कमसिन - 12 Seema Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कमसिन - 12

कमसिन

सीमा असीम सक्सेना

(12)

दोनों के बीच मौन पसरा हुआ था !

राशि जल्दी से चाय पियो फिर चलना है ! रवि ने उस मौन को भंग करते हुए कहा !

रूम भी खाली करना है क्योंकि आज की किसी और की बुकिंग है वो बस आते ही होंगे !

हे भगवान, बात भी शुरू की तो ऐसे !

इतना रोमांटिक माहौल,इतने प्यारे प्यार करने वाले दो बन्दे, खुबसूरत नज़ारे फिर भी रोमांस कहीं नहीं वह रवि से कसकर लिपटना चाहती थी ! उसकी धडकने बहुत तेज हो गयी थी दिल बहुत तेजी से धडक रहा था ! मन में हूक सी उठ रही थी !

वो अपने प्रिय के साथ है पर वहां प्यार क्यों नहीं है ?

क्या प्यार को अहसास में ही महसूस किया जा सकता है ? पर वे अहसास भी तो नहीं करवा रहे थे !

उनकी नजर में प्यार को पा लेना ही था उन्होंने पा लिया और बस ! अब कहीं कुछ नहीं न हाव भाव में, न चेहरे पर !

मुस्कुराहट तो न जाने कहाँ चली गयी थी !

कमरे से अपना सारा सामान निकाल कर कार की डिक्की में रखवा दिया था ! और वे लोग लान में आकर खड़े हो गये थे ! हलकी हलकी धूप निकल आई थी जो शरीर को गुनगुना अहसास दे रही थी ! रात को आये आँधी तूफान का अभी कहीं पर नामोनिशान भी नहीं था ! सब कुछ साफ सुथरा, खिला खिला, निखरा निखरा !

रवि के चेहरे पर हलकी सी मुस्कान आ गयी थी कल का तनाव शायद दूर चला गया था !

उन्होंने कार बेक करके मोड़ ली और राशि से बोले आ जा, जल्दी से बैठ जाओ ! देव के घर जाना है !

ठीक है ! अभी इतनी सुबह ?

क्यों क्या हुआ ? अभी नहीं जा सकते ? वे लोग सो कर नहीं उठे होंगे ?

राशि चुप हो गयी ! सुबह का सुहावना समय था ! बच्चे तैयार होकर स्कूल के लिए घरों से निकल लिए थे !

एक सी ड्रेस पहने, गोरे गोरे गालों पर लाल सेब जैसा रंग !

बहुत प्यारे लग रहे थे ! कोई अपने पापा के साथ था कोई यूँ ही सरपट दौड़ा चला जा रहा था ! पहाड़ियों से चढ़ते उतरते हुए ! यहाँ पर शहरोँ की तरह न तो रिक्शा था, न ही स्कूल बस ! सब अपने पावों पर चलते हुए !

काली पेंट पर नीले रंग की लाइन वाली शर्ट उन बच्चों पर बहुत खिल रही थी !

पास से गुजरते हुए वे मन में ख़ुशी का संचार कर रहे थे ! सच में ये बच्चे कितने मासूम और निर्दोष होते हैं ! उनके चेहरे की मुस्कान कितनी प्यारी लगती है !

यह दुनियाँ इन बच्चों जैसी ही क्यों नहीं हो जाती फिर न तो कोई बुराई रहेगी और न ही नफरत !

राशी तेरे सोचने से क्या होता है ? ये दुनियाँ कभी नहीं बदलने वाली ! उसने अपने सर को हल्का सा झटका देते हुए कहा ! ये तो वैसी सी रहेगी ! छल, प्रपंच, झूठ और कपट से भरी हुई ! दुनियां में बुराइयाँ कम होने की जगह और बढती जा रही हैं ! क्योंकि आज हर व्यक्ति पहले अपना स्वार्थ देखता है फिर और कुछ ! वो अपने स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकता है ! उसके मन में किसी के लिए कोई प्रेम नजर ही नहीं आता बस स्वार्थ ही दिखाई देता है ! वो आज तक यह समझ ही नहीं पायी कि लोग स्वार्थ में इतने अंधे कैसे हो जाते हैं कि किसी का अपमान करने या उसका बुरा करने का भी नहीं छोड़ते ! सिर्फ थोडा सा ही किसी अन्य के विषय में सोचे तो निसंदेह कुछ तो माहौल बढ़िया होगा ! शायद थोडा प्रेम भाव पैदा हो !

ओय राशि क्या सोच रही है ? तुझे सोचने के अलावा कोई और काम नहीं ! चल अब सोचना छोड़ सामने के रास्तों को देखती रह ! ये रास्ते फिर कभी पता नहीं देखने को मिलेंगे भी या नहीं !

वो उनकी बात सुनकर ऐसे चौंकी मानों गहरी नींद से जागी हो !

तू कितना चौंकती है, बात पर ऐसे ही चौंक जाती है ! कहाँ खोई रहती है ?

कैसे बताती कि वो हरवक्त उनमे ही खोई रहती है, राशि चुप ही रही और बाहर के नज़ारे देखने लगी !

ये पहाड़ कितने सख्त होते हैं फिर भी कितने खूबसूरत लगते हैं ! अक्सर सख्त चीजे भीतर से पोली होती हैं ! थोडे दवाब से पिघल भी जाती हैं ! सामने एक मोड़ था मोड़ पर एक सुंदर सा बगीचा उसके पीछे घर ! लाल सुर्ख गुलाब, खूब बड़े बड़े फूल, मैदानी इलाकों से अलग ! उसका जी चाहा कि वो रवि से कहे कि जरा देर यहाँ रुक जाओ ! मैं इन फूलों को जी भर कर देखना चाहती हूँ, इनसे अपनी मांग भरना चाहती हूँ ! रवि समझों न ! जरा भर दो इन फूलों से ही मेरी मांग ! लाल लाल फूलों से भरी मांग कितनी सुंदर लगेगी और उसकी खूबसूरती भी तो निखर आएगी ! रवि जो उसे चाहते हैं ? हाँ शायद ! वे उसे देखकर मुग्ध हो उठेंगे ! उफ़ क्या क्या सोचती रहती है और कितना सोचती है ! पागल कहीं की ! उसने खुद को मन ही मन कहा ! फिर खुद ही मुस्कुरा दी ! सर को हल्का सा झटका दिया और वर्तमान में लौट आई ! अरे वो बाग़ तो न जाने कितना पीछे छूट गया !

आपको उसके घर का रास्ता पता है ?

अरे मैंने ध्यान ही नहीं दिया कि कितना आगे निकल आया हूँ ! उसने यह रास्ता ही बताया था उसी पर चलता जा रहा हूँ !

अच्छा किया जो बता दिया !

वैसे कुछ काम तो तू मन लगा कर कर लेती है !

दोनों ही मुस्कुरा दिए थे ! मन खिल उठे थे ! माहौल खुशनुमा हो गया था !

लो इससे उसका फोन मिलाओ तो जरा ? रवि ने अपना मोबाइल देते हुए कहा !

राशि ने फोन मिला लिया !

हेलो जी ...हेलो जी ! नमस्ते जी, नमस्ते जी ! उधर से देव की आवाज आई !

उसकी आवाज में सम्मान और मीठापन का भाव साफ झलक रहा था !

देव जी अपने घर का रास्ता बता देना !

ठीक है जी, अभी बताता हूँ !

राशि ने फोन रवि के कान में लगा दिया !

हाँ बताओ ? मैं फूलों के बाग़ से आगे आ गया हूँ !

ठीक है, मैं यही पर रुक जाता हूँ, तुम जल्दी आओ !

रवि ने वही पर अपनी कार खड़ी की और बाहर आकर खड़े हो गए !

राशि भी उनके पास में आकर खड़ी हो गयी !

धूप अपना रंग निखारती जा रही थी ! हरियाली की चमक बढ़ रही थी ! ऐसा लग रहा था वे लोग धूप से नहा धोकर अपना श्रृंगार कर रहे हैं !

पहाड़ों से टकराती सुगन्धित हवा हर तरफ बिखर रही थी ! रोम रोम से एक अनजानी सी ख़ुशी का अहसास हो रहा था !

शरीर में कोई मधुर राग बज रहा था ! अपने का साथ होना या उनके साथ समय बिताना स्वर्ग से भी बेहतर है ! दूरी होने पर भी यह खुश्बू हर वक्त महकाती रहती है !

देव एक पहाड़ी से आता हुआ दिखाई दिया ! बड़ी तेजी से कदम बढाता हुआ, वो करीब आ गया था !

नमस्ते जी, नमस्ते जी ! अपनी उसी अदा से उसका अभिवादन करना अच्छा लगा !

चलो स्साब जी, घर चलते हैं ! पास में ही है !

कहते हुए कार की पीछे वाली सीट पर बैठ गया !

ठंडी हवा चलती हुई कार से टकरा कर उसके बालों को उड़ा रही थी !

यहाँ तो बिना एसी के ही इतना ठंडा मौसम है !

हाँ साब जी, यहाँ तो हमेंशा ठंडा ही रहता है !

राशी सुनकर मुस्कुरा भर दी !

दीदी जी लो यह खाओ ! देव ने अपनी जैकेट की जेब से हरे रंग के आडू की तरह के कुछ फल निकाल कर दिए !

हमारे बाग़ के हैं अभी ताजे तोड़ कर लाया हूँ खाकर बताइए कैसे हैं ?

क्या हैं ? मेरा मतलब कौन सा फल ? राशि ने पूछा !

दीदी जी, यह शक्करपारा है ! इसका स्वाद बहुत मीठा होता है, बिलकुल शक्कर की तरह !

यह तो बिलकुल आडू जैसा लग रहा है ! रवि ने कहा !

हाँ जी सर जी, यह आड़ू जैसा दिखता है पर इसका स्वाद आम जैसा होता है ! अभी यह पूरी तरह पका नहीं है! जब यह पक जायेगा तो इसका रंग हल्का सफ़ेद हो जायेगा !

उसने अपनी दूसरी जेब से कुछ फल निकाल के उसे दिए ! राशि ने अपने हाथ से एक फल को पोंछ कर रवि को खाने के लिए दिया ! और एक स्वयं खाने लगी ! बहुत ही रसीला और मीठा स्वाद था उनका ! ताजे ताजे तोडकर लाये गए वे फल शक्करपारे बहुत ही टेस्टी लग रहे थे !

कुछ दूर ही गए थे कि देखा, कच्ची सड़क पक्की हो रही है ! तारकोल और कंक्रीट डाला जा रहा है ! तभी एक सज्जन आये और बोले, आगे सड़क बन रही है इसलिए आप अभी आगे नहीं जा पाएंगे ! शायद वो ठेकेदार थे !

अभी कितना समय और लगेगा ? रवि ने पूछा !

लगभग 5 घंटे लग जायेंगे !

8 बज रहा है ! 1 या 2 बजे तक, हैं न ?

हाँ इतना ही समझिये !

चल भई देव वापस चले ! अभी तेरे घर जाना अपन की किस्मत में नहीं !

ऐसे क्यों कह रहे हैं आप ? चलिए मैं आपको इस पहाड़ी से अपने गाँव को दिखाता हूँ ! वहाँ से सीधा साफ दिख जायेगा क्योंकि इस एक पहाड़ी को पार करके ही मेरा गाँव है !

ठीक है यार, दिखा दो ! अभी गाँव देख लेते हैं शाम को घर देख लेंगे !

राशी भी रवि के पास आकर खड़ी हो गई थी !

देव बहुत खुश हो गया और मुस्कुराता हुआ बोला, सर जी बस वो सामने वाली पहाड़ी के पीछे मेरा गाँव है !

पहाड़ों पर से घर या गाँव देखते हुए ऐसा लगता है जैसे कि बिलकुल सामने हो लेकिन अगर जाओ तो पता चलता है जैसे कि कितनी पहाड़ियां चढ़ उतर लिए तब भी नहीं आया !

हाँ सर जी ऐसा ही होता है ! हम लोगों की तो बचपन से ही आदत पड़ी होती है ! अब तो नहीं पर बचपन में तो हम सीधी पहाड़ियों पर दौड्ते हुए चढ़ जाते थे ! अब तो बस थोडा बहुत ही चढ़ उतर पाता हूँ !

हाँ मेरे भाई अब तू कैसे चढ़ और उतर पायेगा क्योंकि तूने स्वयं अपना शरीर ख़राब कर लिया है ! शराब पीता है, सिगरेट पीता है और चाय पीकर खाने की छुट्टी कर देता है !

और हाँ कभी कभार तेरे मुँह में क्या चलता रहता है ? क्या चबाता रहता है ?

यह सुन कर देव ने मुँह फेर लिया !

अरे किससे नजरें चुरा रहा है, खुद से या मुझसे ?

अच्छा छोड़ अब यह बातें, चलकर अपना गाँव दिखा ! देखता हूँ हमारे देव भाई का गाँव इन पहाड़ियों से कैसा दिखता है ?

यह कहते हुए वे आगे आगे चल दिए ! अच्छा लगता है उनका हर काम में अगुआई करना ! वे भले ही उस बारे में न जानते हो फिर भी उनका आत्मविश्वास उन्हें कभी पीछे नहीं होने देता है ! राशी मन में मुस्कुराई !

कुछ दूर चलके एक पहाड़ी उतर कर वे अपनी तर्जनी ऊँगली से उसे दिखाते हुए बोले बता, कहीं तेरा गाँव वो तो नहीं है ?

देव तेजी से लपकता हुआ आया और अपना सर हाँ में हिलाता हुआ बोला, जी सर जी वही है मेरा गाँव !

हाँ मैं पहले ही समझ गया था वो ही है !

वे लोग उस पहाड़ की घास पर आराम से बैठ गए थे !

उसका गाँव बेहद खुबसूरत लग रहा था ! किसी ख्वाब के जैसा, चारो तरफ पहाड़ से घिरी हुई वो वेली, जिसमें उसका गाँव बसा हुआ था ! आज आँखों ने पहली बार इतने रमणीय स्थान को अपनी आँखों से देखा था ! पहले कभी फिल्मों में देखा होगा लेकिन कभी नहीं सोचा था कि अपनी आँखों से हूबहू देखने का अवसर मिलेगा !

उसने स्वयं को धन्य कहा, फिर ऊपर ईश्वर की तरफ देखते हुए उनका धन्यवाद किया !

जरुर मेरी किस्मत के सितारे चमके हैं जो मुझे अपने प्रिय के साथ इतने खूबसूरत स्थान पर समय बिताने का मौका मिला है !

हरे भरे ऊँचे ऊँचें पहाड़ और बीच में घर जो चटख लाल हरे रंग से रंगे हुए, साथ ही फूलों के बाग़, देवदार और चीड़ के उन्नत वृक्ष ! दूर से देखने में जब यह इतना सुंदर लग रहा है तो पास से कितना ज्यादा खूबसूरत होगा ! यह लोग किस्मत के कितने धनी हैं जो इनको यहाँ प्रकृति के आँचल में रहने को मिला है ! एकदम स्वस्थ और शरीर के लिए स्वास्थ्य बर्धक जगह !

राशि का मन किया कि हरी घास के नीचे दबी पत्थरों की कठोरता पर लेट जाओ !

राशि ने एक छोटे से पत्थर पर अपना सर रखा और आराम से लेट गयी !

उसने अपनी आँखें बंद कर ली और मधुर ख्यालों में डूब गयी वैसे ये सपने इतने खुबसूरत कैसे होते हैं ! जी चाहता है कि उसके सारे ख्वाब हकीकत बन कर पूरे हो जाएँ !

इतनी खुबसूरत घाटी में घर और वहां पर वो रवि और तन्हाई, बस और कोई न हो ! वो जी भर कर अपने रवि को प्यार करेगी ! इतना कि आज तक किसी ने किसी को न किया हो !

सुबह की जब पहली किरण आएगी तब वो अपने रवि को प्यार से उठाएगी उनके पुरे मुँह पर अपने चुम्बनों की बौछार कर देगी !

रवि उठेंगे और वे उसके लिए चाय बना कर लायेंगे ! और वे दोनों प्यार से एकदूसरे को देखते हुए बर्फ से घिरी पहाड़ियों के बीच बने अपने घर में फ़ायर प्लेस के सामने बैठकर चाय पियेंगे ! फिर वो कमरे में लगे पर्दों को हटाएगी तो बाहर की छटाएं उनके मन को मोह लेंगी ! वो कनखियों से अपने प्यारे रवि को झांक कर देखती रहेगी ! एक पल को भी अपने रवि को अपने से दूर नहीं करेगी बिलकुल भी दूर नहीं जाने देगी फिर वो सेबों के बाग़ में जाकर काम करेगी और पैसे कमा कर लाएगी ! रवि को बिलकुल भी बाहर नहीं जाने देगी कहीं किसी की नजर न लग जाए ! घर में रवि उसके लिऐ अपने हाथों से स्वादिष्ट खाना बना कर रखेंगे ! वो कितने होशियार हैं खाना बनाने में ! एक बार उनके हाथ की बनी पनीर की सब्जी खायी थी वाह क्या सब्जी थी आज भी उस लज्जतदार स्वाद मुँह में घुल कर पानी ला देता है ! कितने प्रेम से आग्रह करके खिलाया था और न चाहते हुए भी उसने एक रोटी ज्यादा खा ली थी ! रवि की तरफ मुँह करके लेटी राशि ने मन ही मन बुदबुदाया कैसे बना लेते हैं आप इतना अच्छा खाना ! लगता है आपने कुकिंग कोर्स किया है !

ओय राशि क्या बोल रही है ? रवि ने उसे हिलाते हुए कहा !

उनका नाममात्र का स्पर्श ही रोम रोम झंक्रत करने को काफी है ! वह चौंक कर उठ के बैठ गयी !

क्या हो गया ?

कुछ भी तो नहीं ! राशी ने सर हिलाते हुए कहा !

यह रवि भी न ! इतना प्यारा सपना देख रही थी बीच में ही तोड़ दिया ! जब अपने मन का सपना देख रहे हो तब तो बहुत दुःख होता है ! लेकिन सपने तो सपने होते हैं उनका टूटना भी क्या ! खुली आँखों से देखा है जो सपना उसे पूरा करना है !

उस सपने को हकीकत में बदलना है ! उसने ऊपर देखते हुए आँखें बंद करके झुकाई और अपनी दोनों हथेलियों को आपस में मसल कर चूमाँ और माथे से लगा लिया !

रवि जो अभी तक देव से बातों में मगन थे, वे उसकी तरफ से ध्यान हटा कर राशि की तरफ देखने लगे !

कितनी मासूम और भोली है यह राशि ! रवि को अपनी तरफ यूँ निहारते हुए पाया तो उसने शरमाकर अपनी नजरें नीचे झुका ली !

रवि के चेहरे पर मुस्कान तैर गयी !

ये रवि मुस्कुराते हुए कितने खुबसूरत लगते हैं ! हमेशा यूँ ही मुस्कुराएँ क्यूंकि जब वो नाराज होते हैं या डांटते हैं तब बिलकुल भी अच्छे नहीं लगते ! और उसकी आँखों में आंसू आ जाते हैं ! जब हम किसी को प्यार करते हैं तब उससे सिर्फ प्यार पाने और अपना प्यार उसपर लुटाने की ख्वाहिश करते हैं ! उसकी डांट कैसे सहन कर सकते हैं !

राशि को लग रहा था कि समय यहीं पर पल भर को ठहर जाए ! और वह रवि के मुसकुराते चेहरे के साथ यहाँ की खूबसूरती को अपनी आँखों में भर ले !

प्राकृतिक शांत वातावरण, पहाड़ों से घिरा और हरियाली से आच्छदित ये गाँव ! जो कभी सोचा भी नहीं उसे आज अपनी आँखों से यूँ देखना वाकई सुखद अहसास था !

जीवन तो गतिमान है इसे किसी भी तरह रोका नहीं जा सकता, उसे तो चलना है और वो यूँ ही चलता रहेगा ! पल भर को क्या छण भर को भी नहीं रुकेगा ! समय का पहिया चलता रहेगा और अच्छा या बुरा वक्त आता जाता रहेगा !

चल भाई अब चलते हैं वे लोग जैसे ही चलने को हुए दो छोटे छोटे बच्चे दौड्ते हुए आ गए ! वे शायद स्कूल से आ रहे थे उन दोनों ने चेक में शर्ट, नीली पेंट व नेवी ब्लू कलर का स्वेटर,,,, यूनिफार्म पहनी हुई थी साथ ही पीठ पर बेग टंगे हुए थे !

चेहरे पर गुलाबी रंगत और भोली सी मासूम मुस्कान थी ! वे देव के पास आकर खड़े हो गये और बड़े ध्यान से रवि राशि को देखने लगे !

सर जी, ये मेरे छोटे भाई के बच्चे हैं !

बेटा नमस्ते करो !

उन दोनों ने अपने हाथ जोडकर नमस्ते की, और मुस्कुराते हुए पहाड़ियों पर भागते हुए से दौड़ गए !

तेरे छोटे भाई के बच्चे हैं ?

जी हाँ सर जी ! स्कूल से आये हैं !

राशि भी जाने के लिए उठ खड़ी हुई !

समय कैसे पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता ! ले जाता है अपने संग में यथार्थ और दे जाता है, कुछ यादगार अनुभव, मीठी यादें और सुखद अहसास !

वे लोग वापस उसी ढाबे पर आकर बैठ गए ! जहाँ पर कल परांठे खाए थे !

अभी तो बहुत समय है, तबतक कहीं घूम आते हैं !

आपलोग घूम आइये मुझे यहाँ पर ही कुछ काम है ! देव बोला !

आगे चैरी के बाग़ हैं देख आइये !

चलो राशि तुम्हें चैरी के बागों की सैर करवा कर लाता हूँ !

राशि ने चैरी कभी देखी नहीं अतः वो फ़ौरन मान गयी ! वैसे भी साथ ही जाना था वहां अकेले बैठ कर क्या करती ? चार लोगों की नजरें उसपर वैसे भी टिकी रहती हैं !

पहाड़ी घुमावदार रस्ते, एकदम साफ़ सुथरे, नेशनल हाईवे पर चलते हुए राशि का मन इस समय प्रसन्नता से भरा हुआ था ! उसका जी चाह रहा था कि रवि यूँ ही कार चलाते रहें और यह सफर कभी ख़त्म ही न हो !

इतनी खुबसूरत वादियाँ और मन को मोहती हुई प्रकृति की सुंदर छटाएं !

लेकिन भला कभी खाली सोचने से कुछ हुआ है ! होता वही है जो किस्मत में लिखा हुआ है या हाथों की लकीरों में उभरा हुआ है !

दूर से ही चैरी का बाग़ दिखने लगा था ! हरे रंग के पेड़ों पर लाल रंग की छोटी छोटी चैरी अपनी अलग ही छटा बिखेर रही थी !

यहाँ पहाड़ों पर हर बात निराली लगती है ! सड़क से थोडा नीचे उतर कर वे लोग बाग़ में आ गए ! चैरी के पेड़ कुछ छोटे कुछ थोड़े बड़े नीचे खाइयों तक लगे हुए थे !

वहीँ पर हालनुमा एक बड़ा सा खाली कमरा था ! जहाँ पर महिला पुरुष बच्चे बैठे हुए डलिया में रखी चैरी को बड़े करीने से डिब्बों में सजा रहे थे !

वे लोग अपने काम में इतने समर्पित और मगन थे कि रवि और राशि वहां पर जाकर खड़े हो गये और उन लोगों को अहसास ही नहीं हुआ !

रवि यह डिब्बे पैक होकर बाजार में जायेंगे न !

चलो खुद ही जाकर मालूम करो ! कहते हुए रवि उन लोगों के बीच में इस तरह से बैठ गए जैसे वे ही इस बाग़ के मालिक हैं !

राशि को उनका यह कान्फिडेंस बहुत अच्छा लगा !

स्सच तो यही है अगर हमें अपने ऊपर शाशन करना आता है तो सबकुछ अपना ही लगता है पराया कुछ भी नहीं !

वे वहां पर बैठे सभी लोगों के साथ परिवार के मुखिया की तरह बात करने लगे !

हरी हरी डंडियों में लगी वो लाल और मरुन कलर की थी ! देखने बड़ी सुंदर लग रही थी ! वहां पर बैठे लोग बड़े कलात्मक तरीके से उनको डिब्बों में सजा रहे थे !

रवि उन लोगों के साथ बातों में मगन हो गये और राशी घूम घूम कर पेड़ों से ताज़ी ताज़ी चैरी तोडकर खाने लगी !

वाह कितना निराला स्वाद है उसने इतनी स्वादिष्ट चैरी कभी नहीं खाई थी ! हालाँकि उसने तो कभी चैरी खाई ही नहीं थी ! न ही उनका स्वाद ही पता था कि कैसा होता है ! लेकिन आज जो स्वाद मिला वो वाकई अलग था ! और फिर अपने हाथ से तोडकर खाने का अलग ही मजा होता है !

वाह कितना स्वाद है ! उसके मुँह से निकल गया था !

राशि जरा इधर आओ ! लो यह डलिया और इसमें अपनी पसंद के चैरी तोड़ कर लाओ ! रवि ने उसे एक डलिया देते हुए कहा !

यह सुनकर बाग़ के मालिक ने अपने एक नौकर को आवाज देते हुए कहा, ले तू तोडकर ला दे ये बच्ची कैसे तोड़ पायेगी भला !

राशि अबतक चैरी के पेड़ों को देख आई थी और अपनी पसंद के तोड़ कर खा भी चुकी थी सो अब वो भी रवि के पास आकर बैठ गयी थी !

एक उम्रदराज महिला जो मोटे मोटे शीशे का चश्मा लगाये हुए थी शायद उनकी ऑपरेशन की हुई आँखें थी ! सुर्ख गहरी लाल रंग की लिपिस्टिक और माथे पर बड़ी सी लाल रंग की बिंदी जो उनके सफ़ेद गोरे रंग पर खूब जंच रही थी !

वे वाकई बहुत सुंदर लग रही थी उनके चेहरे पर अलग ही चमक थी ! इतनी उम्र होने के बाद भी उनकी त्वचा एकदम से निखरी हुई लग रही थी !

राशि उनके ही पास आकर बैठ गयी !

आंटी जी, आप तो चैरी बहुत खाती होंगी ? यह बाग़ आपके ही हैं न ?

हाँ भाई यह मेरे ही बाग़ हैं और मैं चैरी भी खाती हूँ पर अब ज्यादा खाने का मन नहीं करता थोड़ी बहुत खा लेती हूँ ! बचपन में इसे खा कर ही अपना पेट भर लेती थी !

अब राशि को उनकी चमकती त्वचा का राज समझ में आया था !

ये चैरी के डिब्बे पैक होकर कहाँ भेजी जाते हैं ?

ट्रकों में भरकर बड़े शहरों की मंडी में ! फिर वहां से अन्य छोटे शहरों में !

हमारा काम है मंडी तक पहुँचाना आगे का काम तो व्यापारी स्वयं देखते हैं !

शायद यही वजह होगी कि यह फल छोटे शहरों में कम मात्रा में पहुँच पाता है और ताजगी भी उतनी ख़ास नहीं होती है, अधिकतर ख़राब भी हो जाती है !

नुक्सान की वजह से भी शायद छोटे शहरों के व्यापारी इसे नहीं मंगाते होंगे ! उसे याद आया कि उसके शहर में भी चैरी और स्ट्रावेरी कभी भी ताज़ी और मीठी खाने को नहीं मिली! देखने में तो बेहद खुबसूरत होती हैं रंग और खुशबू भी बहुत अच्छी लगती है लेकिन जब उन्हें मुँह में डालो तो एकदम तीखा खट्टा स्वाद ! डिब्बे में भी ऊपर की थोड़ी मात्रा में ठीक होती थी अंदर या नीचे दबी हुई चैरी अक्सर ख़राब या सड़ी हुई निकल जाती थी ! आज जब यहाँ की चेरी खाई तो इसके असली स्वाद का आनन्द आया ! खैर क्या करना ! उसने अपने मन को समझाया !

आंटी आपके स्ट्रावेरी के भी बाग़ हैं ?

नहीं बेटा अब हम स्ट्रावेरी के पेड़ नहीं लगाते !

जी !

राशि का मन और चैरी खाने का कर रहा था ! तब तक वो लड़का भी ताज़ी चेरी तोडकर ले आया था !

लो बेटा आप इसमें से खाओ ! राशि उसमे से गहरी लाल रंग की चैरी निकाल कर खाने लगी !

आपको कुछ बुरा तो नहीं लग रहा कि मैं आपकी चैरी खाए जा रही हूँ !

अरे भाई इनको क्यों बुरा लगेगा ! इनके बाग़ में तो भरी पड़ी हैं !

उन आंटी जी के कुछ भी बोलने से पहले ही रवि बोल पड़े थे !

उन ताज़ी स्वादिष्ट मीठी रसीली चैरी को देखकर कोई भी खाने का लोभ संबरण नही कर पायेगा !

जो लड़का डलिया भर कर चैरी तोडकर लाया था तो रवि को लगा कि शायद यह चेरी उपहार स्वरुप उनलोगों को दे देंगे लेकिन वो गलत सोच रहे थे ! क्योंकि बाग के मालिक ने उस डलिया की सारी चैरी भी उस ढेर में लौट ली जिसमे से पैकिंग की जा रही थी !

अब तो रवि का चेहरा एकदम से उतर गया था ! इतनी देर तक उन लोगों से बात की, उनकी परेशानियाँ जानी, अपनी राय दी ! साथ ही अपना समय भी, पर वे लोग तो पक्के व्यापारी निकले बल्कि और पूछने लगे आप लोगों को कितने डिब्बे चैरी लेनी है ?

रवि को लगा अब तो इज्जत की बात है कुछ तो लेनी ही होंगी !

कितने का है यह एक डिब्बा ?

160 रूपये का !

चैरी कितने किलो हैं इसमें ?

एक किलो !

आप एक किलो के दाम कुछ ज्यादा नहीं बता रहे ! शहर में तो हम बढ़िया फ्रेश चैरी का डिब्बा 100 रूपए में लाते हैं !

खैर अब लेनी तो हैं ही खाली हाथ तो नहीं जाऊंगा इसलिए बहस करने से क्या फ़ायदा !

उन्होंने उसे 500 का नोट निकाल कर देते हुए कहा, लो आपको जितने भी काटने हों, काट लो !

मालिक ने 350 रूपए वापस देते हुए कहा कि आप 150 में ही ले जाओ मेरे पास और टूटे हुए पैसे नहीं हैं !

मतलब 10 रुपये का अहसान ! वाह रे किसान ! तुझे क्या समझा और तू क्या निकला !

वे लोग वापस चल दिए ! रास्ते में और कई जगहों पर भी लोग चैरी और स्ट्रावेरी के पैकेट बैच रहे थे !

एक जगह पर कर रोक कर रवि ने उसके रेट पूछे !

वो करीब 18 19 साल का लड़का था ! उसके पास थोड़े ही पैक बचे थे !

इनके क्या रैट हैं बेटा ?

साब्ब जी, 140 रुपए का !

140 का एक !

जी हाँ साब जी !

रवि ने अपने लाये पैक की तरफ देखा और चुपचाप ड्राइविंग सीट पर जा बैठे ! अब उनके चेहरे पर व्यंग्य भरी मंद मंद मुस्कान आ गयी थी ! जब वे कुछ कहते नहीं हैं तब मन ही मन सोचते हुए मुसकुराते हैं !

***