मैं तो बस इतना चाहूँ Ajay Amitabh Suman द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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मैं तो बस इतना चाहूँ

(१)

मैं तो बस इतना चाहूँ

हाँ मैं बस कहना चाहूँ,
हाँ मैं बस लिखना चाहूँ,
जो नभ में थल में तारों में,
जो सूरज चाँद सितारों में।


सागर के अतुलित धारों में,
और सौर मंडल हजारों में,
जो घटाटोप आँधियारों में,
और मरुस्थल बंजारों में।


परमाणु में जो अणुओं में,
जो असुर सुर नर मनुओं में,
देवों के कभी हथियार बने,
कभी बने दैत्य भी वार करे।


जो पशु में पंछी नील गगन,
मछली में जो है नीर मगन,
जो फूल पेड़ को पानी दे,
कि मूक-वधिरों को वाणी दे।


जिससे अग्नि लेती अंगार,
सावन अर्जित करे फुहार,
श्वांसों का जो है वायु प्राण,
मन में संचित अमर ज्ञान।


जिससे रक्त की बहे धार,
वो स्रष्टा भी है करे संहार,
है फसलों की हरियाली में,
जो बहे अन्न में थाली में।


जो विणा के है तारों में,
हंसों के झुंड कतारों में,
कभी कलियों के श्रृंगार बने,
कभी वल्लरियों की हार बने।


तो कभी प्रलय की बने आग ,
कभी राग हो कभी वीतराग ,
निर्द्वंद्व वही और द्वंद्वालिप्त,
है निरासक्त और सर्वलिप्त।

ये सृष्टि जिससे चलती है,
ये सृष्टि जिसमें फलती है,
जो परम तत्व है माया भी,
तो ज्ञान पुंज है छाया भी।


जो सुखदुख के भी बसे पार ,
जिसकी रचना पूरा संसार ,
उसी ईश्वर की मैं लिखता हूँ,
उसी ईश्वर की मैं पढ़ता हूँ।


उसी ईश्वर की मैं कहता हूं,
उसी ईश्वर की मैं सुनता हूँ,
उसी ईश्वर की मैं गुनता हूँ,
उसी ईश्वर को मैं बुनता हूँ।


हाँ वो प्राणों के प्यार बसे,
ना दुजा और व्यापार रसे,
अर्पित उसपे है अहम भाव,
ऐसा उसका निज पे प्रभाव।


कि मैं बस मिटना हीं चाहूँ,
कि मैं उस ईश्वर को चाहूँ,
कि मैं उस ईश्वर को पाऊँ,
हाँ वो ईश्वर हीं हो जाऊं ।


अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित

(२)

छोटा है छोटा तो क्या?

छोटा है छोटा तो क्या?
समझो न खुद को खोटा?
देखो तो तो धरती जहाँ ,
होते नहीं ये कहाँ ?


देखो तो कितने तारे,
टिमटिम करते हैं सारे।
आते दिन के सोते हीं,
दिखते पर ये छोटे हीं।


माथे की बिंदियाँ छोटी,
गालों की डिंपल छोटी,
छोटे ये तिल भी सोहे,
छोटे नैना मन मोहे।


रातों को छोटे जुगनू,
जगमग करते हैं जुगनू।
दीपक तो छोटा होता,
क्या तम न हरता रहता?


जब आग से धरती तपती,
ताप अगन से जलती रहती।
और ठंडक को जब मन ढूंढें ,
आती तब बारिश की बुँदे।


छोटे हीं मुर्गी के अंडे,
खाते सारे सन्डे, मंडे।
चावल के दाने भी छोटे,
क्या न दुनिया को देते?


देते हैं ये भर पेट भोजन,
इनसे हीं चलता जीवन।
सरसों की बलियाँ छोटी ,
दुनिया पर इनसे होती।


छोटा हीं मोती का माला,
छोटा हीं कंगन बाला।
शिवजी की आँखे छोटी,
जिनसे ये दुनिया डरती।


नदिया की नैया भी छोटी,
उड़ती गौरैया भी छोटी।
चरती वो गैया भी छोटी,
गाती सोन चिरैया छोटी।


छोटे हीं आँखों के काजल,
खनखन करती हैं जो पायल,
सबको ये कायल करती है,
दिल को ये घायल करती है।


कवि को भी जो भाती हैं,
भावों को जो लिख जाती है ,
तुलिका भी तो छोटी होती ,
पर क्या ये भी खोटी होती?


इतना तो मैं भी जानूं,
होते जो ये परमाणु ।
सृष्टि इन पे बसती है ,
इनसे दुनिया चलती है।


फूलों की भी छोटी कलियाँ,
मटर की छोटी वल्लरियाँ।
सरसों की छीमियाँ भी छोटी,
फूलों की कलियाँ भी छोटी।


बचपन की छोटी सी गलियाँ,
गोरी की वो चूड़ी बलियां,
कागज के वो छोटे नाव ,
कदम बढ़ाते छोटे पांव।


दिन की जो निंदिया होती,
होती तो दो पल की होती।
पर ये कितनी मीठी होती,
चुनती है ख्वाबों के मोती।


छोटे ये सारे के सारे ,
पर सबको लगते ये प्यारे।
फिर क्यों तुम सारे रोते हो ?
नाहक हीं सब सुख खोते हो।


बरगद के नभ छूने से,
तरकुल के ऊँचे होने से,
अड़हुल शोक मनाता है?
बरगद पे कब अगुताता है।


उतना हीं फूल खिलाता है,
उतना खुद पे इतराता है।
बरगद ऊंचा तो ऊंचा है,
अड़हुल कब समझे नीचा है?


छोटा तन है तो क्या गम है,
इससे भी क्या खुशियाँ कम है?
उतने हीं तो तुम सोते हो,
उतने हीं तो तुम होते हो।


उतना हीं गा सकते हो,
उतना हीं खा सकते हो।
उतना हीं जा सकते हो,
उतना हीं पा सकते हो।


मिट्टी सा तो तन होता है?
छोटा केवल मन होता है,
मैंने बस इतना हीं जाना,
मैंने बस इतना हीं माना।


जो तन जाने मन ना जाने,
छोटापन वो क्या पहचाने?
जो मन के खोटे होते हैं,
वो हीं तो छोटे होते हैं ,
हाँ सच में खोटे होते हैं।


अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित