चलोगे क्या फरीदाबाद? Ajay Amitabh Suman द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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चलोगे क्या फरीदाबाद?

(१)

चलोगे क्या फरीदाबाद?

रिक्शेवाले से लाला पूछा,
चलोगे क्या फरीदाबाद ?
उसने कहा झट से उठकर,
हाँ तैयार हूँ भाई साब.


हाँ तैयार हूँ भाई साब कि,
लाए क्या अपने साथ हैं?
तोंद उठाकर लाला बोला,
हम तो खाली हाथ हैं .

हम तो खाली हाथ हैं कि,
साथ मेरे घरवाली है .
और देख लो पीछे भैया,
वो मोटी है जो साली है .


मोटी वो मेरी साली कि,
लोगे क्या तुम किराया ?
देख के हाथी लाला,लाली,
रिक्शा भी चकराया.

रिक्शावाला बोला पहले,
देखूँ अपनी ताकत .
दुबला पतला चिरकूट मैं,
और तुम तीनों हीं आफत .


और तुम तीनों हीं आफत,
पहले बैठो तो रिक्शे पर,
जोर लगा के देखूं क्या ,
रिक्शा चल पाता तेरे घर ?

चल पाता रिक्शा घर क्या ,
जब उसने जोर लगाया .
कमर टूनटूनी वजनी थी,
रिक्शा चर चर चर्राया .


रिक्शा चर मर चर्राया,
कि था रोड ओमपुरी गाल.
डगमग डगमग रिक्शा डोला,
बोला लाला उतरो फ़िलहाल.

हुआ बहुत ही हाल बुरा ,
लाला ने जोश जगाया .
ठम ठोक ठेल के मानव ने,
परबत को भी झुठलाया .


परबत भी को झुठलाया कि,
पैसा का कुछ तो बोलो ?
गश खाके बोला रिक्शा,
दे दो दस रूपये किलो .

दे दो दस रूपये किलो,
लाला बोला क्या मैं सब्जी?
मैं तो एक इंसान हूँ भाई,
साली और मेरी बीबी .


साली और मेरी बीबी फिर,
बोला वो रिक्शेवाला .
ये तोंद नहीं मशीन है भैया,
सबकुछ रखने वाला .

सबकुछ रखने भाई,
आलू और टमाटर,
कहाँ लिए डकार अभीतक,
कटहल मुर्गे खाकर .


कटहल मुर्गे खाकर कि,
लोगों का अजब किराया .
शेखचिल्ली के रूपये दस,
और हाथी का दस भाड़ा?

अँधेरी है नगरी भैया,
और चौपट सरकार है,
एक तराजू हाथी चीलर,
कैसा ये करार है?


एक आंख से देखे तौले,
सबको गजब बीमार .
इसी पोलिसी से अबतक,
मेरा रिक्शा बेज़ार .

(२)

हाय रे टेलीफोन

फिल्म वास्ते एक दिन मैंने,

किया जो टेलीफोन।
बजने लगी घंटी ट्रिंग ट्रिंग तो,

पूछा है भई कौन ?


पूछा है भई कौन कि बोलो,

तीन सीट क्या खाली है?
मैं हूँ ये मेरी बीबी है और,

साथ में मेरे साली है ।


उसने कहा सिर्फ तीन की,

क्यूं करते हैं बात ?
पुरी जगह ही खाली है,

घर बार लाइये साथ।


सुनके उसकी बात कि

मेरे खड़े हो गए कान।
मैने पूछा समझ न आये,

एक बात श्रीमान।


क्षमा करे श्रीमान सुना है ,

मूवी टिकट में भीड़,
आश्वस्त हैं श्रीमान कैसे,

इतने धीर गंभीर?


उसने कहा भीड़ है किन्तु

आप मेरे मेहमान।
आ जाएं मैं प्रेत अकेला,

घर मेरा शमशान।

(३)

हृदय दान

हृदय दान पर बड़े हल्के फुल्के अन्दाज में लिखी गयी ये हास्य कविता है। यहाँ पर एक कायर व्यक्ति अपने हृदय का दान करने से डरता है और वो बड़े हस्यदपक तरीके से अपने हृदय दान नहीं करने की वजह बताता है।

हृदय दान के पक्ष में नेता,

बाँट रहे थे ज्ञान।
बता रहे थे पुनीत कार्य ये,

ईश्वर का वरदान।


ईश्वर का वरदान ,

लगा के हृदय तुम्हारा।
मरणासन्न को मिल जाता

है जीवन प्यारा।


तुम्ही कहो इस पुण्य काम

मे है क्या खोना?
हृदय तुम्हारा पुण्य प्राप्त

तुमको ही होना।


हृदय दान निश्चय ही

होगा कर्म महान।
मैने कहा क्षमा किंचित

पर करें प्रदान।


क्षमा करें श्रीमान ,

लगा कर हृदय हमारा।
यदि बूढ़े नेे किसी युवती

पे लाईन मारा ।


तुम्ही कहो क्या उस बुढ़े

का कुछ बिगड़ेगा?
हृदय हमारा पाप कर्म

सब मुझे फलेगा।


अजय अमिताभ सुमन:

सर्वाधिकार सुरक्षित

(४)

मित्र

मधुशाला की बातें ऐसी,

मदिरालय की रीत यही है।
जो नाली तक साथ न छोड़े,

सच मे मानो मीत वो ही है।
दो चार जो पैग पिला दे,

वो भी आनन फानन में।
मदिरा का पर साथ न छुटे,

क्या आलय क्या कानन में।
सूरा सुंदरी कंचन काया,

बेशक होती स्वप्निल माया।
पर साथ जो रहे निरंतर,

वोहीं मित्र है पक्का साया।
वो धूम्रपान के धुएँ में और ,

गाली में भी साथ निभाये।
घर में जाते कदम हिले तो,

ढाँढस वाँढस खूब दिलाये।
पापा के आगे टिके रहे कि,

डर के आगे जीत वो ही है।
नाली तक जो साथ न छोड़े,

सच मे मानो मीत वो ही है।


अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित