खुशियों की आहट - 10 Harish Kumar Amit द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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खुशियों की आहट - 10

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(10)

तभी पापा भी नहाकर आ गए. मम्मी को देखकर बोले, ''आ गईं तुम? बड़ी देर लग गई.''

''हाँ, एक तो फंक्शन शुरू ही देर से हुआ. लड़के वाले देर से आए थे. इसलिए डिनर भी देर से शुरू हुआ.'' मम्मी ने जवाब दिया. फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया हो, ''अरे, आपको पता है मिसेज़ खन्ना की गाड़ी ड्राइवर चलाकर लाया था.''

''ड्राइवर रख लिया है उन्होंने? वैसे मिसेज़ खन्ना को आती तो है गाड़ी चलानी.'' पापा कह रहे थे.

''आती है तो क्या हुआ. ड्राइवर गाड़ी चलाए, तो शान तो बनती ही है न.'' मम्मी कहने लगीं.

''वो तो ठीक है, पर ड्राइवर कोई मुफ्त में थोड़े ही न मिल जाता है.'' पापा ने कहा.

''कितने ले लेगा? मिसेज़ खन्ना छह हज़ार दे रही हैं ड्राइवर को.'' मम्मी कह रही थीं. फिर एक-दो पल रूककर बोलीं, ''हम भी रख लेते हैं न एक ड्राइवर. कभी मेरी गाड़ी चला लिया करेगा और कभी आपकी.''

''भई, ड्राइवर की तनख़्वाह का खर्चा कहाँ से निकलेगा?'' पापा पूछने लगे.

''घर के खर्च में तो कोई कमी हो नहीं पाएगी.'' मम्मी कुछ सोचते हुए बोलीं.

''तो रहने दो फिर. बाद में कभी देखेंगे.'' पापा डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए बोले.

''एक तरीका है.'' मोहित को लगा जैसे मम्मी को कोई नया आइडिया मिल गया हो.

''क्या?'' पापा ने मम्मी के चेहरे की तरफ़ देखते हुए सवाल किया.

''आप एक और ट्यूशन क्यों नहीं पकड़ लेते?'' मम्मी कह रही थीं.

''एक और ट्यूशन!'' पापा जैसे सोच में पड़ गए लगते थे.

'और क्या? ड्राइवर की तनख़्वाह निकल जाएगी तब तो आराम से.' मम्मी की आवाज़ से ख़ुशी झलक रही थी.

''एक और ट्यूशन पकडूँगा तो शाम को साढ़े नौ के बदले साढ़े दस बज जाया करेंगे घर वापिस आते-आते.'' पापा कुछ सोचते हुए-से बोल रहे थे.

''कोई बात नहीं. एक घंटे से क्या फर्क़ पड़ता है. लेकिन ड्राइवर होने से आराम भी तो हो जाएगा न बहुत.'' मम्मी ने उत्साह-भरी आवाज़ में कहा.

''ठीक है भई, ठीक है. अब खाना तो लगवाओ.'' पापा की आवाज़ में भी उत्साह था.

'तो इसका मतलब है अब वह पापा को सिर्फ़ सुबह-सुबह ही मिल पाया करेगा. रात को तो पापा जब तक घर वापिस आया करेंगे, वह सो ही चुका होगा.' यही सब सोचते हुए मोहित बाथरूम की तरफ चल पड़ा हाथ धोने. भूख के मारे आँतें कुलबुलाने लगी थीं उसकी.

***

अगले दिन मोहित की नींद कुछ देर से खुली. रात को डाइनिंग टेबल पर खाना खाते-खाते ही कुछ देर हो गई थी. पहले तो ड्राइवर रखने की बातें होती रही थीं और फिर मम्मी टिंकी की सगाई के बारे में बताती रही थीं.

घर में बिल्कुल शांति थी. मोहित ने दीवार घड़ी की ओर देखा. सवा आठ बजने वाले थे. उसे लगा कि पापा तो कोचिंग कॉलेज जा चुके होंगे और पापा के जाने के बाद मम्मी फिर से सो गई होंगी. शांतिबाई या तो दूध वगैरह लेने मार्केट गई होगी या चुपचाप भगवान भजन कर रही होगी. यही सब सोचते हुए मोहित अलसाया-सा बिस्तर में पड़ा रहा.

कुछ देर बाद वह उठा और बाथरूम की ओर चला गया. हाथ-मुँह धोकर वह अपने कमरे से निकला और मम्मी के कमरे की ओर गया. उसे पूरी उम्मीद थी कि मम्मी सो रही होंगी, पर मम्मी तो बिस्तर पर बैठी थी. लैपटॉप उनकी गोद में था और वे उस पर कुछ काम कर रही थीं.

''गुड मॉर्निंग, मम्मी.'' मोहित ने कहा.

''गुड मॉर्निंग बेटू. उठ गए?'' मम्मी बोलीं.

''क्या कर रहे हो मम्मी?'' मोहित पूछने लगा.

मोहित की बात सुनकर मम्मी एक-दो पल तो लैपटॉप पर झुके-झुके काम करती रहीं. फिर कहने लगीं, ''बेटू, शाम को टिंकी की शादी में जाना है न....'' कहते-कहते मम्मी चुप हो गईं.

''टिंकी दीदी की शादी में जाने का लैपटॉप से क्या मतलब है मम्मी?'' मोहित ने अचरज से पूछा.

''है बेटू, मतलब है. मैं टिंकी की शादी में अपनी एक कविता पढूँगी. वही बना रही हूँ.'' कहते-कहते मम्मी के स्वर में घमण्ड का हल्का-सा भाव आ गया.

''शादी में कविता? मम्मी, शादी के फंक्शन में शादी होगी या लोग आपकी कविता सुनेंगे?'' मोहित ने हैरानी से पूछा.

''अरे बेटू, कल जब मैं टिंकी की सगाई के फंक्शन में गई थी तो यह आइडिया मुझे अचानक सूझ गया था. मैंने टिंकी की मम्मी-पापा से बात की. उन्हें भी यह आइडिया पसन्द आया.'' मम्मी की आवाज़ से उत्साह झलक रहा था.

''कब पढ़ोगे मम्मी आप कविता?'' मोहित ने फिर पूछा.

''बेटू, जब बारात आ जाएगी न तब. पहले भी शादियों में सेहरा पढ़ा जाता था. अब उसका रिवाज़ ख़त्म हो गया है.'' मम्मी बता रही थीं.

''सेहरा तो दूल्हे के सिर पर बाँधते हैं न मम्मी!'' मोहित कह उठा.

''अरे, वो सेहरा दूसरा होता है और पढ़ने वाला सेहरा दूसरा.'' मम्मी ने हँसते हुए जवाब दिया.

''पढ़ने वाला सेहरा क्या होता है मम्मी?'' मोहित ने फिर जिज्ञासा प्रकट की.

''बेटू, पढ़ने वाला सेहरा एक लम्बी कविता की तरह होता है. इसमें तारीफ़ों के पुल बाँधे होते हैं. अब तो इसका रिवाज़ ख़त्म ही हो गया है.'' मम्मी बोलीं.

''फिर आप अपनी कविता क्यों पढ़ोगे मम्मी शादी में?'' फिर पूछने लगा मोहित.

''बेटू, शान बनेगी न इससे मेरी! दूसरों से अलग लगूँगी न मैं!'' मम्मी के स्वर में अभिमान झलकने लगा था. तभी मम्मी को जैसे कुछ याद आ गया. वे फिर से कहने लगीं, ''सच कहूँ बेटू, तो शादी में कविता पढ़ने का आइडिया मुझे तुमसे ही मिला है.''

''मुझसे?'' मोहित हैरान था.

''हां, तुमसे. जब टिंकी के मम्मी-पापा कार्ड देकर चले गए थे तो तुम्हारे पापा ने मुझे अकेले ही शादी में जाने की बात कही ही थी न.''

''हाँ, मम्मी.''

''तब तुमने ही तो कहा था कि मैं अपनी कुछ कविताएँ साथ ले जाऊँ और वहाँ पढूँ. शादी में कविता पढ़ने का आइडिया मुझे वहीं से मिला था.'' मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा.

मम्मी की बात सुनकर मोहित को ख़ुशी हुई कि मज़ाक-मज़ाक में कही गई उसकी बात से यह सब हो रहा है.

तभी मोहित को लगा कि उसे भूख लगी है. उसने मम्मी से कहा, ''मम्मी, आज तो इतवार है. कुछ बढ़िया-सा नाश्ता बना दो न.''

मोहित की बात सुनकर मम्मी कुछ पल सोचती रहीं और फिर कहने लगीं, ''बेटू, ऐसा है कि मुझे यह कविता बनानी है और शादी में जाने के लिए तैयारी भी करनी है.''

''शादी में तो आपको शाम को जाना है न मम्मी.'' मोहित एकदम कह उठा.

''बेटू, शादी में जाने से पहले कई काम होते हैं. यह तय करना पड़ता है कि कपड़े कौन से पहनकर जाने हैं. फिर उनके साथ के मैचिंग सैंडल, मैचिंग पर्स, मैचिंग ज्वैलरी को चुनना पड़ता है. ब्यूटी पार्लर में तो जाना ही पड़ता है. और बहुत से छोटे-बड़े काम होते हैं. फिर तैयार होने में भी तो टाइम लगता है न बेटू.'' मम्मी मोहित को समझाते हुए कह रही थीं.

''मगर मम्मी, नाश्ता तो बनाओ न कुछ.'' मोहित ने ज़िद-भरी आवाज़ में कहा.

''बेटू, तुम ब्रश वगैरह कर लो. शांतिबाई ब्रेड लेने गई है.''

''ब्रेड से क्या बनाओगे मम्मी?'' मोहित पूछने लगा.

''आज टाइम नहीं है. बटर-टोस्ट और जैम-टोस्ट खा लो न बेटू, प्लीज़.'' मम्मी मिन्नत-सी करती हुईं बोलीं.

''मगर मम्मी, ऐसा नाश्ता तो मैं हर रोज़ करता हूँ. छुट्टी के दिन तो कुछ स्पेशल होना चाहिए कि नहीं.'' मोहित को गुस्सा-सा आने लगा था.

यह सुनकर मम्मी कुछ पल सोचती रहीं. फिर कहने लगीं, ''चलो, मोहित, ब्रेड का ही कुछ बना देती हूँ. ब्रेड पकौड़े चलेंगे?''

ब्रेड पकौड़े बनने की बात सुनकर मोहित खुश हो गया. कहने लगा, ''चलेंगे मम्मी, चलेंगे.''

फिर वह ब्रश करने बाथरूम में चला गया.

मोहित जब बाथरूम से बाहर आया तो घर में ब्रेड पकौड़े तले जाने की ख़ुशबू फैली हुई थी. वह जाकर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया. कुछ ही देर में शांतिबाई गरमागरम ब्रेड पकौड़े ले आई. मोहित ने दो ब्रेड पकौड़े अपनी प्लेट में रखे और टमाटर की सॉस (चटनी) भी बोतल से उडेल ली. फिर वह ब्रेड पकौड़े को सॉस के साथ खाने लगा. ब्रेड पकौड़े बहुत स्वाद बने थे. 'मम्मी के हाथ में वाकई जादू है' यह बात वह सोच ही रहा था कि रसोई से मम्मी की आवाज़ आई, ''कैसे बने हैं ब्रेड पकौड़े, बेटू?''

''बड़े स्वाद हैं मम्मी.'' कहते हुए मोहित ने ब्रेड पकौड़े का टुकड़ा दाँतों से काटते हुए कहा.

उसकी बात सुनकर मम्मी मुस्कुराईं और फिर रसोई के अन्दर चली गईं.

तभी उसके दिमाग़ में एक बात आई और वह ज़रा ज़ोर से कहने लगा, ताकि उसकी बात रसोई में ब्रेड पकौड़े तल रही मम्मी तक पहुँच सके, ''मम्मी, यही ब्रेड पकौड़े कुछ देर पहले बना लेते तो पापा भी खा लेते न!''

''हाँ, वो तो है, पर उन्हें तो जल्दी जाना था न कोचिंग कॉलेज.'' मम्मी ने जवाब दिया.

''अब कुछ ब्रेड पकौड़े रख देना पापा के लिए.'' अपनी प्लेट में एक और ब्रेड पकौड़ा रखते हुए मोहित ने कहा.

''हाँ, हाँ, बेटू, रखने हैं पापा के लिए भी.'' रसोई के अन्दर से मम्मी की आवाज़ आई.

तभी मोहित के मन में बात आई कि मम्मी के पास तो नाश्ता बनाने का भी टाइम नहीं था, यह तो उसके ज़ोर देने पर मम्मी ब्रेड पकौडे बनाने के लिए मान गईं थीं. अब भला उनके पास दोपहर का खाना बनाने का टाइम कहाँ होगा. अभी तो मम्मी को अपनी कविता पूरी करनी है और शाम को शादी में जाने के लिए पता नहीं क्या-क्या तैयारी करनी है. ऐसे में मम्मी हिन्दी के उसके टैस्ट की तैयारी में उसकी क्या मदद कर पाएँगी. पता नहीं क्यों, न पापा के पास उसके लिए टाइम है और न मम्मी के पास. दोनों अपने-अपने कामों में लगे रहते हैं.

और दिन में वाकई वैसा ही हुआ जैसा मोहित ने सोचा था. नाश्ता करने के बाद मम्मी फिर से लैपटॉप लेकर बैठ गईं. उसके कुछ देर बाद तो उन्होंने अपने कमरे का दरवाज़ा भी अन्दर से बन्द कर लिया ताकि उन्हें कोई परेशान न करे.

मोहित का तो अभी होमवर्क ही पूरा नहीं हुआ था. हिन्दी के टैस्ट की तैयारी शुरू करना तो दूर की बात थी. उसने सोचा कि सब विषयों का होमवर्क पूरा करने के बाद ही वह टैस्ट की तैयारी शुरू करेगा.

एक और बात मोहित को चुभ रही थी कि न तो पापा ने और न ही मम्मी ने उससे पिछले दिनों हुए मैथ्स के टैस्ट में आए उसके मार्क्स के बारे में पूछा था. उसे पता था कि दस में से पाँच नम्बर आने की बात सुनकर उन लोगों ने उसे डाँटना ही था, पर कम-से-कम उससे टैस्ट के नम्बरों के बारे में पूछते तो.

मोहित ने जब अपना सारा होमवर्क पूरा किया तो दोपहर के साढ़े ग्यारह बजने वाले थे. मम्मी ने अपने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया था. मोहित समझ गया कि मम्मी की कविता तैयार हो गई है.

''मोहित नहा लो, मैं जरा ब्यूटी पार्लर जा रही हूँ.'' मम्मी ने मोहित से कहा.

''मम्मी, आप अभी कल ही तो गईं थीं ब्यूटी पार्लर.'' मोहित कहने लगा.

''अरे, बेटू, बग़ैर ब्यूटी पार्लर गए शादी में थोड़े ही जाया जाता है.'' मम्मी ने हँसते हुए कहा. फिर शांतिबाई को दरवाज़ा बन्द करने के लिए कहकर घर से बाहर चली गईं.

'चलो, पहले नहा ही लेता हूँ. फिर टैस्ट की तैयारी शुरू करूँगा.' सोचते हुए मोहित ने म्यूज़िक सिस्टम पर अपने मनपसन्द फिल्मी गाने लगा दिए और नहाने चला गया.

नहाकर आने के बाद मोहित अपने आप को काफ़ी तरोताज़ा महसूस कर रहा था. उसे हलकी-हलकी भूख भी लग आई थी. उसने शांतिबाई को आवाज़ दी और उसे ऑरेंज क्रीम वाले बिस्कुट लेकर आने को कहा. कुछ ही देर में शांतिबाई एक प्लेट में मोहित के मनचाहे बिस्कुट लेकर आ गई. वह आरामकुर्सी पर अधलेटा-सा होकर उन्हें खाने लगा.

बिस्कुट खाकर मोहित ने बाथरूम में जाकर कुल्ला किया और मुँह-हाथ पोंछकर म्यूज़िक सिस्टम को बन्द कर दिया. उसके बाद उसने स्टडी टेबल पर बैठकर हिन्दी के टैस्ट की तैयारी करनी शुरू कर दी. काफ़ी तैयारी करनी थी. हिन्दी में वह वैसे भी कोई ज़्यादा होशियार नहीं था. तैयारी करते-करते वह थक गया तो उसने दीवार घड़ी की ओर देखा. डेढ़ बजने वाला था.

तभी उसके दिमाग़ में आया कि मम्मी तो अभी तक लौटी ही नहीं. ब्यूटी पार्लर में इतनी देर तो नहीं लगनी चाहिए. उसे चिन्ता-सी होने लगी. उसने मोबाइल फोन उठाकर मम्मी का नम्बर मिला दिया. कुछ देर घंटी बजने के बाद उधर से किसी लड़की की आवाज़ सुनाई दी, ''अभी मैडम फेशियल करवा रही हैं. वे आधे-पौने घंटे तक घर आएँगी.''

मोहित समझ गया कि मम्मी फोन पर बात करने की हालत में नहीं होंगी, इसलिए उन्होंने ब्यूटी पार्लर की किसी कर्मचारी को उसके फोन का जवाब देने के लिए कह दिया होगा.

मोहित को थकावट-सी लग रही थी. वह अपने बिस्तर पर लेट गया और आँखें बन्द करके आराम करने लगा. कुछ ही देर में उसे नींद ने आ घेरा.

***