊपर पहुँचा जा सकता है। उन्होंने अपनी टीम से कहा।
"मैं दीवार फांद कर अंदर जा रहा हूँ। भीतर जाकर स्थिति को समझने की कोशिश करूँगा। तुम लोग मेरे अगले निर्देश का इंतज़ार करना।"
सरवर खान मलबे के ढेर के सहारे दीवार पर चढ़े। उन्होंने झांक कर देखा। मकान के पिछले हिस्से में कोई दिखाई नहीं पड़ा। वहाँ बस घास और जंगली झाडियां उगी हुई थीं। वह सावधानी से दीवार कूद कर अंदर चले गए।
कुछ आगे बढ़ने पर एक कमरा दिखा। उसमें जंगले वाली खिड़की लगी थी। पर उसमें पल्ले नहीं थे। उन्होंने भीतर झांक कर देखा। अंदर दूसरे सामान के साथ उन्हें लकड़ी की पेटियां रखी हुई दिखीं।
सरवर खान और आगे बढ़े यहाँ दीवार का एक हिस्सा ढह गया था। वहाँ से आंगन का एक हिस्सा दिखाई दे रहा था। आंगन में भी झाडियां उगी हुई थीं। सरवर खान उस ढहे हुए हिस्से से आंगन में चले गए। आंगन के बीच में एक कुआं था। पर वह सूखा हुआ था। आंगन के चारों तरफ कमरे बने थे। हर कमरे के आगे बरामदा था।
अभी तक कोई व्यक्ति दिखाई नहीं पड़ा था। सरवर खान आगे के हिस्से में बने कमरे की तरफ बढ़े। वहाँ से कुछ आवाज़ें आती सुनाई पड़ीं। उन्होंने अपनी गन संभाल ली। एक खुली हुई खिड़की दिख रही थी। उन्होंने भीतर झांक कर देखा। सामने मेज़ पर शराब के गिलास दिखाई पड़े। चार कुर्सियां पड़ी थीं। तीन पर लोग बैठे थे। एक खाली थी। दो लोगों का चेहरा दिख रहा था। एक की पीठ दिख रही थी। उसके सामने की कुर्सी खाली थी।
जिस आदमी की पीठ दिख रही थी। वह बोला।
"अरे भाई अब तुम लोग पिओ। मुझे तो ट्रक लेकर जाना है।"
"एक पेग और....मैं नई बोतल खोल रहा हूँ।"
जो आदमी अब तक दृश्य से बाहर था वह हाथ में बोतल लिए खाली पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने अपने साथ सबके गिलास भर दिए।
सरवर खान को यकीन हो गया कि चार ही लोग हैं। चारों नशे में थे। उन पर काबू करना आसान था। सरवर खान ने अपने साथी को फोन कर सारी बात बता दी। उन्होंने अपने साथियों से कहा कि तुम लोग अचानक सामने से हमला करो। मैं पीछे से घेरता हूँ।

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