अफसर का अभिनन्दन - 22 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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अफसर का अभिनन्दन - 22

हेलमेट की परेशानी

यशवन्त कोठारी

वरमाजी राष्ट्रीय पौशाक अर्थात लुगी और फटी बनियांन में सुबह सुबह आ धमके। गुस्से में चैतन्य चूर्ण की पींक मेरे गमले में थूक कर बोले यार ये पीछे वाले हेलमेट की गजब परेशानी है। पहनो तो दोनो हेलमेट टकराते है, नहीं पहनो तो पुलिस वाले टकराते है। अब आप ही बताओं भाई साहब नब्बे बरस की बूढ़ी दादी या नानी को मंदिर दर्शन ले जाने वाला पोता या नाती इस दूसरे हेलमेट से कैसे जीते। दादी-नानी जिसकी गर्दन हिल रही है, कपडे नहीं संभाले जा रहे है वो बेचारी सर पर टोपलेनुमा हेलमेट को कैसे संभाले। मन्दिर में घुसो तो साग सब्जी के थैलो की ऐसी जांच होती जैसे सब के सब आतकवादी या उठाईगिरे है। नारियल बाहर रख दो। क्या नारियलो के अन्दर बम भरा जा सकता है ? वरमाजी ने लुगी को फोल्ड किया और अपना प्रवचन जारी रखा।

पुलिस कमिश्नरी क्या बनी हम सब की जान आफत में आ गई। उपर से तुर्रा ये कि ये सब जनता की भलाई और सुरक्षा के लिए ही किया जा रहा है। भाई साहब आप बताये चालान का डर दिखा कर नोट जेब में रखने में जनता की कौनसी भलाई हो रही है ? चालान भी कैसे कैसे। कल का किस्सा मुझे रोक लिया। कागज दिखाओं। कागजात देख कर प्रदूपण प्रमाण पत्र मांगा। प्रदूपण का चालान तीन सौ रुपये बताया गया। मैं सिट्टी पिट्टी भूल गया, फिर चालान कर्ता ने समझाया रौंग साइड का चालान बनवा लो। साहब खडे है, मैंने रौंग साइड का चालान बनवा कर सौं रुपये की रसीद कटवा कर पचास रुपये का सुविधा शुल्क उनकी सेवा में प्रस्तुत कर जान बचाई।

वर्मा जी पिछले हेलमेट की आपने खूब कहीं। मिसेज जब चोंच वाला हेलमेट पहन कर पीछे बैठती है तो मेरे सिर पर हेलमेट टकराता है। वैसे भी देश के कई शहरों में हेलमेट अनिवार्य ही नहीं है और पिछली सवारी के हेलमेट का नाटक तो शायद इस गुलाबी शहर में ही है। बेचारे बड़े-बूढ़े दादा-दादी, नाना-नानी तो मन्दिर-मस्जिद तक भी नहीं जा पाते। सरकार ने यदि नियम बना ही दिया है तो इस पर नरम रुख अपनाना चाहिये। हजारों कानून शिथिल पड़े हुए है एक और सही क्या फरक पड़ता है। वैसे सरकार का बस चले और कोई हेलमेट कम्पनी पूरा सुविधा शुल्क दे तो हर पैदल चलने वाले के लिए भी हेलमेट अनिवार्य कर दे। मैंने भी वरमाजी को आश्वस्त किया।

शहर के हर चौराहे पर चौथ वसूल करते टेफिक वाले और शाम को सुविधा शुल्क का बंटवारा करते ये लोग देखे जा सकते है। रात के समय तो बस वारे-न्यारे हो जाते है। चौराहो पर कभी बत्ती नहीं जलती, जेबरा क्रास नहीं होता, स्टापलाइन नहीं होती लेकिन चालान बुक लेकर अपने बच्चों के लिए सुविधा शुल्क जमा करने वाले हर समय चाक-चौबन्द मौजूद रहते है। बहस करने पर चोड़ा रास्ता में एक व्यक्ति के उपर पुलिस ने क्रेन ही चढ़ा दी थी। इधर-उधर पार्किंग में खड़े वाहनों को उठाने वाले ठेकेदार तो पुलिस वालों से ज्यादा बदतमीज है, वे पुलिस के नाम को भू नाते है और धमकाते है। यदि आप हरी लाइट में रवाना हुए और अचानक पीली हो गई तो भी चालान ठोंक दिया जाता है। भाई कमिशनरी के फायदे हजार है और वैसे गृह मंत्री कह चुके है पुलिस कमिशनरी फेल हो गई है।

जीवन में चालान होना एक कटु-सत्य है और पुलिस को दिया जाने वाला सुविधा शुल्क और भी बडा सत्य। चालान के सच-झूठ की चर्चा करना भी शायद गलत हो और मेरा एक और चालान हो जाये अतः इस चालान पुराण को बन्द करते हुए निवेदन है कि पिछली सवारी पर बैठी बुर्जुग महिला के प्रति सम्मान न सही एक नरम रुख तो पुलिस-सरकार अपना ही सकती है। क्या खयाल है आपका ?

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यशवंत कोठारी ए८६एलक्ष्मी नगरएब्रह्मपुरी बाहर जयपुर .मो--9414461207