एक था लकड़बग्घा Siraj Ansari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक था लकड़बग्घा

एक जंगल में सभी पशु-पक्षी बड़े प्रेम से रहते थे। सभी खुश थे और एक दूसरे के दुःख दर्द में भी काम आते थे। कभी कभी हल्की आंधी तूफान या कोई आपदा आती तो सब मिलकर उससे निपट लेते थे। आसपास के दूसरे राजा उस जंगल की एकता अखंडता देख कर जलते थे।
उस जंगल का राजा एक बूढ़ा शेर था जो अपने मंत्रिमंडल के साथ सभी जानवरों, पशु-पक्षियों और जंगल के हित मे फैसले लेता था। लेकिन राजा की यह लोकप्रियता उसी जंगल के कुछ गीदड़ों को अखरती थी। उन्होंने सोचा कि अब यह राजा तो बहुत दिनों तक हम पर राज कर चुका क्यों न अब इसको हटा कर उसके स्थान पर अपना राज "गीदड़ राज" चलाया जाय। गीदड़ों ने अपनी इस योजना में कुछ बन्दर को अमरूदों, मूंगफलियों, केलों के साथ उनको एक भव्य बाग़ देने का लालच दे कर उन्हें भी अपनी इस नापाक योजना में शामिल कर लिया।
अब उन बन्दरों ने छोटे-छोटे भोले-भाले पशु-पक्षियों को भड़काना शुरू कर दिया। वे उन्हें अपनी मंडली में ले जाते और उन्हें हवा हवाई ख्वाब दिखाते और जंगल को आधुनिक जंगल बना कर उस जंगल की सुख समृद्धि के लुभावने सपने दिखाते। जंगल के इंसानियत भरे माहौल को बिगड़ता देख राजा के कुछ हिमायती पशुओं ने उनकी बातों का विरोध किया। नतीजतन बंदरों ने उन पर हमले करने शुरू कर दिए। जिससे जंगल का खुशनुमा वातावरण धीरे धीरे हिंसक रूप लेने लगा। अब तो आये दिन जगह-जगह से हिंसक घटनाओं की खबरें आने लगीं। राजा को जब इसकी भनक लगी तो राजा ने शांति कायम करने का प्रयास किया। आग ठंडी तो हुई लेकिन बुझी नहीं। बंदरों का षणयंत्र काफी अंदर तक फैल चुका था। राजा निश्चिंत हो गया और अपने राजकाज में लग गया।
अगले साल जंगल के चुनाव होने वाले थे। गीदड़ों ने अन्य जंगलों के अपने धूर्त राजाओं और साथियों के साथ मिलकर भोली-भाली जनता को विदेशी चकाचौंध और खुशहाली मॉडल के भाषणों के ज़रिए अपने जाल में फंसा लिया। खैर चुनाव में गीदड़ों की सेना जीत गयी और एक नए शासन की नींव रखी गयी। गीदड़ों ने सर्वसम्मति से एक तेज़तर्रार लकड़बग्घे को अपना राजा चुना और शासन की बागडोर उसे सौंप दी।
लकड़बग्घे ने जैसे ही मुकुट पहना वह मारे खुशी के उछल पड़ा क्योंकि उसके अच्छे दिन आ गए थे। उसने आननफानन में अपने आस पास के जंगलों के भ्रमण करना शुरू कर दिया। वह नित नए सूट बूट में एक जंगल से दूसरे जंगल घूमने लगा। वह जंगल मे विदेशी निवेश का मुद्दा लेकर उन सभी जंगलों के राजाओं से मिला जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसे चुनाव जितवाने में मदद की थी। उसने उन्हें अपने यहाँ आकर जंगल के भोले भाले जानवरों का शोषण करने का खुला निमन्त्रण पत्र दे दिया। उसने राजकोष का सारा धन अपनी भोगविलासिता और जनता को भ्रमित करने में लगा दिया। उसने जंगल से प्रकाशित होने वाले कई समाचारपत्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया और न्यूज़ चैनलों पर शिकंजा कस लिया। कई चैनलों के पत्रकार जैसे भीखू भालू, भौंभो कुत्ता, शातिर लोमड़ी आदि संकट देख कर सत्ता पक्ष के गुण गाने लगे। लेकिन पत्रकार चीकू खरगोश ने अपना ईमान नहीं बेचा। वह निडर हो कर जनता की समस्यायें दिखाता था और सरकार से सवाल जवाब तलब करता था। लेकिन जनता अभी उन्हीं सुनहरे वादों में खोई हुई थी। चीकू खरगोश पूरे देश की स्थिति का आंकलन करता और अपने बेहतरीन विश्लेषण के ज़रिए निकाले गए आंकड़े जनता के सामने रखता था। विपक्ष के लोगों में वह काफी लोकप्रिय हो गया।
धीरे धीरे समय बीतता गया। कार्यकाल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला। सत्ता हाथ से जाते देख गीदड़ों ने अबकी बार फिर से जानवरों को नए नए मुद्दों में बहला कर उनसे 5 साल और देने का आह्वान किया। उन्होंने पिछले राजा की नीतियों को खराब बता कर उनको सुधार करने के लिए थोड़ा और समय मांगा। जनता ने इस बार भी भरोसा किया और पहले से ज़्यादा मत दे कर लकड़बग्घे को फिर से अपना राजा चुन लिया। इस बार लकड़बग्घे ने राजकोष को लूटना शुरू कर दिया। बंदरों के द्वारा जंगल में नफरत का माहौल तो पहले ही बना दिया गया था। अब जो कोई भी राजा के खिलाफ बोलता बंदर उसको पीट देते थे और उस पर राजद्रोह का आरोप लगा कर उसको क़ैद कर लेते थे। कई बुद्धिजीवी जानवरों ने राजा की गलत नीतियों की आलोचना की लेकिन उनकी आवाज़ भी दबा दी गई। पत्रकार चीकू और उसके कुछ साथी फिर भी अडिग रहे।
और अंततः लकड़बग्घे की ऊलजलूल हरकतों और नीतियों के कारण एक दिन राज्य में आपातकाल की स्थिति पैदा हो गयी। राज्य की खुशहाली दिनों दिन कम होने लगी। जानवरों में प्रेम और सौहार्द की भावना खत्म हो चुकी थी इसलिए कोई एक दूसरे पर विश्वास भी नहीं करता था। बंदरों ने बुरी स्थिति देख कर अपने स्तर पर उछलकूद कर स्थिति को संभालने का जबरदस्त अभिनय किया। लेकिन स्थिति इतनी नाज़ुक हो गयी थी कि बंदरों को भी अब लगने लगा था कि संकट बहुत बड़ा है। तब उन्होंने एक एक कर गीदड़ों का साथ छोड़ना शुरू कर दिया। गीदड़ों ने जब ये देखा कि बंदर तो साथ छोड़ रहे हैं और कहीं ये बागी न हो जाएं तो उन्होंने उनकी हत्या करनी शुरू कर दी और जिस पूर्व राजा द्वारा बनवाये गए अस्पताल में उनका इलाज हुआ था उसी को खत्म करने लगे। चीकू खरगोशऔर उसके साथी अभी भी जनता को समझाने में लगे हुए थे। क्योंकि सारा जंगल तबाही की तरफ बढ़ने जा रहा था।
आखिरकार बहुत भयानक स्थिति से निपटने के बाद जानवरों को सद्बुद्धि आयी और उन्होंने लकड़बग्घे का शासन उखाड़ फेंकने का निर्णय लिया।
स्थिति को देखते हुए जंगल मे जल्दी चुनाव कराए गए और जानवरों ने मिलजुल कर एक समझदार, दूरदर्शी, सभ्य स्वभाव वाले शेर को अपना राजा चुना। लकड़बग्घे और उसकी सेना को जंगल छोड़ कर भागना पड़ा। धीरे धीरे जानवरों में आपसी एकता और भाईचारा पनपने लगा और पूरा जंगल फिर से खुशहाल हो गया। चीकू खरगोश मुस्कुराता हुआ फिर से वर्तमान राजा के कामों की समीक्षा करने में जुट गया।