कहानी- "पुनर्जन्म"
देव एक चबूतरे के बीचों बीच चारपाई में लेटे थे,एक तो गर्मी का महीना, और सुबह लगभग दस बजे का समय,धूप तेज होती जा रही थी।चबूतरे के छोर में बायीं ओर नीम के पेड़ की छाया जीवन बर्षा कर रही थी।देव गर्मी की छुट्टी में आते थे तो नीम के पेड़ के नीचे वक्त गुजारते।इस नीम के पेड़ को देव और ममता ने बचपन में लगाया था इसीलिए इस पेड़ से इतना मोह भी था।देवदास किसी किताब में आँखे गड़ाए ध्यानमग्न थे,तभी देवदास के बड़े भाई आए और बोले ममता के पति का एक्सीडेंट हो गया और वही दम तोड़ दिया।देवदास के चेहरे पर तकलीफ की रेखा खिंच गयी,अनायास किताब बंद हो गयी। देवदास के मुँह से गहरी सांस ली और ध्यान मग्न हो गए और पिछली बातें याद करते हुए यादों के समन्दर में गोते लगाने लगे।जब स्कूल का पहला दिन,देव की कलम टूट गई थी तो ममता ने देव को कलम दे कर मदद की थी तभी से देव और ममता की दोस्ती बढ़ती गई।अब दोनों एक दूसरे की मदद करते, खेलते कूदते रहते।छुट्टियों के दिन में एक दूसरे के घर भी आ जाते ,साथ रहते खाना खाते, खेलते और शाम ढलते अपने अपने घर तब जाते जब कोई घर का लेने आता।ज्यादातर समय साथ साथ बीतने लगा।समय बीतता गया, जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी दोस्ती की नींव मजबूत होती गयी। अब वो वक्त था जब स्कूल की पढाई पूरी हो चुकी थी ,कक्षा आठवीं पास करके आगे की पढ़ाई करने देव शहर चला गया लेकिन ममता के माँ - बाप ने पढाई बंद करा दिया।यह तर्क देते हुए की लड़की है, पराया धन है, चौका चूल्हा ही तो करना है पढ़ाने से क्या लाभ? कैसा है समाज का दोगला पन।एक ही कोख से जन्म लियाऔर प्यार , शिक्षा में भेद।समाज अपने स्वार्थ की नीचता की बैशाखी पर चढ़कर तर्क भी अपने अनुसार बदल लेता है, फिर वो ये नहीं सोचता की ये तर्क नहीं कुतर्क है।
देव और ममता कभी कभी ही मिल पाते थे दोनों का घर भी आना जाना कम हो गया था ।ममता पर समाज की बेड़ी तो देव पर संकोच की बेड़ी।जैसे जैसे उम्र बढ़ती गयी और एक कलंकित उम्र की ओर बढ़ने लगे वैसे वैसे दोनों में संकोच की खाई खुदने लगी।समय बीतता गया देव गर्मी की छुट्टी में आए तो ममता की शादी बाल्यावस्था में ही हो चुकी थी, देव अब उदास था, ममता कैसी होगी, एक बार भी मुझे याद नहीं किया और नीम के पेड़ के नीचे बैठ ममता को याद कर मन तसल्ली दी जैसे ममता से गिले शिकवे दूर हो चुके हो। पिछली बार जब जब छुट्टी में आए थे तो सुना था कि ममता का दो साल का लड़का भगवान को प्यारा हो गया। बेचारी पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। कैसे जी रही होगी ममता ।यही सब बातें देव देव के मन को झकझोर रही थी। जब से आठवीं पास करके देव बाहर गए,ममता ईद का चांद हो गई। दर्शन भी नहीं हुए थे।दो साल बाद अब ये सुनने को मिल रहा है कि ममता विधवा हो गयी। बेचारी पे आफत का पहाड़ टूट पड़ा।अब कैसे जीवन बिताएगी।देव मौन रूप से नीम पेड़ को निहार रहे थे जैसे पेड़ कुछ कह रहा हो और देव समझ रहे हो। आखिर देव को एक दिन पता चला की एक महीना हो गया, ममता अपने पिताजी के घर आ गई ।अब देवदास की उत्तेजना बढ़ गयी ममता से मिलने की ।शाम होते होते दो चक्कर भी लगा आए ममता के घर का। लेकिन घर घुसने की हिम्मत नहीं हुई और असफल होकर लौट आए ।शुबह हुई तो यही सोचते रहे कि अब चाहे कुछ भी हो अब जरूर जाऊंगा ममता के घर , लेकिन !जाकर करूंगा क्या? हमदर्दी के दो चार शब्द कहूंगा ।और ज्यादा दुख होगा तो आंसू ही बहा दूंगा ।लेकिन अब तक तो दो-चार तो क्या हजारों लाखों शब्द सुन चुकी होगी ममता, और सैकड़ों आंसू गिरे होंगे। तो क्या ममता का दुख खत्म हो जाएगा!लेकिन उसे देखने जाऊंगा जरूर। यह सब सोचते-सोचते सुबह से शाम हो गयी देवदास नींद के कब हवाले हो गए पता ना चला। और जब सुबह आंख खुली तो बस मन में एक ही धुन थी ममता से मिलना है आज ,जल्दी जल्दी उठ स्नान ध्यान के बाद अपने संकल्प को पूरा करने के लिए चल पड़े। जैसे जैसे ममता के घर के नजदीक पहुंचते जाते घबराहट बढ़ती जाती ।बस यही सोचते कि ममता से ऐसे हाल में मिलूंगा कैसे? अंतर्मन में दो पक्षों पर बहस छिड़ी थी। अंत में निर्णय लिया कि मेरी हमदर्दी की जरूरत ना हो तो, तो ममता के पास क्यों जाऊं? नहीं आऊंगा।उल्टे पांव वापस आ गए और उसी नीम के पेड़ के नीचे चारपाई में बैठ गए ।बस आज ही का वक्त था नीम की छांव में बैठने का क्योंकि देव को छुट्टी समाप्त हो चुकी थी कल सुबह ही जाना था ।फिर वही दफ्तर की कांव-कांव जब भी लंच में सभी अध्यापक इकट्ठे होते तो कभी राजनीति पर तो कभी क्रिकेट पर बहस छिड़ जाती। कोई कहता अरे अपना सचिन आज चलेगा शतक ठोकेगा। तो दूसरी तरफ से आवाज आतीअरे यार सचिन आउटफॉर्म चल रहा है वह नहीं चलेगा ,तो तीसरा बोलता कुछ भी हो भारत जरूर जीतेगा क्योंकि आज विपक्ष से इंजमाम नहीं खेल रहा है और शोएब बॉलिंग के बल पर क्या कर लेगा ।तो कभी राजनीति पर हुवास चढती ।कोई कांग्रेसी होता तो कोई भाजपाई,फिर क्या संसद भवन फेल।
देव एक इंटर कॉलेज में क्लर्क थे। कॉलेज की व्यस्ततम लाइफ में भी देव का मन नहीं लग रहा था। अगली छुट्टियां हुई तो देव घर वापस आये । देव अब ममता की यादों को किनारे करने लगे ।अभी छुट्टियां पांच छः ही बीती थी । फिर से देव को खबर मिली की ममता के पिताजी ने साफ शब्दों में कह दिया कि हम तुम्हारे कर्म के साथी नहीं हैं तुम जाओ अपने घर। मायके से डोली उठती है और अर्थी ससुराल से उठती है। ममता के जीवन की सबसे भयावह घटना थी यह। जिस बाप ने पाला पोसा दुलार करके बड़ा किया वहीं दुत्कार रहा हैै आज। ममता असहाय हो चुकी थी ।जीवन जीने के सारे आयाम जैसे खत्म हो चुके थे। प्रेम ही जीवन है ,नफरत और दुत्कार मृत्यु।
समाज का सच्चा प्रतिबिंब ममता ने आज देखा था।जहाँ कोई भी किसी को सांत्वना, साहस जैसे बेमोल, लेकिन गिरते हुए को अनमोल वचन तक नहीं बोल सकता?छी है ऐसे संसार को।ममता पैदल वापस चल दी वापस अपने मायके से , लेकिन निरुद्देश्य, निःसोच।ममता समझ नहीं पा रही थी क्या करे कहाँ जाये।जिए या न जिए ।जहाँ हवसी, लालची भेड़ियों की भरमार हो।औरत को लक्ष्मी, काली, दुर्गा तो सबने कहा लेकिन माना किसी ने नहीं।यहाँ औरत को सभी नौकरानी मानते है, कठपुतली की तरह नचाना चाहते है बस।
ममता पर जीवन बोझ इस तरह हावी हुआ कि ममता की सहनशीलता जवाब दे गयी और अपने जीवन का अंत करने का निर्णय कर चुकी। रेलवे की पटरी को अपनी मृत्यु शैय्या समझ लेट गई।अपने जीवन के सभी दर्द एक झटके में समाप्त कर अपनी जीवनलीला समाप्त करना चाहती थी।बड़ा सुकून झलक रहा था उसके मुखमंडल से,माथे पर अवसाद की रेखा मिट चुकी थी। वह मृत्युशैया पर लेटी कल्पना लोक मे खो गई, जैसे उसका स्वर्गवासी पति उसे लेने आया हो और स्वर्गवासी नवजात शिशु किलकारियां भरता हुआ गले से लिपट गया हो। ममता का चेहरा मुस्कान से भर गया और निस्तेज चेहरा तेजवान हो गया जैसे चंद्रमा पूर्णिमा की रात को अपनी संपूर्ण आभा बिखेरता है और चकोर टकटकी लगाए चाँद को देखकर खुश होता है।उसी तरह ममता की स्थिति थी। लेकिन चिर निद्रा में सोने का वक्त शायद अभी नहीं था।
जैसे ही ममता ट्रेन की पटरी पर लेटी थी पीछे से देव आ गए ।शायद संकोच की की लक्षमण रेखा तोड़ चुके थे।ट्रेन आती और ममता की अस्मिता से खेलते हुए अस्तित्व मिटाती, देव ने झट से ममता को हटा लिया। देव बोले - ये क्या करने जा रही थी ममता ? ममता थोड़ा झिझकी जैसे बेहोसी से जाग उठी हो ,फिर एक कोने में ऐसे दुबक कर बैठ गयी जैसे शरीर में जान ही न हो।
देव समझ गए कि घोर गम में डूबी ममता आसानी से सामान्य नहीं होगी, वक्त लगेगा।
देव धैर्यता से बोले"ममता आओ मेरे साथ, पहले अच्छे से बैठ जाओ पास में ही प्लेट फॉर्म है वही चलते है फिर बात करेंगे।
ममता फिर भी कुछ न बोली।
देव फिर बोले - देखो ममता, मैं सब कुछ जानता और समझता हूँ तुम्हारे बारे में। वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है ।तुम धीरज रखो सब ठीक हो जायेगा।मैं कई दिनों से तुमसे मिलना चाहता था ,लेकिन समाज की रूढ़ वादिता ने जैसे मेरे पैरों पर जंजीर की बेड़ी लगा दी थी। लेकिन जब मैंने आज सुना की तुम वापस जा रही हो निराश, निसहाय होकर तो मैं अपने आप को रोक नहीं सका। धिक्कार है ऐसे समाज को जो एक अबला की मदत नहीं कर सकता। परेशान हुए पर सद्भावना के मीठे बोल नहीं बोल सकता,उसे उठ खड़े होने के लिए आशा की किरण नहीं बन सकता।और ऐसे समाज को एक तमाचा भरा उदाहरण नहीं बनना चाहती हो।
ममता शांत भाव,हारी हुई मुद्रा में एक लंबी साँस छोड़ते हुए बोली "नही" यहाँ सब गंदे हैं और सब मेरे आँचल को गन्दा करना चाहते हैं।
देव बोले हाँ इस समाज की सोच गन्दी है लेकिन मै तुम्हारे साथ खड़ा हूँ और हमेशा रहूँगा।मै तुम्हारी बहुत इज्जत करता हूँ मै तुम्हारे आँचल को गन्दा नहीं होने दूँगा।
एक बार फिर सन्नाटा छा गया।थोड़ी देर बाद सन्नाटा चीरते हुए देव बोले, याद है ममता जब हम छोटे थे, बचपन में एक नीम का पेड़ लगाया था वो अब विशाल पेड़ हो गया है मै अक्सर उस नीम को निहारता हूँ और बचपन की याद आती है, और तुम्हे याद करता हूँ।
मुझे तुम्हारी फिकर लगी रहती है।
अब चलो यहाँ से कुछ खा लो तुम्हे भूख भी लगी होगी।
देव हाथ आगे बढ़ाते हुए बोले आओ चलते हैं।ममता ने देव की तरफ देखा फिर खड़ी हो गयी और देव के पीछे चल दिया।दोनों ने नास्ता किया फिर प्लेट फार्म में बैठ गए।
ममता के अंतर्मन में देव की बातें बार-बार घूम रही थी।ममता के जीवन का अहम मोड़ था।ममता का अब पुनर्जन्म था।एक तो मृत्यु से बचकर नया जीवन जीने का और दूसरा निराशा ,निःसहाय, बोझिल, मरा हुआ जीवन छोड़ एक आशावान जीवन जीने का ।
देव चुप्पी तोड़ते हुए फिर बोले "देखो ममता संकोच मत करो मुझे अपना वही बचपन का दोस्त समझो जो साथ साथ खेलते और लड़ते झगड़ते भी थे।पर अगले पल एक हो जाते थे एक दूसरे के बिना नहीं रहते थे और आज तुम पराया मन रही हो।
ममता चुप्पी तोड़ते हुए बोली लेकिन वो बचपन की बात और थी ...लोग क्या कहेंगे?
तुम्हे अभी लोगो की फ़िक्र है, जो लोग अभी तक तुम्हारा तमाशा देख रहे थे।उनके बारे में सोचकर मर जाना चाहती हो और अपने लिए जीना नहीं चाहती!
मुझे तुम्हारी सभी सरते स्वीकार होगी, तुम्हे जो रिस्ता मुझसे जोड़ना चाहती हो स्वीकार है।तुम मेरे साथ चलो और सुकून से रह सकती हो।अपना आजाद जीवन।
और अब चलो यहाँ से दूर।
और फिर ममता देव के साथ चली गयी जहाँ देव नौकरी करते थे।
जिस तरह पृथ्वी पहले आग का गोला थी फिर धीरे-धीरे ठंढी हुई, फिर जीवन का संचार हुआ।उसी तरह ममता का हृदय भी धीरे -धीरे पुराने गम के दिन भूलते गए। और फिर एक नए जीवन का संचार हुआ।और ममता को नयी जिंदगी मिली।फिर देव और ममता हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए।और एक नयी ममता का पुनर्जन्म हुआ। जहँ ख़ुशी ही ख़ुशी थी।गम का नाम भी न था।
समाप्त
लेखक-दिनेश त्रिपाठी