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टूटी चप्पल

बहुत समय पहले की बात है। जबकि तब हमारे देश में मुग़ल बादशाह शाहजँहा का शासन हुआ करता था।
उस समय हमारे देश हिन्दूस्तान में कुछ विदेशी लोग घूमने आएे हुए थे।
हमारे देश उस समय कुछ ज़्यादा ही ख़ूबसूरत था। और वो लोग हमारे देश की हर ख़ूबसूरत चीज़ से रूबअरू होना चाहते थे। इसीलिए वे लोग हमारे देश के शासक बादशाह शाहजँहा से आकर मुख़्तलिब हुए। उन विदेशी लोगों को बुलाया भी बादशाह शाहजँहा ने ही था। ताकि उन लोगों को अपने देश की ख़ूबसूरती दिखा सकें। और अच्छे से उनकी सेवा कर सकें।
वो दरअसल हुआ, यू कि एक बार बादशाह शाहजँहा जंगल में शिकार की तलाश में घूम रहे थे। काफ़ी देर तक शिकार तलाशने के बाद, बादशाह को बहुत ज़ोर की प्यास लगी। और वो शिकार की तलाश छोड़-कर पानी की तलाश में लग गये। काफ़ी देर से पानी की खोज़ में घूमते बादशाह शाहजँहा की एक तालाब पर नज़र पड़ी।
बहुत देर से भाग-दौड़ और चलने के कारण बादशाह शाहजँहा बड़ी ही शीघ्रता से उस तालाब के पास पहुँचे। और पार पर बैठकर उस तालाब के शीतल जल से अपनी प्यास को धीरे-धीरे कम करने लगे।
जब वो पूरी तरह से अपनी प्यास को उस तालाब के शीतल जल से ख़त्म करके वापस आने के लिए हुए तो उनकी नज़र एक बहुत ही ज़्यादा सुन्दर युवती पर पड़ी। जो अपने हाथ में पीने के पानी से भरा हुआ मटका संभाले हुए खड़ी थी।
बादशाह शाहजँहा की नज़र काफ़ी देर के लिए उस सुन्दर बला की आँखों में ही गढ़ी रहीं। और वो सुन्दरी भी बादशाह को देखे जा रही थी।
एक बार को तो ऐसा लगा कि जैसे वो दोनो पिछले जन्म के बिछड़े गये थे, और आज उनका दूसरे जन्म में मिलन हो रहा है।
काफ़ी देर तक बादशाह शाहजँहा और वो सुन्दरी आपस में एक-दूसरे को देखते रहे।
वो सुन्दर युवती पानी से भरे मटके को अपने एक हाथ की तरफ़ पकड़ा और शरमाते हुए वहॉं से जाने लगी।
जब वो तालाब से बाहर का ओर आ रही थी, तो उसने एक नज़र बादशाह शाहजँहा की ओर डाली। इसी कारण से उसका पैर फ़िसल गया। वो गिरने ही वाली थी कि पीछे से बादशाह ने उस सुन्दर युवती को संभाल लिया। लेकिन पैर फ़िसलने के कारण उस युवती की चप्पल जो बहुत पुरानी और घिसी हुई थी, टूट गयी।
जब उस सुन्दर युवती ने बादशाह शाहजँहा की बाहों में जाकर अपने आपको गिरने से संभाला तो, उस युवती की नज़रे शर्म से नीचे हो गयीं।
उस युवती की मासूमियत ने बादशाह शाहजँहा का दिल अपनी ओर आकर्षित किया।
बादशाह ने उस युवती के पैरों की ओर देखा तो उसकी एक चप्पल टूट गयी थी।
बादशाह ने ये सब देखने के बाद उस सुन्दर युवती को अपनी हीरे-मोतियों से जडी हुई जूती दे दी। और खुद उस सुन्दरी की टूटी हुई चप्पलों को ये सोचकर अपने साथ ले आऐ कि चलो, उस ख़ूबसूरत युवती की एक ख़ूबसूरत चीज़ मेरे पास तो रहेगी।
ये सच है कि जब किसी को किसी इन्सान से प्यार हो जाता है ना, तो उसे उस इन्सान की बुरी से बुरी चीज़ भी ख़ूबसूरत लगने लगती है।.... जैसे बादशाह शाहजँहा को उस सुन्दर युवती की पुरानी, घिसी और टूटी हुई चप्पल भी ख़ूबसूरत लग रही थी।
अब बादशाह शाहजँहा जब भी उन टूटी चप्पलों को देखते, तो उसे वही सुन्दर युवती याद आने लगती। और बादशाह घंटो उसी सुन्दर युवती की सुन्दरता के बारे में सोचते रहते।
दिन व दिन और भी ज़्यादा बादशाह शाहजँहा उस ख़ूबसूरत युवती के बारे में सोचते रहते थे। इसी कारण से बादशाह बहुत परेशान रहने लगे। बादशाह शाहजँहा के सभी दरबारियों ने बादशाह से उनकी परेशानी का हाल जानना चाहा। लेकिन बादशाह ने किसी को भी कुछ नही बताया।
वो स्वयं ही अपनी समस्या के निवारण के लिए उस समय के अल्लाह-ताला के बहुत ही बड़े  सेवक- एक मौलवी से मिले। उनसे मिलकर बादशाह ने उन्हें अपनी समस्या के बारे में बताया। और उस समस्या का हल पूछने की इच्छा ज़ाहिर की।
तो उन मौलवी जी ने बादशाह शाहजँहा को बताया कि, अगर आप सचमुच उस सुन्दर युवती को पाना चाहते हो, तो आपको  कुछ विदेशी लोगों को अपने देश में बुलाकर उनकी तहे-दिल से सेवा करनी होगी। अगर वो विदेशी लोग आपकी सेवा से खुश हुए तो, वो सुन्दर युवती अवश्य ही आपको मिलेगी। लेकिन ऐसा भी तभी होगा, जब आपके पास उस युवती की कोई चीज़ हो।
बादशाह ने तुरन्त उन मौलवी जी को उस युवकी की 'टूटी चप्पल' दिखा दी। और कहा- ये उसी की चप्पल है। मैने इन्हें बहुत सैज़-संभालकर रखा हुआ है।
मौलवी ने कहा कि, ठीक है जब आप उन विदेशी लोगों की सेवा करो, तो उनको ये महसूस नही होना चाहिए,  कि आप यहाँ के शासक हो।
बादशाह शाहजँहा वहॉं से आ गये, और वहॉं से आकर उन्होंने बिल्कुल वैसा ही किया, जैसे उन्हें मौलवी जी ने बताया था।
सब कुछ बहुत अच्छा रहा, सभी विदेशी लोग बादशाह की सेवा अति-प्रसन्न होकर, अपने देश वापस लौट गये। 
बादशाह अकबर ने इसी खुशी में कि उनकी सेवा से वो सभी विदेशी लोग खुश हो गये, एक बहुत बड़ा ज़श्न रखा था। और उस ज़श्न में देश भर के हर छोटे-बड़े, ग़रीब-अमीर सभी तरह के लोग शरीक़ हुए।
 ज़श्न में बादशाह शाहजँहा ने उन्हीं टूटी हुई चप्पलों को पहना, जो उस सुन्दर युवती की थीं।
उसी ज़श्न में सबकी नज़र नीचे की ओर एक व्यक्ति के पैरो पर पड़ी। जिन्होंने वही जूती पहन रखी थी, जो कुछ समय पहले बादशाह शाहजँहा के पैरो में हुआ करती थीं। और वो जिसने उन जूतियों को पहना हुआ था, वो कोई और नही बल्कि वही सुन्दर युवती थी, जिसके लिए वो ज़श्न रखा हुआ था।
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मंजीत सिंह गौहर    






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