घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 14 Ranju Bhatia द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • ऑफ्टर लव - 26

                         जैसे हर कहानी में एक विलेन होता है,वैसा...

  • Revenge Love - Part 3

    हा बाबा उतने में ही वापस आ जायेंगे .. चलो न अब मेरे साथ .. आ...

  • साथिया - 125

    उधर ईशान के कमरे मे"छोड़ो ना मुझे  इशू देखो सुबह हो गई है। स...

  • मैं, तुम और हमारी कहानियाँ

    सबसे समर्थ और सबसे सच्चा साथीएक छोटे से गाँव में एक व्यक्ति...

  • नफ़रत-ए-इश्क - 4

    तपस्या के बारेमे सोच कर विराट एक डेवल स्माइल लिऐ बालकनी से न...

श्रेणी
शेयर करे

घुमक्कड़ी बंजारा मन की - 14

घुमक्कड़ी बंजारा मन की

(१४)

महेश्वर

( महेश्वर एक प्योर सिटी )

महेश्वर इंदौर से सिर्फ ९० किलोमीटर की दूरी पर है, यह मध्य प्रदेश के खरगौन ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर तथा प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। यह नर्मदा नदी के किनारे पर बसा है। प्राचीन समय में यह शहर होल्कर राज्य की राजधानी था। महेश्वर धार्मिक महत्व का २५०० वर्ष पुराना शहर है तथा वर्ष भर लोग यहाँ घूमने आते रहते हैं। यह शहर अपनी 'महेश्वरी साड़ियों' के लिए भी विशेष रूप से प्रसिद्ध रहा है। महेश्वर को 'महिष्मति' नाम से भी जाना जाता है। महेश्वर का हिन्दू धार्मिक ग्रंथों 'रामायण' तथा 'महाभारत' में भी उल्लेख मिलता है। देवी अहिल्याबाई होल्कर के कालखंड में बनाये गए यहाँ के घाट बहुत सुन्दर हैं और इनका प्रतिबिम्ब नर्मदा नदी के जल में बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता है। महेश्वर इंदौर से सबसे नजदीक है। हिन्दुस्तान के ऐतहासिक शहर को प्योर सिटी ( पवित्र नगर ) कहा जाता है, ऐसा अनूप कैब चालक ने बताया, ज्यादा जानने की दिलचस्पी हुई तो, वहां से हूँ एक हुंकारा मिला, मैंने भी मुस्करा कर बाहर निकलते दृश्यों पर नजर घुमा ली, जो की मौसम बरसाती होने से बहुत ही सुन्दर लग रहा था

इंसान कम बोलने वाला (अनूप ) की तरह हो सकता है, पर प्रकर्ति अपने हर रंग में खूब बतियाती है, और अपने दिखाए गए सुंदर दृश्यों में खुद को गुम हो जाने का मौका देती है, बस इसके पास होने की जरुरत और मौका लपकने की आवश्यकता है, वही मैंने किया, सुना भर था कि मध्य देश मानसून में हरित रंग में रंग कर रूमानी हो जाता है आज उसको देखा भी, विध्यांचल पहाड़ियाँ घने चटकीले हरे रंग की साडी में भीगी हुई, इठला रही थी, खेतो में लगे सोयबीन और मक्के की फसल उस पर जैसे डिजायन बना रहे थे और "घाटी शुरू "के लिखे हुए बड़े बड़े अक्षर पहाड़ी रस्ते को काट कर बनाए गए थे, वही कटी हुई पहाड़ी से बने हुए निशाँ बरसात के पानी से रिसते हुए सडक के किनारों को भिगो रहे थे, मीठी भीगी हवा इन सब को एक सरगम में पिरो रही कार में लगे रेडियो के साथ बजते हुए, जो हर गाने के बाद मध्यप्रदेश की एड और दर्शनीय स्थल की घोषणा कर रहे थे.
सड़क के किनारे उन ताजे मकई को भूनते देख खाने का लोभ बढ़ता जा रहा था, पर भरा हुआ पेट, हुंकारा भर के न, न कर रहा था, वाकई यह रास्ता हरियाली, खेत और घाटी बने पहाड़ियों का अद्भुत संगम है जो भुलाए नहीं भूल सकते. धीरे धीरे हरियाली खतम होने लगी, मकान दिखने लगे सड़क भी जो अब तक माखन की तरह फिसलती हुई जा रही थी, हिचकोले लेने लगी, और मेरी जैसी कुदरत के साथ चल रहा रूमानी सम्वाद वही अटक गया, अब शहर की हलचल दिखने लगी, साथ ही जाते हुए जय शिव शम्भु का नारा लगते शिव भक्त कावड़ी भी ओम्केश्वर जा रहे हैं पूछने पर पता चला. और वही शिव अभिषेक कर के अपनी यात्रा समाप्त करेंगे

यहाँ पर हमारी बुकिंग "Narmada Retreat(mptdc) में थी. यह नर्मदा नदी के किनारे बना मध्यप्रदेश टूरिज्म बनाया गया रिजार्ट है, जिसमे ऐ सी, नॉन ऐ सी कमरे काटेज, हट और रूम के रूप में बने हुए हैं, इसको बुकिंग आप नेट से करवा सकते हैं, साफ़ सुथरे कमरे और नर्मदा नदी का बहता स्वरूप साथ में घनी हरियाली वाला जंगल सा, मुझे तो बहुत ही सुंदर तपोवन सा लगा, जो कुदरत के रंग में रंगा हुआ भी था और आधुनिक सुविधाओं से भी सजा हुआ, स्विमिंग पुल का नीला साफ़ पानी, बड़े बड़े बड और पीपल के पेड़ से ढका हुआ, कोने से झांकता नीला आसमान, और साथ ही बहती माँ नर्मदे, उस पर वहां लगी जंगली तुलसी की खुशबु और रंग बिरंगे फूल चहचाहते पक्षी का मीठा सुर, उफ़ जैसे कोई वर्णित तपोभूमि जो शब्दों से निकल कर सामने आ गयी हो, मुग्ध हो कर निहार ही रही थी, कि अनूप जी का आदेश हुआ फ्रेश हो ले, फिर हम महेश्वर किला देखने जा रहे हैं, सुबह ९ बजे से चले हुए अब १२ बजने को थे, थोडा हाथ मुहं धोया, चाय कमरे में ही मंगवा के पी कर तरोताजा हो और महेश्वर के आकर्षण किले को देखने चल दिए,

बरसाती मौसम हवा हो चूका था, सूरज देवता का दिल हमारे साथ घुमने का लग रहा था सो वो अपनी चमकीली पोशाक में सजे हमारे साथ साथ झूमते चल रहे थे, और यह चमकीली रंग की गर्मी हमें परेशानी देने वाली है यह अनुभव हो चूका था खैर किले को देखने की उत्सुकता सूरज के साथ घुमने से अधिक प्रभावी थी, सो हमने सूरज के साथ चलने का भी ज्यादा ख्याल नहीं किया.

अहिल्याबाई फोर्ट

किले से कुछ दूरी पर कैब रोक दी आगे टिकट ले कर जाना था, जब तक टिकट ले, तब तक कई गाइड हमें घेर चुके थे, बोली लग रही थी किले को दिखाने की, २०० रूपये में रिंकू गाइड जी मिले हमें, जो हमें गाइड कम और हीरो अधिक से लगे, ओह हो अब लिखते हुए ध्यान आया कि उनका फोटो लेने से चुक गयी मैं. खैर शब्द तो है, हलकी पीली टी शर्ट जींस में रिंकू जी महज २२ साल के थे, बाल स्टायल में बने हुए थे, उम्र और हाव भाव देख के लग रहा था न जाने क्या बताये, पर मेरा अंदाज़ा गलत साबित करते हुए वह किसी प्रोफेशनल की तरह अहिल्या बाई की मूर्ति दिखाते हुए शुरू हो गए, किले के आहते में लगी देवी अहिल्याबाई होलकर की मूर्ति बहुत ही सम्मोहित कर रही थी, हाथ में शिवलिंग, जिसमे चन्द्राकार चन्द्र बहुत ही लुभावना लगा, बात तो थी कुछ उस प्रतिमा में जो उनके बारे में जानने को उत्सुकता बड़ा रही थी, सूरज देवता उस चन्द्र पर अपनी रौशनी पूरी तरह से बिखेर रहे थे, उनसे कुछ राहत लेते हुए छाया में खड़े हुए कहानी को सुना, क्यूंकि रिंकू जी ने बताया की अन्दर बात करना मना है, जो कुछ अंदर है वह वो यही बता देंगे, हम फिर उनके बताये हुए को मन ही मन दोहराते हुए हुए अंदर देखेंगे, उन्ही के बताये शब्दों में

अह्लियाबाई की प्रेरक गाथा

अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्य चकित करने वाला है। वह एक बहादुर योद्धा और बहुत अच्छी तीर अंदाज़ थी अहिल्याबाई का रहन-सहन बिल्कुल सादा था। शुद्ध सफ़ेद वस्त्र धारण करती थीं। जेवर आदि कुछ नहीं पहनती थी।

अहिल्या बाई का विवाह बहुत छोटी उम्र उस वक़्त के अनुसार महज ८ साल में हो गया था, एक पुत्र और पुत्री की माँ बनी, और बहुत छोटी सी उम्र में वेध्व्य भी दख लिया, उस वक़्त की प्रथा के अनुसार वह सती होना चाहती थी, पर उनके ससुर ने उन्हें रोक लिया की राज्य को कौन देखेगा, तब उन्होंने यह चन्द्राकार श्विलिंग ले के महेश्वर से ही राजकाज सभाला, हाथ में लिया शिवलिंग इस बात का प्रतीक था की जो भगवान शिव उनको आदेश देंगे वही उनके द्वारा कहा जाएगा, सारा राज्य उन्होंने भगवान शिव को अर्पित कर रखा था और खुद उनकी सेविका बनकर शासन चलाती थी। 'संपति सब रघुपति के आहि'—सारी संपत्ति भगवान की है, और सब जगह जो भी राज्य से जुड़े अधिकार थे उन पर हस्ताक्षर करते समय अपना नाम नहीं लिखती थी। नीचे केवल श्री शंकर लिख देती थी। उनके रुपयों पर शंकर का लिंग और बिल्व पत्र का चित्र अंकित है ओर पैसों पर नंदी का। उन्होंने कई मंदिर बनवाये, अपने पितृ स्थान महारष्ट्र में कई जगह पुननिर्माण करवाया अंत तक महेश्वर को अपनी राजधानी बना के राज काज किया उन्हें माँ नर्मदा से बहुत प्रेम था, किनारे पर बने सुन्दर घाट इस बात का प्रमाण देते हैं, भगवान शिव की भक्त थी वहां जगह जगह बने शिवलिंग यह बतारहे थे, उनको यह स्थान बहुत ही प्रिय था, यहाँ के लोग आज भी देवी अहिल्याबाई को "मां साहेब" कह कर सम्मान देते हैं।

जितना शहर देखा देख के यही लगा आज भी वहां अह्लियाबाई मौजूद हैं, लम्बा-चौड़ा नर्मदा तट एवं उस पर बने अनेको सुन्दर घाट एवं पाषाण कला का सुन्दर चित्र दिखने वाला "किला" इस शहर का प्रमुख पर्यटन आकर्षण है | समय-समय पर इस शहर की गोद में मनाये जाने वाले तीज-त्यौहार, उत्सव-पर्व इस शहर की रंगत में चार चाँद लगाते है, जिनमे शिवरात्रि स्नान, निमाड़ उत्सव, लोकपर्व गणगौर, नवरात्री, गंगादशमी, नर्मदा जयंती, अहिल्या जयंती एवं श्रावण माह के अंतिम सोमवार को भगवान काशी विश्वनाथ के नगर भ्रमण की "शाही सवारी" प्रमुख है | अहिल्या घाट महेश्वर के ख़ूबसूरत घाटों में से एक है। यह इतना सुन्दर है कि बस घंटों निहारते रहने का मन करता है। महेश्वर का ऐतिहासिक तथा ख़ूबसूरत क़िला होल्कर राजवंश तथा रानी अहिल्याबाई के शासन काल की गौरवगाथा का बाते सुनता हुआ सा लगता है घाट पूरी तरह से शिवमय दिखाई देता है। पूरे घाट पर पाषाण के अनगिनत शिवलिंग निर्मित हैं। क़िले में प्रवेश के लिए घाट के पास से ही एक चौड़ा घेरा लिए बहुत सारी सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। यह क़िला जितना सुन्दर बाहर से है, उससे भी ज़्यादा सुन्दर तथा आकर्षक यह अन्दर से लगता है। इतनी सुन्दर कारीगरी, इतनी सुन्दर शिल्पकारी, इतना सुन्दर एवं मजबूत निर्माण की आज भी यह क़िला अपनी बनांये जाने की कहानी खुद ब्यान करता लगता है.

किले के अंदर ही कुछ क़दमों की दूरी पर ही प्राचीन राजराजेश्वर शैव मंदिर दिखाई देता है। यह एक विशाल शिव मंदिर है, जिसका निर्माण क़िले के अन्दर ही अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। अहिल्याबाई इसी मंदिर में रोजाना सुबह-शाम पूजा-पाठ किया करती थीं। आज भी यहाँ पूजा कहते हैं जब वह गद्दी पर बैठी तब उनके राज्य में बहुत चोर डाकू थे तब उन्होंने घोषणा की कि जो कोई इन चोर डाकू को पकड़ कर लाएगा वह उनसे अपनी बेटी मुक्ताबाई की शादी कर देंगी तब ' इस घोषणा को सुनकर यशवंतराव फणसे नाम के एक युवक ने यह कर के दिखाया और उनकी बेटी का विवाह उस से हुआ । नारीशक्ति को उन्होंने बहुत बढ़ावा दिया उन्होंने यह बता दिया कि स्त्री किसी भी स्थिति में पुरुष से कम नहीं है। वे स्वयं भी पति के साथ युद्ध में जाया करती थीं। पति के मरने के बाद भी वह युद्ध में जाती थी और सेनाओं का नेतृत्व करती थीं। अहिल्याबाई के गद्दी पर बैठने के पहले शासन का ऐसा नियम था कि यदि किसी महिला का पति मर जाए और उसका पुत्र न हो तो उसकी संपूर्ण संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाती थी, परंतु अहिल्या बाई ने इस क़ानून को बदल दिया और मृतक की विधवा को यह अधिकार दिया कि वह पति द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति की वारिस रहेगी और अपनी इच्छानुसार अपने उपयोग में लाए और चाहे तो उसका सुख भोगे या अपनी संपत्ति से उन्होंने स्त्रियों के लिए बहुत से कार्य किये उनकी विशेष सेविका स्त्री ही थी, घात पर स्त्री स्नान की अलग व्यवस्था, उनकी शिक्षा और मान सम्मान का उनके समय में बहुत ही अधिक ध्यान रखा जाता था ।

यह सब जान कर मुझे भी अहिल्या बाई से मोह हो गया, बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तिव लगा, बेशक जितना किले के अंदर देखा और मंदिर देखे वह आज भी उन्ही तरह से रखे गए हैं उनकी पालकी शिवलिंग पूजा का सामान और वह गद्दी और आहाता जहाँ से वह अपना राज्य चलाती थी उसी तरह से देखने को मिला, पर उपरी हिस्सा कच्चा हो चूका वो देखने क मनाही थी, बहुत बड़े क्षेत्र में फैला यह किला और इसकी बनावट खुद में स्मोहित किये जा रही थी, पांव थक थे कारण सूरज देवता का साथ साथ घूमना अब हैरान परेशान कर देने लगा था.

किले में ही महेश्वरी साडी के बुनकर देखे, अभी कुछ साल पहले आई बाढ़ के निशाँ देखे, और नर्मदा घाट पर बने शिवलिंग मंदिर जैसे यहाँ से जाने के लिए मना कर रहे थे, बहुत कुशलता से यह सब बना होगा, पर वक़्त इंसान को उम्र दे के अमर करे न करे पर उनके किये कार्यों से अमर कर देता है, वही इस सब को देख कर लगा, सब बातें मुझे अच्छी लगी उनकी बस यही बात अब तक अटक गयी, की वह खुद सती नहीं हुई उसकी विरोधी भी रही पर अपनी पुत्री को क्यों सती होने से नहीं रोक पायी ? यह सुन कर कुछ हेरानी भी हुई और जानने की जिज्ञासा भी हालाँकि मैंने कहीं पढ़ा नहीं कि ऐसा हुआ था, परन्तु गाइड बता रहा था तो सही ही होगा

महेश्वर बाज़ार

वापसी में महेश्वर बाज़ार साड़ियों से भरे हुए थे, जहाँ बहुत अधिक भीड़ नहीं थी, शांत शहर लगा, एक दो और जगह बतायी थी गाइड ने घुमने की सहस्त्रधारा पर बहुत अधिक धूप और अनूप जी के कहे अनुसार कुछ नहीं वहां देखने को वापस हो लिए,

अहिल्या बाई मोह में सम्मोहित वापस अपने रिजार्ट पहुंची, वहां पहुंचते ही, भूख ने वापस इस युग में ला दिया, दोपहर लंच का टाइम अब तक ख़त्म हो चूका था, पूछने पर पता चला कि चाय के साथ सेंडविच मिल सकते हैं, वही मंगवाए गए, अब जा के अपने रुके हुए स्थान को देखने की इच्छा हुई, जैसा मैंने शुरू में लिखा यह रिजोर्ट एक तपोवन सा लगता है, सुबह जब आये तब यह कुछ खाली सा लगा, पर वीकेंड होने के कारण अब यह भरापूरा पक्षियों की आवाज़ के साथ बच्चो की खिलखिलाहट से भी गूंज रहा था, जो वहां बने स्विमिंग पुल में खेल रहे थे, टहलते हुए हम वहां बनी रेलिंग के पास पहुंच गए जहाँ माँ नर्मदा बिलकुल शांत परन्तु भरी हुई बह रही थी, किले से नदी के ठीक बीच में देखा गया मंदिर अब रिजोर्ट के ठीक सामने दिखा, उत्साहित हो कर आगे बढे तो कुछ काटेज बिलकुल नर्मदा फेसिग थी, निश्चय ही उनका किराया भी अधिक होगा, उनको देखते हुए आगे बड़े तो नीचे नर्मदा तक जाती सीढियां दिखी, लो जी बिन मांगे दिल की मुराद पूरी हो गयी, भरी दोपहर में जब किला देखा था तो वहां बने सुन्दर घाट पर अधिक देर न रुक पाने का अफ़सोस लगा था

अब शाम के छह बज रहे थे, उमस कुछ ठंडी हवा में बदल चुकी थी, रिजोर्ट का सुन्दर घाट था, जहाँ इस वक़्त सिर्फ हम थे और माँ नर्मदा, कुछ देर बैठे शांत बहती नर्मदा को देखते रहे, और सही में जैसे ध्यान अवस्था सी लगने लगी, तभी एक सज्जन नीचे उतरते दिखाई दिए, मैं बिलकुल लास्ट सीढ़ी पर बैठी थी सो सहम गयी की यह सज्जन यहाँ से भागने को तो न आरहे, नीचे आ कर उन्होंने मुस्कराते हुए अपना परिचय दिया वह यहाँ के मेनेजर मिस्टर सिंह थे, जो पिछले ४ माह से यहाँ पोस्टेड हैं, परिवार साथ है नहीं सो बतियाने चले आये, परिवार से दूर, बोलने की कितनी इच्छा होती है, यह लगातार चलती उनकी बातों से अंदाजा लगाया. जो उन्होंने अपने परिवार से शुरू की और फिर मध्यप्रदेश के पूरे देखे जाने वालो स्थानों पर चलती गयी, यह अभी और भी चलती अपनी राह पर, पर समय देखा तो रात के १० बजने को थे, बातों में समय का पता ही नही चला. ऊपर रिजोर्ट डाइनिंग हॉल में पहुंचे. सिंपल सा खाना था, दाल रोटी, नॉन वेज था अधिक, पर हम वो खाते नहीं, सो अपनी दाल रोटी खाते अपने रूम में वापस जाने की कर हो रहे थे, पर अभी लगता हा सिंह साहब जी की कई कहानियां सुनानी रह गयी थी, तो इस बार वहां डाइनिंग हाल की छत पर लगी कुर्सियों पर फिर से जम गए, गहराती रात में बहती नर्मदा का पानी चमकीला बहुत ही सुन्दर लगा, सामने चमकता चाँद उस माहोल को और भी बेहतरीन बना रहा था, अतीत में क़ैद पत्थर के महलो की एक अद्भुत कहानी दिन में सुनी थी. और अब सिंह साहब से पानी में तैरने के गुण, ओरछा, खुजराहो, चित्रकूट आदि स्थानों के बारे में रोचक बातें सुन रहे थे, हमसे अधिक वो उत्साहित लगे कि हम हिन्दुस्तान के दिल का एक एक कोना क्यों और कैसे, कब देखे, यही उत्साह का वर्णन मैंने अपनी पहली किश्त में किया था, कि वहां का रहने वाला, उस जगह के बारे में अच्छा और बुरा दोनों रूप बता सकता है, कमी हर जगह में हो सकती है, पर उसके पोजिटिव रुख को सामने रख कर हम उस यात्रा को और भी रोचक बना सकते हैं, वही दिल ने सब सुन कर इरादा पक्का कर लिया की नेक्स्ट अब यह सब स्थान देखे जायेंगे. शुक्रिया सिंह साहब का, जो वाकई इस पुरे दिन और आधी रात को गुजरे पवित्र नगरी कहे जाने वाले महेश्वर को यादगार बना दिया था

रात आधी से अधिक बीतेने वाली थी और सिंह साहब जी भी शायद अब इतना बतिया कर सुना कर थक चुके थे, बोल के उठे आप लोग तो शुद्ध शाकहारी है, पर मैं अभी एक पेग लूँगा खाने के साथ, हम हैरान हुए इतने बतरस कि अब तक डिनर ही नहीं किये, खैर शुभरात्री कह कर हम अपने काटेज की तरफ चल पड़े दिन भर की बातों को घुमने को सोचते हुए कब सो गए पता ही नहीं चला, सुबह वही ५ बजे चिड़ियों के मधुर गान से नींद खुल गयी, वैसे भी जब में बाहर घुमने जाऊं तो सुबह जल्दी उठ कर वहां उगते सूरज को देखने की जल्दी होती है, और इस शहर के सूरजदेवता तो कल हमारे साथ यात्रा पर थे, आज जब बाहर आ के देखा तो वह कल की यात्रा से थके हुए बादलो की ओट में दुबके हुए थे श्याद कल वो हमसे अधिक थक गए, पर छाए घने बादल मुझे बहुत ख़ुशी दे गए, मांडू इन मानसून देखने का सपना सच होने वाला था, जल्दी से रेडी हुए और एक बार फिर नर्मदा को देखने महसूस करने का दिल हो आया, एक बार फिर से वहीं जा कर सुबह की ताजगी को माँ नर्मदा के साथ दिल से महसूस किया, बाकी सब तरफ अभी शांति थी, कुछ देर वहां बैठ कर फिर नाश्ता किया, वही यहाँ का फेमस पोहा और साथ में इडली थी, अच्छा नाश्ता था, सिंह साहब को एक बढ़िया यादगार शाम के लिए धन्यवाद कहा और अगले पड़ाव की तरफ चल दिए जहाँ एक और बीता हुआ अतीत था और रूपमती और बाज बहादुर की रूमानी कहानी को देखने सुनने की उत्सुकता थी.

***