Kamsin - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

कमसिन - 28

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(28)

राशी के पेपर हो चुके थे वह अब ज्यादातर समय उसके साथ ही बिताती ! घर में काकी माँ, माँ, राजीव और पापा जी भी बहुत ध्यान रखने लगे थे ! जो केवल मार्निंग वाॅक या कभी बहुत जरूरी काम होने पर ही घर से निकलते थे ! अब अक्सर उसके लिए कभी मिठाई, चाट लाकर देते रहते आज भी मिर्च और पनीर के पकौड़े लेकर आये थे और स्वयें ही देने आ गये थे लो बहू बाहर गया था तो राम जी की दुकान पर गर्मागर्म पकौड़े बन रहे थे तो तुम्हारे लिये ले आया उसे अपने पापा की याद आ गई थी वे भी उसकी तबियत खराब होने पर यूँ ही परेशान हो जाया करते थे और मनपसंद चीजें स्वयं ही लाकर देते थेक। वह पापा जी से पकौड़े लेती हुई बोली और पापा जी आप क्यों परेशान होते हैं

परेशानी की क्या बात तुम कुछ खाती-पीती हो नहीं यह सब ही थोड़ा बहुत खा लिया करो।

आप भी ले लीजिए ना पा पापा जी।

नहीं बेटा तुम खाओ अभी मेरा मन नहीं है उनके जाते ही राशी आ गई और पकौड़े देखते ही बोली, वाऊ गर्मागर्म पकौड़े,

हाँ खाओ ले लो !

आप खाओ ना आण्टी बता रही थी आप कुछ भी खाती नहीं हो ! चलो खाओ ! आप सब फिनिश कर देना !

इतने सारे मैं कैसे खा पाऊँगी, अकेले चल तू भी खा, दोनो ने मिलकर सारे पकौड़े खा डाले थे सच साथ में खाना कितना अच्छा लग रहा था हंसते बतियाते हुए राशी ने स्कालरशिप के लिए एप्लाई कर दिया था ! यह तो पता था लेकिन उसके घर वाले आण्टी-अंकल भी मान जायेंगे ! उसे नहीं लग रहा था एक अकेली संतान तो थी उनकी जो उनकी खुशियों का पिटारा भी थी इसलिए उसकी खुशी में खुश होते हुए वे मान भी गये थे और उसे परदेश में पढ़ाने को तैयार भी हो गये थे ! आज जब राशी बता रही थी तो वह इस मंथन में थी कि कैसे वह वहाँ अकेली रह पायेगी उन अनजान लोगों के बीच,!

हाँ वहाँ पर उसके सर होंगे जिनसे वह बेहद प्यार करती है तो उनसे कहाँ दूर रह पायेगी किन्हीं भावनात्मक क्षणों में कमजोर पड़ गई तो वहाँ कौन होगा इसे समझाने वाला ऊँच-नीच बताने वाला जीवन की सीख देने वाला सच्चाईयों व धोखे से अवगत कराने वाला ! रिया को पता था, राशी जिद्दी और इकलौती सन्तान है उससे बहस करना या समझाना व्यर्थ है फिर जब उसके घर वाले मान गये तैयार हो गये बाहर भेजने को तो फिर वह कौन होती है उसे सब कुछ समझाने वाली ! ’

भाभी क्या सोच रही हो वह उसे हिलाती हुई बोली, कुछ नहीं बस,!

क्या बस, चल जाने दे छोड़ !

अब उसके गर्भ को सातवाँ माह चल रहा था खुशियों भरे दिन भी बड़ी जल्दी निकल जाते हैं जबकि दुःख के दिन तो काटे भी नहीं कटते सदियों के समान लगते हैं और सुःख के पल यूँ चुटकियों में ही निकल जाते हैं, जब हम सब यही चाहते हैं कि यह सुख भरे दिन चलते रहें और हम उन दिनों का क्षणों का आनन्द उठाते रहें इन सात महीनों में वह बहुत बदल गई थी शरीर भर गया था पेट का आकार आगे को उभर आया था जिस वजह से उसे बाहर आने में शर्म आती थी वैसे भी वह डा0 को दिखाने के अलावा कहीं गई भी नहीं थी हाँलांकि माँ ने उसे कहीं भी आने-जाने से रोका नहीं था, लेकिन उसने स्वय एतिहातन कहीं भी जाना नहीं चाहा ! मायके से सब लोग आते जाते रहते थे ! उसे देखने उससे मिलने ! तो उसे कमी भी अखरती ही नहीं थी और माँ जब उस दिन समझा-बुझा रही थी तो उसने सोच लिया कि वह चले आ रहे रिवाज को पूरी कोशिश करे निभाने की क्योंकि हमारे बुजुर्ग जो रिवाज बना गये हैं उनकी कुछ न कुछ अहमियत तो होती है वैसे भी उसे कहीं बाहर जाना कहाँ होता है घूमने-फिरने की वह तो वैसे भी शौकीन नहीं है न ही ज्यादा आना-जाना होता है शादी से पहले तो सहेलियों के साथ मस्ती कर लेती थी शादी के बाद ना राजीव के पास समय था और न वह कभी जबरदस्ती करती थी उसे यहाँ या वहाँ घूमाने ले चलो तभी तो शादी के दो ढ़ाई साल में कहीं भी घूमने-फिरने नहीं गई थी।

आज उसका चेहरा एकदम चमक रहा था एक अलग सी चमक एक आभा बिखर आई थी उसके चेहरे पर माँ बनने की खुशी और सुख उसके चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा था तब अब खूब खुश रहती चलती-फिरती घर भर में सब उसकी जरूरतों का ख्याल रखते थे वह भी सबको पूरा सहयोग करती थी अपनी तरफ से हाँलाकि आठवें माँह (गर्भ के) में उसे कई तरह की परेशानियाँ हो रहीं थीं पैरों में सूजन आ गई व रात को नींद भी कम आती बेचैनी होती कुछ खाती तो एसिटिटी की समस्या होने लगती डा0 से बात की तो उनहें बताया यह सब समस्यायें आम हैं ज्यादा दबाई दे नहीं सकते हैं अब तुम टहलो व खूब पानी पियो और उनहोंने उसका अल्ट्रासाउन्ड करके चैक किया व बताया बिल्कुल स्वस्थ है बच्चा कोई भी दिक्कत नहीं है डिलीवरी की डेट तो पहले ही दे दी थी, जो डेढ़ महीने बात की थी अब उसे लग रहा था कि जल्द ही यह दिन निकले और बच्चा सही सलामत हो जाये सिर्फ जाये सिर्फ वहीं क्यों बल्कि उससे जुडे सभी लोग घर परिवार के राजीव व मायके वाले सभी उसके साथ थे और एक ही दुआ कि सब ठीक प्रकार से निपट जाये। राशी का रिजल्ट आ गया था उसने बारहवीं की परीक्षा अच्दे नम्बरों से पास कर ली थी और अब उसका जाना तय हो गया था ! उसने अप्लाई कर दिया था ! वह बहुत खुश थी मिठाई का डिब्बा लेकर आई थी और पूरा गुलाब जामुन उसके मुँह में डालती हुई बोली, आज मेरी पसंद की मिठाई खाओ ! मेरे पास होने की साथ में आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाने की खुशी में भी। अगले 15 दिनों में उसे चले ही जाना था बहुत खुश थी तो कल्पना को भी उसकी खुशी में साथ देना पड़ रहा था, जबकि ऐसा नहीं था वह तो परेशान और दुखी हो रही थी उसके लिए सोंचकर ही कि वह वहाँ अकेले कैसे रहेगी, कौन देखेगा।

वह राशी से बोली, तुम चली जाओगी तो मुझे सबसे ज्यादा तुम्हारी याद आयेगी।

बात किया करेंगे फोन पर, नैट पर !

मेरी डिलीबरी के बाद जाती तो बेहतर रहता !

हाँ यह तो मैं भी चाहती हूँ, लेकिन वहाँ पर एडमीशन लेना होगा।

तो थोड़ा रूक कर या बाद में नही हो सकता !

नहीं भाभी लास्ट डेट निकल जायेगी तो फिर अगले साल ही एडमीशन हो पायेगा।

डिलीवरी का एक महीना ही बचा था और नैना को 15 दिनों के भीतर ही एडमीशन लेना था कालेज वहीं था 15 दिनों के भीतर ही एडमीशन लेना था कालेज वहीं था जिसमें उसके सर रिसर्च कर रहे थे ! उनकी ही वजह से उस कालेज में उसका हो पायेगा क्योंकि वह काफी अच्छा कालेज था और एडमीशन मिलना बेहद मुश्किल काम था।

आज नैना जा रही थी ! उसके पापा उसे छोड़ने जा रहे थे वहाँ उसका सब इंतजाम भी देखना था और भी कई चीजें जो वह स्वयं देखभाल करके ही छोड़ सकते थे रहना खाना आदि फिर अकेली बेटी थी तो फिक्र भी थी जाना तो आण्टी भी चाहती थी लेकिन इतनी दूर फिर उनकी बीमारी कभी ठीक ही नहीं रहती थी आज वे बेहद उदास लग रही थीं

बेटी को परदेश परायों के बीच भेजने में उन्हें काफी मानसिक जद्दोजहद करनी पड़ी थी ! अब तो तीन साल पढ़ाई करने के बाद ही आयेगी अकेले ही तीज त्योहार करने होंगे लेकिन बेटी की जिद व उसके पापा ने उसकी अच्छी शिक्षा व बेहतर भविष्य के लिए उसे भेजने का निर्णय लिया था ! राशी को छोड़ने के लिए सभी लोग बाहर आ गये थे आण्टी फूटकर से पड़ी थीं वह भी अपने आँसू नहीं रोक पाई वैसे वहाँ खड़े सभी उदास हो गये थे औरतों के आँसू छलक आये थे लग रहा था कि उसकी विदाई हो रही है ! राशी सबको समझा रही थी अरे बाबा ससुराल नहीं जा रही हूँ पढ़ाई करने जा रही हूँ आ जाऊँगी वापस लौटकर आण्टी ने गले लगाते हुए कहा, बेटा ठीक से पढ़ाई करना और ध्यान रखना अपना’’ कल्पना के तो आँसू रूक ही नहीं रहे थे वह तो चाहती थी कि राशी उसे रोता हुआ ना देखे ! वह तो हंसते हुए विदा करना चाहती थी लेकिन मन को समझा ना सकी थी ! राशी ने उसे देखा तो भागकर उसे गले लगा फूट-फूट कर रो पड़ी थी ! सच कैसा रिश्ता बन गया था उन दोनों के बीच ! वो अपनी माँ को समझा रही थी लेकिन उसके साथ वह इतनी जुड़ गई थी कि बिछुड़ने के गम से ही फफक पड़ी थी फिर कल्पना ने उसे समझाते हुए कहा था, राशी ! तुम पढ़ने जा रही हो, इस बात का ध्यान रखना और मन लगाकर पढ़ना तुम्हारे पापा ने तुम पर विश्वास करके ही तुम्हें भेजने का निर्णय लिया है। उसने सहमति से सिर हिलाया और बोली, भाभी मैं अपनी पढ़ाई मन लगाकर कर करूँगी, मुझ पर विश्वास रखना,!

हाँ! मै यही चाहती हूँ क्योंकि तुम कहीं अपने प्यार के लिए पढ़ाई छोड़ दो ध्यान रखना कि रवि अपनी पढ़ाई के खातिर तुम्हें यहाँ अकेला छोड़कर चला गया था !

जी भाभी! आप ठीक कह रही हो।

अच्छा! चुप हो जाओ और फोन करना ! मैं भी करूँगी !

फिर वह हाथ हिलाते हुए आॅटो में बैठ गई ! पापा के साथ चली गई थी ! सभी बेहद उदास हो गये थे।

राशी ने फोन करके वहाँ पहुँचने से लेकर सर से मिलने तक की जानकारी दे दी थी यह यह भी बताया था कि कालेज में और भी बच्चे हैं जो उसके शहर के हैं ! अब उसे कोई परेशानी नहीं होगी ! यह सब जानकर उसको तसल्ली हो गई थी वह उसकी ओर से निश्चिंत तो नहीं हुई, याद भी आती रहती थी उसकी बातें बहुत याद आती थीं एक महीना ऐसे ही निकल गया और रिया की डिलीवरी का समय भी आ गया था उसके प्रसव पीड़ा शुरू हो गई तो माँ ने राजीव को फोन करके स्वयं ही अस्पताल आ गई थी राजीव भी आॅफिस से पहुँच गया था नार्मल डिलीवरी से ही उसे एक कन्या रत्न की प्राप्ति हुई थी सभी खुश थे लक्ष्मी आ गई हें माँ-पापा राजीव सबने देवी आई है या लक्ष्मी आ गई कहकर उसका स्वागत किया !

रोजाना तो नहीं हाँ अक्सर भाभी से बात हो जाती थी ! सर की जाब लग गयी थी और वो दुसरे शहर चले गए थे ! यह बात भी उसने भाभी को बता दी थी !

***

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED