अफसर का अभिनन्दन - 21 Yashvant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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अफसर का अभिनन्दन - 21

कहाँ गए जलाशय ?

यशवंत कोठारी

भयंकर गर्मी है देश –परदेश में पानी के लिए त्राहि त्राहि हो रही है.बूंद बूंद के लिए सर फूट रहे हैं .अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जायगा.देखते देखे हजारों जल स्रोत मर गए.उनका कोई अत –पता नहीं है.नदियाँ नाले बन गई.नाले लुप्त हो गए.झीले ,तालाब,पोखर ,कुएं बावड़िया सब धीरे धीरे नष्ट हो रहे हैं,जो लोग पचास साठ साल के हैं वे जानते हैं उनके आस पास के जल श्रोत याने वाटर बॉडीज समाप्त हो गए.जयपुर का राम गढ़ बांध मर गया ,कानोता बांध आखरी सांसे गिन रहा है अनुपम मिश्र ने शानदार किताब लिखी,आज भी खरे हैं तालाब मगर बिसर गए हैं तालाब और रजत बूंदों को तरस गए हैं हम सब.बिसल पुर का पानी दो चार साल चलेगा.नई पीढ़ी केवल यह जानती हैं की नल से पानी आता है,या टेंकर से या फिर सोसाइटी वाले पानी का इंतजाम करते हैं.हमारी वाली पीढ़ी ने कुओं ,झीलों. तालाबों ,नालों को मिटटी से पाट उन पर भवन बना दिए.अतिक्रमण व् भूमाफियाओं ने पहाड़,घाटियाँ ,वाटर बॉडीज किसी को नही छोड़ा.सब पर टू बी एच के बन गए.पीने के पानी को तरस जायेंगे.बरसात का पानी एकत्रित करने की तकनीक भूल गए .सरकार ने हजारों करोड़ रूपये नमामि गंगे में बहा दिए ,कोई परिणाम नहीं आया.दिल्ली की यमुना पर रविशंकर ने प्रदुषण फैलाया मात्र पांच करोड़ का जुरमाना देकर बच गए.कही एसा दिन न आ जाये की पानी का आयात करना पड़े वैसे राजस्थान में वाटर ट्रेन चलती है मिनरल वाटर की कोई कमी नहीं हैं गर्मी में गला तर किया जा सकता है.कोई बहु राष्ट्रीय कम्पनी पूरा पैसा मिलने पर किसी भी बांध कुए को भरने का टेंडर ले सकती है.गांवों में ,कस्बों में,शहरों में पुराने जलस्रोत या तो नष्ट कर दिए गए या फिर उन्हें अनुपयोगी बना दिया गया.सभ्यता का विकास नदियों के किनारे ही हुआ था आज हम नदियों को याने सभ्यता को भी भूल रहे है.

भारत में नदियों का मानव सभ्यता के साथ निकट सम्बन्ध रहा है.भारत की प्रमुख नदियों में ब्रह्मपुत्र,गंगा ,यमु ना ,कृष्णा ,कावेरी,गोदावरी,चम्बल,बनास व् अन्य सेकड़ों नदियां इस पावन धरा पर हैं,सरस्वती नदी लुप्त हो गयी लेकिन मान्यता कायम है.प्राचीन ग्रंथों में नदियों को देवी स्वरूप माना गया है.नदियों के साथ ही झीलें ,तालाब,नाले .पोखर कुएं बावड़ियाँ,कुंड बांध और अन्य कई प्राकृतिक व् मानवीय स्थल है जो हजारों सालों से सबकी प्यास बुझा रहे हैं.इनमे नदियों का महत्व सब से अधिक है नदियों को बनाया नहीं जा सकता पंजाब में पांच नदियाँ थी ,दक्षिण में भी नदियों का भा री जाल है.अगर ये पानी के स्थल नहीं रहेंगे तो पृथ्वी पर जीवन भी नहीं रह सकेगा.देश की हर नदी अभिशप्त है.व्यवस्था,सरका र ,समाज ,सब मिलकर नदियों को नष्ट करने में लगे हुए हैं .प्रतिवर्ष होने वाले मेले ठेले नदियों की जा न के दुश्मन बन गए हैं नदियों के भी मानव अधिकार है उनकी हत्या की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए.केवल बजट खर्च करने कुछ नहीं होगा ईमानदार प्रयासों की जरूरत है.

हजारों सालों से ये नदियाँ हमारी जीवन रेखा है ,सभी प्राणियों का जीवन इस जल के इर्द गिर्द ही घूमता है.जल विहीन जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती.लेकिन आज इन नदियों की क्या स्थिति है?

राजस्थान में बनास नदी के किनारे बसे नाथद्वारा में जन्मा.नदी के पानी के बहाव की आवाज़ घर तक आती थी ,एक पुराना पुल था .बाद में बांध बना और बांध के उपर एक और नाका बंदी हो गई,नदी सूख गई.पाट चोड़ा था लोगों ने अतिक्रमण कर लिए ,होटल धर्मशला ,मंदिर,आश्रम आदि बन गए,नदियों कि हत्या होना शुरू हो गया.कुछ बड़ा हुआ तो जयपुर में द्रव्यवती नदी व् कुम्हारों कि नदी को मरते देखा,लबालब भरा राम गढ़ देखा और मरा हुआ राम गढ़ भी देख रहा हूँ.उदयपुर की आयड नदी भी बरसाती नाला हो गयी.कोठारी नदी सूख गयी.आते जाते चम्बल ,यमुना ,गंगा नदियों की दुर्दशा भी देखि.बंगलोर व् केरल आते जाते दक्षिण की नदियों की ख़राब हालत भी देखि .सरकारी प्रयास राजनितिक होते हैं ,वोट के लिए सब जायज़ है.कोटा की चम्बल नदी भी कमज़ोर हो रही है.

लगभग सभी नदियों में प्रदू षण के साथ साथ अतिक्र्मण,गंदगी ,पानी का भयंकर दोहन,आसपास के उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थों का इनमे बहाया जाना ,रेत माफिया का जबरदस्त आतंक.रेत माफिया तो हत्या तक करा देते हैंमध्य प्रदेश व् राजस्थान में हालत बहुत ख़राब है..

सभी नदियों में नहाना धोना किया जाता है,साबुन,कास्टिक,सोडा,व् गंदगी डाली जाती है.कानपु र हो या बनारस या फिर मथुरा वृन्दावन या कलकत्ता यह समस्या एक जैसी है.ग्रीन ट्रिब्यूनल व् प्रदुषण नियंत्रण मंडल कुछ नहीं कर पाते उपर से राजनेतिक दबाव,रिश्वत,भ्रष्टाचार.

दबंग कारखाने वाले अपना वेस्ट ,गन्दा पानी नदियों ,नालों में डा ल देते हैं कई शहरों में गटर लाइनों को नदियों में छोड़ दिया जाता हैं.उज्जेन ,भोपाल हरिद्वार,बनारस ,कानपुर आदि स्थानों पर हालत बहुत ख़राब है.कलकत्ता तो एक मरता हुआ शहर बन गया है.सभी अपशिष्ट बहाव नहीं होने के कारण घाटों के किनारे पर ही पड़े रहते हैं,सड़ते रहते हैं.लाशे ,जानवरों के शव तेरते रहते हैं,कोई कुछ नहीं करता ,नेता लोग सफाई का फोटो सेशन कर के चले जाते हैं.बहाव नहीं होने का एक बड़ा कारण इन नदियों पर बने बड़े बड़े बांध है,यदि पानी बहता रहे तो समस्या का एक भाग सुलझ सकता है.नदियों हमें जल ही नहीं देती,सम्रद्ध भी करती है पहाड़ों से चल कर नदियाँ मैदानों में आती है और पुरे देश की लाइफ लाइन बन जाती है.

उद्योग वस्तु के निर्माण के बाद शेष बची सामग्री जो किसी भी कार्य में नहीं आती है, उसे नदी आदि स्थानों में डाल देते हैं। कई बार आस पास के इलाकों में भी डालने पर वर्षा के जल के साथ यह नदी या अन्य जल के स्रोतों तक पहुँच जाता है। इस प्रदूषण को रोकने हेतु उद्योगों द्वारा सभी प्रकार के शेष बचे सामग्री को सही ढंग से नष्ट किया जाना चाहिए। नहिं करने पर कठोर दंड हो.

नदियों में प्रदुषण के रूप में हानिकारक रसायन जैसे आर्सेनिक,फ्लोराइड,रेडियो एक्टिव पदार्थ,तेल,ख़राब इंजन आयल,साबुन डिटर्जेंट ,कीटनाशक,खनिज तेल,शव,फिनोल.सोडियम ,सीसा,ख़राब बेक्टेरिया,वाइरस,नाइट्राइट आदि शामिल है.विश्व के कई देश इन के हानिकारक प्रभावों का अध्ययन कर रहे है,कई देशों ने नदियों में इन पदार्थों को डालने पर रोक लगा दी है.भारत में राजनेतिक इच्छाशक्ति के अभाव में यह सब नहीं हो पा रहा है.पंजाब से शीरा राजस्थान की नदियों को ख़राब कर रहा है.गंगा के शुद्ध या निर्मल होने की कोई सम्भावना नहिं दिख्ती ,बजट खाओ मौज मनाओ.यमुना की भी यही हालत है.मध्यप्रदेश में इंदौर,भोपाल,उज्जैन,ओम्कारेश्वर की नदियों को देख कर दुःख होता है. नदियों का हा ल बेहाल है और सरकार वोटों की राजनीती में व्यस्त है ..हजारों नदियाँ,झीले तो मर चुकी है यह ब्रह्म हत्या से भी बडा पाप है.सरस्वती नदी ही नहीं अन्य नदियाँ भी लुप्त होगी और हम सब इसके लिए जिम्मेदार होंगे नदियाँ बचेंगी तो हम बचेंगे ,नहीं तो नष्ट हो जायेंगे.नदियों के साथ ही बंधों का मामला है,भारत में ५२०० बांध है ४५० बांध और बन रहे हैं.इन बंधोंके अलावा हजारों छोटे –मोटे बांध है केंद्र सारकार एक विधेयक द्वारा इनकी सुरक्षा तय करने जा रही हैं,जो उचित कदम है.राष्ट्रिय बांध सुरक्षा प्राधिकरण बनेगा.एसा निति आयोग का कहना है.वर्षा में हर साल कई बांध टूट जाते हैं नदियों में बाढ़ आ जा ती है ,जा न मॉल का नुकसान होता है.नदियों में पानी नियमित व् निरंतर बहता रहे तभी नदियाँ साफ ,स्वच्छ ,निर्मल रहे गी, इस मामले में यूरोप ,अमेरिका से सिखा जा सकता है, कानपूर,बनारस,हरिद्वार,ऋषिकेश मथुरा,दिल्ली ,कोटा ,कलकत्ता सभी शहर नदियों में गंदगी डा ल रहे हैं और सरकारे देख रही हैं नदियों से रेत,पत्थर ,पानी का दोहन एक अत्याचार है.नदी बहती रहे नहीं तो सब नष्ट हो जायगा.

. नीति आयोग के जल प्रबंधन इंडेक्स के अनुसार ,देश के लगभग 60 करोड़ लोग पानी की भयंकर कमी से जूझ रहे हैं, दो लाख लोग हर साल केवल इस कारण मर जाते हैं कि उनके पहुँच मे पीने योग्य पानी नहीं होता है,75 % घरों मे पीने का पानी नहीं है औऱ देश का करीब 75 % पानी पीने योग्य नहीं रह गया है।वाटर क्वालिटी की इंडेक्स मे 122 देशों की सूची मे 120वें स्थान पर है।रिपोर्ट आगाह करती है समुचित प्रबंधन न किया गया तो 2030 तक पानी को लेकर कई चीज़े हाथ से निकल जायेगी ।
इस मामले मे सरकारी तंत्र की नाकामी सबसे ऊपर है । इसे पर्यावरण नियमों को हर क्षेत्र मे सख्ती से पालन कर काफी हद तक स्थिति मे बदलाव लाया जा सकता है । नदियों व तालाबों मे रसायन व नालों का कचरा डालने पर लगाम लगाने के असरदार तरीके अपनाने होंगे ।इसमें सरकारी तंत्र को भ्रष्टाचार मुक्त कर कड़ा करने की जरूरत है.

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यशवंत कोठारी ,८६,लक्ष्मी नगर ब्रह्मपुरी बहार ,जयपुर-३०२००२ मो -९४१४४६१२०७