आमची मुम्बई
संतोष श्रीवास्तव
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इप्टा भारत के विभिन्न शहरों में भी काम कर रही है |
मुम्बई में इटीएफ(दि एक्सपेरिमेन्टल थियेटर फाउंडेशन)एक रंग आंदोलन के रूप में उभरा जिसके प्रणेता मंजुल भारद्वाज हैं | थियेटर ऑफ़ रेलेवेंस इटीएफ़ का दर्शन है जो अन्य नाट्य संस्थाओं से अलग हटकर सहभागियों को मंच नाटक और जीवन का सम्बन्ध, नाट्य लेखन, अभिनय, निर्देशन, समीक्षा, नेपथ्य, रंगशिल्प, रंगभूषा आदि विभिन्न रंग आयामों को प्रदान करता है, प्रशिक्षित करता है | स्कूलों, बस्तियों, गाँवों, कस्बों, उपनगरों और नुक्कड़ों पर यह संस्था नाटक करती है | मुम्बई में अवितोको नाट्य संस्था भी है | फ़र्क़ यह है कि जहाँ इटीएफ़ के नाटक मौलिक होते हैं वहीं अवितोको के नाटक कहानियों का नाट्य रूपान्तर होते हैं |
एक यूनानी मिथक है कि फिनिक्स पक्षी अपनी राख से दोबारा जन्म लेता है पर शायद अपने नए रूप में वह पिछले जन्म जैसा नहीं होता | एक ज़माना था जब मुम्बई के प्रायः सभी प्रमुख चौराहों पर ईरानी होटल थे | सफेद संगमरमर के टेबल टॉप पर बेतहाशा स्वादिष्ट ईरानी चाय, खारी बिस्किट और बन मस्का केऑर्डरदिये जाते थे तो रेस्तरां गुलज़ार हो उठता था नाट्यकर्मियों, फिल्मी कलाकारों, लेखकों से और छिड़ जाती थी अंतहीन चर्चा कला, विचार, फलसफ़े, मुहब्बत, याराने, ताने उलाहने, शिकवा शिकायतें, मिलने बिछुड़ने का संघर्ष, यूटोपिया और सपनों की एक अनोखी संस्कृति जिसे रचा गया था इन्हीं रेस्तरां में मिल बैठकर | चर्चगेट स्टेशन के सामने आज जहाँ एशियाटिक डिपार्टमेंटल स्टोर है वहाँ ईरानी रेस्तरां था | प्रसिद्ध फिल्मकार एम. एस. सथ्यू बताते हैं- “एक शाम इस रेस्तरां में नाटककार सत्यदेव दुबे एक गपशप में प्रगतिशील और वामपंथियों की खूब बखिया उधेड़ रहे थे | वे वहाँ मौजूद हर किसी पर भारी पड़ रहे थे | उसी समय ऑपेरा हाउस के पास ज्योति स्टूडियो में बलराज साहनी किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे थे | उन्हें किसी ने खबर कर दी इस बात की | उन्होंने तुरन्त मोटर साईकल उठाई और दस मिनट में वहाँ पहुँच गये | इस तरह अचानक बलराज साहनी को सामने देख सत्यदेव दुबे सकपका गये |
यह खूबसूरत माहौल तब मुम्बई को एक जोश भरी जादुई दुनिया का अंदाज़ देता था | लगताहै जैसे वह जादुई दुनिया कहीं खो गई है औरमुम्बईकेवल कुछ सिरफिरों, शायरों, कलाकारों, दीवानों, दरवेशों और स्वप्नजीवियों के अंदर ही बचा रह गया है जिसे वे हर लम्हा अपनी शिराओं में जीते हैं |
नाना चौक स्थित गवालिया टैंक से ही ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन की शुरुआत हुई थी | गाँधीजी ने इस आँदोलन से भारतीय सैनिकों को द्वितीय विश्व युद्ध में भेजे जाने का विरोध किया था | यहीं है ग्रांटरोड रेलवेस्टेशन |
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