मनचाहा - 12 V Dhruva द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मनचाहा - 12

निशा अंकल और आंटी के साथ हमारे पास आई।
भरत अंकल (निशा के पापा)- कैसे हो सब बेटा?
दिशा- सब एकदम अच्छे हैं मेरे सिवा।
गायत्री आंटी (निशा की मम्मी)- क्यो क्या हुआं बेटा? तबियत तो ठीक है ना?
निशा- कुछ नहीं मम्मा, इससे भूख बर्दाश्त नहीं होती।
अंकलजी- अरे, में अभी डिनर स्टार्ट करवाता हुं। बच्चे भूखे हो गए हैं भई। वैसे भूख तो मुझे भी लगी है।
काव्या- अंकल, हम में से भूखी सिर्फ ये है। हमने तो सत्यनारायण का प्रसाद खाया है। वैसे खाया तो इसने भी है पर साइज के हिसाब से कम प्रसाद मिला है इसको।?
सब ठहाके लगाकर बाहर गार्डन में जाने लगे।
"एक मिनट रुको पाखि" पिछे से आवाज आई। मुडकर देखा तो गायत्री आंटी बुला रहे थे।
मैं- जी आंटीजी।
आंटीजी- वो तो तुमसे मुलाकात हुई नहीं थी तो तुम्हें रोक लिया। इसी शहर में रहती हो? दिशा कहा गई, उससे भी मिल लेती।
मैं- जी आंटीजी, में और दिशा दोनों इसी शहर में रहते हैं। अ..दिशा शायद डिनर के लिए बाहर चली गई।
आंटीजी- कोई बात नहीं। कहा रहते हो दोनों?
मैं- आंटीजी हम दोनों का घर सिविल लाइन्स में है। मैं और दिशा टीमरपुर एरिया में रहते हैं।
आंटीजी- यह तो हमारे घर के नजदीक ही है कभी आते रहना घर पे। अच्छा मै चलती हुं। और हा, खाना खाकर ही जाना और मुझे बताना भी कैसा है। ठीक है...।
मैं- sure aunty ?
निशा- मम्मी को खाना बनाना और सब‌को खिलाना बहुत अच्छा लगता है। आज का मेन्यू मम्मी ने ही रखा है इसलिए कह रही थी कैसा है बताके जाना।
मैं निशा के साथ बाहर गार्डन एरिया में जहां डिनर चल रहा था वहां आ गई। बाहर सब महेमान, मेरे फ्रेंड्स और अवि के साथ उनके फ्रेंड्स भी डिनर लेने लगे थे। कल कोलेज भी है तो हम सब डिनर खत्म करके अंकल-आंटी से मिलकर घर को निकल गए। हम निशा की कार में ही घर वापस आए थे।

(निशा के घर)
सब मेहमान चले गए थे। घर के नौकर साफ सफाई में लगे हुए थे। निशा और अंकल-आंटी सोने चले गए थे। रवि आज अविनाश के घर ही रुका है। अवि के रुम में भी निशा के रुम की तरह ओपन टेरेस पड़ता है दोनों वहीं कोफि टेबल पर बैठे हुए थे।
अवि- आज तो थक गए यार। उपर से मइ महिने की गर्मी भी शुरू हो गई है। अच्छा है पापा ने सेन्ट्रल AC लगवाया है। नहीं तो पूजा में दो-तीन लोग तो बेहोश हो ही जाते।
रवि- हां यार, गर्मी तो लगती है और उसमें भी दिल्ली की ?। AC तो अब घर-घर की जरूरत बन गया है।
अवि- तु अंकल-आंटी को क्यों नहीं लाया?
रवि- एक शादी अटेंड करने जाना पड़ा भई। एसी गर्मी में शादी कौन करता है भला? एक बात तुने नोटिस की गर्मी की शादी में?
अवि- क्या?
रवि- शादी में मर्दों को तो खास फर्क नहीं पड़ता पर हमारी प्यारी माताजी और बहनों के मेकअप जरुर जल्दी उतर जाते हैं। बेचारे पति भी उनकी पत्नी को सामने होने के बावजूद पहचान नहीं पाते।? भई हमतो हमारी माताजी और बहनों को ध्यान में रखते हुए ठंडि में ही शादी करेंगे।
अवि- ठंडी में मेकअप तो नहीं उतरेगा पर अच्छे से कपड़े कहा पहन पाएंगे? दिल्ली की ठंडी भी तु जानता ही है।
रवि- तु गलत है इसमें। कितनी भी ठंड क्यूं न हो वे स्वेटर या शोल तो नहीं ही पहनती।
अवि- हम तो भई फरवरी में शादी करेंगे। न ज्यादा ठंड, न ज्यादा गर्म।
रवि- तेरी शादी से याद आया। ये तु मेरी बहन के साथ क्या करता रहता है, कही प्यार व्यार....
अवि- चल बे, ऐसा कुछ नहीं है। हर बार coincidence से सब होता है।
रवि- तु मुझे उल्लू मत बना। तेरा लंगोटिया यार हुं, सब जानता हु कमीने।
अवि- तु समझ रहा है ऐसा नहीं है यार। तेरी बहन को मैंने कुछ नहीं किया। वोही हर बार मुझसे टकरा जाती है बुद्वू कही की।
रवि- जबान संभालकर, वो बहन है मेरी।
अवि- आज कल की बनी बहन के लिए तु अपने बचपन के दोस्त से भीड़ जाएगा?
रवि- कभी जरुरत पड़ी तो वो भी कर लेंगे।?
अवि- हां-हां देख लूंगा तब।?

रवि- अच्छा तो ये बताओ, आज तक तुम्हें कइ लड़कियों ने प्रपोज किया स्कूल में, कोलेज की क्लासमेट और यहां तक कि कई सिनियर्स भी इसमे शामिल हैं। इसमें से कोई भी तुझे पसंद नहीं आई एसा कैसे हों सकता है? श्रुति ने भी अबतक तुम्हें दो-तीन बार प्रपोज किया, तु उसको भी मना क्यों कर रहा है?
अवि- इसमें श्रुति बिच में कहा से आ गई? तु जानता है मेरी पसंद। किस एंगल से वो तुझे मेरे टाइप की लगती है चिपकू कही की।
रवि- एक बुद्वू , एक चिपकू? वैसे तु श्रुति को फट से जवाब दे देता था पहली बार में ही वैसे पाखि को क्यों नहीं देता?
अवि- जुनियर है, डर जाएगी मेरे बोलने से।
रवि- अच्छा...! तो तु मानता है कि तु भयानक है।
अवि- तुझे बातों में कोई हरा नहीं सकता।?
रवि- चल अब सच बता। क्या चल रहा है दिमाग में?
अवि- तु छोड़ेगा नहीं न मुझे...
रवि- नहीं...। सच बताऊं तो तु इस वक्त कोलेज में सबसे हेंडसम, स्मार्ट, पढ़ने में भी अव्वल और अमीर भी। तुझसे तो कोई भी लड़की पट सकती है तो अबतक तुने गर्लफ्रेंड क्यो नही बनाई? सच बता... तेरा दिमाग अब मैं नहीं पढ़ सकता।
अवि- आज तुझे सच बता ही देता हु। जैसे लड़कियों के सपने में कोई न कोई राजकुमार आता है वैसे मेरे सपने में कोई राजकुमारी तो नहीं पर एक लड़की की खुबसूरत आंखें दिखती है। सपने में उसका चेहरा नहीं दिखता। आज जब मैं पाखि के उपर गलती से गिरा तो मेरी नजरें उसकी आंखों पर टीकी थी।
रवि- और वो वहीं आंखें हैं जो तु सपने में देखता है। राईट...?
अवि- पता नहीं पर लगती तो वैसी ही है। पर इसका मतलब यह नहीं कि मैं उसे पसंद करता हूं।
रवि- पक्का...।
अवि- हा बाबा। चल अब सोने चलते हैं।

( अगली सुबह निशा का घर)
सब नहा धोकर डाइनिंग टेबल पर आ गए थे।
निशा- मम्मा अपके परांठे बने के नहीं? कोलेज के लिए देरी हो रही है।
अवि- मम्मी जल्दी करो भूख लगी है। कल रात थकान की वजह से पूरा खा भी ना सके।
भरतजी- भई हमने तो पेट भरकर खाया था। और निंद भी अच्छी आ गई। वैसे आज मैं घर पर ही हुं, ओफीस में खास काम नहीं है तो पहले बच्चों को नाश्ता करवा दो।
गायत्रीजी परांठे लेकर आती है और कहती हैं सबका नाश्ता बन ही गया है।
और सब नाश्ता करने बैठ जाते हैं।
गायत्रीजी- निशा वो तुम्हारी सहेली अच्छी है क्या नाम है उसका?
निशा- काव्या?
गायत्रीजी- अरे नहीं...
निशा- रीधीमा, दिशा, पाखि और मीना इनमें से कौन?
गायत्रीजी- पाखि... ‌पाखि, संस्कारी लगती है वो लड़की क्यो भरतजी?
भरतजी- हां, तुम दोनों के कई फ्रेंड्स आए थे पर इस एक लड़की ने ही हमारे पैर छुए।
निशा- मम्मा, वो बिल्कुल आपके टाइप की ही है एकदम स्वीट। रंग गोरा नहीं है पर दिखती बहुत अच्छी है और स्वभाव की भी सरल है। पर्सनली सब फ्रेंड्स में वो मुझे ज्यादा अच्छी लगती है।
भरतजी- मैं क्या कड़वा करेला हुं?
निशा- आप तो मेरे बड़े वाले गुलाबजामुन है।?
अवि- निशु जल्दी खा, देर हो रही है कोलेज के लिए। (मन में सोचते हुए,-वैसे स्वीट तो है पाखि...)
नाश्ता करके दोनों कोलेज चले गए।

गायत्रीजी- भरतजी, एक बात कहूं ? पाखि को देखकर एक अजीब सा अहसास हुआ। जैसे कोई अपनी ही हो।
भरतजी- हां, सही कह रही हो। सिम्पल और संस्कारी। वैसे अपनी है नहीं तो वक्त आते अपना बना लेंगे।
गायत्रीजी- अपना बना लेंगे का क्या मतलब??
भरतजी- अरे भागवान, कल कानो में क्या बात की थी?
गायत्रीजी- कब?
भरतजी- जब पाखि ने पैर छुए और उस वक्त अवि आया था तब।
गायत्रीजी- अरे हां, याद आया।
भरतजी- तुम भी ना, क्या क्या सोचती रहती हो।
गायत्रीजी किचन में जाते हुए जोर से कहती हैं- बंदर ? कितना भी बुढ़ा हो जाए गुलाट मारना नहीं भूलता।
भरतजी- मुझे बंदर कहा?
गायत्रीजी- मैं बंदर को बंदर बोल रही हुं। आपही अपने आपको बंदर बुला रहे हैं।?
भरतजी- अपना काम निपटा लें फिर दिखाता हु तुम्हें अपनी गुलाट।

(सुबह हमारे घर)
डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हुए..
कविभाई- कैसी रही तुम्हारे फ्रेंड के घर पूजा?
मैं- बहुत अच्छी भैया। उनका घर बहुत बड़ा है और उससे भी बड़े सबके दिल। मुझे तो आरती करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था।
सेतु भाभी- अरे वाह! देखा मेरे कहे लाल ड्रेस का कमाल?
मैं- है...?! इसमें लाल ड्रेस कहा से आ गई?
सेतुभाभी- इस कलर में तु अच्छी जो लग रही थीं। तभी तो आरती उतारने का मौका मिला। जैसे तैसे कपड़े पहनती तो आंटी की नजरों में कैसे आती?
रविभाई- सेतु, बिना सर पैर की बात बंद कर और नाश्ता परोस।
भैया की बात सुनकर सब हंस पड़े। सेतु भाभी मुंह फुलाकर किचन में चली गई। और हम सब अपनी अपनी‌ मंजिल की ओर चल दिए।

मैं और दिशा कोलेज पहुंचे। लेक्चर खत्म होने के बाद लंच टाईम में सब केंटीन में बैठे थे। हम निशा के घर और परिवार के लोगों के बारे में बात कर रहे थे।
मीना- तुम्हारा घर बहुत अच्छा है निशा।
काव्या- और अंकल-आंटी भी। मैंने कइ बार देखा है बड़े लोग कभी सीधे मुंह किसी से बात नहीं करते। अपने से कम पैसेवालो से तो कई रिश्ता भी नहीं रखते। पर तुम्हारे घर एसा नहीं था। वहां अकेले पैसे वाले नहीं पर सभी तरह के महेमान थे। कपड़े और रहन सहन से पता चलता था।
मीना- सही कहा तुने। अंकल-आंटी सबसे कितना अच्छे से बात कर रहे थे।
निशा- मेरे मम्मी-पापा ने ग़रीबी देखी है। पहले से पापा के पास इतना पैसा नहीं था। पापा ने बिजनेस मम्मा के सब गहने बेचकर शुरू किया था। तब सिर्फ अवि भाई दो साल के थे। अपनी मेहनत से सब वर्कर्स को साथ रखकर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। मम्मी-पापा ने बुरा वक्त देखा था इसलिए वह किसीको अपने से कम नहीं समझते। और हमें भी यही सिखाया है।
मैं- यह सिख तो हमें भी लेनी चाहिए वक्त अच्छा हो या बुरा अपने व्यवहार में बदलाव नहीं आना चाहिए।
साकेत- आज दो प्रेक्टिकल के बाद छुट्टी है तो फिल्म देखने चलते हैं क्या कहते हैं? नई मुवि है URI, रिव्यू भी बढ़िया आये है। टिकट्स book my show पे करवा देता हु।
सब तैयार हो गए मेरे सिवा।
मैं- नहीं मैं नहीं आउंगी। रोज़ रोज़ बाहर रहना मुझे नहीं पसंद आप लोग जाइए।
निशा- मुझे भी नहीं आना। कल के पूरे दिन की थकान है।

साकेत ने टिकट्स बुकिंग करवाई। प्रेक्टिकल के बाद सब निकल पड़े। मैं और निशा फिर से केंटीन में कोफी पीने आए।
निशा- पाखि, तुम मेरे मम्मी-पापा को सब फ्रेंड्स में अच्छी लगी। सुबह हम तुम्हारे बारे में ही बात कर रहे थे।
मैं- मैरे बारे में? क्या बात हुई?
निशा- यही की तुम बिल्कुल वैसी हो जैसे मेरी मम्मी को पसंद हो। पता नहीं पाखि पर सब फ्रेंड्स में तुम मुझे ज्यादा अच्छी लगती हो। वैसे सभी पसंद ही है पर तुमसे लगाव ज्यादा है मुझे।
मैं- ओह! थेंकस् निशा। वैसे तुम्हें भी एक बात आज बता ही देती हु। जब मैं पहले दिन कोलेज आइ थी तब तुम्हारे पास बैठी थी याद है?
निशा- हां, याद है। तब तुमने मुझे बुलाया भी था पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया था।
मैं- हां, तब तुम मुझे नकचडी लगी थी।
निशा- कया...????
मैं- और नहीं तो क्या, तुमने कोई जवाब ही नहीं दिया तो...
निशा- अरे मेरी जान, मैं अजनबी से मिलते ही बात नहीं करती। क्या पता कौन कैसा है और कैसा नहीं।
मैं- चल कोई बात नहीं, अब तो एक-दूसरे को पहचानते हैं न। एक काम करना तुम अभी मेरे घर चलो। मेरे घर के लोगों से भी मिल लेगी। मेरी स्कूटी भी गराज से आ गई है तो तुम्हें घर ड्रोप कर दूंगी।
निशा- अच्छा चल। मैं भाई को कोल‌ करके बता देती हुं।

निशा ने अवि को कोल किया तो उसने हमें घर छोड़ने की बात कही। और निशा ने मना किया कहा कि आज मैं बस की राइड एंजॉय करुंगी। निशा कभी सीटी बस में नहीं बैठी तो, थोड़ी एक्साइटेड थी।
हम दोनों घर के पास के स्टेंड पर पहुंचे। नीचे उतरते वक्त बस की भीड़ देखकर निशा थोड़ा घबरा गई थी।
निशा- तुम इतनी भीड़ में कैसे आती हो?
मैं- ये मेरे लिए एडवेंचर राइड है।? भीड़ का भी अपना एक मज़ा है।
निशा- अच्छा...? एडवेंचर...???
बातें करते करते घर आ गया। घर पर सेतुभाभी और चन्टु बन्टु थे। मिता भाभी सब्जी मार्केट गई थी।
मैं- भाभी यह मेरी फ्रेंड निशा है जिसके घर में गई थी।
सेतुभाभी- वेलकम निशा, कैसी है।
निशा- मजे में भाभी और आप?
सेतुभाभी- मैं भी मज़े में हुं। आज जल्दी आ गए?
मैं- हां, बाकी सब फ्रेंड्स मुवी देखने गए हम दोनों यहां आ गए।
चन्टु - मम्मी ये कौन है?
मैं- ये बुआ की फ्रेंड है। नमस्ते करो दोनो।
चन्टु बन्टु- नमस्ते बुआ की फ्रेंड।?
निशा- नमस्ते बेटा। आप दोनों का नाम क्या है?
चन्टु- मैं चन्टु और ये बन्टु।
निशा- बहुत अच्छे नाम है आपके।
बन्टु- थेंक्यू बुआ की फ्रेंड।
मैं- इनका नाम निशा है चन्टु बन्टु।
चन्टु- हल्लो... निशाआआ...अअअ...दीदी...।

क्रमशः