जंग ए जिंदगी - 9 radha द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जंग ए जिंदगी - 9

जंग ए जिंदगी 9

वीर चंद्र और परम चंद्र डाकू रानी के अड्डे के सामने उल्टे बेहोश पड़े हैं डाकू रानी के अड्डे से जगजीतजी  बाहर आये

उसके साथ कुछ सैनिक भी है उसने देखा कि सामने 2 लोग है उसने अपने सैनिकों को सावधान किया और कहा जाओ देखो वह कौन है जिंदा है या मुर्दा फिर 2 सैनिक ने और दोनों को पलट कर देखा सैनिक बोला जगजीत सिंह जी  यह तो मूर्छित अवस्था में है




जगजीत सिंह दोनों को पहचान गया उसने अपने सैनिकों को  सावधान किया और दूसरे सैनिकों को भी भेजा और कहा दोनों को कसककर पकड़ लो यह तो वीर चंद्र और परम चंद्र है जो डाकू सरदार वीरप्पन का दाया और बाया हाथ है






लेकिन यहां कैसे इतने घायल कैसे डाकू रानी के अड्डे के सामने कैसे? यह कोई सरदार वीरप्पन की चाल तो नहीं या फिर मैं जो सोच रहा हूं उससे कुछ उल्टा है जो भी हो लेकिन इन दोनों पर विश्वास नहीं करना चाहिए आखिर यह है तो दुश्मन। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया "दोनों को खाए में फेंक दिया जाए" तभी डाकू रानी बहार ही निकल रही है उसने जगजीत सिंह के आदेश को रोकते हुवे बोला


डाकू रानी बोली काका यह क्या कर रहे हैं यह दोनों मूर्छित है और आप इसे मूर्छित अवस्था में ही खाई में फिकवा देना चाहते हैं यह कहां का इंसाफ है अगर आप ऐसा करेंगे तो सरदार वीरप्पन और आप में क्या अंतर रह जाएगा फिर जल्दी से बोला बेटी लेकिन दुश्मन और दुश्मन के लोगों पर भरोसा करना मेरे लिए नामुमकिन है मै हरगिज़ इन लोगों पर विश्वास नहीं कर सकता


मुझे पता है काका डाकू सरदार वीरप्पन या उनके  साथी मित्रों के साथ कोई भी प्रकार का काम नहीं कर सकते लेकिन यह दोनों मूर्छित है और हम इसे ऐसे ही खाई में नहीं फिकवा सकते हैं और दूसरी बात हो सकता है इन दोनों से हमें कोई ऐसी बात पता चले जो हमारे लिए बहुत ही महत्व रखती हो या फिर ऐसी कोई जानकारी पता चले जो सरदार वीरप्पन के खिलाफ हो



तभी डाकू रानी के बापू सा बोले जगजीत सिंह मेरी बेटी की बात सच है इसे होश में लाया जाए और पता किया जाए यह दोनों किस उद्देश्य से यहां आए थे उसके साथ क्या हुआ और पलट साम्राज्य में क्या हो रहा है तुरंत ही बापू सा ने आदेश दिया अच्छे से अच्छे वैद्य को बुलाया जाए और परम और वीर चंद्र को सुरक्षित किया जाए



जगजीत सिंह बोला आप भी ना। राजा चंद्र प्रताप आ गए ना राजकुमारी की बातों में अगर कुछ उलट-पुलट हो गया या कुछ अनहोनी हो गई तो हम क्या करेंगे? हम राजकुमारी की जान कैसे बचाएंगे हम अपनी साथी मित्रों की जान कैसे बचाएगे आप ही बताएं तब राजा चंद्र प्रताप बोले जगजीत सिंह तुम अच्छा नहीं सोच रहे हो अपनी सोच को काबू में रखो यह सब रजवाड़ी बातें हैं और रजवाड़ी बातें ऐसी होती है जिससे दिमाग से खेली जाती है दिल से नहीं और तुम ठीक  दिल से खेल रहे हो और यह दिल  से खेलने का खेल है ही नहीं तो दिमाग का खेल है आगे-आगे देखो होता है क्या





वीर चंद्र और परम चंद्र को एक कक्ष में ले गए सैनिक फिर अच्छे से वैध के पास उसकी सारवार करवाई गई वैद्य ने कहा बहुत गहरे घाव है और घाव को भरने में समय लग जाएगा पूरे 5 घंटे तक इन दोनों को होश आने वाला नहीं आप निश्चिंत रहिए अगर होश आ भी जाता है तो यह लोग कुछ नहीं कर पाएगे क्योंकि इसके  जिस्म में इतनी ताकत ही नहीं है कि वह आप पर वार कर सके इसलिए आप चैन की सांस ली लीजिएऔर इस पर कड़ी नजर रखी जाए


बापू सा बोले वैद्य जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद हम आपका ये उपकार कभी नहीं भूलेंगे हम आप के उपकारी रहेंगे ऋणी रहेंगे तब विद्य जी बोले राजा हम आपकी प्रजा है और राजा की सेवा करना हमारा कर्तव्य है हमें गर्व है कि हम अपने महाराजा के छोटे भाई को कुछ काम आ सकें चलता हूं



अगर कोई भी काम हो तो हमें बुल वाले हम अवश्य आएंगे राजा चंद्र प्रताप बोले हम आपसे एक निवेदन करना चाहते हैं तब वैद्य जी बोले क्या कहना चाहते हैं आप क्या आप यह कहना चाहते हैं कि मैं यहां रह जाऊ।? तभी राजा चंद्र प्रताप बोले आप कैसे जान गए मेरे मन की इच्छा को ?



तब वैद्य जी बोले आप हमारे राजा है और राजा के मन की बात जान लेना मेरा कर्तव्य है ठीक है हम यहां रुक जाते हैं आप लोगों की सेवा के लिए और हम ईश्वर से धन्यवाद करते हैं कि हमारे राजा की सेवा करने का हमें मौका दिया


जगजीत सिंह को इस वैद्य पर भी भरोसा नही आया नाही डाकुरानी को जैसे ही वैद्य जी गए

जगजीत सिंह बोले राजा आपने यह क्या कर दिया मुझे तो इस वैद्य पर भी शक होता है
कहीं महाराजा सूर्य प्रताप का आदमी तो नहीं जो हमारी हर एक चाल पर ध्यान रख रहा हो  तभी



डाकू रानी बोली मुझे भी काका की बात सच लग रही है मुझे भी ऐसा लगता है बड़े बाबूसा ने ही हमारे पर कड़ी नजर बंदी करने के लिए इस वैद्य जी को भेजा है तभी



राजा चंद्र प्रताप बोले बेटी और जगजीत सिंह मैं इस वैद्य को जानता हूं यह मेरे साथ गद्दारी कभी नहीं कर सकता तभी डाकू रानी बोली ऐसे कैसे हो सकता है और आप के साथ गद्दारी नहीं कर सकते हैं



मेरा दोस्त है और मेरा दोस्त कभी मेरे साथ गद्दारी नहीं कर सकता इस पर अपनी जान से भी ज्यादा भरोसा है तभी



जगदीश जी ने कहा आप इसे जानते हैं? आपका दोस्त है? तभी डाकू रानी बोली बाबूसा हमें माफ कर देना हमें आप के निर्णय को ऐसे ही विरोध नहीं करना चाहिए था बिना सोचे समझे तभी राजा चंद्र प्रताप बोले कोई बात नहीं तुम अपना काम करो




ऐसे ही 5 घंटे बातों बातों में चले गए वीर चंद्र को प्रथम होश आया सैनिकों ने उसे तलवार से घेर लिया तभी डाकू रानी बोली उसे सांस तो लेने दो हंसकर बोली सभी सैनिक और तलवार के बीच से वीर चंद्र की नजर डाकू रानी पर पड़ी उसने देखा तो यह आवाज़ लड़की की है और इसका परिवेश कुछ अलग सा है और परिवेश के कारण वीर चंद्र के परिवेश से  मिलता जुलता है उसे तुरंत ही याद आ गया शायद यही डाकू रानी है यही भानपुर की राजकुमारी दिशा है



वीर चंद्र ने खड़े होने के लिए प्रयत्न किए लेकिन वह खड़े नहीं हो पाए फिर डाकू रानी बोली खड़े खड़े क्या देख रहे हो उसे बैठने में मदद करो तभी दोनों सैनिकों ने वीर चंद्र को पीछे सहारा देकर बिठाए डाकू रानी वीर चंद्र के सामने देख कर बोली घबराओ मत तुम कोई जंगली पशु या पक्षी के हाथ में नहीं लगे हो। तुम मेरे हाथ लगे हो और में किसी जंगली पशु या पक्षी से कम नही हु।




हमें लोग डाकू रानी बोलते है वैसे तुमने नाम तो सुना ही होगा। मेरे बारे में भी सुना होगा मैं कहां की रहने वाली हूं किसकी बेटी हूं और मैं घर से कैसे भाग गए कैसे डाकू रानी बनी यह तो मेरा इतिहास हो चुका है उसकी ओर तुम ध्यान मत दे वरना तो मुझ में ध्यान नहीं दे पाओगे


वीर चंद्र अंदर ही अंदर सोच रहा तुम्हारी बात सच है अगर मैं तुम्हारी भूतकाल के बारे में सोचु तो फिर  तुम्हें देख नहीं पाऊंगा फिर डाकू रानी बोली तुम सोचो मत सोचना और करना मेरा काम। तुम तो सिर्फ मेरे सामने देखो


वीर चंद्र बोला जैसी आपकी मर्जी।

डाकू रानी बोली क्या मैं जान सकती हूं कि आपने मेरे बाप और बेटा क्या करने आए थे ?क्या कर लिया? क्या हासिल कर लिया ?कैसे बेहोश हुए?




तभी वीर चंद्र बोला आप जान सकती है नहीं। आप जान सकते हैं क्योंकि आपने हमारी जान बचाई है और जो जान बचाता है वह ईश्वर समकक्ष हो जाता है और वैसे हम आपकेअड्डे के सामने मूर्छित पाई गए


आपका हक बनता है आप हमें अपनी हिरासत में ले आप की कैद में ले हमें बंदी बनाए और हम से जो चाहे वह सवाल पूछे और वीर चंद्र आपको वचन देता है आपकी सभी सवालों का जवाब सच सच ही होगा




तभी जगजीत सिंह आए और बोले बेटी इस की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर फिर से राजकुमारी मत बन जाना तब डाकू रानी बोली काका आपने हमें पहचाना ही कहा हम वीर चंद्र को उसकी नानी याद दिला कर रहेंगे तभी


वीर चंद्र बोला हमारी नानी को हमें याद करने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि हम आपके हर एक सवाल का जवाब देंगे और सच सच होगा।




जगजीत सिंह गुस्से होकर बोला इतनी हिम्मत इतनी ताकत इतना अभिमान इतना गर्व है तुम्हें अपनी जात पर सोचो तुम्हारे जैसे नालायक हो इस पृथ्वी से दफा करने के लिए मेरी नन्ही सी जान डाकू रानी बन गई




तभी वीर चंद्र बोला आपकी नन्ही सी जान ने बहुत अच्छा काम किया "भानुपुर की राजकुमारी की तारीख बनेगी इतिहास बनेगा वह अपना इतिहास खुद लिखेगी वह खुद नया रास्ता बनेगी खुद के रास्ते पर चलकर मुकाम पाएगी बहुत अच्छा किया"

इतिहास भानुपुर की राजकुमारी का नहीं लेकिन इस  घने जंगल जंगल की डाकू रानी का लिखा जाएगा



इतिहास साक्षी होगा इस जमीन यह आकाश यह जंगल के पेड़ पौधे पशु पक्षी सभी साक्षी रहेंगे ।




और आज मैं भी डाकू रानी के साथ हु  उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहता हूं उसके हर एक सपनों को साकार करना चाहता हूं उसका एक हाथ बंन कर एक बाजू बंन कर






तभी बापूसा आए और उसने वीर चंद्र के सीने पर तलवार रख कर बोले तुम यह मत समझना कि यह 15 साल की लड़की डाकू रानी अकेली है इसके साथ उसके काका और बापू सा भी है उसका दाया और बाया हाथ बन कर ।तुम्हें उसका साथी साथी बनने की कोई आवश्यकता नहीं है



हम अपने दुश्मनों पर ना ही भरोसा करते हैं और ना ही दुश्मनों से मित्रता करते हैं समझ गये ।तुम अपने आप पर काबू रखो तुम किस से रूबरू हो रहे हो इसका ख्याल रखो यह सिर्फ डाकू रानी नहीं यह दुनिया की बडी सल्तनत भानपुर की राजकुमारी। भानपुर के सामने सभी साम्राज्य घुटने टेकते हैं और वही की राजकुमारी है यह।




वीर चंद्र बोला मैंने आपसे यह नहीं कहा कि आप इसका परिचयदे। हमें सिर्फ इतना पता है यह भानु पर की राजकुमारी है सबसे छोटी है लेकिन बहुत बड़ी बातें करती है और उन्हीं बातों पर गौर भी करती है हमें ऐसी लड़कियां पसंद है जो खुद की रक्षा करना चाहती हो किसी पर पुरुष उसे बेइज्जत ना कर सके ऐसी लड़कियां मुझे बहुत पसंद है





जगजीत सिंह ऊंचे स्वर में कहा तुम अपनी भाषा पर अपनी चीजों पर लगाम दो वरना वहीं जीहवा काट कर तुम्हारे हाथ में रख दूंगा तभी परम चंद्र बोला उसे क्षमा कर दीजिए उसे क्षमा कर दीजिए मंत्री जी। हम आपसे माफी मांगते हैं वह मेरा बेटा है और हम नहीं चाहते कि हमारे जीते जी हमारा बेटा मौत की घाट उतरे


तभी बापू सा बोले अगर तुम अपने बेटे का मुंह देखना चाहते हो तो सच-सच सब कुछ बता दो


तब वीर चंद्र बोला सुनना चाहते हैं और मैं आपको सच सच कहना चाहता हूं तो आप मेरी बात सुन क्यों नहीं रहे और मेरे पिताजी से मेरे बापू से क्यों प्रश्न पूछ रहे हैं मैं ही आपको सब कुछ सच बताना चाहता हूं ताकि आप हमें सहारा दे और हमारे दुश्मनों पर हम विजय प्राप्त करे।





डाकू रानी बोली तुम कहना क्या चाहते हो?

तब भी मैं वीर बोला मैं यही कहना चाहता हूं कि आप लोगों का दुश्मन अब हमारे बाप बेटे का दुश्मन सुनीए हमारे साथ क्या हुआ फिर बाप बेटे ने अपनी कहानी शुरू की परम चंद्र और वीर चंद्र दोनों ने अपनी कहानी शुरू की और अंत में कहा अब आप ही बताइए ऐसे लोगों के साथ मेरे पिताजी कैसे रह सकते हैं मेरे बापू कैसे रह सकते हैं? जो  स्त्रियों की इज्जत न करना चाहै बच्चो प्यार करना ना जाने  वृद्ध पर दया न रखें ऐसे लोगों के साथ रेहकर क्या फायदा और


मुझे और मेरे बापू सा को लगता है जो स्त्रियों की इज्जत नहीं करता बच्चों से प्यार नहीं करता और वृध्द पर दया नहीं करता उसका सर बहोत जल्द जुक जाता है याद रखना डाकू रानी ।यह बात सच है। मेरे बापू ने कई और मुझे भरोसा है मेरे बापू जो कहते हैं वही सोने की लकीर बराबर





डाकू रानी बोली ठीक है अगर तुम हमारे साथी बनना चाहते हो तो हमें कोई एतराज नहीं है।

तभी जगजीत सिंह जी बोले  नहीं डाकू रानी हरगिज़ नहीं यह लोग को पनाह नहीं दे सकते हम दोनों की सुरक्षा नहीं कर सकते और ना ही इसे अपना साथी बना सकते तुम समझने की कोशिश करो तभी

बापूसा बोले सच है बेटा हम इस पर नहीं भरोसा कर सकते हैं और नहीं विश्वास कर सकते हैं और ना ही हम इसे अपने साथी बना सकते हैं

।तभी डाकू रानीबोली मुझे पर भरोसा है दोनों पर पूरा भरोसा है और दोनों से मुझे कोई शिकायत नहीं कोई प्रश्न नहीं कोई सवाल नहीं मुझे वीर चंद्र की बातों में सच्चाई नजर आती है उसकी जीहवा पर। उसकी आंखों से उसका दुख उसकी जीवन से उसका दुख मैं देख सकती हूं तभी परम चंद्र बोला बेटी तुम्हारा बहुत-बहुत आभार धन्यवाद

मंत्री जगजीत सिंह जी और बापूसा आपको अपनी डाकुरानी पर विश्वास होना चाहिए चलती गई और बोलती गई।

तभी

वीरचंद्र बोला डाकू रानी आज आज से हम आपके साथ हैं।

तभी डाकुरानी बोली वीर तुम मेरे साथ चलो।
वीर जी।