हां कैकेयी तो तुम्हे तुम्हारे दो वचन मुझे आज पूरे करने है। बोलो प्रिय ,मांगो जो मांगना है, आज मैं राम को राजा घोषित कर बहुत ही प्रसन्न और निश्चिंत हु। मुझे ईश्वर ने इतना कुछ दिया है, चार हीरे जैसे पुत्र , सीता ,उर्मिला, मांडवी और श्रुतकृति देवी जैसी पुत्र वधु और कौशलया, सुमित्रा और तुम तीनो को उनकी माँ के रूप में ने मेरे जीवन में मुझे सब कुछ श्रेष्ठम दिया है ,मांगो प्रिय कैकेयी मांगो। केकैयी आराम से पलंग पर बैठ गयी और महाराजा दशरथ से मांग लिया वह जिसकी कल्पना भी शायद उन्होंने नहीं की थी। कैकेयी तुम होश में तो हो,क्या मांग रही हो ये। मैंने तो जो माँगा है आप ने सुन लिया , अब आप या तो मना कर दीजिये और तोड़ दीजिये अपने वचन या फिर सोचिये मत इतना और बुलाइये राम को और आदेश दीजिये.
मै रघुकुल वंश की रीत नहीं तोड़ सकता , प्राण चले जाए बेशक पर वचन नहीं जाएगा..
दशरथ ने बहुत दुखी मैं से राम को बुलवाया। राम ने सब सुना और उनके मन में युद्ध चल पड़ा। क्या आज्ञा का पालन कर चला जाऊं या कुछ और सोचू
उन्होंने पिता जी से थोड़ा समय माँगा और अपने कक्ष में लौट गए। वहाँ उन्होंने सारी बात सीता को बताई। फिर लक्ष्मण से चर्चा की और भारत और शत्रुघ्न जो कहीं बाहर थे को बुलावा भेजा. सब ने मिल कर चर्चा की और इस नतीजे पर पहुँची की पिताजी के माता कैकेयी के जरूरत से ज्यादा मोह पाश में पड़े होनी पर ही ये स्तिथी आयी है, अब जो एक गलती उन्होंने बिना सोची समझी वचन दे कर कर दी उसकी वजह सी सब लोग और साथ में राज्य भी क्यों दुखी हो, उसकी शासन व्यवस्था पर असर आये..
ये निश्चय कर के वह राजा दशरथ के पास गए, उन्होंने कहा पिता जी माँ कैकेयी यही चाहती है ना की भरत को राज गद्दी मिले , आप सहर्ष दीजिये ,मुझे कोई एतराज नहीं पर इनका जो दूसरा वचन है की मै वन में चला जाऊं इसका मुझे कोई औचित्य नहीं लगता , और मेरी बुद्धि , मेरा मैं इसको स्वीकार नहीं करता , आप ने भी नहीं सोचा की मेरी भार्या और आपकी पुत्र वधु सीता पर इसका क्या असर होगा। मैंने भी सीता के पिताश्री को वचन दिया है की उनकी लाड़ली बेटी सीता को ठाट से रखूंगा ,अब आप के एक वचन के लिए मैं अपने वचनो का निरादर नहीं कर सकता। मैं वन में नहीं जाऊँगा, ये आपको कैकेयी माता को समझाना होगा. वो इस बात से निश्चिंत रही की मैं भरत के राज काज के काम में खलल डालूंगा या सलाह दूंगा, ऐसा कुछ नहीं होगा, पर आप को ये समझना होगा की मेरी भी अपनी जिंदगी की कोई कल्पना है, मै आपने जो युवा अवस्था में प्रेम में आ कर वचन दे दिए थे उनकी भरपाई अपनी युवा अवस्था के १४ वर्ष होम कर के नहीं चुका सकता. प्रेम है तो बुध्धी भी है. अगर एक व्यक्ति प्रेम में अंधा हो कोई निर्णय ले तो उसका फल सब नहीं भुगत सकते.
और अगर आप नहीं समझा सकते तो एक छोटा राज महल और सारी व्यवस्थाएं किसी निकट के वन में करवा दीजिये ताकि मै ,सीता , और लक्ष्मण और उसकी धर्मपत्नी हम लोग आराम से वहाँ रह सके.
राजा दशरथ ने बहुत सोचा और राजकोष के एक बड़े हिस्से से निकट के वन् में एक महल बनवा दिया. लोगो को बहुत आश्चर्य हुआ की दशरथ क्यों नहीं कैकेयी को समझा पा रही,क्या प्रेम इतना अंधा होता है ? खैर कुछ समय में ही राम सीता लक्ष्मण उर्मिला वहाँ रहने चले गए.
वहाँ अयोध्या में भरत राज गद्दी पर विराजमान हो गए और सामान्य शासन चलने लगा इधर जंगल महल में भी राम और लक्ष्मण ने मिल कर कार्य योजना बनाई
कुछ खेती के लायक ज़मीन बनाई, अपनी कारिंदो को खेती सिखाई , फूल फल के पेड़ लगवाए, प्रकृति से सीखा कैसे अनुशासन जीवन को अच्छा करता है। सीता और उर्मिला मिल कर पक्षीयो की भाषा समझनी का प्रयास करती, जंगल की आस पास रहने वाले .कई जनजाति के लोग रोज़ सुबह शाम महल में आती , वह प्रेम स्वरुप कुछ छोटी मोटी भेंट लाते और राम लक्ष्मण उनको तीर चलाना सिखाते और कभी कभी वैदिक श्लोक और प्रार्थनाये। अच्छा सा माहौल और व्यवस्था बन गयी। जंगल महल की कीर्ति भी दूर के राज्यों में फ़ैल गयी थी की दो राज सिक परिवार के भाई अपने महल से निष्काषित हो कैसे छोटी महल में जंगल में रह रहे है।
ये बात लंका के लोगो को भी पता चली, वह सब पहली ही रावण के शासन से दुखी थे, रावण यु तो बहुत विद्वान् था पर उसकी विद्वता अपनी लिये ही थी. उसकी धर्मपत्नी मंदोदरी उसको बहुत समझाती की राजा हो,प्रजा की भलाई में ज्यादा समय और दिमाग लगाओ ,सिर्फ अपना आराम और सुख मत देखो। इतिहास तुम्ही कोसेगा , पर रावण तो रावण था . एक दिन मंदोदरी चुप चाप राम के छोटे महल में आयी , उसने वहां की व्यवस्था देखी, राजा राम का जंगल की प्रजा , वनस्पति और जानवरो सब से व्यवहार देखा तो बहुत मुग्धध हुई।
वो सीता और उर्मिला से मिली और सारी बात बताई की रावण कैसी बुद्धिमान होती हुए भी बुद्धि का प्रयोग सही से नहीं करते और प्रजा को सुखी नहीं रखते। बात करते करते दोनों ने पाया की राम और रावण दोनों ही शिव के भक्त है तो चलो कोई ऐसा आयोजन करें की जिसमे दोनों की मुलाक़ात हो जाए , फिर परिचय और दोस्ती ताकि रावण में भी कुछ राम के कुछ गुड़ आ जाए
ये बात लंका के लोगो को भी पता चली, वह सब पहली ही रावण के शासन से दुखी थे, रावण यु तो बहुत विद्वान् था पर उसकी विद्वता अपनी लिये ही थी. उसकी धर्मपत्नी मंदोदरी उसको बहुत समझाती की राजा हो,प्रजा की भलाई में ज्यादा समय और दिमाग लगाओ ,सिर्फ अपना आराम और सुख मत देखो। इतिहास तुम्ही कोसेगा , पर रावण तो रावण था . एक दिन मंदोदरी चुप चाप राम के छोटे महल में आयी , उसने वहां की व्यवस्था देखी, राजा राम का जंगल की प्रजा , वनस्पति और जानवरो सब से व्यवहार देखा तो बहुत मुग्धध हुई।
वो सीता और उर्मिला से मिली और सारी बात बताई की रावण कैसी बुद्धिमान होती हुए भी बुद्धि का प्रयोग सही से नहीं करते और प्रजा को सुखी नहीं रखते। बात करते करते दोनों ने पाया की राम और रावण दोनों ही शिव के भक्त है तो चलो कोई ऐसा आयोजन करें की जिसमे दोनों की मुलाक़ात हो जाए , फिर परिचय और दोस्ती ताकि रावण में भी कुछ राम के कुछ आ जाए
मंदोदरी ये बात कर के अपनी महल वापस चली गयी. सीता माँ के प्यारे वानर हनुमंत को मंदोदरी को वहां छोड़ने और रावण से परिचय कर इस आयोजन का निमंत्रण देने भेजा।
रावण ने जब हनुमंत को देखा तो उसका बहुत मज़ाक उड़ाया, कहाँ गयी थी मंदोदरी तुम और ये किस बन्दर को पकड़ लाई वह बोला. .मंदोदरी बोली महाराज पहली सुन तो लो , फिर बोलना.ये हनुमंत है, पड़ोस के जंगल में अयोध्या के राजा दशरथ के बेटे राम जो किसी वचन के कारण जंगल में रह रहे है ने शिव पूजा का आयोजन रखा है, उसी के लिए ये आपको आमंत्रित करने आया है . ठीक है मंदोदरी, शिव का आयोजन है ज़रूर जाऊँगा ,पर वहां कोई ढंग के लोग भी होंगी या सिर्फ ये बन्दर दिखेंगे. आप भी ना महाराज बहुत ज्यादा बोलते है मंदोदरी ने कहा
आयोजन की तैयारी होने लगी, सीता और उर्मिला ने बहुत मेहनत से अपनी छोटे से महल को सजाया, अतिथियों के लिए कुशा के आसान बनाये, फल सब्जी तोड़ कर पकवान के लिए तैयारी की, निमंत्रित लोगो में ऋषी मुनी भी थे। मेहमानो में आस पास के कबीलो के राजा महाराजा, अयोध्या से अपनी पिता दसरथ राजा और भारत सत्रुघन को भी बुलाया.
ये वैसे भी इस जांगले महल में प्रवास का चौदवा साल था , यहाँ प्रवास कुछ ही दिन की बात और थी, पर राम के में कुछ और भी था। राम सीता लक्ष्मण और उर्मिल को अब तक पक्षियों से भी मधुर सम्बन्ध बन गए थी और कोयल के समूह ने कहा हम मंगल गान जाएंगे, मोर बोले हम नृत्य करेंगे और कौवे ने कहा में लोगो की आनी की सूचना दूंगा. सब लोग बहुत उत्साहित थे.
आयोजन शुरू हुआ, आदर सत्कार से सब लोग को बैठाया गया और फिर शुरू हुआ पाठ,राम के रुद्राभिषेक के स्वर के साथ रावण का शिव तांडव स्त्रोत्र ,ऐसा समा बंधा की शिव का आसान ही डोल गया स्वर्ग में। पार्वती माँ परेशान हो गाई, बोली कुछ करिये , नीचे जाए और समझाए दोनों को।
शिव जी ने अपना कमंडल उठाया और आयोजन के स्थान पर प्रगट हो गये..... फिर तो लोग झूओम गए , हे शिव प्रभु आज राम के इस जंगल महल के आयोजन से हम सब को आप के दर्शन हो गए. हम धन्य है, धन्य हुए।
सब लोग पशु पक्षी ऋषी मुनि राजा प्रजा सब शिव से बोले , हम जिस भी योनि में है हमारे मैं में अच्छा बुरा का हमेशा द्वन्द रहता है, क्या चुने क्या अच्छा है, क्या बुरा है ,राम ने कहा क्या पिता की आज्ञा पूरी ना मान मैंने बुरा किया, दसरथ बोले क्या कैकेयी के वचन पूरा कर मैंने गलत किया, विभीषण बोले क्या रावण का हमेशा साथ ना देकर मैंने गलत किया, ऐसी सब के कुछ न कुछ उलझने थी। शिव जी आज हमें इस जीवन द्वन्द का रहस्य समझाये। शिव ने राम को देखा, फिर रावण को देखा फिर मुस्कुराये.
उन्होंने कहा सब सुने , जीवन रहस्य को समझे , जीवन कोरा आदर्श नहीं, आप कर्म ना करे आदर्श की सीमा में बांध कर वह भी सही नहीं, आप की कोई सीमा न हो यह भी सही नहीं, आप अवज्ञा के बंधन से अपने को मुक्त रखे, अपना मन और सोच ऐसी विकसित करें की आपका भी कल्याण हो और लोगो का भी, क्रोध को प्रकट करे जहाँ जरूरत हो, गलत क्रोध ना करें, सिर्फ किसी ने कह दिया ,दे दिया आदेश और आप को पालन करना ही है ऐसा नहीं, विश्लेषण करें, दूर दृष्टी रखें और फिर राह चुने.ये बात हर युग में लागू होगी. फिर राजा दशरथ की तरफ देख कर उन्होंने कहा की राम ने आपकी पूरी आज्ञा नहीं मानी इसमें कुछ गलत नहीं हुआ. फिर राम से बोले आप इतनी ज्यादा आदर्शो से घिरे रहते है की जीवन रस ही समाप्त हो जाता है, आदर्शो की साथ मनोरजनं का भी जीवन में महत्वा है, आप ने सीता को अब तक वंचित रखा , आगे ऐसा न हो, फिर रावण से बोले तुम इतनी अभिमानी हो की अपने अभिमान के आगे तुम्हे कोई भी सद्गुण किसी का दिखता नहीं, इसको छोडो। रावण अभिभूत हो गया ,उसने क्षमा माँगी और शिव जी के आदर्शो पर चलने का वादा किया। राम ने भी जीवन में आनंद की परिभाषा को सीता के दृष्टी से समझने की बात शिव से कही ,और इस कथन से सीता मुस्कुराई ,मंदोदरी और उर्मिल को गले लगाया
सब लोग शिव की जय जय कार करने लगे.
कैकेयी को ऐसा असर हुआ की राम को बोली वापस लौट चलो, पर राम ने कहा अब भरत को ही सँभालने दो ,मैं कहीं और एक नयी अयोध्या बनाऊंगा , थोड़ा अपनी को और सुधारूँगा ,कोई और रावण को सही राह पर लाऊँगा।