भुवन का मेरठ में दवाई की दुकान चलाता था। रात को दुकान से आते आते काफी देर हो जाती थी।लिहाजा सुबह दुकान देर से जाता था। आज भी लगभग 9 बजे सोकर उठा। खाना पीना कहकर अपनी।श्रीमती के पास लगभग आधे घंटे आराम से रहता। यही वो आधे घंटे थे जब वो अपनी पत्नी के पास आराम से समय गुजार पाता था। तभी बाहर सब्जी वाले ने आवाज दिया।
उसने अपनी पत्नी रश्मि से कहा,जाओ देखो कौन कौन सी सब्जी लेनी है।
रश्मि:आज आप जाइये और सब्जी ले लीजिए। देखते नहीं मेरे हाथों में मेहंदी लगी हुई है।
जब भुवन ने ना नुकूर की तो उसकी माँ ने कहा:बेटा , आज तो तेरे।लिए उपवास भी कर रही है। जा आज तू ही सब्जी लेले।
भुवन चुपचाप बाहर चला गया सब्जी लेने।
लौटकर कमरे में आया देखा तो उसने रश्मि को ध्यान से देखा। आज उसकी पत्नी काफी सजी हुई थी। बड़ी खुबसूरत लग रही थी। आज बड़े प्यार से उससे बातें कर रही थी। समझ नहीं आया, आज शेरनी को क्या हो क्या है? आज उसकी दहाड़ क्यों बन्द है। दरअसल उसको अपनी बीबी की दहाड़ सुनने की आदत सी लग गई थी। दरअसल।अपनी बीबी के कड़वे बोल को वो मजाक मजाक में।दवाई कहता था। आज रश्मि के मुख से मीठे बोल सुनकर उसको डर लगने लगा। उसको अपने जेब की चिंता होने लगी। कहीं आज उसकी जेब पे चुना तो नहीं लगने वाला है।
भुवन ने रश्मि से पूछा:सुनोजी , आज बात क्या है?आज तुम्हारी।दवाई नहीं मिली?
रश्मि ने शर्मा कर कहा:आज तो तीज है। आज मैं आपसे मुंह कैसे फुला सकती हूँ? वैसे मेरी दवाई इतनी बुरी है क्या?
भुवन ने मुस्कुराते हुए कहा:अब ये तो सरदारजी से पूछ लेती। वोही बता देता।
भुवन को 10 साल पहले की सरदारजी वाली घटना याद आने लगी। माई और बाबूजी गाँव से आये हुए थे। आगरा में ताजमहल घूमने की ईक्छा थी। तब ओला और कुबेर वाले टैक्सी नहीं हुआ करते थे। भुवन ने टैक्सी स्टैंड से एक सरदारजी का टैक्सी ठीक किया। सुबह 5 बजे सरदारजी को आना था।
अगले दिन भुवन 4 बजे उठ गया था। उसकी बीबी तो पहले से हीं उठकर रास्ते में खाने के लिए खाना तैयार कर रही थी। माई बाबूजी भी उठकर तैयार होने लगे थे। भुवन को चिंता थी, सरदारजी समय पर आएंगे या नहीं।
लेकिन ठीक 4 बजकर 55 मिनट पर सरदारजी आ गए। देखने में लगभग 65 की उम्र। नीला रंग का करता पायजामा, खाकी रंग की पगड़ी और उजले रंग की बड़ी बड़ी सफेद दाढ़ी। दिखने में कहीं से वो ड्राइवर नहीं लग रहा था। नाम था करतार सिंह। खैर निकलते निकलते साढ़े पाँच बज हीं गए।
भुवन बहुत खुश था। आज माई बाबूजी और रश्मि के साथ ताजमहल देखने का मौका जो मिल रहा था।
सरदारजी काफी जिंदादिल इंसान लग रहे थे। 65 की उम्र का उनपर कोई असर नहीं पड़ रहा था। टैक्सी में धीमी आवाज में मोहम्मद रफी का गाना चल रहा था। सरदारजी गुनगुनाते हुए बड़े आराम से टैक्सी चला रहे थे।
बहुत दिनों के बाद भुवन को रास्ते में हरे हरे खेत, चहचहाते हुए पंछी दिखाई पड़े। इनको देख कर उसका मन हर्ष से भर उठा। अचानक एक भैंस उनको टैक्सी के सामने आ खड़ी हुई। सरदारजी बार बार हार्न बजा रहे थे, पर वो भैंस रास्ते पे आके खड़ी हो गई थी। भुवन झल्ला उठा था। सरदारजी इसको उतरकर मारते क्यों नहीं। रास्ते से हटने का नाम हीं नही ले रही।
सरदारजी बोले, ठीक है अभी देखता हूँ । वो उतरकर भैंस को पुचकारने लगे। वो बार बार भैंस को पुचकारते, फिर भी भैंस हट नहीं रही थी। भुवन को गुस्सा आ गया। वो उतरकर डंडे उठाकर मारने हीं वाला था, कि अचानक भैंस हट गई। उसका बछड़ा सड़क की झाड़ियों से भागता हुआ दिखा।
भुवन और सरदारजी आकर टैक्सी में बैठ गए। भुवन अभी भी भैंस पर भुनभुना रहा था। ये भैंस महामूर्ख होती हैं।ये केवल डंडों की भाषा जानती है।
सरदारजी बोल पड़े, आप तो नाहक हीं बेचारी भैंस पर बिलबिला रहे हैं। वो तो अपने बछड़े को ढूंढ रही थी। भैंस तो मूर्ख है हीं, इसीलिए तो बेचारी उम्र भर आदमी को दूध देती है और जब बेचारी बूढ़ी हो जाती है तो किसी कसाई के हाथों चढ़ जाती है।
भुवन चुप हो गया।
खैर , सूरज के चढ़ने से पहले हीं वो आगरा पहुँच गए। ताजमहल के लिए टिकट ले रहे थे तो रास्ते मे भिखारी बच्चे आ खड़े हुए। भुवन को गुस्सा आ गया। वो भिखारियों को डाँटने लगा। पढ़ने की उम्र में भीख माँगते हो, शर्म नहीं आती। भिखारी बच्चे सहम गए।
पर सरदारजी ने उन सब बच्चों को 1-1 रुपये दे दिये।
भुवन सरदारजी को झड़क दिया। आप जैसे लोग हीं इन भिखारियों की जमात को बढ़ाते हैं।
सरदारजी ने कहा: कोई खुशी खुशी तो भीख नहीं मांगता। कोई न कोई तो मजबूरी रही होगी। वैसे इन 1 रुपयों को बचाकर मैं कौन सा करोड़पति बन जाऊँगा?
भुवन चुप हो गया। रश्मि ने भुवन को झिड़का, आप क्यों इस ड्राईवर के मुँह लगते हैं? अब तो भुवन शांत हीं हो गया। भीतर जाकर ताजमहल घूमे। सारे लोग ताजमहल को देखकर प्रसन्न थे।
शाम को 4 बज गए। लौटने का वक्त हो चला था। आगरा से वापस मथुरा की तरफ टैक्सी चल पड़ी। भुवन, रश्मि, माई और बाबूजी घर से खाना लाए थे। वो ही दोपहर में खा लिए थे। पर शाम का वक्त हो।चला था। 6-7 बजे तक हल्की सी भूख लग आई थी। सरदारजी एक ढाबे पे उतरे और पकौड़ा और पेड़े खाने लगे। भुवन को भी देने की कोशिश की, पर रश्मि ने यह कहकर मना कर दिया कि इससे कोलेस्ट्रोल और।शुगर बढ़ता है।
खैर टैक्सी आगे बढ़ी। फिर एक ढाबा नजर आया। वहाँ संतरा का जूस मिल रहा था। सबने पी। पर जब सरदारजी को वो दिया गया, तो उन्होंने मना कर दिया। सरदारजी ने कहा, मुझे फल का जूस अच्छा नहीं लगता। फिर उन्होंने लस्सी और समोसे का आर्डर दिया और हजम कर गए।
भुवन आश्चर्य कर रहा था:इस उम्र में ऐसा ऊटपटाँग खाना। खैर गाड़ी आगे बढ़नी लगी। रात के 8 बजने को आये। सरदारजी ने फिर एक ढाबे पे गाड़ी रोकी, कहा दवाई लेकर आता हूँ। थोड़ी देर में आये और बोले दवाई नहीं मिली, आगे देखता हूँ।
आगे तो दिन ढ़ाबे पर टैक्सी रोकी पर उनकी दवाई नहीं मिली। मथुरा नजदीक आ रहा था। सरदारजी ने ढाबे पे फिर गाड़ी रोकी तो रश्मि ने धमका दिया, सरदारजी ये तुम्हारी कौन सी दवाई है जो ढाबे पे हीं मिलती है?सरदारजी चुप हो गए।
टैक्सी आगे बढ़ती रही। सरदारजी का मुँह सूखने लगा था। बाबूजी ने कहा, इस उम्र में इस तरह का खाना खाओगे तो मुँह सूखेगा हीं।
आगे एक दवाई की दुकान आयी। रश्मि ने कहा, सरदारजी आप यहाँ पे अपनी दवाई देख लो। पर सरदारजी ने टैक्सी रोकी नहीं। टैक्सी बढ़ती रही।
सरदारजी ने टैक्सी फिर एक ढ़ाबे पर रोकी। रश्मि ने धमकाते हुए कहा, ये कौन सी दवाई है जो ढ़ाबे में हीं मिलती है। मजबूरी में सरदारजी ने बताया, दिन भर टैक्सी चलाते चलाते थकान हो जाती है, लिहाजा व्हिस्की पीना जरूरी हो जाता है।
ये सुनकर रश्मि आग बबूला हो उठी थी। उसने सरदारजी को आँखे दिखाते हुए कहा, सरदारजी अब चुपचाप घर चलो। रास्ते मे किसी भी ढाबे पे टैक्सी रोकने की जुर्रत की तो उससे बुरा कोई न होगा। रश्मि की शेरनी सी दहाड़ को सुनकर सरदारजी की बोली सटक गई।
उन्होंने लड़खड़ाती हुई आवाज में रश्मि से पूछा: बेटी अपनी पत्नी को कितनी बात मारी हो? सरदारजी के इस प्रश्न के बाद टैक्सी में सन्नटा छा गया जो मथुरा पहुँचने के बाद हीं टूटा।
उतरते वक्त सरदारजी ने कहा:मैं शराब नहीं पीता, मैं तो वैसे हीं दिल्लगी कर रहा था।
भुवन समझ आ गया था; रश्मि की दवाई ड्राईवर के दवाई पर भारी पड़ गई थी।
अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित