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आमची मुम्बई - 1

आमची मुम्बई

संतोष श्रीवास्तव

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न जाने क्या कशिश है बम्बई तेरे शबिस्तां में

कि हम शामे-अवध, सुबहे बनारस छोड़ आये हैं

अली सरदार ज़ाफ़री

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(1)

मुम्बई का प्रवेश द्वार – गेटवे ऑफ़ इंडिया

मेरे बचपन की यादों में जिस तरह अलीबाबा, सिंदबाद, अलादीन, पंचतंत्र की कहानियाँ और अलिफ़ लैला के संग शहर बगदाद आज भी ज़िंदा है उसी प्रकार पिछले सैंतीस वर्षों से मुम्बई मेरे खून में रच बस गया है | जब मैं यहाँ आई थी तो यह बम्बई था | अब बम्बई को मुम्बई कहती हूँ तो लगता है एक अजनबी डोर मेरे हाथ में थमा दी गई है जिसका सिरा मुझे कहीं दिखलाई नहीं देता | शहरों के नाम जो अनपढ़ गँवार, बूढ़े, बच्चे सबकी ज़बान से चिपक गये हों..... केवल मुम्बई ही नहीं पूरे भारत का हर शहर, हर गाँव बम्बई नाम में अपने सपने खोजता है क्योंकि यह शहर सपनों के सौदागर का है | आप सपने खरीदिए वह बेचेगा..... एक से बढ़कर एक लाजवाब सपने..... रुपहले, चमकीले, सुनहले और जादुई.....

मैं भी सपने देखने की उम्र में मुम्बई आई थी | लेकिन मेरे सपने चूँकि लेखन और पत्रकारिता से जुड़े थे इसलिए मेरे पैरों के नीचे फूल नहीं बल्कि यथार्थ की ठोस ज़मीन थी | मुम्बई रोशनियों का शहर है और यहाँ रोज़ी रोटी के जुगाड़ के लिए हर संभव सपना देखा जा सकता है |

भारत के पश्चिमी तट पर बसा मुम्बई महानगर लावे से बने सात द्वीपों से बना है | इसमें प्रमुख द्वीप हैं कोलाबा, मझगाँव, वडाला, माहिम,परेल, माटुंगा और सायन | ये सभी द्वीप विभिन्न हिन्दू शासकों के साम्राज्य का अंग थे | लेकिन अब यहाँ उस समय के कोई अवशेष नहीं हैं | बस, माहिम स्थित मस्जिद गुजरात के मुस्लिम शासकों की दास्तां सुनाती है | मुम्बई का स्वरुप अपने हर शासक के अनुसार बदलता रहा | इस निर्जन द्वीप समूह में सबसे पहले कोली मछुआरों की बस्तियाँ आबाद हुईं | इसलिए कोली यहाँ के मूल निवासी माने जाते हैं | मगध साम्राज्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं ने यहाँ अपनी एक चौकी कायम की | इसलिए यहाँ आरंभिक वर्षों में बौद्ध संस्कृति का प्रभाव भीरहा | जिसके जीते जागते चिहन एलिफेंटा, कन्हेरी, जोगेश्वरी, महाकालीऔर मंडपेश्वर गुफ़ाओं में देखने को मिलते हैं | जब पुर्तगालियों का यहाँ शासन था तो उन्होंने पुर्तगाली चर्चों का निर्माण कराया | इनमें से सेंट एंड्रयूज़ चर्च पुर्तगाली वास्तु कला को बयां करता है | पुर्तगाली इसे बॉम्ब-बेइया कहते थे | फिर जब अंग्रेज़ी शासन हुआ तो यह बॉम्बे हो गया | उसके भी पहले यह महानगर माम्हे, मनबे, मेम्बू, बो-बेम आदि नामों से गुज़रा और अब यह यहाँ के मूल निवासी कोलियों की अधिष्ठात्री मुम्बा देवी के नाम से मुम्बई हो गया |

सात द्वीपों वाली इस नगरी में जो आकर्षण उस वक्त था वो आज भी है | इस नगर को पाने के लिए ईस्ट इंडिया कम्पनी ने न जाने कितने पापड़ बेले थे | उस वक़्त यहाँ पुर्तगाली शासन था | १६६१ में इंग्लैंड के किंग चार्ल्स द्वितीय ने पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीनडे ब्रिगेंज़ा से शादी की थी | कैथरीन औरचार्ल्सको बम्बई दहेज में मिला था | ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनुरोध पर चार्ल्स ने इसे दस पाउंड सालाना की लीज़ पर ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया | उस समय यहाँ नारियल, सीताफलजैसे फल और धान की खेती रोज़ी रोटी का ज़रिया था | मझगाँवके अंजीरवाड़ी में आज भी एक कुआँ है जिससेतब खेतों, बागबगीचों की सिंचाई होती थी | आज के दौर में सात हज़ार करोड़ रुपए सालाना बजट वाली मुम्बई महानगर पालिका की मुख्य आय का स्रोत ऑक्ट्रॉय है लेकिन तबमुम्बई में इतना टैक्स भी नहीं इकट्ठाहो पाता था जितनाइसकी सुरक्षा में तब ख़र्च होता था इसलिए इसे लीज़ पर रखना पड़ाऔरतब इंग्लैंड से समुद्री जहाज का सफर तय कर गेटवे ऑफ़ इंडिया के शानदार गेट से मुम्बई में प्रवेश किया इंग्लैंड की क्वीन मैरी और किंग जॉर्ज ने | वह १९११ का साल था और यह क्वीन और किंग के पहली बार मुम्बई में आने के बतौर जश्न बनाया गया था | वैसे यहपूरी तरह बना १९२४ में | इक्कीस लाख रुपए की लागत से बना यह गेट इंडो सरसेनिक और गुजराती स्टाइल से बना है जिसका डिज़ाइन आर्किटेक्ट जॉर्ज विटेट की कला का अंजाम है | २६ मीटर की ऊँचाई वाला यह भव्य गेट पर्यटकों को लुभाता है | मानोथल से जल की ओर आमंत्रण दे रहा हो..... या जल से थल की ओर | यह गेटवे ऑफ़ इंडिया गवाह है हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ोंके पैर पसारने का, उनकी कूटनीतिक चालों का, २६ नवंबर २००८ के आतंकी हमले का | निश्चय ही अपनी आँखों से ताजमहल कांटिनेंटल की सजधज प्रतिदिन देखतायह उस दिन ज़ार-ज़ार रोया होगा | मैं गेटवे ऑफ़ इंडिया के समुद्र तट पे नबी पत्थर की मज़बूत रेलिंग पर कुहनियाँ टिकाए अरब सागर की उठती गिरतीलहरों पर सवार स्टीमरों, नावों, जहाजों को देख रही हूँ | न जाने कितनी सदियों का इतिहास समेटे है यह सागर..... समँदर के उस पार हैं एलीफ़ेंटा की गुफ़ाएँ..... वहाँ तक पहुँचने का दस किलोमीटर का रास्ता जो समुद्र पर से होकर जाता है स्टीमर या नौकाओं से तय करना पड़ता है | वहाँ पहुँचते ही पर्यटक दंग रह जाते हैं | सहज यकीन नहीं होता कि इन गुफ़ाओं को मानव हाथ रच सकते हैं | प्रत्येक पर्यटक के लिए एक घंटे का समुद्री सफर तय करते ही लगभग ढाई किलोमीटर लम्बे द्वीप पर क़दम रखना बेहद रोमांचक है | सामने पाँच सौ फुट ऊँचे पहाड़ों की दो चोटियाँ बरबस ध्यान खींचती हैं | द्वीप के मुख्य पश्चिमी भाग की गुफ़ाओं में पाँच हिन्दू देवताओं की गुफ़ाएँ हैं | लम्बे चौड़े अहाते में फैली मुख्यगुफ़ा में त्रिमूर्ति के साथ शैव मत की मूर्तियाँ भी हैं जो बसाल्ट चट्टानों से निर्मित हैं | सोलह फुट ऊँची अर्धनारीश्वर, नटराज योगीश्वर, गंधर्व आदि की मूर्तियाँ विभिन्न भाव मुद्राओं में अद्भुत शिल्प का नमूना हैं | क्या गज़ब की कला रही होगी उन हाथों की कि सदियाँ गुज़र जाने के बावजूद आज भी ये कुछ कहती प्रतीत होती हैं | गुफ़ा के पूर्वी भाग में स्तूप हिल पहाड़ परईंटों का स्तूप और दो बुद्ध गुफाएँ हैं | एक गुफ़ा अधूरी सी लगती है | यहाँ सातवीं शताब्दी के दौरान चालुक्य शासकों द्वारा निर्मित भव्य गुफ़ा मंदिर है | वैसे इसका इतिहास समयकी रहस्यमय पर्तों में दबा है | यहाँ के मूल निवासी इसे बाणासुर या पाँडवों द्वारा बनाया हुआ मानते हैं | लेकिन इतिहासकारों के अनुसार ये पाँचवीं से आठवीं सदी तक की मानी जाती हैं | इस क्षेत्र की खुदाई में जो सिक्के मिले उन्हें पुरातत्ववेत्ताओं ने चौथी सदी का बताया | इतिहास के अनुसार ६३५ ईस्वी में चालुक्य सम्राट पुलकेशी ने कोंकण के हिंदू मौर्य शासकों को हराया | उस वक्त उनकी राजधानी धारापुरी थी | वैसे इतिहासकारों के भी अलग-अलग मत हैं | इस द्वीप पर कई बौद्धस्तूप तो तीसरी शताब्दी पूर्व के हैं | लेकिन यहाँ का मुख्य आकर्षण गुफ़ा मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश के राजकुमार पुलकेशिन द्वितीय ने अपने आराध्य देव भगवान शिव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए सातवीं शताब्दी में कराया | कालांतर में इस द्वीप को पुरी और फिर धारापुरी के नाम से जाना जाता रहा | तब पुर्तगाली आए तो उन्होंने गुफ़ा मंदिरों के बाहर पत्थर के तराशे हुए हाथी को देखकर इसद्वीप का नाम “ए इल्हा दो एलीफेंटा” अर्थातहाथी का द्वीप रख दिया | उन्होंने जलदस्युओं के आक्रमण से द्वीप को सुरक्षित करने के लिए भी किला बनवाया | मंदिर पहाड़ी पर विशाल शिला खण्ड को तराशकर बनाया गया है | गुफ़ा क्या है मानोसाक्षात शिव का वास..... अँधेरे, गतिशील और सृजन में रत शिव के विभिन्न रूपों की अलग-अलग गुफ़ाएँ जिन्हें पैनल एक से नौ क्रमांक दिये गयेहैं | एक में लंकापति रावण कैलाश उठाए हैं | दो में शिव का उमा-महेश्वर रूप, तीन में अर्धनारीश्वर, चार में शिवजी की महेशमूर्ति तराशी गई है | शिवजी के तीन व्यक्तित्व सौम्य, ध्यानमग्न, तत्पुरुष | एक ही मूर्ति में समाहित इन तीन व्यक्तियों को श्रृंगार, रौद्रऔर शांत रसों का समागम भी कहते हैं | पाँच और छै: में सदाशिव रूप, सात में अंधासुर का वध करते हुए शिव, आठ में नटराज और नौ में योगेश्वररूप तराशे गये हैं | नज़दीक की पहाड़ी पर एक तोप भी रखी है |

बफ़र ज़ोन वाले द्वीप के तीन गाँवों सेतबंदर, राजबंदर और मोरबंदर के वनवासियों का जीवन यहाँ के जंगलों से चलता है | आम, इमली, ताड़ और करंज के छतनारे पेड़ इनकी जीविका चलाते हैं | कहीं-कहीं धान की खेती भी होती है | गेटवे ऑफ़ इंडिया से एलीफेंटा के लिए दिन भर स्टीमर नौकाएँ चलती हैं | लेकिन एक कड़ा नियम ये भी है कि शाम पाँच बजे तक गेटवे ऑफ़ इंडिया लौट जाना होता है | समुद्री यातायात बंद होजाता है | सोमवार को एलीफेंटा पर्यटकों के लिए बंद रहती है | शिवरात्रि यहाँ धूमधाम से मनाई जाती है | मुम्बई का सबसे बड़ा सांस्कृतिक उत्सव एलीफेंटा फेस्टिवल है जो पिछले २५ वर्षों से मुम्बईकरों और विदेशी पर्यटकों केआकर्षण का केन्द्र है | इस उत्सव में कलाजगत के दिग्गजों का जमावड़ा होता है | पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, तेजस्विनी लोणार, कविता सेठ, प्राची शाह, राजा काले, जॉर्ज ब्रुक्स, जिनीश वेंटिग, हेमामालिनी जैसे संगीत, नृत्य क्षेत्र के दिग्गज और कोई प्रवेश शुल्क नहीं | उत्सव का विशेष आकर्षण यही कलाकार हैं | पेंटिंग, शिल्प निर्माण की प्रतिस्पर्धाएँ, सोविनियर शॉप्स, मछुआरा नृत्य, एथिनिक फूड और हेरिटेज वॉक जोउत्सव में चार चाँद लगा देते हैं |

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