माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग
अध्याय - 5
"सही है और गलत के चक्कर में आज हम इतनी आगे आ गये है सीमा। कम उम्र में शादी और फिर जल्दी-जल्दी तनु और बबिता का जन्म फिर अरूण का पलायन, इन सब में तुम्हारी कोई गलती नहीं होने के बावजूद भी तुम्हें कितना बुरा समय देखना पड़ा है। आज भी तुम दूसरों के लिए ही जी रही हो। आज समय ने तुम्हें फिर से खुलकर जीने का अवसर दिया है। लोग क्या कहेंगे? ये सोचकर अपना बाकी का जीवन नष्ट मत करो।" मनोज ने तर्क दिये।
सीमा के हृदय में मनोज की बातों ने हलचल मचा दी। मनोज की कही बातें उसके कानों में रह-रहकर गुंज रही थी। बहुत दिनों के बाद कोई था जो उसके लिए सोच रहा था। कोई उसकी चिन्ता कर रहा था। सीमा को मनोज के साथ बिताये कुछ पलों ने उसकी जिन्दगी में तरोताजा सी ताजगी भर दी। मनोज पुरी तरह उसके मन-मस्तिष्क पर छाया हुआ था। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर रही थी। मानो उसने जैसे मनोज को स्वीकार कर लिया था।
सीमा घर लौट आई थी। तनु और बबिता ने आज बहुत दिनों के बाद सीमा को इतना खुश देखा था। मनोज जी से फोन पर उन दोनों की डेट का ब्यौरा लेकर वे दोनों सोने चली गई।
सीमा बेड पर लेटी हुई थी। उसके विचारों में अभी भी मनोज ही था।
मनोज का व्हाहटसप मैसेज सीमा के मोबाइल पर आया। जिसमें मनोज ने लिखा था -- "लोग क्या सोचेंगे यह भी अगर हम सोचेंगे तो तो लोग क्या सोचेंगे?" सीमा के सुर्ख लाल होठों पर हंसी तैरने लगी।
मनोज को गुड नाइट का मैसेज भेजकर वह सो गई।
"दी, आपको क्या लगता है?माँम शादी के लिए हां कहेगीं?" तनु ने बिस्तर पर लेटे-लेटे बबीता से प्रश्न किया।
"हां मुझे लगता है की मनोज जीमाँम को शादी के लिए राजी कर ही लेगें। तुने देखा नहींमाँम आज मनोज जी से मिलने के बाद जब लौटी तो कितनी खुश थी।" बबिता ने कहा।
"आई होप दी, आप जो कह रही है वो सच हो जाये।" तनु ने कहा।
"तु चिंता मत कर।माँम की शादी होगी और तेरी भी हम जल्दी ही रवि से शादी करवा देंगे।" बबिता ने कहा।
"ओ मेरी प्यारी दीदी। आपके मुंह में घी शकर। आप नहीं जानती की मैं शादी करने के लिए कितनी मरी जा रही हूं। रवि से दुरी अब बर्दाश्त नहीं होती।" तनु ने इतराते हुये कहा और बबिता के ऊपर अपनी टांगे रख दी।
"बस बेटा कुछ ही दिनों की बात है , एक बारमाँम और मनोज जी की शादी हो जाये। तो जल्दी ही तेरी भी हो जायेगी।" बबिता ने कहा।
"अच्छा दी आपने अपनी काॅलेज फ्रेंड निकिता के बारे में बताया था न ? उसकी लव स्टोरी में आगे क्या हुआ बताईये न?" तनु ने पुछा।
"रात के बारह बज रहे तनु। सोना नहीं है? कल बताऊंगी निकिता के बारे में।" बबिता ने कहा।
"नहीं दी अभी बताओं! कल वैसे भी सन्डे है। कल काॅलेज भी नहीं है? बिना सुने मुझे नींद नहीं आयेगी?" तनु ने गिड़गिड़ाकर पुछा।
"अच्छा बाबा बताती हूं सुन। निकिता मेरी बहुत अच्छी सहेली थी। कॉलेज में मुझसे सीनियर थी। एक छोटे से गांव से निकलकर इंदौर जैसे शहर में पढ़ाई करने आई थी। अचानक उसके घरवालों ने उसकी शादी तय कर दी। लेकिन वह शादी से पहले अपना कॅरियर बनाना चाहती थी। लेकिन परिवार वालों के अत्यधिक दबाव के कारण उसे न चाहते हुये भी शादी के लिए तैयार होना पढा़। पढाई बीच में छोड़कर वह गांव लौट आई। जैसा कि उसने मुझे बताया था कि विकास एक नयी सोच वाला आधुनिक युग का एक समझदार लड़का था। उसने पहली मुलाकात में निकिता को भरोसा दिलाया था कि विवाह के बाद भी वह अपनी पढाई जारी रख सकती थी। निकिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। विकास जैसा योग्य युवक उसे अपने जीवनसाथी के रूप में मिलने वाला था जिससे वह बहुत खुश थी।"
तनु ध्यान से बबिता की बातें उसकी गोद में सिर रखकर सुन रही थी।
"फिर क्या हुआ दि?" तनु ने पुछा।
"फिर एक दिन निश्चित तिथि पर दोनों की सगाई की रस़्म पूरी की जाना तय हुआ। विकास के पिता श्यामसुंदर चौहान ने विकास की सगाई पर बीस लाख रूपये नकद और बारात वाले दिन शादी पर शेष तीस लाख रूपये और एक बोलेरो गाड़ी की मांग रख दी। जबकी निकिता के पिता विश्वास पाटीदार ने लड़के के फलदान (सगाई) पर दस लाख रुपये और विवाह के समय बीस लाख रूपये नकद तथा बोलेरो कार की पेशकश की। श्यामसुंदर चौहान बिफर गये तथा अपने एमबीबीएस डाॅक्टर के दहेज में इच्छानुसार समुचित मांगें पुरी नहीं होने पर शादी तोड़ने की धमकी दे डाली। निकिता के कानों तक यह बात पता चली तो वह बैचेन हो उठी।
विश्वास पाटीदार और समाज के वरिष्ठ लोगों ने श्यामसुंदर चौहान को न-न तौर-तरीकों से समझाया बुझाया किन्तु वे नहीं माने। थक हार के निकिता के मामा जी प्रकाश पाटीदार ने दहेज की शेष रकम अपने पास से श्यामसुंदर चौहान जी को देने की सहमती प्रदान कर दी। विकास का मौन निकिता को बहुत खल रहा था। आंगन में खड़े विकास से घर के अन्दर से निकिता आंख में आंख मिलाकर जैसे अपने विरोध प्रकट करने को कह रही थी। मगर विकास था कि मुक दर्शक बना वह अपने पिता और होने वाले ससुर के वार्तालाप में जरा भी हिस्सेदारी नहीं करना चाहता था। बातचीत अब बहस में परिवर्तित हो गई क्योंकि विश्वास पाटीदार अपने बहनोई से पैसे नहीं लेना चाहते थे और अपनी सामर्थ्य अनुसार ही विवाह समन्न कराने पर अड़े हुये थे।
बहस का कोई हल न निकलता देख निकिता से रहा नहीं गया। विवाहित जोड़े में ही घर से बाहर निकलकर उसने यह विवाह नहीं करने का फैसला सुना दिया। इतना नहीं उसने श्यामसुंदर चौहान और विकास को बिना सगाई किये ही लौट जाने का निर्देश दे दिया। वातावरण में सन्नाटा पसर गया। श्यामसुंदर चौहान जी को यह अपना घोर अपमान लगा। उन्होंने विकास और बाकी रिश्तेदारों को बेरंग ही लौट चलने के आदेश सुना दिया।
"फिर क्या विकास बिना सगाई किये लौट गया?" तनु का अगला प्रश्न था।
"लौटता नहीं तो क्या करता। श्यामसुंदर चौहान ने अपने बेटे विकास को डाॅक्टर बनाने में पचास लाख रूपये खर्च किए थे। उन रूपयों को वसूलना भी तो करना था। विकास अपने पिता के एहसानों तले दबा था। इसलिए निकिता को प्यार करने के बावजूद वह उससे सगाई किये बिना ही घर लौट गया।"
निकिता को जितना दुःख अपनी शादी टूटने का था उससे कहीं अधिक दुःख उसे विकास के ढुलमुल रवैये ने दिया था। विकास को निकिता पसंद करने लगी थी किन्तु विकास के व्यवहार से क्षुब्ध निकिता के मन में विकास के प्रति अब सिवाय नफरत के कूछ नहीं था। गांव में लड़की की शादी टूटना एक कलंक से कम नही माना जाता था। निकिता और उसके परिवार की इस घटना से बहुत बदनामी हुई। स्वयं निकिता ने घर से निकलना लगभग कम कर दिया था। काॅलेज में जब कुछ लड़कीयों ही निकिता की शादी टूटने की बात पता चली तो हम तीन सहेलीयां निकिता के गांव उससे मिलने पहूंचे। वहां पहूंचकर निकिता को हमने अपनी पढ़ाई पुरी करने पर राजी कर लिया जिसमें उसके माता-पिता की भी सहमती सम्मिलित थी।
निकिता शहर आ गई। अपनी पढ़ाई पूरी करते ही उसे एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जाॅब मिल गयी। कम्पनी के दिये फ्लेट में वह रहने लगी।
"फिर विकास और निकिता वापिस कैसे मिले?" तनु ने अधीरता से पुछा।
बबिता ने आगे कहा-
"समय अपनी गति से दौड़ रहा था। एक सुबह जब निकिता ऑफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी। तब उसके घर की डोर बेल बजी। निकिता ने दौड़कर दरवाजा खोला। सामने विकास खड़ा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि विकास को अन्दर आने के लिए कहे या वहा से चले जाने को कहे? वह कुछ कहे इससे पुर्व विकास जबरन घर के डायनिंग हाॅल में आकर बैठ गया। निकिता उसके इस व्यवहार पर हतप्रद थी। क्योंकि विकास शुरू से ही बहुत शिष्टाचारी था। निकिता ने पानी से भरा गिलास विकास के सामने रखी टी-टेबल पर रख दिया। वह एक ही सांस में पुरा पानी पी गया। विकास ने एक गिलास पानी ओर मांगा। क्रोधित निकिता ने पानी से भरा जग उसके सामने रख दिया।
बातचीत विकास ने ही शुरू की। उसने निकिता को बताया कि उसकी पोस्टिंग इंदौर के महाराज यशवंतराव होल्कर शासकीय चिकित्सालय (एमवाय) में हो गयी है। वह चाइल्ड स्पेशलिस्ट सर्जन के पद पर सर्जरी विभाग में कार्यरत है। जैसे ही उसे इंफोसिस कम्पनी में बतौर सहायक मैनेजर पद पर कार्यरत निकिता के विषय में पता चला वह निकिता से मिलने आ गया। विकास अपने पुर्व में किये गये निकिता के प्रति व्यवहार पर क्षमा मांग रहा था। मगर निकिता को विकास अपने घर पर बिन बुलाये मेहमान के बोझ समान लग रहा था। विकास की माफी उसके दिल में विकास के प्रति नफरत को पिघलाने के लिए बहुत कम थी। विकास के व्यवहार से निकिता को यह आभास तो हो गया था कि विकास अब उसे यहां रहकर परेशान करने जरूर आता रहेगा। और हुआ भी वही। विकास ने हर वो तरिका अपनाया जिससे निकिता उसे माफ कर उसके पास लौट आये। मगर निकिता को मनाना सरल कार्य नहीं था। वह गिर्टींग कार्ड या लव गिफ्ट से मानने वाली लड़की नहीं थी। उसने विकास के हर प्रयास को असफल कर दिया था। मगर दिल ही दिल में वह विकास को आज भी नहीं भुल पाई थी। फेसबुक पर चुपके-चुपके निकिता ने विकास की प्रोफाइल चैक की। विकास ने डाॅक्टर की यूनिफार्म में बहुत से फोटो अपलोड किये थे। वह अभी भी सिंगल है यह जानकर निकिता को बहुत सांत्वना मिली। विकास फोन पर निकिता से आई लव यु कहकर ही शुरुआत करता और यही बात दोनों की बात खत्म होने पर भी वह कहना नहीं भुलता। दबे होठों पर हल्की मुस्कान लिये निकिता विकास के प्रति नाराज़गी का ढोंग दिखाती मगर साफ तौर पर वह विकास के प्रेम को स्वीकार करने में संकोच करती।
विकास अबकी बहुत दिनों बाद निकिता के फ्लैट पर आया था। दो दिनों तक की लम्बी डे-नाइट की ड्यूटी कर वह पूरी थक कर चूर था। निकिता ऑफिस के लिए निकल ही रही थी की विकास ने उसके लिए खाना बनाकर रख जाने का निवेदन किया। निकिता ऊपर से गुस्सेल स्वभाव का नाटक कर रही थी साथ उसे अपने विकास के लिए खाना बनाने में जो आनंद आता उसके लिए वह ऑफिस लेट पहूंचकर बाॅस की डांट खाने के लिए भी तैयार थी।
दोपहर तीन बजे निकिता के फोन पर विकास का फोन आया--
"निक्की मेरी जान! क्या आलु के पराठे बनाये है वाहहहहहह मज़ा आ गया। जी करता अभी तुम्हारे ऑफिस आकर तुम्हारे हाथ चूम लूं।" विकास निकिता के फ्लैट पर खाना खाते हुये फोन पर निकिता से बात करते हुये बोला।
"वह पराठे सुनिता बाई ने बनाये है मैंने नहीं। हाथ चूमने का इतना ही शौक है तो वही पड़ोस की बस्ती में जाकर सुनिता बाई रहती है जाकर उनके हाथ चूम लिजिए।" विकास की प्रशंसा से निकिता के चेहरे पर हया की लकीरे उभर आई थी। बात को अन्य दिशा में मोड़कर कर उसने विकास को चिढ़ाने के लिए यह सब कहा।
"चल झूठी। मैं क्या तुम्हारे हाथ का स्वाद नहीं जानता? और फिर तुम्हे यह भी पता है कि मैं या तो अपनी मां के हाथों के बने खाने तारीफ करता हूं या फिर अपनी निकिता के हाथो से बने खाने की।" विकास की रोमांटिक बातें निकिता को अच्छी लग रही थी। मगर अभी भी वह विकास से पुनः शादी करने के प्रस्ताव पर सहमति नहीं दे सकी थी। निकिता के मन में अपने लिए प्यार जगाकर विकास आधी लड़ाई तो जीत चूका था। मगर दिल्ली अभी दूर थी।
"कितनी रोमांटिक लव स्टोरी है न दी!" फिर आगे क्या हुआ? "
तनु की नींद उड़ चुकी थी।
बबीता ने पुनः कहना शुरू किया -
"विकास निरन्तर निकिता को रिझाने का प्रयास कर रहा था। एक समय की बात है जो मुझे निकिता ने ही बताई थी -- उस दिन निकिता ऑफिस से लौटकर अपने फ्लेट पर नहा रही थी। विकास दबे पाँव अन्दर आया। फ्लेट की एक अन्य चाबी विकास के पास थी जो निकिता ने ही उसे दी थी।
निकिता ने शरीर पर टॉवेल लपेट रखा था। उसके बालों से पानी की बुंदे टप टप टपक रही थी। निकिता के बायें कंधे पर काला तिल उसके सौन्दर्य में बेजा वृद्धि कर रहा था।
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